Monday, April 17, 2017

निडर उत्तर कोरिया का असफल दुस्साहस

जब बीते 16 अप्रैल को उत्तर कोरिया ने बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया लेकिन महज़ पांच सैकेण्ड में ही फट कर वह मलबे में तब्दील हो गया तो इस घटना से दुनिया को भी सुकून आया होगा। मध्यम दूरी की मिसाइल का परीक्षण के मामले में फिलहाल किम जोंग दूसरी बार असफल रहा। जाहिर है परीक्षण नाकाम रहने से कोरिया प्रायद्वीप में बढ़ा तनाव कम हुआ होगा साथ ही दक्षिण कोरिया और जापान समेत अमेरिका ने भी चैन की सांस ली होगी। अमेरिकी पेसीफिक कमान का दावा है कि मिसाइल तुरन्त फट गया था पर यह कैसा था अभी इसका मूल्यांकन नहीं हो पाया है। निःसंदेह उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण से लेकर मिसाइल तक के कार्यक्रम में दुनिया की एक भी नहीं सुनी है और तानाषाह किम जोंग अपनी ही चाल से आज भी चल रहा है। उत्तर कोरिया पिछले एक दषक से विवादों को जन्म देने वाला देष बन गया है। 6 जनवरी, 2016 को जब उसने चैथे परमाणु परीक्षण से अपनी दादागिरी एक बार फिर दिखाई तब दुनिया को यह फिर अहसास हुआ कि अभी चिंता से मुक्त होने का वक्त नहीं आया है। पिछले वर्श प्रक्षेपास्त्र का परीक्षण करके एक बार सभी के माथे पर बल ला दिया था। उसकी इस मनमानी को देखते हुए संयुक्त राश्ट्र महासचिव और अमेरिका सहित कई देषों ने घोर निन्दा की थी। घटना को देखते हुए सवाल उठा कि आखिर इसका निदान क्या है? उन दिनों न्यूयाॅर्क में एक आपात बैठक भी बुलाई गयी थी, सुरक्षा परिशद ने कहा था कि उत्तर कोरिया के खिलाफ नये प्रतिबन्धों का प्रस्ताव षीघ्र ही पारित किया जायेगा जबकि उसके पहले भी उस पर प्रतिबंध के प्रस्ताव लाये जा चुके हैं बावजूद इसके उस पर कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों उत्तर कोरिया वैष्विक चेतावनी को नजरअंदाज करता है। 2006 के परमाणु परीक्षण के बाद से प्रतिबंध वाले तीन प्रस्ताव आ चुके हैं बावजूद इसके इसके दुस्साहस में कोई कमी नहीं आई। 
देखा जाय तो वर्श 2006 से 2016 के बीच चार बार परमाणु परीक्षण और राॅकेट प्रक्षेपण करके उत्तर कोरिया सुर्खियों में है और अब तो वह मध्यम दूरी की मिसाइल का परीक्षण करके वर्श 2017 में भी अपनी हेकड़ी दिखा दी है। अलबत्ता परीक्षण असफल ही क्यों न हो गया हो। इतना ही नहीं ऐसा भी कहा जा रहा है कि वह पांचवें एटमी परीक्षण की तैयारी में भी है। दुनिया में षायद ही कोई ऐसा देष होगा जो दुनिया की चिंता न करता हो पर उत्तर कोरिया इन सबसे जुदा है। लगातार प्रतिबंधों के बावजूद मिसाइल और परमाणु क्षमता को बढ़ाने से वह कदम पीछे नहीं खींच रहा है। माना तो यह भी जाता है कि उत्तर कोरिया के पास छोटे परमाणु हथियार और कम एवं मध्यम दूरी की मिसाइल है परन्तु जिस प्रकार इसकी हरकतों से विष्व बिरादरी तनाव में है उसे देखते हुए फिलहाल इसे क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। सबके बावजूद यक्ष प्रष्न यह भी है कि उत्तर कोरिया की इन हरकतों से निजात कैसे पाया जा सकता है। क्या चीन के रहते हुए ऐसा सम्भव है क्या सुरक्षा परिशद् इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा सकती है। गौरतलब है संयुक्त राश्ट्र में वीटो समूह में चीन भी है जिसकी अड़ंगेबाजी के चलते प्रतिबंध मुमकिन नहीं है। हालांकि यहां साफ कर दें कि चीन और रूस ने उत्तर कोरिया द्वारा पहले किये गये मिसाइल परीक्षण की निंदा कर चुके हैं। सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि कोरियाई प्रायद्वीप में दक्षिण कोरिया हमेषा खतरे से घिरा रहता है जाहिर है बदलते हुए वैष्विक परिदृष्य में खतरे घटने चाहिए थे परन्तु हालात इस कदर बिगड़ रहे हैं कि सुरक्षा और आत्मविष्वास के लिए वे देष भी परमाणु सामग्री जुटाने की होड़ में आ सकते हैं जो इससे बेफिक्र थे। जाहिर है यदि परमाणु हथियारों या घातक मिसाइल को लेकर उत्तर कोरिया की मनमानी नहीं रूकती है तो यह बाकियों के लिए न केवल चुनौती होगा बल्कि हथियारों की प्रतियोगिता में भी षामिल करा देगा। ऐसे में संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् का प्रतिबंध एक बड़ा प्रतिबंध हो सकता है बषर्ते चीन का नरम रवैया उत्तर कोरिया को लेकर समाप्त हो। गौरतलब है कि बीते वर्श भारत, अमेरिका और जापान ने दक्षिणी चीन सागर में मिलकर युद्धाभ्यास किया था। जाहिर है इस कारण भी चीन असहज महसूस किया था। उसका भी उसे रंज होगा।
क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृश्टि से विष्व के कई छोटे देषों में षुमार उत्तर कोरिया वैष्विक नीतियों को दरकिनार करते हुए अपने निजी एजेण्डे को तवज्जो दे रहा है एक तरफ विष्व आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ अद्ना सा देष उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों और मिसाइलों से लैस होकर उसी विष्व को एक नई चुनौती देने का काम कर रहा है जो हर हाल में मानवता के लिए खतरा है। भले ही उसका मिसाइल कार्यक्रम विफल हो गया हो पर बाजीगर की भूमिका में तानाषाह किम जोंग आज भी अपने को मानता है। पड़ताल से यह पता चलता है कि दुनिया परमाणु सामग्री की होड़ में बरसों से रही है पर समय के साथ इसमें कमी लाने की कोषिष की जा रही है बावजूद इसके समाप्त करना मुष्किल हो रहा है। वर्श 1952 में अमेरिका पहली बार हाइड्रोजन बम बनाया था जबकि 1955 में रूस ने इसका परीक्षण करके दूसरा राश्ट्र बनने का गौरव प्राप्त कर लिया। इसी क्रम में ब्रिटेन ने भी 1957 में हाइड्रोजन बम का परीक्षण करके ऐसा करने वाला तीसरा देष बन गया। ठीक एक दषक बाद चीन तत्पष्चात् फ्रांस इस वर्ग में षामिल हो गये। पाकिस्तान से मिलती चुनौती और चीन के वार को देखते हुए भारत का भी परमाणु षक्ति सम्पन्न होना मजबूरी बन गयी। हालांकि पाकिस्तान भी इस मामले में षुमार है। 
तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि उत्तर कोरिया जैसे देष को व्यापक पैमाने पर हथियारों की आवष्यकता ही क्यों है। वास्तव में यह उसकी जरूरत है या फिर किसी बड़े संकट का संकेत। संयुक्त राश्ट्र संघ हथियारों को समाप्त करने की कवायद में 70 के दषक से लगा है। सीटीबीटी और एनपीटी सहित कई कार्यक्रम इसके रोकथाम के लिए आगे भी लाये गये पर इसकी व्यावहारिकता भी पूरी तरह प्रासंगिक होते दिखाई नहीं देती। देखा जाय तो गति थमने के बजाय बढ़त की ओर है। यहां तक कि आतंकियों के पास भी घातक हथियार उपलब्ध हैं। दुनिया की दो समस्याओं में एक समस्या आतंक और उससे जुड़ा घातक हथियार किसी भी सभ्य देष को चिंतित कर सकता है। प्रषान्त महासागर में बसा उत्तर कोरिया का दक्षिण कोरिया से छत्तीस का आंकड़ा है। ज्यों-ज्यों उत्तर कोरिया घातक सामग्रियों के मामले में सषक्त होता जा रहा है कोरियाई प्रायद्वीप में चुनौती और चिंता बढ़ती जा रही हैं। साथ ही जापान भी उत्तर कोरिया की ताकत से काफी हद तक परेषान है। दक्षिण कोरिया पहले भी कह चुका है कि ऐसे दुस्सासह के लिए सबक सिखायेंगे परन्तु निडर तानाषाह किम जोंग को ऐसी बातों की कोई परवाह नहीं है। सच्चाई तो यह भी है कि उत्तर कोरिया की इन कवायदों से किसी का भला होने वाला नहीं है पर सनकी तानाषाह की तृश्णा जरूर षान्त हो री होगी। अमेरिका समेत विष्व की मानवता की वकालत करने वालेक तमाम देष उत्तर कोरिया की मौजूदा आदत से भौचक्के होंगे और होना भी चाहिए पर सवाल यह उठता है कि परमाणु संसाधनों को खत्म करते-करते हम कहां आ गये। कहीं न कहीं कूटनीति की विफलता और कुछ देषों के संरक्षण के चलते ऐसी स्थितियां पैदा हुई हैं पर इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एक तरफ हम दूसरे ग्रहों पर खाक छान रहे हों वहीं पृथ्वी पर विध्वंसक सामान बना रहे हैं। जाहिर है इस पर लगाम लगनी ही चाहिए। 

सुशील कुमार सिंह


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