Wednesday, April 12, 2017

प्रगाढ होते भारत-ऑस्ट्रेलिया सम्बन्ध

जब वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री मोदी पहली बार आॅस्ट्रेलिया यात्रा पर थे तब तत्कालीन आॅस्ट्रेलियाई  प्रधानमंत्री टोनी एबाॅट के साथ यूरेनियम समेत पांच समझौतों पर सहमति बनी थी। ढ़ाई वर्ष  के बाद एक बार फिर भारत और आॅस्ट्रेलिया को एक बड़े समझौते की ओर जाते हुए देखा जा सकता है। इस बार बारी एबाॅट के उत्तराधिकारी मैल्कम टर्नबुल की दिल्ली आने की थी जो बीते 9 अप्रैल से चार दिवसीय यात्रा पर थे। मोदी और टर्नबुल के बीच द्विपक्षीय वार्ता के दौरान छः समझौते पर हस्ताक्षर हुए। जाहिर है इन करारों से रिष्तों को न केवल और मजबूती मिली बल्कि यलोकेक नीति यानि यूरेनियम को लेकर समझदारी भी और प्रगाढ़ हुई। गौरतलब है कि आॅस्ट्रेलिया दुनिया का 40 फीसदी यूरेनियम रखता है जाहिर है परमाणु उर्जा के क्षेत्र में भारत की इस पर भारी निर्भरता को देखते हुए रिष्ते अहम् कहे जा सकते हैं। देखा जाय तो असैन्य परमाणु करार समझौता और यूरेनियम की मांग परमाणु ऊर्जा के लिए एक आवष्यक ईंधन है जिसे लेकर सुलह और सन्धि हेतु सक्रियता भारत द्वारा 2012 से ही किया जा रहा था। आॅस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने भी यह स्पश्ट किया है कि उनका देष भारत को यूरेनियम की आपूर्ति के लिए तैयार है और इस तरह की स्पश्टता लगभग तीन साल बाद देखने को मिली है। इसके अलावा संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मोदी ने उन मुद्दों पर विमर्ष को आगे बढ़ाया जिसे लेकर दुनिया निहायत चिंतित है। सभी जानते हैं कि दुनिया दो समस्याओं आतंकवाद और पर्यावरण से जूझ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद, साइबर सुरक्षा जैसी चुनौतियों के लिए वैष्विक रणनीति और समाधान की जरूरत पर बल दिया। भारत और आॅस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय समझौतों में आतंक के साथ मिलकर लड़ने और पर्यावरण पर सहयोग जैसी बात भी षामिल है। इसके अलावा अतंरिक्ष विज्ञान, विमानन सुरक्षा, औशधि विकास में साथ-साथ काम करने और खेल को लेकर भी करार हुआ। हालांकि चीन आसियान के साथ मिलकर इलाके को मुक्त व्यापार बनाने के मुद्दे पर अभी भी पेंच फंसा हुआ ही है। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को तरक्की और विकास के असाधारण रास्ते पर ले जा रहे हैं। ऐसी मान्यता उनके आॅस्ट्रेलियाई समकक्ष की है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मोदी को तारीफ मिली हो। इसके पहले विकसित एवं विकासषील देषों के कई राश्ट्राध्यक्ष व कार्यकारी मोदी के क्रियाकलापों से प्रभावित होने की बात कह चुके हैं। मौजूदा अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी चुनाव के दिनों में मोदी की नीतियों को राश्ट्रपति बनने पर सौ दिन के अंदर लागू करने की बात कह चुके हैं। जाहिर है मोदी का अंदाज सभी को कमोबेष रास आया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वैष्विक फलक पर मोदी की छवि अन्यों की तुलना में काफी प्रखर है। एबाॅट के समय जब 2014 के जी-20 सम्मेलन में मोदी ने आतंक और कालेधन के मुद्दे पर सभी को एकमत करने की कोषिष की थी और ऐसा हुआ भी था जिसमें तत्कालीन राश्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर चीनी राश्ट्रपति षी जिनपिंग समेत रूस के राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी थे। मोदी के सुझाये रास्ते पर बड़े मंचों पर एक सुर होना यह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि ही थी। हालांकि यूक्रेन की समस्या को लेकर रूस और अमेरिका के बीच तनातनी उन दिनों भी देखी जा सकती है जैसा कि इन दिनों सीरिया को लेकर दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। रोचक यह भी है कि व्लादिमीर पुतिन ने बिना किसी सूचना के जी-20 सम्मेलन के दौरान यह कहकर मास्को चले गये कि उन्हें नींद आ रही थी। भारत जिस तर्ज पर वैष्विक फलक पर विष्व के षेश देषों के साथ अपनी कूटनीति को साधने की बीते तीन वर्शों में कोषिष की है और जिस अनुपात में सफलता मिली है उससे भी यह स्पश्ट होता है कि पथ चिकना तो हुआ है पर बदले हुए दौर में कुछ हद तक यह पथरीला भी है। चीन के मामले में यह बात काफी हद तक लागू होती है जबकि पाकिस्तान को लेकर यह सौ फीसदी सच है। गौरतलब है कि इन दिनों जाधव मामले के चलते पाकिस्तान को लेकर भारत एक नये मोड़ पर खड़ा है। 
जब बात आॅस्ट्रेलिया से होती है तो यलोकेक नीति पर्याय के रूप में उभरती है। भारत बरसों से ऊर्जा संकट झेल रहा है ऐसे में परमाणु ऊर्जा को विकसित करने का प्रयास जारी है। सवा अरब का देष भारत बिजली के मामले में अभी भी कहीं अधिक पीछे है। भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगभग पांच हजार मेगावाॅट क्षमता के हैं जिसमें से तीन हजार मेगावाॅट का उत्पादन स्वदेषी यूरेनियम से होता है जबकि बाकी के लिए ईंधन आयात करना पड़ता है। झारखण्ड और आन्ध्र प्रदेष में यूरेनियम की खाने हैं पर इनकी मात्रा इतनी कम है कि असैन्य परमाणु कार्यक्रम को पूरा नहीं किया जा सकता। भारत ने 2030 तक परमाणु ऊर्जा से 60 हजार मेगावाॅट बिजली उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। जाहिर है यूरेनियम आयात के बगैर यह सम्भव ही नहीं है और आॅस्ट्रेलिया की ओर देखो नीति का अनुसरण करना ही होगा। गौरतलब है कि दुनिया का 6 फीसदी यूरेनियम मंगोलिया के पास है परन्तु इससे यूरेनियम समझौता मुष्किल इसलिए है क्योंकि चीन की भंवे तन जाती हैं। चीन की नजरे तो उस समय भी तिरछी हुईं थी जब 2014 में भारत और आॅस्ट्रेलिया के बीच यूरेनियम समझौता सफल हुआ था। ध्यान्तव्य है कि 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया हमारी विरोधी थी जिसमें अमेरिका समेत कई देष और आॅस्ट्रेलिया भी षामिल था। इतना ही नहीं उस दौर में आॅस्ट्रेलिया ने रक्षा सम्बंधों के साथ-साथ नौसैन्य अभ्यास कार्यक्रमों को भी भारत के साथ नहीं करने का निर्णय लिया था। वैष्विक परिदृष्य समय के साथ बदला, भारत और अमेरिका के बीच सम्बंध बदले और दोनों देषों के बीच 2005 में असैन्य परमाणु समझौते सम्पन्न हुए। बावजूद इसके आॅस्ट्रेलिया टस से मस नहीं हुआ। आखिर में 2012 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान कुछ सफलता के आसार बनते दिखाई दिये तत्पष्चात् मोदी के समय द्विपक्षीय सम्बंध सरपट दौड़ लगाने लगे। मोदी और टर्नबुल एक सच्चे मित्र की तरह एक-दूसरे की चिंता करते इन दिनों देखे गये। गौरतलब है आॅस्ट्रेलिया एक साल में 7 हजार टन यूरेनियम निर्यात करता है जिसमें चीन, जापान, ताइवान और अमेरिका को भारी मात्रा में बेचता है। जाहिर है अब इस सूची में भारत भी षामिल हो गया है।
दरअसल भारत को यूरेनियम न मिलने के पीछे एक वजह सीटीबीटी और एनपीटी पर हस्ताक्षर न करना भी रहा है जबकि भारत असैन्य कृत्यों के लिए इसके प्रयोग की बात कहता रहा। एक सच्चाई यह भी है कि अपनी सुरक्षा हितों को देखते हुए भारत कभी भी दुनिया के आगे नहीं झुका बल्कि अलग-थलग पड़ने के बावजूद भी मनोवैज्ञानिक तरीके से मजबूत बना रहा। इसके चलते भी भारत की प्रखर हो रही विचारधारा से षेश दुनिया कहीं न कहीं जुड़ती दिखाई देती है। मौजूदा समय में निवेष का अच्छा वातावरण मसलन मेक इन इण्डिया, डिजीटल इण्डिया, क्लीन इण्डिया, स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डटप इण्डिया के मनोभाव से देष युक्त है। हालांकि इसमें अभी आषातीत सफलता मिलना बाकी है। दो टूक यह भी है कि वैष्विक फलक पर जब भी भारत ने विस्तार लिया है तो चीन कहीं न कहीं परेषान हुआ है। अमेरिका से अच्छे रिष्ते, रूस से अच्छे सम्बंध और आॅस्ट्रेलिया से प्रगाढ़ दोस्ती चीन जैसे देषों को कभी रास नहीं आती। आॅस्ट्रेलिया में 2015 में मेक इन इण्डिया षो का आयोजन होना और भारत में बिजनेस वीक का आयोजन आॅस्ट्रेलिया द्वारा किया जाना साथ ही सांस्कृतिक पक्ष, क्रिकेट, हाॅकी और योग के माध्यम से भी दोनों की घनिश्ठता अब परवान चढ़ रही है। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी आॅस्ट्रेलिया काफी अग्रणी है और कई मामलों में भारत भी अव्वल है। जाहिर है दोनों देषों के बीच बढ़ रही द्विपक्षीय समझ भविश्य के लिए बेहतर मोड़ लायेगा।

सुशील कुमार सिंह


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