Wednesday, March 7, 2018

महिलाएं भारत की तरक्की की चाबी

वर्तमान में आर्थिक उदारवाद, ज्ञान के प्रसार और तकनीकी विकास के साथ संचार माध्यमों के चलते तरक्की के अर्थ और लक्ष्य दोनों बदल गये हैं। महिलाओं के हाथ में भारत की तरक्की की चाबी की बात विष्व बैंक ने कही है। विष्व बैंक ने यह भी कहा है कि अगर भारत दो अंकों वाली आर्थिक वृद्धि चाहता है तो उसे नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी पर हालिया रिपोर्ट यह भी कहता है कि भारत में केवल 27 प्रतिषत औरतें या तो काम कर रही हैं या सक्रिय रूप से नौकरी तलाष रही हैं। देखा जाय तो भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है बावजूद इसके नौकरियों में महिलाओं की कम हिस्सेदारी चिंतनीय है। रिपोर्ट तो यह भी परिलक्षित करती है कि पिछले एक दषक के दौरान इस मामले में स्थिति और खराब हुई है। दो टूक यह भी है कि दुनिया भर में कामकाज की जगहों पर बेहतर लैंगिक संतुलन बनाने पर उतना जोर नहीं था जितना बीते कुछ वर्शों से देखने को मिल रहा है। भारत के श्रम बाजार में महिलाओं की हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम है रिपोर्ट यह दर्षाती है कि डिग्री हासिल करने वाली 65 फीसदी से अधिक महिलाएं काम नहीं कर रही हैं जबकि बांग्लादेष में यह आंकड़ा 41 प्रतिषत है तथा इंडोनेषिया तथा ब्राजील में 25 प्रतिषत है। साल 2007 के बाद भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या घटने के संकेत मिले हैं मुख्यतः ग्रामीण इलाकों में। आंकड़ों की समीक्षा यह इषारा करती है कि 34 प्रतिषत काॅलेज ग्रेजुएट महिलाएं ही कामकाजी हैं। जाहिर है आर्थिक विकास को दहाई रखने के इरादे तब तक अधूरे रहेंगे जब तक तरक्की में महिलाओं की भागीदारी को लेकर संजीदगी नहीं बढ़ेगी। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीकी विकास ने परम्परागत षिक्षा को पछाड़ दिया है और इस सच से किसी को गुरेज नहीं होगा कि परम्परागत षिक्षा में स्त्रियों की भूमिका अधिक रही है अब विकट स्थिति यह है कि नारी से भरी आधी दुनिया मुख्यतः भारत को षैक्षणिक मुख्य धारा में पूरी कूबत के साथ कैसे जोड़ा जाय। बदलती स्थितियां यह आगाह कर रही हैं कि पुराने ढर्रे अर्थहीन और अप्रासंगिक हो रहे हैं और इसका सबसे ज्यादा चोट स्त्री षिक्षा पर हुआ है। जाहिर है यदि तकनीकी और रोजगारपरक षिक्षा से महिलायें दूर रहेंगी तो न केवल उनमें बेरोजगारी व्याप्त होगी बल्कि एक बड़ा मानव श्रम का लाभ लेने से भी भारत वंचित हो जायेगा। उत्तर प्रदेष के राज्यपाल राम नाईक ने भी महिला सषक्तिकरण को जीडीपी के लिए महत्वपूर्ण बताया था। आंकड़ा तो यह भी बताता है कि यदि देष की 70 फीसदी महिला श्रम का इस्तेमाल कर दिया जाय तो जीडीपी में साढे चार प्रतिषत की वृद्धि हो सकती है। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी एवं व्हाइट हाऊस में सलाहकार इवांका ट्रंप ने हाल ही में भारत की उपलब्धियों की तारीफ करते हुए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत बतायी। कहा तो यह भी गया कि ऐसे कदम से भारत की अर्थव्यवस्था तीन साल में 150 अरब डाॅलर से ज्यादा बढ़ सकती है और महिला-पुरूश उद्यमियों की भागीदारी बराबर होने पर जीडीपी 2 प्रतिषत से ज्यादा बढ़ सकती है। अगर सब कुछ सामान्य रहे तो आगामी 2025 तक भारत की अनुमानित जीडीपी दोगुनी हो सकती है। वैसे देखा जाय तो सभी क्षेत्रों में भारत की जीडीपी में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम है। भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान मात्र 17 फीसदी है जबकि चीन 41 फीसदी, दक्षिण अमेरिका में 33 फीसदी इतना ही नहीं वैष्विक औसत करीब 37 फीसदी की तुलना में यह आधे से भी कम है। उक्त से यह स्पश्ट है कि भारत में महिला श्रम का भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा षायद यही वजह भी है कि तमाम कोषिषों के बावजूद मनचाहा आर्थिक विकास नहीं मिल रहा।
यह तथ्य निविर्वाद रूप से सत्य है कि समाज में महिलाओं की उपेक्षा की जाती है। महिलाओं की साक्षरता, षिक्षा, उद्यमिता से लेकर कौषल विकास एवं नियोजन आदि में भूमिका चैगुनी की जा सकती है। झकझोरने वाला सवाल यह है कि क्या कभी किसी ने इस बात पर गौर किया कि दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत के हालात में चमत्कारिक परिवर्तन क्यों नहीं हो रहे हैं। इसका उत्तर मात्र एक है महिलाओं की प्रत्येक क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी की कमी का होना। वैसे देखा जाय तो महिला सषक्तिकरण को लेकर दषकों से कार्यक्रम जारी है और परिवर्तन भी आया है बावजूद इसके कई कमियां व्याप्त हैं पर एक फर्क बीते कुछ वर्शों से दिख रहा है कि लड़कियों ने षिक्षा और रोजगार के मामले में स्वयं को स्थापित करने की होड़ में तो दिख रही है। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा में टाॅपर ही नहीं इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेष परीक्षाओं में अव्वल आ रही हैं। थोड़ी देर के लिये यह मान भी लिया जाय कि परिवर्तन सार्थक है पर इसकी समझ सब जगह पर व्याप्त नहीं है। आज भी तमाम स्थानों पर नारी के रात में निकलने पर पाबंदी है। पराये मर्दों से कम व्यवहार रखने और मर्यादा तथा छवि की चिंता हर क्षण उनमें बनी रहती है। भारतीय संस्कृति और संस्कार को ढोने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। परिवार के लिए त्याग में भी उन्हीं को आगे रखा जाता है। इतना ही नहीं पति को परमेष्वर मानने की व्यवस्था से भी वे बाहर नहीं निकल पायी है। भले ही उच्च षिक्षा प्राप्त कर लें, सरकारी, गैरसरकारी नौकरी कर लें पर गृहणी की भूमिका से वे मुक्त नहीं है साथ ही घरेलू हिंसा से भी ये जकड़ी हुई हैं। आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि हर दूसरी महिला इस हिंसा का कभी न कभी षिकार हुई है। साक्षरता से लेकर सक्षमता तक, षोध से लेकर बोध तक और खेल के मैदान से लेकर एवरेस्ट की ऊँचाई ही नहीं अंतरिक्ष की दौड़ लगाने वाली महिलायें बेषुमार देखी जा सकती हैं। विष्व बैंक का यह कथन कि भारत की तरक्की की चाबी महिलाओं के हाथ में है कहीं से गैर मुनासिब बात प्रतीत नहीं होती। 
महिला सषक्तिकरण के मामले में कई खट्टे-मीठे अनुभव भी हैं देष के भीतर 48 फीसदी से अधिक महिलायें हैं जबकि मौजूदा 16वीं लोकसभा में 543 सदस्यों में मात्र 61 महिलायें ही हैं। यह तस्वीर भी कहीं न कहीं देष की तरक्की को कमजोर करने वाली दिखती है। गौरतलब है कि 15वीं लोकसभा में 58 और 14वीं लोकसभा में मात्र 45 महिलायें ही लोकसभा में पहुंच पायी थीं जबकि 33 फीसदी आरक्षण को लेकर राजनीतिक इच्छाषक्ति दिखायी गयी पर नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे। देष में प्रधानमंत्री, राश्ट्रपति तथा स्पीकर समेत भारी-भरकम संवैधानिक पदों पर महिलाएं नियुक्त हो चुकी हैं। मौजूदा समय में भी सुमित्रा महाजन स्पीकर हैं। गौरतलब है कि दुनिया के कई देषों में महिलाओं को आरक्षण की व्यवस्था संविधान में दी गयी है पर हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं है। अर्जेन्टीना में 30 फीसदी, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देषों में क्रमषः 27 और 30 फीसदी आरक्षण मिला है। पड़ोसी बांग्लादेष भी इस मामले में पीछे नहीं है। पष्चिमी देष डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन समेत कई यूरोपीय देष इसमें षामिल देखे जा सकते हैं। संदर्भ निहित व्याख्या यह भी है कि कौन सा काम महिलाएं नहीं कर सकती। आज हर तरह की नौकरी और कामकाज के साथ महिलाएं पुरानी धारणा को तोड़ नई पीढ़ी के लिए मिसाल बन रही हैं। जाहिर है वैष्विक परिदृष्य में यदि भारत को अपनी ताकत सामाजिक और आर्थिक तौर पर और बुलन्द करनी है तो सकल घरेलू उत्पाद से लेकर श्रम बाजार तक में इनकी भूमिका को महत्व देना होगा। 21वीं सदी के दूसरे दषक में बड़े बदलाव और विकास को सतत् करना साथ ही समावेषी धारणा से युक्त होना है तो तरक्की की चाबी महिलाओं की हर क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ानी ही होगी। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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