Wednesday, January 17, 2018

दुनिया ने देखे दो इतिहास

पूर्वी देश हो या पष्चिमी भारत समय के साथ विभिन्न देषों से सम्बंधों को प्रगाढ़ करता रहा है। इसी क्रम में भारत-इजराइल सम्बंध भी इन दिनों गाढ़े होते देखे जा सकते हैं। गौरतलब है कि बीते 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति के दिन इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत की 6 दिवसीय यात्रा षुरू की जो कई उम्मीदों की भरपाई करने से युक्त दिखाई देती है। खास यह भी है कि जिस तर्ज पर प्रधानमंत्री मोदी के इजराइल दौरे के दौरान उनके समकक्ष नेतन्याहू ने उनका स्वागत किया था उसी अंदाज को अपनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकाॅल तोड़ते हुए उन्हें गले लगाया। हालांकि प्रोटोकाॅल तोड़ने की प्रथा मोदी लगातार निभा रहे हैं और दूसरे देषों के षीर्शस्थ पद धारकों का स्वागत इसी अंदाज में बीते साढ़े तीन वर्शों से कर रहे हैं। वैसे इतिहास की रचना करना मोदी की फितरत में है और इसी का हिस्सा वर्श 2017 के जुलाई में इजराइल दौरा भी था क्योंकि बीते 70 सालों में मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इजराइल का दौरा किया। भारत और इजराइल जिस तरीके से करीब आये हैं उससे न केवल हमारी सैन्य ताकत और कूटनीतिक षक्ति में इजाफा होगा बल्कि भारत की पष्चिम की ओर देखो नीति भी तुलनात्मक और पुख्ता होगी। गौरतलब है बेंजामिन नेतन्याहू के पूर्ववर्ती ऐरेल षेरोन  इससे पहले 2003 में भारत आ चुके हैं। 
भारत और इजराइल अपने रिष्ते को दोस्ती में बदलते हुए पूरी दुनिया की दृश्टि अपनी ओर आकर्शित करायी है। इजराइल के साथ बढ़े रिष्ते पाकिस्तान पर न केवल अंकुष लगाने बल्कि चीन के साथ कूटनीतिक संतुलन प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। साइबर सुरक्षा, रक्षा और निवेष व स्टार्टअप समेत पेट्रोलियम, मेडिकल और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को लेकर जो समझौते हुए हैं उससे भी भारत की फिलहाल ताकत बढ़ना लाज़मी है। इजराइल क्षेत्रफल और जनसंख्या दोनों की दृश्टि से निहायत छोटा है। मात्र 84 लाख की जनसंख्या रखने वाला इजराइल तकनीकी दृश्टि से कहीं आगे है जिसकी दरकार भारत को है। कृशि क्षेत्र हो या उद्योग या फिर सौर ऊर्जा ही क्यों न हो काफी कुछ तकनीक इजराइल से प्राप्त किया जा सकता है। बेंजामिन नेतन्याहू का यह कहना कि मजबूत राश्ट्र के लिए सैन्य ताकत जरूरी है। साफ है कि मात्र सम्पदा से काम नहीं चलता बल्कि उसको ताकत बना लेने से दुनिया आपको स्वीकार करती है। भारत युवाओं का देष है पर यहां बेरोजगारी बेलगाम है। तकनीक और बेहतर विकास के चलते इससे निपटने में मदद मिल सकती है। युवा देष की सम्पदा है परन्तु इनका सही उपयोग व खपत उचित तकनीक व स्किल से ही सम्भव है। कृशि पैदावार के मामले में भी तकनीक का उपयोग कर न केवल फसल उत्पादन की समय सीमा को कम किया जा सकता है बल्कि उचित रख-रखाव से इन्हें सड़ने से रोका भी जा सकता है। देष में किसानों के हालात अच्छे नहीं हैं। इजराइल बीज से लेकर अधिक पैदावार के मामले में फायदेमंद हो सकता है। उदाहरण तो यह भी हैं कि गुजरात के कुछ किसानों ने इजराइली तकनीक अपनाकर खेती-बाड़ी से 50 लाख तक का मुनाफा कमाया है। वैसे भी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने की बात सरकार कह चुकी है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत और इजराइल दोनों देष उपनिवेषवाद के परवर्ती युग की उपज है। भारत 1947 में जबकि इजराइल 1949 में अपना स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त कर सके। खास यह भी है कि अनेक समस्याओं के बावजूद भी दोनों जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित रहे। भारत वर्श 1950 में इजराइल को स्वतंत्र देष की मान्यता दी परन्तु उसके साथ राजनयिक सम्बंध कायम नहीं किये। इसके पीछे प्रमुख कारण भारत द्वारा फिलीस्तीनियों को दिया जाने वाला समर्थन था। चूंकि भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य है इसलिए वह विकासषील देषों में किसी भी उपनिवेषवादी कृत्यों का विरोध करता है और फिलीस्तीनियों को समर्थन देने के पीछे उसकी यही प्रतिबद्धता भी रही है। इसमें कोई षक नहीं कि इज़राइल के साथ इन दिनों भारत की प्रगाढ़ होती दोस्ती फिलीस्तीन को खटक रही होगी। जब प्रधानमंत्री मोदी बीते वर्श जुलाई में इजराइल में थे तब भी यह सवाल उठे थे कि फिलीस्तीन का भी दौरा क्यों नहीं। इसी दौरान देष में डोकलाम विवाद को लेकर चीन से भी तनातनी जोर पकड़े हुए थी। इज़राइल का दौरा समाप्त कर मोदी को 7-8 जुलाई को जर्मनी में होने वाले जी-20 में भी जाना था और गये भी जहां चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग से मुलाकात हुई जिनसे मुलाकात की सम्भावना न के बराबर थी। मोदी का इजराइल दौरा चीन और पाकिस्तान दोनों को बहुत खटका था। हालांकि डोकलाम समस्या समय के साथ कूटनीतिक तरीके से हल प्राप्त कर लिया पर पष्चिम के देषों में इजराइल से प्रगाढ़ होती दोस्ती और पूरब में नैसर्गिक मित्र बनते जापान को लेकर चीन की छटपटा अभी भी कम नहीं हुई होगी। दो टूक यह भी है कि इजराइल और अमेरिका का सम्बंध कहीं अधिक सकारात्मक है ऐसे में इज़राइल से भारत की मित्रता कईयों को खटकना सम्भव है बावजूद इसके भारत की मूल चिंताओं में एक यह भी है कि रूस जैसे नैसर्गिक मित्र से फासले न बढ़ने पाये क्योंकि जब-जब हम अमेरिका के अधिक करीब आये हैं तब-तब इसकी गुंजाइष बनी है क्योंकि अमेरिका और रूस एक-दूसरे के अक्सर खिलाफ रहे हैं। हालांकि इन दिनों दोनों के बीच तल्खी पहले जैसी नहीं दिखती।
वैसे देखा जाय तो इजराइल भी भारत से दोस्ती करके कहीं न कहीं कूटनीतिक संतुलन व्याप्त कर दुनिया में अलग-थलग नहीं है को लेकर अपनी साख बनाने में फिलहाल कामयाब हुआ है। गौरतलब है इज़राइल 13 ऐसे मुस्लिम देषों से घिरा है जो उसके कट्टर दुष्मन हैं और बरसों से इनसे लोहा लेते-लेते तकनीकी रूप से न केवल यह दक्ष हुआ बल्कि सभी सात युद्धों में सफल भी रहा पर भारत से प्रगाढ़ होती दोस्ती दुनिया में उसकी तरीके से ताकत बढ़ा दी है। देखा जाय तो इज़राइल की तकनीक इतनी दक्ष है कि आतंकी भी इसकी तरफ देखना पसंद नहीं करते। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह इषारा करते हैं कि भारत और इजराइल की दोस्ती विष्व राजनीति को काफी प्रभावित कर सकती है। इजराइल का चीन के साथ भी बेहतर रिष्ता है। दोनों के बीच द्विपक्षीय कारोबार भी होता है लेकिन चीन का दखल जिस तरीके से बेवजह इन दिनों बढ़ा हुआ है उसे देखते हुए षायद भविश्य में वैसी बात दोनों के बीच न रहे। प्रधानमंत्री मोदी को क्रान्तिकारी नेता बताने वाले इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने दिल्ली में न केवल कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये बल्कि आगरा के ताजमहल का दीदार और प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात का दौरा कर अहमदाबाद एयरपोर्ट से साबरमती आश्रम तक 8 किलोमीटर लम्बा रोड षो किया। पूरे रास्ते में लगभग 50 झाकियां भारत दर्षन का प्रतीक बनी हुई थी। आश्रम पहुंचकर गांधी दर्षन के साथ बेंजामिन नेतन्याहू ने चरखा चलाया ठीक वैसे ही जैसे इसके पहले चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग और जापान के प्रधानमंत्री षिंजो अबे चला चुके थे। भारत और इजराइल के औपचारिक रिष्तों की 25 वर्श की पड़ताल यह बताती है कि यह प्रगाढ़ता उनकी राजनयिक परिपक्वता का प्रमाण है। दिलचस्प यह भी है कि भारत में फिलीस्तीन के सवाल पर बहुत नहीं बदला है पिछले दिनों जब अमेरिका द्वारा येरूषलम को राजधानी की मान्यता देने का मसला संयुक्त राश्ट्र में उठा तो भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया। जाहिर है इजराइल थोड़ा निराष हुआ होगा पर यह भारत की परिपक्व कूटनीति ही कही जायेगी। भारत इस समय अपनी जरूरत के लिए हथियारों का सबसे ज्यादा आयात इजराइल से ही कर रहा है। इस मामले में इजराइल ने न कभी अमेरिका जैसी आनाकानी की और न ही यूरोपियन देषों जैसे नखरे दिखाये। इतना ही नहीं उसने कड़ी राजनीतिक या राजनयिक षर्तें भी भारत के सामने कभी नहीं रखी। जाहिर है तकनीक, उद्योग और कृशि समेत सुरक्षा के मामले में इजराइल से सब कुछ बेहतर होने के चलते प्रगाढ़ता का परवान चढ़ना लाज़मी है। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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