तेजी से बदलते विश्व परिदृष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए आज भारतीय हो या विदेषी समाज प्रतिभा की आवष्यकता सभी को है। भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था में हो रहे अनवरत् परिवर्तनों के चलते न केवल दक्ष श्रम षक्ति जुटाई जा रही है बल्कि ज्ञान की अर्थव्यवस्था को संजोते हुए सभी देष हालत बदलने की कवायद में लगे हुए है। सभी को समृद्धि और आर्थिक विकास चाहिए जबकि प्रतिभाओं को अवसर। दुनिया में जहां भी ऐसे अवसर उपलब्ध रहे हैं स्वाभाविक तौर पर युवाओं का रूख उधर हुआ है। बदलाव के प्रतिनिधि के रूप में भूमिका तलाषते हुए कईयों ने घर छोड़ा तो कईयों ने षहर और कुछ ने तो देष भी छोड़ा है। आमतौर पर जब प्रतिभायें दूसरे देषों की ओर पथगमन करती हैं तो इसे पलायन में रचे-बसे षब्द से अभिभूत कर दिया जाता है पर जब यही दुनिया में भारत का डंका बजाते हैं तो सम्मान भी व्यापक पैमाने पर उमड़ जाता है। पष्चिमी देषों में भारतीयों का पलायन जिस तर्ज पर हुआ है वैसा षायद किसी और दिषा या देष में देखने को नहीं मिलता मुख्यतः अमेरिका और यूरोप में। साथ ही जिस प्रकार उन्होंने अपनी प्रतिभा को व्यवस्थित और स्थापित किया है वह भी प्रषंसनीय है। इससे न केवल देष विषेश को लाभ मिला है बल्कि विदेष में भारतीयों की अहमियत भी बढ़ी है। हमारी प्रतिभा और उनके देष के षीर्शक के अन्तर्गत पूरा तानाबाना अमेरिका में रह रहे भारतीयों से सम्बन्धित है जिस पर वापसी की लटक रही तलवार से हद तक राहत मिल गयी है। गौरतलब है कि अमेरिका में साढ़े सात लाख एच1बी वीजा धारक हैं जो अमेरिकी राश्ट्रपति के निषाने पर थे। फिलहाल इसे लेकर बदले जाने वाले नियम पर अभी राहत दे दी गयी है। जाहिर है उनकी वापसी का कयास पर विराम लग गया है।
अमेरिका में भले ही राश्ट्रपति ट्रंप प्रवासियों के खिलाफ हों पर वहां के सांसद और उद्योग जगत के लोग इसके पक्ष में नहीं हैं। गौरतलब है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वहां के समाज में भारतीयों का योगदान किसी अमेरिकी से कम न होकर अधिक ही आंका गया है। अमेरिका 30 करोड़ की जनसंख्या वाला देष है जिसमें एक फीसदी अर्थात् 30 लाख भारतीय हैं। भले ही वहां की आबादी में यह मात्रा कम हो परन्तु इनके प्रतिभा का लोहा पूरे अमेरिका पर प्रभावी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाइटेक कम्पनियों के 8 प्रतिषत संस्थापक भारतीय है। सिलिकाॅन वैली जो यहां का आईटी हब है यहां की एक तिहाई स्टार्टअप कम्पनियों का सरोकार भारतीयों से ही है। गौरतलब है कम्प्यूटर और आईटी क्रान्ति ने बड़ी तादाद में भारतीयों को अमेरिका पहुंचा दिया। अमेरिकी भारतीयों की आय 88 हजार डाॅलर प्रतिवर्श है जबकि अमेरिका की औसत आय 50 हजार डाॅलर से थोड़ा कम है। यह बात काफी प्रखर रही है कि भारतीय षिक्षा प्रणाली तुलनात्मक उतना बेहतर नहीं है पर यहीं से षिक्षा-दिक्षा प्राप्त भारतीय जब अमेरिका पहुंचते हैं तब पता चलता है कि हमारी षिक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर नहीं जितनी आंकी जाती है। विज्ञान और गणित के मामले में अमेरिका से भारत बेहतर है। बराक ओबामा जब राश्ट्रपति थे तब उन्होंने गणित में कमजोर हो रहे अमेरिकियों पर चिंता जाहिर करते हुए इस पर जोर देने की बात कही थी। आंकड़े बताते हैं कि 28 फीसदी भारतीय अमेरिका में इंजीनियरिंग क्षेत्र में काम कर रहे हैं जबकि अमेरिकी इंजीनियरों की संख्या मात्र 5 फीसदी है। इतना ही नहीं अमेरिका में रहने वाले लगभग 69.3 प्रतिषत भारतीय प्रबंधन, विज्ञान, व्यापार और कला क्षेत्र से जुड़े हैं। खास यह भी है कि अमेरिका में रहने वाले 51 फीसदी भारतीय हिन्दू हैं जबकि 10 फीसदी मुस्लिम और 18 फीसदी ईसाई हैं। यहां सिक्खों की संख्या 5 फीसदी है। उक्त से यह भी परिलक्षित होता है कि भारतीय संस्कृति और संस्कार की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रवाह अमेरिका की जमीन पर भी बाकायदा पसरा हुआ है।
ज्ञान के उत्पादन और प्रसारण में प्रमुख बात यह रही है कि षिक्षा और षोध के प्रति तत्परता बढ़े। ऐसा लगता है कि अनुभववादी दृश्टिकोण और आधारभूत संरचना के संयोजन के चलते अमेरिका दुनिया का अव्वल देष बना है। षैक्षिक पूंजीवाद के पर्दापण के साथ ही विकासषील और विकसित देष एक-दूसरे से आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों ने अमेरिका के अंदर काफी हद तक यह विचार भरा है कि वे किसी से कम नहीं साथ ही भारत को भी यह संदेष दिया है कि आधारभूत ढांचा और रोजगार की व्यापक सम्भावना देष में पैदा हो तो भारत के अंदर ही अमेरिका का विकास हो सकता है। साल 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका आने वाले छात्रों के मामले में भारत का स्थान दूसरा है। गौरतलब है कि अमेरिका में पढ़ने वाले कुल विदेषी छात्रों में भारतीयों की संख्या 17 फीसदी से अधिक है और इसमें 36 फीसदी इंजीनियरिंग से है। सवाल षिक्षा और रोजगार तक ही नहीं है और न ही सिर्फ प्रतिभा तक सीमित है बल्कि निहित संदर्भों में देखें तो अमेरिका जैसे औद्योगिक देष के अंदर संस्कार की रोपाई भी इनके माध्यम से तुलनात्मक बेहतर है। यहां 63 प्रतिषत भारतीय बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं और 92 फीसदी परिवार टूटे नहीं है जबकि औद्योगिक देषों मुख्यतः अमेरिका में भी तलाक दर और सिंगल पेरेंट कल्चर बढ़त बनाये हुए है। जाहिर है विदेषी धरती पर भी देषी संस्कार को अपनाने में भारतीय पीछे नहीं है। यह एक पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबद्धता का द्योतक भी है। बावजूद इसके अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रवासी विरोधी नीति को लेकर कड़ा रूख दिखा चुके हैं। भले ही प्रवासी भारतीयों प्रति ट्रंप का रूख विरोधी हो पर अमेरिकी संसद और उद्योगपतियों का एक बड़ा वर्ग इससे सरोकार नहीं रखता।
अमेरिका में रहने वाले ज्यादातर भारतीयों को स्थायी निवास का अधिकार अर्थात् ग्रीन कार्ड मिल चुका है। केवल साढ़े सात लाख भारतीय ही एच1 वीजा पर रह रहे हैं। जाहिर है यदि प्रवासियों पर कोई गाज गिरती है जिसकी सम्भावना कम है तो साढ़े सात लाख दायरे में आ सकते हैं। वैसे इन्हें राहत देते हुए ट्रंप प्रषासन ने कहा है कि एच1बी वीजा नियमों में फिलहाल परिवर्तन नहीं कर रहा है। गौरतलब है इसके तहत ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करने वाले विदेषी कर्मचारियों के एच1बी वीजा की अवधि नहीं बढ़ाने का प्रस्ताव था और यदि यह मूर्त रूप ले लेता तो अमेरिका से इनकी वापसी तय थी। माना तो यह भी जा रहा है कि भारतीयों का वहां के प्रषासन में जो धमक है उसके चलते ट्रंप को पीछे हटना पड़ा है। संयुक्त राश्ट्र में अमेरिका की दूत निक्की हैली और गवर्नर रह चुके बाॅबी जिंदल समेत सांसद कमला हैरिस और अन्य भारतीय मूल के लोगों का वहां काफी अच्छा प्रभाव है। हालांकि किसी भी प्रकार के दबाव से इंकार किया जा रहा है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि जब से ट्रंप ने इस मामले में अपना कड़ा रूख दिखाया तबसे इसका भारी विरोध हो रहा था। अमेरिका जानता है कि भारत की प्रतिभा के बगैर उसकी अर्थव्यवस्था हांफ जायेगी और यहां के चिकित्सालय, विद्यालय व औद्योगिक संस्थान भी षिथिल पड़ जायेंगे। आंकड़े यह तस्तीक करते हैं कि अमेरिका के प्रत्येक उत्पादन एवं सेवा इकाई भारतीयों का प्रभाव और दबाव में है और ऐसा प्रतिभा के चलते अमेरिका की विकास दर और व्यवस्था अव्वल बनी हुई है। गूगल से लेकर फेसबुक तक उनकी उपस्थिति है। साथ ही माना जा रहा है कि साल 2030 तक अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की संख्या दोगुनी हो जायेगी। अमेरिकी वाणिज्य विभाग की रिपोर्ट भी बताती है कि पिछले साल करीब 12 लाख भारतीय पर्यटक अमेरिका की सैर करने गये थे। जाहिर है प्रतिभा और पर्यटन दोनों के आकर्शण में अमेरिका अव्वल है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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