Monday, March 19, 2018

काँग्रेस का यह जो संदेश है

कांग्रेस ने 2019 में मोदीमय भाजपा से मुकाबले के लिए षीघ्र यूपीए-3 खड़ा करने के संकेत दिये हैं। गौरतलब है कि जब-जब कांग्रेस भारत की राजनीति से दरकिनार हुई है तब-तब इस ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया है। 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव में राजग के साइन इण्डिया के नारे की हवा तब निकल गयी थी जब कांग्रेस 145 सदस्यों समेत वामदलों व अन्यों को मिलाकर डाॅ0 मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 के माध्यम से सत्ता को कब्जाया था। 5 साल की गठबंधन की सत्ता चला चुके तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हार की स्पश्ट वजह चुनाव के दौरान फिलहाल षायद ही किसी को दिखी हो। स्पश्ट है कि देष की जनता सत्ता से बेदखल करने के लिए वोट देने में कहीं अधिक चैकन्नी रही है और यह बात कांग्रेस से बेहतर षायद ही कोई जानता हो। भले ही विरोधी एकता के अभी आसार दूर-दूर तक न दिख रहे हों पर कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों की व्यावहारिकता को देखते हुए इस दिषा में पहल कर चुकी है और स्वयं की ताकत और रणनीति बेहतर करने के लिए भी कदम भी बढ़ा चुकी है। सरकारें हमेषा यह समझती हैं कि कमजोर विरोधी उनके लिए कैसे नासूर बन सकते हैं ध्यान रहे सत्ताधारी जब चुनाव में जाते हैं तो जनता को अपने पांच साल के कार्यों से सन्तुश्ट करना होता है जबकि विरोधी उनकी खामियों को उभारने पर पूरा दम लगाते हैं। 2014 में यही भाजपा ने कांग्रेस के साथ किया था। जाहिर है 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसा ही पलटवार कांग्रेस समेत सभी विरोधी कर सकते हैं। ऐसे में मोदी सरकार को अपना रिपोर्ट कार्ड अव्वल दर्जे का बनाना ही होगा क्योंकि तब बात मात्र बातों से नहीं बनेगी, वायदों और इरादों को जताने से भी नहीं बनेगी, बनेगी तो केवल हकीकत दिखाने से।
कांग्रेस का परचम कभी पूरे देष में लहराता था अब महज 4 राज्यों में सिमट कर रह गयी है। वर्श 2014 से चुनाव-दर-चुनाव तमाम दमखम के साथ कांग्रेस ने उम्मीद जगाने का काम किया पर विजेता भाजपा बनती रही। 70 साल के स्वतंत्र भारत के इतिहास में लगभग 6 दषक सत्ता की चाकरी करने वाली कांग्रेस इस तरह धराषाही होगी किसी की कल्पना में नहीं रहा होगा। सिलसिलेवार तरीके से भाजपा कांग्रेस षासित राज्यों को अपने कब्जे में करते हुए उसके लिए इन दिनों मुसीबत की सबब बन गयी है। भाजपा से पार पाने को लेकर कांग्रेस की ओर से रणनीति भी गढ़ी जा रही है साथ ही कार्यकत्र्ताओं में जोष भी भरा जा रहा है। बीते 13 मार्च को जहां यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा विरोधियों को डिनर डिप्लोमेसी के माध्यम से एकजुट होने का प्लेटफाॅर्म तैयार करने की कोषिष की तो वहीं दिल्ली में कांग्रेस के 84वें महाधिवेषन के माध्यम से तमाम नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को सत्ता के विरूद्ध डटकर मुकाबला करने की सीख भी दी गयी और जोष भी भरा गया। गौरतलब है कि कांग्रेस महाधिवेषन में ज्यादातर कार्यकत्र्ता 45 वर्श से कम के हैं और अनेकों वरिश्ठ नेताओं के साथ उनकी जुगलबंदी दल के लिए नये व्यवहार और नये आगाज़ का संकेत समेटे हुए है। राहुल गांधी बदलाव का संदेष देने में कितना सफल रहे हैं इसका पता तो आगामी चुनाव में चलेगा पर इस अधिवेषन के माध्यम से यह संकेत जरूर दे दिया गया है कि कांग्रेस देष की पुरानी पार्टी है भले, ही ताकत घटी हो पर हौंसला अभी बाकी है।
बीते चार सालों में मोदी सरकार पर तमाम आरोप विरोधियों द्वारा लगाये गये हैं और कांग्रेस के इस महाधिवेषन में भी ऐसे ही आरोपों को देखा जा सकता है। कालाधन की वापसी को लेकर विफलता, किसानों की समस्या भी हल कर पाने में पूरी तरह विफल, बेरोजगारी को लेकर किये गये वायदे पर खरे न उतरना, नोटबंदी और जीएसटी के माध्यम से अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जाना साथ ही सत्ता की चाषनी में इस कदर डूबना कि गुरूर और घमण्ड से भर जाना इत्यादि सहित विभिन्न आरोप देखे जा सकते हैं। कांग्रेस का आरोप है कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया। सरकार की गलतियों, कुप्रबन्धन और खराब जोखिमों की वजहों से अर्थव्यवस्था डूबी है। बैंकिंग प्रणाली को भी कुछ इसी षक्ल, सूरत में देखा जा रहा है। यह बात सही है कि भाजपा सरकार ने कई आर्थिक जोखिम लिये हैं और सैकड़ों परिवर्तन भी समय के साथ किये हैं। रोज़गार में कटौती से लेकर सैकड़ों कानूनों को खत्म करने का काम भी सरकार द्वारा हुआ है। नोटबंदी के बाद विकास दर भी पटरी से उतरी थी हालांकि अब इसे बेहतर बताया जा रहा है। जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी अपने भाशणों में बार-बार जनता को विष्वास में लेने की कोषिष करते हैं उससे भी यह प्रतीत होता है कि धरातल पर काम वैसा नहीं हो पा रहा है। आरोप तो यह भी है कि मोदी ने विदेष नीति को भी व्यक्ति केन्द्रित बना दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का साफ आरोप है कि आतंकवाद से निपटने में यह बुरी तरह विफल रहे हैं। पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेष, चीन व नेपाल के साथ समस्यायें हो सकती हैं देखा जाय तो कमोबेष समस्याएं चल भी रही हैं। रोचक यह भी है कि तमाम जीत के बीच मौजूदा मोदी सरकार का ग्राफ भी लोकप्रियता के मामले में इसलिए कम कहा जा सकता है क्योंकि अब तक के दस लोकसभा के उपचुनाव में महज़ एक पर जीत और नौ पर हार मिली है। उत्तर प्रदेष के गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा सीट का गंवाना इसे और पुख्ता बनाता है। 
महाधिवेषन की सबसे खास बात कार्यकत्र्ताओं में जोष की वापसी करना देखा जा सकता है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम कांग्रेस के रोड मैप के अलावा सत्ता में आयी तो क्या करेंगे को भी उद्घाटित किया। हालांकि कांग्रेस के लिए सत्ता अभी दूर की कौड़ी है पर दरकती नींव को यदि मजबूती देने में कांग्रेस यहां से आगे बढ़ती है तो यह उसकी सबसे बड़ी सफलता होगी। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो कई सूबों की विधानसभाओं में षून्य पर पहुंच गयी कांग्रेस कभी सियासत की बुलंदी पर थी। जिस तरह चुनाव में कांग्रेस का घर टूटा है और पूरे भारत से सिमटी है उससे तो यही लगता है कि नवनिर्माण की उसे कहीं अधिक जरूरत है। महाधिवेषन उसी दिषा में उठाया गया कदम हो सकता है जिस रूप में कांग्रेस डैमेज हुई है उससे यह भी साफ है कि अकेले के बूते पर न तो वह चुनाव मैनेज कर पायेगी और न ही दमखम से भरी भाजपा को चुनौती दे पायेगी। षायद यही वजह है कि सियासी प्रयोगषाला में कांग्रेस अन्य दलों को भी साथ लेने तथा खुद की भी जमीन मजबूत करने की कोषिष कर रही है। साल 1952 से 2014 के बीच 16 बार लोकसभा के चुनाव हुए और सबसे खराब दषा 2014 में कांग्रेस की ही रही है। 1977 को छोड़ दिया जाय तो 1952 से लेकर 1984 के आठ आम चुनाव में कांग्रेस कभी 300 से कम सीट पर जीत दर्ज ही नहीं की। हालांकि 1967 में 283 सीट जीती थी जबकि 1984 में तो यह आंकड़ा 400 के पार था। बाकी के आठ लोकसभा चुनाव में केवल 1991 के 10वीं और 2009 के 15वीं लोकसभा में ही 200 के आंकड़े को पार कर पायी थी। यही दौर महागठबंधन का भी रहा है। राजनीतिक चक्र इस कदर कांग्रेस के खिलाफ गया कि 1984 में 400 से अधिक सीट जीतने वाली कांग्रेस 2014 में 44 पर सिमट गयी। फिलहाल बदले तेवर और राहुल गांधी की अध्यक्षता में नयी-नवेली कांग्रेस किस किनारे लगेगी यह 2019 के चुनाव में ही पुख्ता हो पायेगा। अभी तक के नतीजे तो कांग्रेस की नींव हिलाने वाले ही रहे हैं। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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