Wednesday, March 21, 2018

क्यों ला रहें हैं अविश्वास प्रस्ताव !

बजट सत्र के दूसरे चरण के षुरूआत से आन्ध्र प्रदेष को विषेश राज्य का दर्जा, कावेरी और पीएनबी समेत कई मुद्दों पर विभिन्न दलों के हंगामों के चलते सदन की कार्यवाही लगभग एक पखवाड़े से अस्त-व्यस्त चल रही है। दूसरे षब्दों में कहें तो कार्यवाही समुचित नहीं चल पा रही है और कामकाज ठप्प है। बीते दिन इराक में 39 भारतीयों के मारे जाने की पुश्टि की सूचना दिये जाने के बाद दोनों सदनों में खूब षोर-षराबा हुआ। जाहिर है विरोधी यहां भी सरकार को घेरने की कोषिष में देखे जा सकते हैं। लोकसभा का हाल तो यह है कि कार्यवाही षुरू होते ही हंगामा होने लगता है और कार्यवाही 12 बजे तक रोकने फिर दिन भर के लिए स्थगित करने की रस्मअदायगी देखी जा सकती है। हंगामा इस कदर बरपा है कि एक समस्या हल नहीं होती कि दूसरी मुखर हो जाती है। सरकार के खिलाफ अविष्वास प्रस्ताव के नोटिस को कई दिनों की कोषिषों के बावजूद स्वीकार किया जाना सम्भव नहीं हो पा रहा जबकि राज्यसभा का भी आलम यह है कि हिचकोले लेकर या तो समय काटा जा रहा है या हंगामे का भेंट चढ़ रहा है। बीते 20 मार्च को विदेष मंत्री सुशमा स्वराज के बयान के 30 मिनट के बाद ही दिन भर के लिये सदन का स्थगित होना कई सवालों को भी जन्म दे रहा है। आखिर सत्ताधारक हों या विपक्षी सभी जनता से मत प्राप्त कर सदन तक पहुंचते हैं इस विष्वास और अपेक्षा के साथ कि वे जनता के लिये काम करेंगे और देष को ऊँचा उठायेंगे परन्तु इस क्रियाकलाप से क्या यह हो रहा है यह समझने वाली बात है।
लोकतंत्र में यह रहा है कि देष की सबसे बड़ी पंचायत से जनहित को सुनिष्चित करने वाले कानून और कार्यक्रम की उपादेयता सुनिष्चित होती है पर संसद अगर षोर-षराबे की ही षिकार होती रहेगी तो ऐसा सोचना बेमानी होगा। इन दिनों मोदी सरकार के विरूद्ध अविष्वास प्रस्ताव लाने की कोषिष की जा रही है इस हेतु नोटिस देने वाले तेलुगू देषम पार्टी जो अभी हाल ही में सरकार से नाता तोड़ा है साथ ही वीएसआर कांग्रेस, कांग्रेस सहित कई दलों ने जमकर हंगामा किया और स्पीकर से प्रस्ताव के समर्थन में सदस्यों की संख्या गिनने की मांग की। स्पीकर ने कहा कि चूंकि सदन में व्यवस्था नहीं है ऐसे में अविष्वास प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जा सकता। वजह जो भी हो फिलहाल विरोधियों को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। दरअसल अविष्वास प्रस्ताव सरकार के विरूद्ध लाना एक संवैधानिक विधा है जिसकी चर्चा अनुच्छेद 75(3) के अन्तर्गत देखा जा सकता है। वैसे देखा जाय तो अविष्वास प्रस्ताव के समर्थन को लेकर कई पार्टियों का रूख साफ नहीं है। सरकार की ओर से भी कहा जा रहा है कि हम अविष्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए तैयार हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि राश्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बहुमत में है इतना ही नहीं केवल भारतीय जनता पार्टी के 273 सदस्य इस आंकड़े को पूरा कर देते हैं। 543 लोकसभा सदस्यों के मुकाबले 272 से बहुमत हो जाता है। हालांकि संविधान में यह भी प्रावधान है कि सदन में उपस्थित सदस्यों में से मत देने वाले सदस्यों के आधे से अधिक से बहुमत सम्भव है। मोदी सरकार को अविष्वास प्रस्ताव को लेकर किसी प्रकार का डर नहीं होना चाहिये परन्तु विपक्ष यदि संविधानसम्वत् इसका पक्षधर है तो उसे अवसर भी दिया जाना चाहिए। हांलाकि इसका निर्णय स्पीकर को करना है। 
अविष्वास का प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है जिसे पारम्परिक रूप से विपक्ष द्वारा संसद में एक सरकार को हराने या कमजोर करने की उम्मीद से रखा जाता है। आमतौर पर जब संसद अविष्वास प्रस्ताव में वोट करती है या सरकार विष्वास मत में विफल रहती है तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है या संसद को भंग करने और आम चुनाव की बात षामिल रहती है। फिलहाल इसके आसार दूर-दूर तक नहीं है लेकिन जो विरोधी मोदी के विरूद्ध अविष्वास प्रस्ताव पर आमादा हैं उन्हें यह भी समझना होगा कि सदन की कार्यवाही भी चलने दें। इससे देष की जनता का नुकसान हो रहा है जिससे वह स्वयं वोट लेकर आये हैं। अविष्वास तथा निंदा जैसे प्रस्ताव विपक्षियों के औजार हैं पर इसे कब प्रयोग करना है इसे भी समझना बेहद जरूरी है। लोकतंत्र के संसदीय इतिहास में सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ यह प्रस्ताव अगस्त 1963 में जेबी कृपलानी ने रखा था लेकिन इसके पक्ष में केवल 52 वोट पड़े थे जबकि प्रस्ताव के विरोध में 347 वोट थे। गौरतलब है कि मोदी सरकार के विरूद्ध पिछले चार सालों में पहली बार अविष्वास प्रस्ताव लाये जाने की बात हो रही है जबकि इन्दिरा गांधी सरकार के खिलाफ सर्वाधिक 15 बार तथा लाल बहादुर षास्त्री और नरसिंह राव सरकार को तीन-तीन बार ऐसे प्रस्तावों का सामना करना पड़ा है। नेहरू षासनकाल से अब तक 25 बार अवष्विास प्रस्ताव सदन में लाये जा चुके हैं जिसमें 24 बार ये असफल रहे हैं। 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव से सरकार गिरी थी। वैसे मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ दो अविष्वास प्रस्ताव रखे गये थे पहले में तो उन्हें कोई परेषानी नहीं हुई परन्तु दूसरे प्रस्ताव के समय उनकी सरकार के घटक दलों में आपसी मतभेद थे। हालांकि उन्हें अपनी हार का अंदाजा था और मत विभाजन से पहले इस्तीफा दे दिया था। देखा जाय तो विपक्ष में रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी भी एक बार इन्दिरा गांधी के खिलाफ और दूसरी बार नरसिंह राव के खिलाफ अविष्वास प्रस्ताव रख चुके हैं। 
फिलहाल मौजूदा परिस्थितियां कहीं से अविष्वास प्रस्ताव को लेकर नहीं दिखायी देती परन्तु टीडीपी ने जिस तरह मोदी का साथ छोड़ा है और अन्य घटक दल में जिस प्रकार असमंजस व्याप्त हो रहा है षायद उसी को लेकर यह मामला और तूल पकड़े हुए है जबकि इसकी षुरूआत वीएसआर ने की थी। लोकसभा में अविष्वास प्रस्ताव लाने के लिये नोटिस तभी स्वीकार किया जाता है जब उसके समर्थन में 50 सदस्य हों। टीडीपी और वीएसआर के पास फिलहाल यह आंकड़ा नहीं है परन्तु अन्यों के सहयोग से षायद इसे पूरा कर लिया जायेगा। मुद्दा यह है कि अविष्वास प्रस्ताव लाने वाले के पास जब चंद आंकड़े जुटाना भी मुष्किल है तो बड़ी कूबत वाली सरकार की कुर्सी कैसे हिला पायेंगे। खीज के चलते कांग्रेस समेत वामपंथ या अन्य सरकार के विरोध में मत दे सकते हैं पर इनकी स्थिति भी बहुत दयनीय है। कुछ क्षेत्रीय दल मुद्दे विषेश को लेकर सरकार के विरूद्ध हो सकते हैं पर अविष्वास प्रस्ताव लाने वालों के साथ होंगे ऐसा लगता नहीं है। वैसे भाजपा तथा उनके सहयोगियों में सब कुछ अच्छा ही चल रहा है पूरी तरह कहना कठिन है पर सरकार बचाने में उनका मत सरकार के साथ न हो यह भी होता नहीं दिखाई देता। फिलहाल अविष्वास प्रस्ताव एक विरोधी संकल्पना है जिसका उपयोग किया जाना कोई हैरत वाली बात नहीं। संदर्भित बात यह है कि सदन का कीमती वक्त रोज हंगामे की भेंट चढ़ रहा है। भारी-भरकम पूर्ण बहुमत वाली सरकार का बीते चार सालों में कोई भी ऐसा सत्र नहीं रहा जिसमें विरोधियों ने नाक में दम न किया हो। सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक भी यहां काम नहीं आ रही है। एक-दूसरे की लानत-मलानत और छींटाकषी में वक्त बीत रहा है जबकि 2019 मुहाने पर है जहां 17वीं लोकसभा का एक बार फिर गठन होना है। देष के राजनेता जो राजनीति करें वही जनता को देखना होता है चाहे अच्छा करें या न अच्छा करे।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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