Wednesday, January 10, 2018

टैक्स के दाएरे में भी हो चुनावी चंदा

सरकारों की यह मूल चिंता रही है कि व्यवस्था पारदर्षी और लोककल्याणकारी हो पर राजनीति को स्वच्छ किये बिना यह सम्भव होता दिखाई नहीं देता। षायद इसी परिप्रेक्ष्य को मजबूती देने की फिराक में इन दिनों सरकार चुनावी चंदे पर चोट करते हुए पारदर्षिता की बात कर रही है। गौरतलब है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बाण्ड के माध्यम से चुनावी चंदा लिये जाने को लेकर सरकार पहल कर चुकी है। पर्दे के पीछे चली आ रही फण्डिंग की मौजूदा व्यवस्था को बदलने का फैसला वित्त मंत्री अरूण जेटली साल के षुरू में ही जता चुके हैं। उनका मानना है कि देष में राजनीतिक चंदे में पारदर्षिता लाने की दिषा में यह एक बड़ा सुधार है। नोटबंदी से काले धन पर कड़ा प्रहार करने के बाद राजनीतिक चंदे में पारदर्षिता लाने के लिए चुनावी बाण्ड की पहल इसी दिषा में एक कदम माना जा सकता है। हालांकि काले धन का आंकलन से जुड़ा आंकड़ा नोटबंदी के बाद क्या रहा अभी खुलासा नहीं हो पाया है और चुनावी चंदे में बाण्ड प्रथा के चलते काले धन पर कितना लगाम लगेगा इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगा। 8 नवम्बर 2016 को जब पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने का एलान हुआ था तब यह चिंता भी स्वाभाविक रूप से उभरी थी कि बीस हजार रूपये तक के जिस चंदे को वर्तमान कानून के अनुसार नकद दिया जा सकता है जिसमें दानकर्ता का नाम नहीं बताना पड़ता उसे भी सार्वजनिक किया जाय। साथ ही नकद चंदे की बीस हजार की राषि को घटाकर दो हजार किये जाने की बात भी थी जिसे लेकर अब मूर्त रूप देने का कानूनी प्रयास किया जा रहा है। चुनावी बाण्ड एक, दस हजार एवं एक लाख व दस लाख समेत एक करोड़ रूपये के होंगे जिसे स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया की चुनिंदा षाखाओं में खरीदा जा सकेगा। कोई भी नागरिक या देष में रजिस्टर्ड कम्पनी इस बाण्ड के जरिये प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत दल को दान दे सकेगा। बषर्ते पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल कम से कम एक फीसदी मत हासिल किया हो। इसके अलावा बाण्ड की खरीदारी के कुछ नियम भी हैं। चुनावी बाण्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिन की अवधि के दौरान खरीद के लिए उपलब्ध रहेंगे। लोकसभा चुनाव वाले साल में ये 30 अतिरिक्त दिन भी उपलब्ध रहेंगे। 
 चूंकि चुनावी बाण्ड का निर्णय पारदर्षिता और स्वच्छ राजनीति से जुड़ा है ऐसे में इसमें कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। यदि सरकार का यह इरादा जमीन पर उतरता है तो अच्छी बात होगी परन्तु दो हजार के नकदी के मामले में काला बाजारी कुछ मात्रा में जारी रहेगी। किसी भी राजनीतिक दल के चंदे का बड़ा हिस्सा अज्ञात स्रोतों से ही आता रहा है। चुनाव आयुक्त की भी सिफारिष थी कि सरकार कानून में बदलाव लाये ताकि दो हजार रूपए से कम का ही अज्ञात चंदा कोई दे सके। आषंका यह रही है और सच भी है कि एक ही व्यक्ति से भारी-भरकम राषि नकद ले ली जाती है और बीस हजार के हिसाब से गलत-सही नामों में वितरित कर हजारों दानकर्ता में बांट कर इसे सही ठहरा दिया जाता है। दो हजार की स्थिति में इसकी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता पर इसमें कठिनाई अधिक है। संगठन एसोसिएषन आॅफ डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म (एडीआर) के आंकड़े कहते हैं कि राजनीतिक दलों की कुल आय का 80 फीसदी से अधिक अज्ञात स्रोतों से आता है। जिसका जिक्र राजनीतिक दल अपने आयकर रिटर्न में करते हैं लेकिन स्रोत को छुपा लिया जाता है। ऐसे में देष में सत्ता को पोसने वाले राजनीतिक दल पर आय की वैधता पर प्रष्न खड़ा होना लाज़मी है। बात यहीं तक नहीं है वर्श 2005 में देष में सूचना का अधिकार कानून आया जिसके बाद एडीआर ने विभिन्न राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न का ब्यौरा मांगा लेकिन ब्यौरा देने से यह कह कर मना कर दिया गया कि यह आरटीआई के दायरे में नहीं आता। झकझोरने वाला एक प्रष्न यह भी है कि आयकर अधिनियम 1961 में एक संषोधन द्वारा धारा 13ए जोड़कर अप्रैल 1979 से ही राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे पर आयकर से छूट मिली हुई है। दलों को बही खाता रखना होता है, खातों का आॅडिट भी कराना होता है, रियायत के बावजूद कानून के उल्लंघन में ये दल अव्वल भी हैं। कई रिटर्न दाखिल नहीं करते मगर छूट का पूरा फायदा उठाते हैं। 
स्थिति को देखते हुए एक एनजीओ की जनहित याचिका पर 1996 में उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। न्यायालय ने स्पश्ट रूप से कहा जो राजनीतिक दल रिटर्न नहीं दाखिल किये हैं उन्हें छूट नहीं मिलेगी अर्थात् उन्हें कर भरना पड़ेगा। बावजूद इसके राजनीतिक दल रिटर्न भरने के मामले में ढीला रवैया अपनाती हैं। अप्रैल 2008 में निर्वाचन आयोग ने तो यहां तक कह दिया कि राश्ट्रीय दल सार्वजनिक संगठन हैं जिन्हें आरटीआई के तहत प्रष्न का उत्तर देना ही होगा। इससे पार्टियां बौखला गयी। मनमोहन सिंह की सरकार उस दौरान निर्वाचन आयोग के आदेष को रद्द करने के लिए अध्यादेष पर भी विचार करने लगी थी पर इसी बीच मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया और आज भी लम्बित है। सवाल है करोड़ों में चंदा इकट्ठा करने वाली राजनीतिक पार्टियां बिना आयकर दिये काला और सफेद धन से क्यों लिप्त है जबकि देष का आम जनमानस इन्हीं को वोट देता है और अपनी आय की एक-एक पाई का न केवल हिसाब देता है बल्कि उचित आयकर भी चुकाता है। क्या केवल राजनीतिक दलों की फण्डिंग पारदर्षी होने मात्र से पूरी पारदर्षिता सम्भव है। यदि नियम संगत उक्त चंदे पर आयकर का प्रावधान किया जाय तो इससे न केवल संचित निधि में धन की आपूर्ति होगी बल्कि समावेषी और बुनियादी विकास से जूझ रहे देष को आर्थिक राहत भी मिलेगी।
न्यू इण्डिया बनाने वाली मोदी सरकार जब पारदर्षिता को स्तर प्रदान कर ही रही है तो क्यों न आयकर अधिनियम 1961 के अनुच्छेद 13ए जिसे 1978 में जोड़कर राजनीतिक पार्टियों को आयकर से मुक्ति दी गयी थी उसे समाप्त कर दलों को टैक्स के दायरे में लायें। यदि प्रधानमंत्री यह पहल करते हैं तो जाहिर है उनका कद तुलनात्मक और बढ़ेगा ही। पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘हमारे पास धन कहां से आ रहा है’, इस टिप्पणी से साफ है कि धन के स्रोत समझने की चिंता उन्हें भी थी। उन्होंने इस बात का भी समर्थन किया था कि 20 हजार रूपये तक के जिस चंदे को वर्तमान कानून के साथ नकद दिया जा सकता है जिसमें दानकत्र्ता का नाम नहीं बताना पड़ता उसे भी सार्वजनिक किया जाय। हालांकि उन्होंने इसके लिए बात पार्टी पर डाल दी थी। वैसे सत्ताधारी भाजपा समेत उसके घटक दल यदि पारदर्षिता को लेकर स्वयं और बड़ा मन दिखायें तो दल का प्रभाव और गौरव भी बड़ा हो सकता है। चुनाव में बेहिसाब धन लुटाना हैसियत के हिसाब से सभी दल करते हैं। आंकड़े तो यह भी कहते हैं कि बीस हजार रूपये का बेनामी चंदा कुछ वर्शों में पांच हजार करोड़ की बड़ी राषि में बदल जाता है और इससे कोई दल अछूता नहीं है। देष में पारदर्षिता की संस्कृति पनप रही है पर इस पेड़ को बड़ा करने में केवल सरकार का ही जिम्मा नहीं है। जो राजनीतिक दल अपने मिषन और एजेण्डे में देष की भलाई समेटे हुए हैं उन सभी की जिम्मेदारी है कि चुनावी चंदे को पारदर्षी बनाने की दिषा में स्वयं पहल करें और सरकार को चाहिए कि चंदे पर टैक्स का प्रावधान करे ताकि बात एक तरफा न रहे। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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