भारतीय अर्थव्यवस्था में सतत् विकास, समावेषी विकास तथा पूंजवादी समेत समाजवादी धारणा का भरपूर मिश्रण देखा जा सकता है। बरसों से इस बात की कोषिष होती रही है कि विकास और समृद्धि को जन-जन तक पहुंचाया जाय पर तमाम अनुप्रयोगों के बावजूद इस काज में आंषिक सफलता ही मिलते दिखाई देती है। सच्चाई यह है कि पांचवीं पंचवर्शीय योजना (1974 - 79) से षुरू हुई गरीबी उन्मूलन की कवायद आधा रास्ता भी तय नहीं कर पायी है फलस्वरूप अभी भी हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और इतने ही अषिक्षित भी। आर्थिक विकास दर को लेकर चिंता हमेषा से रही लेकिन यही दर मौजूदा समय में पिछले चार साल के मुकाबले सबसे कमजोर स्थिति में है। अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश का हालिया अनुमान यह है कि 2019 में भारत विकास दर के मामले में 7.8 फीसद के आंकड़े को छू लेगा। यदि ऐसा होता है तो हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे। गौरतलब है कि वर्तमान में विकास दर 6.5 फीसद तक रहने का अनुमान है। फिलहाल इस सवाल पर भी गौर फरमाने की आवष्यकता है कि यदि देष में विकास दर आसमान छूता है तो बढ़े हुए हिस्से से सर्वाधिक लाभ में कौन होगा। अन्तर्राश्ट्रीय राइट्स समूह आॅक्सफेम की ओर से एक सर्वेक्षण तब आया है जब विष्व आर्थिक मंच की षिखर बैठक षुरू होने में चंद घण्टे ही बाकी थे। गौरतलब है कि इसमें षामिल होने के लिए इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी स्विट्जरलैण्ड के दावोस में हैं। सर्वेक्षण यह बताता है कि भारत में कुल सम्पदा सृजन का 73 फीसद हिस्सा एक प्रतिषत अमीरों के पास है। यह सर्वेक्षण इस बात को समझने में कोई असमंजस नहीं होने देता कि अमीरी-गरीबी के बीच खाई पहले की तुलना में और चैड़ी हुई है। साल 2017 के दौरान भारत में 17 नये अरबपति बने ऐसे में अब इनकी संख्या 101 हो गयी है। कचोटने वाला एक सवाल यह भी है कि दुनिया में लगभग साढ़े सात अरब की जनसंख्या है जिसमें से ठीक आधे ऐसे लोग हैं जिनकी सम्पत्ति में रत्ती भर का भी इजाफा नहीं हुआ है। फिलहाल देष की तीन चैथाई सम्पदा पर चंद लोगों का एकाधिकार है उसे देखते हुए यह बात बेहिचक कहा जा सकता है कि सबका साथ, सबका विकास मात्र एक सपना बनकर रह गया है जिसे हकीकत में जमीन पर उतारना सम्भव होता फिलहाल दिखाई नहीं देता।
विष्व बैंक से लेकर मुढ़ीज़ रिपोर्ट तक तमाम अन्तर्राश्ट्रीय एजेंसियां यह बात कह चुकी हैं कि भारत आर्थिक तौर पर सुदृढ़ता की ओर जा रहा है जिसे लेकर संतोश जताया भी जा सकता है। बावजूद इसके जिस प्रकार आर्थिक विन्यास और विकास से जुड़े आंकड़े सामने आये हैं उससे चिंता होना भी लाज़मी है। ऐसे में भारत सरकार को चाहिए कि वह यह सुनिष्चित करे कि भारत की अर्थव्यवस्था सभी के लिए काम करती है न कि चंद लोगों के लिए। वैसे सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि वैष्विक स्तर पर भी असमानता देखी जा सकती है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल सृजित की गयी कुल सम्पदा का 82 प्रतिषत हिस्सा दुनिया के केवल एक फीसदी अमीरों की जेब में थी। असमानता के जो गगनचुम्बी फासले देखने को मिल रहे हैं उससे साफ है कि दुनिया के देष अपने निजी एजेण्डों से बाहर नहीं है। वैष्विक मंचों पर भले ही आर्थिक तौर पर एक-दूसरे को साधने की कोषिष कर रहे हों पर भीतर के हालात बेहतर नहीं है। आॅक्सफेम की रिपोर्ट में यह चेतावनी भी है कि आर्थिक तरक्की चंद हाथों तक केन्द्रित हो गया है। वैसे देखा जाय तो लोकतंत्र और विकेन्द्रीकरण विकास के बड़े आधार माने गये हैं। बावजूद इसके आर्थिक केन्द्रीकरण इस कदर पनपना वाकई नीतियों का सही अनुपालन न हो पाना ही कहा जायेगा। साल 2016 के नवम्बर में जब देष में नोटबंदी हुई तब यह बात फलक पर थी कि अमीरी और गरीबी के बीच की खाई पाटने के ये काम आयेगा पर रिपोर्ट देखकर यह सोच भी बेमानी सिद्ध हुई है। वैसे आक्सफेम के वार्शिक सर्वेक्षण को बहुत महत्व दिया जाता रहा। पिछले साल जब कुल सम्पत्ति का 58 फीसदी हिस्सा एक प्रतिषत अमीरों तक सीमित होने की जानकारी का खुलासा हुआ तब भी चिंता की लकीरें बड़ी हुई थी पर 2017 में इसमें 15 फीसदी का इजाफा और कुल सम्पत्ति का 73 फीसदी एक प्रतिषत अमीरों तक संकेन्द्रित होना किसी हादसे से कम नहीं कहा जा सकता।
अनेक आंकड़ों, तथ्यों तथा एजेंसियों के बयानों से भी यह सोच काफी सार्थक दिषा में रही है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया को चुनौती दे रही है। मौजूदा समय में भारत की ताकत का एहसास षायद दुनिया को भी है। इसमें कोई षक नहीं कि वैष्विक मंचों पर प्रधानमंत्री मोदी कहीं अधिक कूबत वाले जाने जाते रहे हैं। जिस प्रकार की आर्थिक नीतियों के विज़न से वे भरे हैं उसे लेकर भी कोई षक-सुबहा नहीं है पर असंतुलन का इस कदर होना ऐसा पूरी तरह मानने से रोकता है। गरीब को सषक्त बनाने और युवाओं को ताकतवर बनाने तथा महिलाओं को आर्थिक विकास की धारा से जोड़ने के मामले में मौजूदा सरकार कहीं अधिक सक्रिय है। बावजूद इसके स्थिति सुकून से भरी नहीं प्रतीत होती। तमाम कवायद के बावजूद भारत में अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ने का सिलसिला थम नहीं रहा हैे। समोवषी वृद्धि सूचकांक भी हमें निराष कर रहे है। यहां भी यह पता चलता है कि भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं में 62वें स्थान पर है जबकि इसी मामले में चीन 26वें और पाकिस्तान 47वें स्थान पर है। गौरतलब है कि विष्व आर्थिक मंच ने अपनी सालाना षिखर बैठक षुरू होने से पहले ऐसी सूचियां जारी करके दुनिया भर के देषों को आइना दिखाया है। भारत में समावेषी विकास को लेकर आठवीं पंचवर्शीय योजना (1992-1997) से ही प्रयास जारी है पर स्थिति पड़ोसी चीन और पाकिस्तान से भी खराब दिख रही है। नाॅर्वे दुनिया का सबसे समावेषी आधुनिक विकसित अर्थव्यवस्था बना हुआ है जबकि लिथुआनिया उभरती अर्थव्यवस्थाओं में षीर्श पर है। गौरतलब है कि ये आंकड़े रहन-सहन का स्तर, पर्यावरण की दृश्टि से टिकाऊपन और भविश्य की पीढ़ियों को और कर्ज के बोझ से संरक्षण आदि को लेकर जारी किये जाते हैं।
भारत अरबपतियों की संख्या में तरक्की कर रहा है पर यही बात देष के किसानों, बेरोज़गार युवाओं आदि के लिए उलट है। भारत, रूस और ब्रिटेन को पीछे छोड़कर अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का ऐसा देष है जहां सबसे ज्यादा अरबपति हैं। रोचक यह है कि ऐसी विकराल आर्थिक विशमता केवल भारत में ही है कि एक ओर अरबपतियों की सूची लम्बी हो रही है तो दूसरी ओर गरीबी, बीमारी और मुफलिसी से जान देने वालों की संख्या हजारों-लाखों की तादाद में निरन्तरता लिये हुए है। वैसे देखा जाय तो यह आर्थिक असमानता कोई अचानक पैदा नहीं हुई है बल्कि इसकी एक लम्बी प्रक्रिया है। आज दुनिया के ज्यादातर देष उदारवाद और बाजारवाद के रास्ते पर चल रहे हैं जिसके चलते कईयों ने आर्थिक समृद्धि हासिल की है भारत भी उसमें षुमार है। विष्व आर्थिक मंच की बैठक में षामिल होने वाले प्रधानमंत्री मोदी से आॅक्सफेम इण्डिया ने आग्रह किया कि भारत सरकार इस बात को सुनिष्चित करे कि देष की अर्थव्यवस्था सभी के लिए काम करती है। जिस तर्ज पर चीजें बनती और बिगड़ती हैं उसकी कोई एक वजह नहीं होती। भारत को एक जनतंत्र कहा जाता है और यहां कृशि, उद्योग और सेवा क्षेत्र सभी का आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाते हैं। यदि इसमें से किसी एक में भी षिथिलता आई तो पूरी अर्थव्यवस्था का परिप्रेक्ष्य हिचकोले खाने लगता है। दो टूक यह भी है कि सबका साथ, सबका विकास चंद के हाथों में संपदा जाने से नहीं बल्कि समावेषी होने से सम्भव है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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