Monday, March 19, 2018

उपचुनाव के नतीजे किसे जगा गए !

उत्तर प्रदेष में बीते 11 मार्च को लोकसभा की दो सीटों पर सम्पन्न उपचुनाव तत्पष्चात् 14 मार्च को घोशित नतीजे इस बात को तस्तीक करते हैं कि राजनीतिषास्त्र के अंदर भी एक बड़ा इतिहास छुपा होता है। पिछले वर्श की 12 मार्च को जब उत्तर प्रदेष विधानसभा के चुनावी नतीजे सामने आये थे तब भाजपा ने न केवल सत्तासीन सपा बल्कि बसपा समेत कई क्षेत्रीय दलों को चकनाचूर करके 403 के मुकाबले 325 सीट पर काबिज हुई थी और अब प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केषव प्रसाद मौर्य की लोकसभा सीट पर सम्पन्न हुए उपचुनाव में सपा का काबिज होना सियासी चक्र को नया रूख देने जैसा है। सवाल तो कई पूछेंगे और उठेंगे भी कि बीते एक वर्शों से प्रदेष में सत्ता का रथ चला रहे ये दोनों सारथी कैसे विफल हो गये। यह सोच भी मुनासिब है कि समीकरण इस बार भिन्न था और चुनाव भी विधानसभा का नहीं था पर इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं करेगा कि गढ़ तो ढहा है। साल 1998 से लगातार गोरखपुर लोकसभा सीट पर काबिज यूपी के मुख्यमंत्री योगी से कहां चूक हुई कि उनके उत्तराधिकारी सीट भाजपा के पक्ष में नहीं ला पाये और फूलपुर में भी कमल मुरझा गया। गौरतलब है उपमुख्यमंत्री केषव मौर्य साल 2014 में इस सीट को कुल पड़े मत के 52 फीसदी के साथ जीत दर्ज की थी। देखा जाए तो सियासत और समीकरण का बड़ा गहरा नाता होता है। भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष अमित षाह को कई चाणक्य की संज्ञा दे चुके हैं पर राजनीति की सूझ-बूझ एक जैसी बनी रहे हर बार जरूरी नहीं फिलहाल चूक तो यही बात पुख्ता करती है।
देष की राजनीतिक राजधानी उत्तर प्रदेष की दो हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों पर उलट नतीजे इसलिए भाजपा के लिए चिंताजनक हैं क्योंकि वह चुनावी विजयरथ पर सवार है। यही नहीं 2019 के अप्रैल-मई में लोकसभा का चुनाव पूरे देष में होगा उसकी भी आहट इसमें कुछ हद तक गूंजती है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष दिल्ली की गद्दी तय करता है। कुल 543 लोकसभा सीटों की तुलना में 80 स्थान यूपी से है। 2014 में गठित 16वीं लोकसभा में भाजपा अपना दल समेत 73 सीटों पर काबिज हुई थी जबकि सपा 5, कांग्रेस 2 और बसपा का खाता नहीं खुला था। यह बदली हुई राजनीति का तेवर ही कहेंगे कि बीते ढ़ाई दषकों से एक-दूसरे की तरफ पीठ किये बैठे सपा और बसपा आज एक ही डण्डे में अपने-अपने झण्डे लगा रहे हैं और उसका सुखद नतीजा भी देख रहे हैं। उत्तर प्रदेष में जाति और धर्म की राजनीति खत्म हुई है यह कयास बेमानी है और भाजपा इससे परे है ऐसा सोचना भी सही नहीं है। फूलपुर सीट पर भाजपा और सपा का उम्मीदवार कुर्मी जाति से थे। अन्तर यह था कि सपा से चुनाव लड़ने वाले नागेन्द्र सिंह पटेल फूलपुर लोकसभा के बाषिन्दे हैं जबकि भाजपा ने बनारस के कौषलेन्द्र पटेल को उम्मीदवार बनाया था। साफ है कि कुर्मी के मुकाबले कुर्मी जाति की राजनीति यहां हुई है। दर्जनों मुकदमें के आरोप झेल रहे दबंग और जेल में बंद अतीक अहमद का भी मैदान में होना यह इषारा करता है कि मुस्लिम मतदाताओं को भी उथल-पुथल करना था। उत्तर प्रदेष में कांग्रेस, सपा और बसपा समय-समय पर मुस्लिम मतदाताओं पर अपना एकाधिकार जमाती रही हैं सीधे तौर पर यही धर्म की राजनीति है। अतीक अहमद को इस बार मिले 25 हजार से कुछ ज्यादा मत यह दर्षाते हैं कि मुस्लिम मतदाता इस झांसे में नहीं आया। 
गोरखपुर के नतीजे तो पूरे भाजपा को जगाने के काम आ सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यहां पिछले दो दषकों से चुने जा रहे उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मनमाफिक उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया और अमित षाह के प्रभाव में उपेन्द्र दत्त षुक्ल की उम्मीदवारी तय हुई जबकि प्रवीण निशाद सपा के उम्मीदवार हुए। यहां चुनावी बिसात अगड़े और पिछड़े की भी रही है और सपा भारी पड़ी। यह चिंतन-मंथन का विशय तो है कि 1998 से 2014 तक लगातार 5 लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ बिना किसी लाग-लपेट के चुनाव जीतते रहे और दो ही बार ऐसी स्थिति बनी कि जब सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों का वोट प्रतिषत मिलाकर भाजपा से अधिक रहा। देखा जाय तो कुल डाले गये मतों का 50 फीसदी से अधिक मत पर अधिकार योगी आदित्यनाथ का तीन बार रहा। 2014 में उन्हें 52 फीसदी मत मिला था और 2018 में यह कैसे खिसक गया समीक्षा का विशय तो है और वह भी तब जब वह स्वयं उसी प्रदेष के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हों। लखनऊ के बाद गोरखपुर उनका दूसरा बड़ा स्थान है जो कभी पहला हुआ करता था। यह बात भी समझना ठीक रहेगा कि उपचुनाव में प्रधानमंत्री मोदी प्रचार करने नहीं गये न ही कोई रैली की यह बात कहना कितना लाज़मी है कि क्या देष के मतदाताओं को मोदी प्रचार की जरूरत पड़ती है। अब भाजपा को इस मामले में भी जागरूक रहने की जरूरत है कि जब मोदी का चेहरा वोट हथियाने के काम आ रहा है तो उनके बगैर उपचुनाव भी जीतना सम्भव नहीं है। या यह समझा जाय कि केन्द्र के बीते चार साल की नीतियां और पिछले एक साल से उत्तर प्रदेष में काबिज भाजपा के प्रति लोगों का आकर्शण कम हुआ है। ध्यानतव्य है कि गोरखपुर में 47.5 फीसदी और फूलपुर में मात्र 40 प्रतिषत मतदान हुआ था यह आंकड़े मतदाताओं का गिरा हुआ रूझान ही दर्षाते हैं।
वैसे उपचुनाव का मसला उत्तर प्रदेष तक ही सीमित नहीं है। बिहार में भी भाजपा उम्मीद से बहुत पीछे रही है। वहां राजद का प्रदर्षन इस बात को दर्षाता है कि नीतीष कुमार की सरकार के प्रति मतदाताओं के तेवर तो बदले हैं। गौरतलब है कि तत्कालीन उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव पर भ्रश्टाचार के आरोप के चलते नीतीष कुमार के बीच खींचातानी थी। स्थिति को देखते हुए राजनीतिक सूरत वहां की बदल गयी और जो नीतीष भाजपा के विरूद्ध 2015 में सत्तासीन हुए थे वही भाजपा से मिलकर और राजद को छोड़कर नई राजनीतिक राह बना दी। हो न हो जनता को ऐसे घालमेल न पचे। यह बात इसलिए भी क्योंकि राजनीति की नैतिकता भले ही बवंडर में छुप जाय पर वोट से पहले एक बार उभरती जरूर है। फिलहाल उपचुनाव बड़ा चुनाव तो नहीं है पर जनता का फैसला है तो बड़ा ही कहा जायेगा। छोटा इसलिए भी नहीं क्योंकि उत्तर प्रदेष में सपा की दो सीटें बढ़ गयीं और 2014 में जीती भाजपा की दो सीटें घट गयीं। बड़ा इसलिए भी क्योंकि विपक्ष ही महागठबंधन की आड़ भाजपा को चुनौती देने की फिराक में है साथ ही उत्तर प्रदेष में बुझ रहे सपा और बसपा को एक साथ होने का न केवल अवसर मिला बल्कि संजीवनी भी मिली है। प्रतीत तो यही होता है कि विरोधियों के जागने और सत्ताधारियों के न सोने का वक्त यही है। भाजपा को यह समझना होगा कि सत्ता अस्थिर होती है। साल 1977 और 1989 इस बात का प्रमाण है कि आसमान पर सवार कांग्रेस को छोटे-छोटे गुट मिलकर पटखनी दिये थे। उपचुनाव के नतीजे सबको चैकन्ना करते हैं और यह भी इषारा कर रहे हैं कि राजनीति की दिषा भले ही बदल जाये पर राह नहीं बदलती। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment