Wednesday, January 17, 2018

बेहतर बजट की आस में सभी

साल 2018-19 का आम बजट आगामी 1 फरवरी को पेष किया जायेगा। गौरतलब है कि फरवरी के अन्तिम दिवस को बजट पेष किये जाने की प्रथा पिछले साल से समाप्त कर दी गयी। इतना ही नहीं 1924 से अलग से परोसे जाने वाले रेल बजट को भी समाप्त कर एक बजट बना दिया गया। जाहिर है कि नये तरीके से देष के आय-व्यय के विवरण की यह दूसरी पेषगी होगी। इस बार सतत् विकास, सबका विकास और समावेषी विकास समेत सबका साथ लेने की भी कोषिष भी इसमें दिखाई देती है। तमाम अर्थषास्त्रियों ने आगामी बजट के मामले में व्यापक सुझाव दिये हैं और यह उम्मीद की गयी है कि कृशि व ग्रामीण विकास, रोजगार, स्वास्थ व षिक्षा, विनिर्माण व निर्यात, षहरी विकास और आधारभूत संरचना जैसे विविध विशयों की बेहतरी हेतु बजट में बहुत कुछ देखने को मिलेगा। बजट से पहले वित्त मंत्री भी कह रहे हैं कि कृशि क्षेत्र प्राथमिकता में रहेगा। देष के आर्थिक विकास को तब तक तर्कसंगत और समानता वाला नहीं कहा जा सकता जब तक कि किसानों को इसका लाभ स्पश्ट रूप से न दिखने लगे। वैसे इस बात में पूरी सच्चाई है कि वित्त मंत्री चाहे अरूण जेटली रहे हो या इनके पूर्ववर्ती सभी ने बयानों में किसानों की खूब चिंता की और बेहतर विकास किया पर जमीनी हकीकत यह है कि अन्नदाता छटपटाते रहे। गौरतलब है कि साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात सरकार कह चुकी है। जाहिर है यह सिलसिला प्रतिवर्श की दर से करते रहना होगा जो हो रहा है या नहीं बजट में झांक कर समझा जा सकेगा। केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय के साझा आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्श 2017-18 में देष की जीडीपी की वृद्धि दर चार साल के निचले स्तर यानी 6.5 फीसद तक रहने का अनुमान है। यह मौजूदा सरकार के कार्यकाल की सबसे निचली वृद्धि दर भी है। इसी के ऊपर चढ़ कर आगे की रणनीतियां निर्मित की जायेंगी। विकास दर यदि कमजोर है तो मजबूत योजना कैसे सम्भव होगी यह चुनौती तो है। 
मोदी सरकार बजट में मध्यम वर्गों को राहत दे सकती है संकेत है कि इनकम टैक्स का दायरा बढ़ेगा। मौजूदा ढ़ाई लाख पर छूट को तीन लाख किया जा सकता है लेकिन जीवन मूल्य जिस ऊँचाई तक पहुंच गया है उसे देखते हुए अपेक्षा इससे अधिक की है। अर्थषास्त्री और भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी तो इनकम टैक्स से देष को मुक्त करने की बात कह चुके हैं। हालांकि इसकी सम्भावना न के बराबर है। मुद्रा स्फीति का जो हाल है उससे महंगाई का ताना-बाना भी लोगों के पकड़ के बाहर है। सवाल छूट का नहीं सवाल समावेषी विकास का है। रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ और सुरक्षा समेत जितने भी बुनियादी मुद्दे हैं उनका हल कितना होगा इसे अभी कहना कठिन है पर सरकार यह दावा जरूर कर सकती है कि बजट में सभी को ध्यान में रखा गया है। बजट 1 फरवरी को पेष किया जायेगा। गौरतलब है कि नवम्बर 2016 से सरकार राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का क्रियान्वयन कर रही है इसके तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को खाद्यान्न की आपूर्ति भारी सब्सिडी वाली दरों पर 1 से 3 रूपये किलो में की जाती है। इस बार उम्मीद है कि दस फीसदी इसमें वृद्धि की जायेगी परन्तु आगामी वर्श में सब्सिडी लेने वालों की मात्रा यदि बढ़ जाती है तो मामला जस का तस रहेगा। दो टूक यह भी है कि सरकार राजकोशीय घाटे को पाटना चाहती है ताकि बजटीय घाटा को कम किया जा सके पर जिस प्रकार जीएसटी और नोटबंदी का असर दिख रहा है उससे यही लगता है कि इस मामले में अभी सफलता नहीं मिलेगी। नोटबंदी का पूरा असर पिछले बजट में नहीं देखने को मिला और न ही उस दौरान जीएसटी का कोई संदर्भ निहित था। जाहिर है कि इस बार जीएसटी और नोटबंदी दोनों के प्रभाव आगामी बजट पर होंगे।
वर्श 2017 आर्थिक तौर पर काफी अड़चन भरा रहा है। साफ है कि अभी आर्थिक पथ चिकना नहीं बन पाया है। ऐसे में आगामी बजट सभी की उम्मीदों पर खरा उतरेगा यह देखने पर ही पता चलेगा। जिस प्रकार जीएसटी संग्रह दर तेजी से गिर रहा है जो संग्रह जुलाई में 95 हजार करोड़ था वह दिसम्बर आते-आते 80 हजार करोड़ के आस-पास हो गया। सम्भव है कि इसका असर भी आगामी बजट का आधार बनेगा। हालांकि बजट किसी एक वजह से तैयार नहीं होते पर सभी कारण बजट पर बिना असर डाले रहते नहीं है। विनिर्माण क्षेत्र को पुर्नजीवित करने की कोषिष बजट में हो सकती है ताकि गिरती जीडीपी से राहत मिले जो कि नोटबंदी के चलते काफी दयनीय स्थिति में जा चुके हैं। इतना ही नहीं कई मामलों में सरकार आर्थिक ढिलाई बरत सकती है ताकि लोग स्वरोजगार की ओर आकर्शित हों और देष बेरोजगारी से राहत पाये। मसलन स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप जैसे कई कार्यक्रमों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा सकता है। सभी जानते हैं मध्यम वर्ग में सबसे ज्यादा वेतनभोगी तबगा आता है। बड़ी राहत देने को लेकर सरकार इस पर इसलिए सक्रिय हो सकती है क्योंकि वर्श 2018-19 आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी बड़े मायने रखता है। साथ ही बजट से सरकारी तबका भी खुष रहे ऐसी कोषिष भी वित्त मंत्री जरूर करेंगे।
वित्त मंत्री अरूण जेटली के लिए बजट इसलिए भी आसान नहीं होगा क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर बीते वर्श कई प्रयोग किये गये हैं और आगामी वर्श पर इसके प्रभाव को रोक पाना पूरी तरह आसान नहीं है। वैसे भी अर्थव्यवस्था थोड़े उथल-पुथल की ओर तो है। कारोबारी माहौल में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। विकास में रूकावट बनने वाले आर्थिक नियमों को ढीला किया जा सकता है। वैष्विक अर्थव्यवस्था को देखते हुए भी बजट को तुलनात्मक सघन बनाये जाने की उम्मीद है। अभी हाल ही में सरकार ने फैसला लिया है कि रिटेल में एफडीआई सौ फीसदी रहेगा। जाहिर है खुदरा व्यापारियों को एफडीआई से राहत दी गयी है। तेल के मामले में भी सरकार का प्रदर्षन बहुत अच्छा नहीं है। गैस पर मिलने वाली सब्सिडी भी धीरे-धीरे सरकार समाप्त कर रही है। 31 मार्च, 2018 तक इसे पूरी तरह समाप्त करने की पूरी उम्मीद है। जिस तरह सरकार आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ करने की कोषिष कर रही है उससे साफ है कि कुछ की षिकायत बरकरार रहेगी। कृशि निर्यात नीति को बिना मजबूत किये किसानों की हालत सुधरेगी इस पर सवाल बना रहेगा और यह तभी सम्भव है जब उत्पादन बढ़ेगा और उत्पादन भी तभी हो सकेगा जब किसानों को सभी सुविधायें मुहैया करायी जायेंगी जिसका बीते सात दषकों से आभाव बरकरार रहा है। खास यह भी है कि छुपी बेरोजगारी भी खेती-बाड़ी में खूब है और मौसमी बेरोजगारी भी। इससे निपट पाना भी सरकार के लिए क्या आगामी बजट में कुछ उपाय होंगे। 65 फीसदी युवा देष में रहते हैं प्रति वर्श दो करोड़ की दर से रोजगार देने का अब तक का दावा खोखला ही सिद्ध हुआ है। सम्भव है कि बजट से उम्मीद जगे पर पूरी कितनी होगी कहना कठिन है। यद्यपि सरकार इन दिनों आर्थिक सुधार को लेकर जोखिम वाले कदम उठा रही है पर मूलभूत मुद्दों पर बहुत कुछ हुआ है षायद ही लोग सहमत होंगे। बड़े उद्योगों को भी बजट से प्रभावित करना रहेगा। गौरतलब है कि 30 फीसदी कर को 25 फीसदी करने का फैसला सरकार दो साल पहले ही ले चुकी है। फिलहाल आगामी 1 फरवरी को पेष होने वाले बजट पर सभी की दृश्टि रहेगी। दो टूक यह भी है कि जिसकी समाज में जितनी आर्थिक भूमिका है उतनी राहत तो चाहेगा पर समझना तो यह भी है कि देष लोक कल्याणकारी है ऐसे में सभी के जीवन को बजट छू कर गुजरे तो ही अच्छा कहा जायेगा। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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