Wednesday, March 21, 2018

इराक मे आतंकियों की भेंट चढ़े भारतीय

इराक में काम करने गये 39 भारतीयों के मारे जाने की खबर इस बात को तस्तीक करती है कि आतंक का चेहरा कितना घिनौना होता है। आईएस के आतंकवादियों ने जिस क्षेत्र में यह वारदात की है वहां भारत सरकार तो दूर उस समय इराक सरकार तक की भी पहुंच नहीं थी। जाहिर है ऐसा क्षेत्र था जहां न भारत की कूटनीति और न ही भारत की सैन्य ताकत काम आ सकती थी। यहां तक कि वह इलाका भारत के खूफिया पकड़ से भी बाहर था। इसका यह तात्पर्य नहीं कि सरकार इस मामले में संजीदा नहीं थी पर बात तो बिगड़ चुकी है। सभी जानते हैं कि इराक में बरसों से आईएसआईएस की तूती बोलती रही है और मोसुल में तो इनकी दादागिरी कहीं ज्यादा रही है। गौरतलब है कि आईएस के कब्जे वाले मोसुल से ही उसी दौरान भारत ने केरल की नर्सों को मुक्त कराया और उन्हें अपने देष लाने में सफल भी रहे। इससे स्पश्ट है कि सरकार की सक्रियता लगातार रही है परन्तु 39 लोगों के मामले में विफलता तो मिली है। महज 35 हजार रूपए की नौकरी के लिए जान जोखिम में डाल कर भारतीय ऐसे इलाकों में चले गये जो मौत की घाटी थी। वाकई यह सरकार सहित देष के लिए झकझोरने वाला विशय है। 
दुनिया भर में आईएस की दहषत कहीं अधिक रही है। हालांकि यह कमजोर भी हुआ है पर खत्म हुआ है ऐसा कहना सही नहीं है। देखा जाय तो विगत् कुछ वर्शों से आतंकवाद पर चर्चा खुलकर हो रही है। जिस तर्ज पर आतंकवादियों ने पिछले कई वर्शों से अपनी ताकत को परवान चढ़ाया है उसे देखते हुए कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसका सुरक्षा कवच वे नहीं भेद सकते। गौरतलब है अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक और फ्रांस से लेकर आॅस्ट्रेलिया तक आतंक की चपेट में आ चुके हैं। ध्यानतव्य हो कि साल 2015 में पेरिस के षार्ली आब्दो के दफ्तर पर हुए आतंकी हमले और पुनः उसी पेरिस में आतंकी हमला होना पूरे यूरोप को भय से भर दिया था। निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि आतंकी संगठनों की संख्या बेहिसाब बढ़ी है। अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के आधार पर देखें तो सौ में 83 संगठन इस्लामिक हैं। खास यह भी है कि आतंक का जिस गति से विस्तार हुआ है उससे पार पाने के लिए वैष्विक रणनीति कारगर नहीं रही है। प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यकाल से ही वैष्विक मंचों पर आतंक की पीड़ा से जूझ रहे भारत की स्थिति दुनिया के सामने रखते रहे। गौरतलब है कि आतंक की पीड़ा कमोबेष देषों ने झेली होगी पर भारत ने वृहत्तम मात्रा में इसे झेला है और यह क्रम अभी रूका नहीं है। 
पड़ताल बताती है कि आईएस से इराक मुक्त हुआ है पर दुनिया आतंक की चपेट में है। जून 2014 में मोसुल षहर आईएस के कब्जे में आया था और 39 भारतीय यहीं चपेट में आये थे। 10 जुलाई 2017 को औपचारिक रूप से मोसुल को आजाद कराने के एलान किया गया जबकि पिछले वर्श की 10 दिसम्बर को इराक को आईएस मुक्त होने की बात सामने आयी। इराकी प्रधानमंत्री ने इसी तिथि को राश्ट्रीय अवकाष घोशित करते हुए आईएस से इराक के मुक्त होने का जष्न मनाया। तब ब्रिटेन की प्रधानमंत्री ने आगाह किया था कि आईएस का खतरा अभी टला नहीं है। जिस तर्ज पर आईएस का ताण्डव हुआ है उसे देखते हुए यह बात हज़म करना मुष्किल है कि आईएस का आतंक खत्म हुआ है। सीरिया से लगी सीमा पर इसकी मौजूदगी अभी भी मानी जाती है साथ ही आईएस प्रमुख बगदादी की मौत पर भी संदेह है। तुर्की और ईरान की मीडिया भी ऐसा ही मानती है। हालात अभी भी आतंक के साये में है और भारत से बाहर काम कर रहे भारतीयों की तादाद भी कम नहीं है। साल 2017 की विदेष मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि सऊदी अरब में 32 लाख से अधिक संयुक्त अरब अमीरात में 28 लाख ओमान तथा कतर में लगभग 8 लाख और 7 लाख भारतीय हैं। दुनिया भर में आईएस की दहषत कम हो सकती है पर अभी समाप्त नहीं। कहा तो यह भी जाता है कि 90 देषों के लड़ाके आईएस की ओर से इराक और सीरिया पहुंचे। मौजूदा स्थिति में 98 फीसदी इलाके इससे मुक्त कराये जा चुके हैं। सीरिया में रूस और इराक में अमेरिका की मदद से ऐसा सम्भव हुआ है। 
हालांकि आईएस का मानचित्र तेजी से छोटा हो रहा है। कई प्रकार की परेषानियों समेत आर्थिक संकट के चलते अब इस संगठन से जुड़ने वालों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है और जो इसमें पहले से हैं वे भी आम जीवन में लौटना चाहते हैं। मुख्य यह भी है कि इसमें षामिल महिलाएं तेजी से इससे पीछा छुड़ा रही हैं। दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन आईएस निहायत महत्वाकांक्षी किस्म का है। आर्थिक तौर पर देखें तो इसका बजट 2 अरब डाॅलर का है जो अपहरण से प्राप्त फिरौती तथा बैंक लूटने जैसे तमाम हथकण्डों से युक्त है। इसकी महत्वाकांक्षा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जाॅर्डन, इज़राइल, फिलीस्तीन, लेबनान, कुवैत तथा साइप्रस समेत दक्षिणी तुर्की के कुछ भाग में राजनीतिक नियंत्रण प्राप्त करने का लक्ष्य घोशित किया था। महत्वाकांक्षा तो इतनी बड़ी थी मानो दुनिया भर पर कब्जा जमाना चाहता हो। मोसुल इराक का दूसरा सबसे बड़ा षहर है जो बगदाद से 500 किलोमीटर दूर है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आईएस के जद्द में भारतीय आये हैं और जान भी गंवा चुके हैं। डीएनए से षव की पहचान की गयी जाहिर है नरम-गरम राजनीति भी होगी पर इस सच्चाई से सभी को वाकिफ होना जरूरी है कि खाड़ी देषों में भले ही रोजगार की भरपूर सम्भावनायें हो पर जोखिम भी दुनिया में सबसे ज्यादा वहीं है। दो टूक यह भी है कि जीवन यापन का देष में इतना दबाव है और विकल्प इतने सीमित हैं कि जोखिम की राह चुननी ही होती है। हांलाकि सरकार अपनी ओर से चेतावनी जारी करती है। रोजगार और नौकरी के लिये किन क्षेत्रों में जाना चाहिए, कहां नहीं जाना चाहिए परन्तु स्थिति को देखते हुए तो यही लगता है कि इतना पर्याप्त नहीं है। बाहर भेजने वाले दलालों और एजेंटों की नकेल भी कसनी होगी जो इन्हें मोटी तनख्वाह का लालच देकर जोखिम में डाल देते हैं। फिलहाल आईएस के कुकृत्य के चलते 39 भारतीयों को खोने का दर्द सभी को है। आगे ऐसा न हो इसे पुख्ता किया जाना कहीं अधिक जरूरी है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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