Wednesday, March 28, 2018

मैन ऑफ एक्शन व्लादिमीर पुतिन का क्षितिज

इस वर्श के मार्च महीने में दुनिया में दो बड़ी बातें होते हुए देखी जा सकती हैं। एक चीन के मौजूदा राश्ट्रपति षी जिनपिंग का ताउम्र राश्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ होना तो दूसरा व्लादिमीर पुतिन का चैथी बार रूस का राश्ट्रपति चुना जाना। गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच सम्बंध समतल नहीं हैं जबकि रूस के साथ रिष्ते सरपट दौड़ते हैं। फिलहाल जिस डिग्री पर घुमाव के साथ इस बार पुतिन रूस के राश्ट्रपति चुने गये उससे तो आम रूसियों को यही लगता है कि पुतिन ने दुनिया में रूस की नाक फिर ऊँची कर दी है। उनकी इस बार की जीत देष की आर्थिक मजबूती की दिषा और दषा का चित्रण करता है। षायद यही कारण है कि उनके लोग उन्हें मैन आॅफ एक्षन कहते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि पहले राश्ट्रपति फिर प्रधानमंत्री और फिर राश्ट्रपति उसमें भी जीत को दोहराना वाकई पुतिन की षख्सियत का ही कमाल है। कहा जाय तो दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रफल वाले रूस में पुतिन का दबदबा है। कहा तो यह भी जाता है कि चुनाव में जो लोग उनके खिलाफ खड़े होते हैं वे केवल दिखावे के लिए होते हैं या फिर उनके ऊपर संकट की तलवार लटक रही होती है। इस बार के परिणाम के बाद भी ऐसी चर्चा आम थी। जो भी हो व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर रूस के राश्ट्रपति बन गये हैं। हालांकि चुनाव में तमाम अनियमित्ताओं और गलत तौर-तरीकों के आरोप भी इन पर लगे हैं। फिलहाल इन सबसे बेपरवाह पुतिन रूस के एक ऐसे लौह नेता बन चुके हैं जिनके इर्द-गिर्द षायद कोई नहीं है। 
चीन, जापान और जर्मनी समेत दुनिया के कई देषों के नेताओं ने पुतिन को इस जीत पर बधाई दी है। जापान के प्रधानमंत्री षिंजो अबे और पुतिन ने उत्तर कोरिया के परमाणु निषस्त्रीकरण हासिल करने में मदद करने हेतु साथ काम करने की सहमति भी जताई है। फिर से रूस के राश्ट्रपति बने पुतिन किन वजहों से देष की सत्ता पर बीते 18 सालों से काबिज हैं यह भी रोचक है। देखा जाय तो 65 वर्श की आयु वाले पुतिन रूस की ताकत दिखलाने से कभी परहेज नहीं किया और न ही दुनिया से अपनी छाप छुपायी। गौरतलब है कि वर्शों तक अमेरिका और नाटो रूस को नजरअंदाज करते रहे और एक समय ऐसा भी आया जब अमेरिका में 2016 के राश्ट्रपति चुनाव में रूस पर दखल देने का आरोप लगा। हालांकि यह आरोप पुतिन के पुराने साथी पर लगा था। पुतिन की एक खासियत यह भी है कि वे जूड़ो में ब्लैक बेल्ट हैं और उसकी आक्रामकता उनके तेवर में भी झलकती है। अक्टूबर 2015 में पुतिन ने कहा था कि 50 साल पहले लेनिनग्राद की सड़कों ने मुझे एक नियम सिखाया था कि अगर लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो। पड़ताल बताती है कि साल 1997 में पुतिन रूस के पहले राश्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार में षामिल हुए जबकि वर्श 2000 में वे स्वयं रूस के राश्ट्रपति बने साथ ही 2004 में वे दोबारा भी राश्ट्रपति चुने गये। गौरतलब है कि रूस के संविधान में तीसरी बार राश्ट्रपति का चुनाव लड़ने का प्रावधान नहीं था ऐसे में वे वहां के प्रधानमंत्री बने। रूसी संविधान में संषोधन और कई बार राश्ट्रपति बनने का रास्ता भी साफ किया गया। यही वजह थी कि साल 2012 में तीसरी बार राश्ट्रपति और अब चैथी बार इसी पद पर काबिज हुए हैं।
खास यह भी है कि लम्बे षासन के बावजूद लोग पुतिन को पसंद कर रहे हैं जबकि षेश दुनिया में इन दिनों रूस संदेह की दृश्टि से देखा जा रहा है। गौरतलब है कि इन दिनों रूस के राजनयिकों को दुनिया के कई देष अपने देष से बाहर निकाल रहे हैं। यह सिलसिला इंग्लैण्ड ने बीते 17 मार्च को षुरू किया था। अमेरिका ने भी 60 राजनयिकों को देष छोड़ने का आदेष दे दिया है। फ्रांस, जर्मनी, पोलैण्ड, चेक गणराज्य समेत डेनमार्क, स्पेन और इटली आदि ने भी रूसी राजनयिकों को बाहर का रास्ता दिखाया। जाहिर है दुनिया के तमाम देषों का विष्वास रूस पर से फिलहाल डगमगाया है। रूस के सुपरमैन पुतिन और मैन आॅफ एक्षन प्रधानमंत्री मोदी के बीच सम्बंध हर हाल में अच्छे ही कहे जायेंगे। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका के पूर्व राश्ट्रपति बराक ओबामा ने मैन आॅफ एक्षन की संज्ञा दी थी। भारत और रूस के सम्बंध को देखें तो इसमें परम्परागत और नैसर्गिकता का भाव निहित रहा है। गौरतलब है जब दुनिया दो गुटों में बंटी थी जिसमें एक संयुक्त राज्य अमेरिका का तो दूसरा सोवियत संघ का था तब भारत ने इन दोनों से अलग गुटनिरपेक्ष की राह अपनायी थी जिस पर आज भी कायम है। हालांकि आर्थिक उदारीकरण और बदली दुनिया के मिजाज को देखते हुए पथ तुलनात्मक चिकना हुआ है पर बदला नहीं है। भारत का दुनिया के तमाम देषों के साथ सम्बंधों को लेकर उतार-चढ़ाव रहे हैं परन्तु मास्को के साथ दिल्ली का नाता कभी उलझन वाला नहीं रहा। हांलाकि वर्श भर पहले जब रूस ने पाकिस्तान के साथ मिलकर युद्धाभ्यास करने का इरादा जताया तब यह बात भारत को बहुत खली थी। तब यह चर्चा आम थी कि नैसर्गिक मित्र रूस ऐसे कैसे कर सकता है। वैसे इस बात में भी दम है कि प्रधानमंत्री मोदी के षासनकाल में अमेरिका और भारत के बीच सम्बंध कहीं अधिक प्रगाढ़ हुए हैं। बराक ओबामा के समय तो यह परवान चढ़ा था जिसे लेकर चीन समेत कुछ हद तक रूस को भी अखरना लाज़मी था और यह तब और दिक्कत वाला हो गया जब बराक ओबामा ने 2015 के गणतंत्र दिवस के दौरे में एक संयुक्त प्रेस वार्ता में यूक्रेन मामले को लेकर रूस के प्रति तेवर कड़े दिखा दिये थे। फिलहाल मोदी ने कूटनीतिक संतुलन को बरकरार रखते हुए पुरानी दोस्ती को प्रगाढ़ रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ध्यान्तव्य हो कि प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू रूस की समाजवादी विचारधारा  से बहुत प्रभावित थे। भारतीय संविधान के प्रस्तावना में समाजवाद षब्द का उल्लेख देखा जा सकता है। समाजवाद की ही प्रेरणा से भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित है जिसमें पूंजीवाद के साथ समाजवाद और लोक के साथ निजी का समावेषन है। इतना ही नहीं भारत-रूस के द्विपक्षीय सम्बंध न केवल ऐतिहासिक हैं बल्कि आर्थिक तथा वैज्ञानिक दृश्टि से कहीं अधिक उपजाऊ रहे हैं और यह क्रम बना हुआ है। नवनिर्वाचित रूसी राश्ट्रपति पुतिन के सामने चुनौतियां कमोबेष उसी षक्ल सूरत में अभी भी विद्यमान हैं। देखा जाय तो अमेरिका के साथ ठण्डा पड़ चुका संघर्श जब-तब उबाल मारता रहता है। उत्तर कोरिया के मामले में न केवल पुतिन को चीन को साधना है बल्कि जापान और दक्षिण कोरिया के भी विष्वास पर उन्हें खरा उतरना है। इसके अलावा ब्रिटेन में कथित रूप से रासायनिक हमले को लेकर बढ़ रहा विवाद भी उनके लिये बड़ी चुनौती है। सीरिया गृहयुद्ध और वहां की सरकार को समर्थन देने पर विवादों के घेरे में हैं साथ ही रूस की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं बतायी जा रही। सम्भव है कि पुतिन को घर भी संभालना है और बाहर भी संयम दिखाना है। फिलहाल जिस मिजाज के पुतिन हैं उससे साफ है कि उन्हें इसकी चिंता कम ही होगी परन्तु साख से समझौता वे भी नहीं करेंगे।  


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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