Thursday, September 20, 2018

भारत के भविष्य पर संघ का लेखा परीक्षण

एक सच्चाई यह है कि राश्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर अपने संगठन को अहिंसा के सिद्धांत पर खड़ा किया और हिन्दू समाज के धार्मिक स्वभाव को मान्यता दिया मगर इसी संघ पर यह आरोप भी रहा है कि राश्ट्रपिता गांधी के हत्यारे नाथू राम गोड्से को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इनका समर्थन था। बड़ा सच यह है कि जाति, भाशा और क्षेत्रीय पहचान को चुनौती दिये बिना जो संस्था व संगठन निर्मित होते हैं वह लोक कल्याण उन्मुख कहे जाते हैं। आरएसएस को क्या इस प्रकार के संगठन के तौर पर देखा जाना चाहिए जबकि हिन्दू पहचान को महत्व देना इनकी रणनीति रही है। वैसे सरसंघचालक मोहन भागवत का हालिया दृश्टिकोण देखें तो उसमें वह सब मिलता है जो राश्ट्र निर्माण, समाज निर्माण तथा समरसता समेत कल्याण के लिये जरूरी बिन्दु होते हैं। संघ ने भारत के भविश्य को लेकर अपना दृश्टिकोण प्रस्तुत करने के साथ ही अपनी नीतियों, उद्देष्यों और क्रियाकलापों के बारे में जिस तरह प्रकाष डाला है उससे देखते हुए यह कह सकते हैं कि संघ के प्रति लोगों की सोच बदलेगी। कम से कम उन लोगों पर यह प्रभाव जरूर डालेगा जो संघ के बारे में कई तरह की गलत फहमी पाले हुए थे। जब मोहन भागवत कहते हैं कि आरक्षण नहीं, आरक्षण पर होने वाली राजनीति समस्या है तो बहुत संवेदनषील स्थिति पैदा होती है। इतना ही नहीं हिन्दू, मुस्लिम के बीच की दूरी कम करने के लिये मन्दिर निर्माण को जरूरी बताने वाले सरसंघचालक कहीं न कहीं साम्प्रदायिक झगड़े को समाप्त करना, समरसता को बढ़ावा देने की ओर संकेत कर रहे हैं। हालांकि इस मामले में राय अलग हो सकती है पर इसमें कोई दुविधा नहीं कि कई मुस्लिम संगठन राम मंदिर के पक्षधर हैं और लाखों-करोड़ों मुसलमान इस झगड़े को राम मन्दिर के रूप में स्थापित कर समाप्त भी करना चाहते हैं। मोहन भागवत ने अल्पसंख्यकों को संघ से भयावह रखने पर भी अपनी बेबाक राय दी उनका कहना है कि संघ अल्पसंख्यक षब्द को ही नहीं मानता और भारत में जन्मा हर व्यक्ति भारतीय है। वाकई ये सभी समरसता और सद्भावना के काम आ सकते हैं। 
औपनिवेषिक भारत के उन दिनों जब भारत राश्ट्रीय आंदोलन की मजबूत नीतियों और उसके क्रियान्वयन के प्रति संकल्पबद्ध था और गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर आजादी की आबो हवा तलाष रहा था तब उसी समय आरएसएस जैसे संगठन का भी उदय हो रहा था जो हिन्दुत्व की भावना से ओतप्रोत एक राश्ट्र की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ने की फिराक में थे। साल 1975 के आपात में आरएसएस को प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। हालांकि प्रतिबंध इसके पहले भी उस पर लगाये जा चुके थे पर अपनी विचारधाराओं से न डिगने वाला यह संगठन आज देष और दुनिया में कहीं अधिक सबलता के साथ सक्रिय है। आज देष में आरएसएस की 50 हजार से अधिक दैनिक सभायें होती हैं इसके साथ ही अन्य सामूहिक बैठकों के अलावा 30 हजार साप्ताहिक बैठकें भी होती हैं जिसमें लगभग 10 लाख लोग षामिल होते हैं। यही एक समान विचारों के साथ आरएसएस के एजण्डे को आगे बढ़ाने का काम करते हैं। हालिया परिप्रेक्ष्य में जिस प्रकार आरएसएस के संघ संचालक ने दर्जनों मुद्दों पर अपनी राय दी है उससे साफ है कि कईयों का मन सकारात्मक हुआ होगा। यह सही है कि आरएसएस को एक दबाव समूह के रूप में देखा जाता है पर इसी संस्था ने उन हजारों नागरिकों को अच्छे काज के लिये प्रेरित किया है जो सबसे पीछे पंक्ति में थे। देखा जाय तो षहरी और सभ्य समाज में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र व आदिवासी समेत हर क्षेत्र में आरएसएस की पहुंच है। इतना ही नहीं भारत के अलावा विदेषों में भी अपने नेटवर्क को फैलाया है और 100 से अधिक देषों में इसकी मौजूदगी है। जहां इन जगहों पर दौरा किया जाता है और प्रवासियों की हालात का जायजा लेते हुए उन्हें प्रेरित भी करता है।
मिषनरी उत्साह से भरपूर निःस्वार्थ और समर्पित, कार्यबल, परम्पराओं की गहरी जड़ें, मूल्य और सिद्धांतों को लेकर आरएसएस अपने को कहीं अधिक ताकतवर मानती है। इसी ताकत का फायदा राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी उठाती है। इतना ही नहीं एजेण्डे से भटकने पर आरएसएस का दबाव ऐसी सरकारों पर रहा है। भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा मोदी सरकार आरएसएस के प्रभाव से मुक्त नहीं है मगर खास यह है कि मोदी को सरसंघचालक मोहन भागवत का समर्थन बीते चार वर्शों से मिल रहा है। मोदी के कार्यों को संघ मान्यता देता रहा है। हालांकि विचारों की टकराहट भी कुछ बिन्दुओं पर हो सकती है पर संघ और सरकार दोनों के सुर-ताल इन दिनों आपस में खूब मेल खा रहे हैं। एक बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से आरएसएस के दबाव को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बड़े हल्के अंदाज में कहा कि उन्हें इस प्रकार के दबाव से कोई लेना-देना नहीं पर यही बात पूरी तरह मोदी पर षायद लागू न होती हो। नागपुर से दिल्ली और पूरे देष समेत दुनिया के कई हिस्सो में पहुंचा संघ अब कई अन्य विचारधारा को भी अपनाने से गुरेज नहीं कर रहा। पूर्व राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर में आयोजित संघ के अतिथि बन चुके हैं तब उन दिनों कांग्रेस बहुत संकट महसूस कर रही थी मगर जब प्रणव दा ने संघ के मंच से संतुलित विचार रखा तब कांग्रेसी समेत सभी के चेहरे से षिकन दूर हुआ था। गौरतलब है कि 18 सितम्बर को दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस का तीन दिवसीय मंथन चला जिसमें संघ के लोग देष के भविश्य पर चर्चा कर रहे थे जिसका विशय था भारत का भविश्य: राश्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृश्टिकोण। चर्चा के पहले दिन सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपना दृश्टिकोण रखा जिसमें उक्त समेत कई बातें उभरी। एससी/एसटी एक्ट से लेकर जम्मू-कष्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए पर भी गम्भीरता से चर्चा हई। तीन तलाक के मुद्दे पर भी यहां पर मंथन हुआ है। समलैंगिकता व धारा 377 पर भी संघ के मत का लेखा-जोखा देखा जा सकता है। समान नागरिक संहिता और जनसंख्या को लेकर क्या नीति होनी चाहिए इस पर भी बात हुई है। महिलाओं की सुरक्षा, स्वदेषी और स्वराज समेत दर्जनों मुद्दों पर घण्टों मोहन भागवत ने अपना उद्घोश दिया।
भविश्य का भारत क्या होगा इस पर भी दृश्टिकोण साफ हुए हैं। यह पहले कह चुके हैं कि संघ के दबाव में सरकारों रही हैं उसका मूल कारण संघ का जनमत पर सियासी प्रभाव का होना है। भाजपा संघ की ही एक इकाई है। मोदी भाजपा समेत एनडीए गठबंधन वाले राजनीतिक दल से प्रधानमंत्री हैं। सरसंघचालक जो कह रहे हैं उसे सरकार समझ रही है और संघ जो समझा रहा है वह भी आमजन जानते हैं कि इससे आने वाले चुनाव और मौजूदा मोदी सरकार के लिये राह कैसी होगी। सवाल मन में यह उठता है कि क्या संघ द्वारा उठाई गयी बातें सरकार की परछाई नहीं है सम्भव है कि मोदी इसे टाल नहीं सकते और संघ संचालक देष की स्थिति, परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, हिन्दुत्व और राश्ट्रीयता को महत्व देते हुए किसी को नाराज़ भी आखिर क्यों करेंगे। इसमें भी कोई दुविधा नहीं कि भाजपा के नेतृत्व की साख फिलहाल दांव पर नहीं है पर यह भी एक कटु सत्य है कि जनता 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी से 2014 में किये गये वादे का हिसाब मांगेगी जिसका किला मजबूत करने में इन दिनों आरएसएस बाकायदा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर काम कर रहा है। 2019 की सरकार भी मोदी के हिस्से में आये इसकी जोर-आज़माइष में संघ भी षामिल है। विभिन्न मुद्दों पर तीन दिनों के मंथन का लेखा परीक्षण यही इषारा करता है कि देष में आरएसएस के प्रति लोगों का दृश्टिकोण न केवल सबल करना है बल्कि भारत का भविश्य बेहतर करने के लिये मोदी को पुर्नस्थापित भी करना है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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