Wednesday, April 5, 2017

क़र्ज़ माफ़ तो ठीक पर हालत कैसे सुधरे

बरसों पहले स्कूल की दीवार पर यह लिखा हुआ पढ़ा था कि “ऐ किसान तू सच ही सारे जगत का पिता है।“ उक्त कथन गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर का है जिसके आलोक में यह समझना बिलकुल आसान है कि सौ साल पहले के साहित्यकारों में अन्नदाताओं को लेकर क्या उपमा थी और कैसी चिंता थी। समय बदला, परिस्थितियां करवट ली, देष स्वतंत्र हुआ, सबकी अपनी-अपनी हिस्सेदारी हुई। संसाधनों पर हर तबके का कब्जा हुआ साथ ही सबकी तकदीर भी कमोबेष बदली पर ना जाने क्यों किसानों से उनकी किस्मत आज भी रूठी हुई है। कभी बेमौसम बारिष तो कभी सूखे के चलते किसान उबर ही नहीं पाया। इस उम्मीद में कि अगली फसल उसके दुःख-दर्द को खत्म कर देगी इस फिराक में लाखों का कर्ज़दार भी होता रहा पर उसकी नियती तो बदलने का मानो नाम ही न ले रही हो। जाहिर है कि जब सब कुछ इस तरह घटित हो तो सत्ता की ओर टकटकी लगाना इनकी बेबसी हो जाती है और सत्ताधारकों ने बीते सात दषकों से किसानों को वोट बैंक के रूप में भी खूब प्रयोग किया। अन्तर यह है कि कुछ सत्ताधारियों ने इन्हें राहत पहुंचाने का काम किया तो कुछ ने ठगने का भी। सरकारों ने किसानों की हालत ठीक करने की फिराक में कृशि नीति, फसल नीति, फसल बीमा, अच्छे बीज और उर्वरक, सिंचाई और फसलों की बिकवाली तथा सही दाम देने की बात समय-समय पर की बावजूद इसके स्थितियां बेकाबू ही रही। लगभग 3 साल से केन्द्र में भारी-भरकम बहुमत के साथ मोदी सरकार चल रही है साथ ही कई राज्यों में मोदी प्रभाव इस कदर उभरा है कि कांग्रेस लगातार षिकस्त और भाजपा निरंतर जीत हासिल कर रही है। इसी तर्ज पर बीते मार्च पांच विधानसभा चुनाव में चार पर भाजपा काबिज हुई जिसमें उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में तो जनतंत्र का इतिहास ही बदल गया। जिन वायदों और इरादों से इन प्रदेषों में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की उसमें मुख्यतः उत्तर प्रदेष एवं उत्तराखण्ड में किसानों की कर्ज़ माफी भी थी। 
उत्तर प्रदेष में योगी सरकार की बीते 4 अप्रैल को पहली कैबिनेट बैठक थी। उम्मीद लगाई जा रही थी कि किसानों के हक में कुछ तो निर्णय होंगे उम्मीद के मुताबिक दो करोड़ पन्द्रह लाख लघु एवं सीमांत किसानों की ऋण माफी को अमल में ला लिया गया। जिसके तहत 36 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज़ माफ हुआ इसके चलते सरकार की छवि को मजबूती और किसानों को व्यापक पैमाने पर राहत मिलती दिखाई देती है। यहां बताते चलें कि केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने यह कहा था कि किसानों के कर्ज़ माफी के मामले में केन्द्र से सहायता सम्भव नहीं है। जाहिर है योगी सरकार ने बिना केन्द्रीय मदद के उत्तर प्रदेष के किसानों को राहत पहुंचाने का काम किया है। गौरतलब है कि लघु एवं सीमांत किसानों के एक लाख तक के फसली ऋण माफ हुए हैं साथ ही सात लाख किसानों का छप्पन सौ तीस करोड़ का एनपीए पूरा माफ किया गया है। इस कदम को कांग्रेस ने अधूरा वादा बताया क्योंकि इसमें सभी किसान षामिल नहीं है जबकि षिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराश्ट्र में किसानों के कर्ज़ माफी की मांग की। हालांकि यह भी संदेष प्रसारित हो रहा है कि सभी किसानों का कर्ज़ माफ करने का वायदा करने वाली भाजपा थोड़े में ही मामले को निपटा रही है। गौरतलब है कि भाजपा ने लोक कल्याण संकल्प पत्र में यह वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह सभी लघु व सीमांत किसानों के फसली ऋण माफ करेगी। चुनावी अभियान के दौरान प्रधानमंत्री मोदी बीते 13 फरवरी को यह बात लखीमपुर खीरी में कही थी जिस पर योगी सरकार खरे उतरते दिखाई दे रही है। इन सबके बीच सवाल यह भी उठता है कि क्या मुट्ठी भर कर्ज़ माफ कर देने मात्र से किसानों को पूरी राहत मिलेगी। इस बात से षायद सभी सहमत होंगे कि किसानों की दषकों से जो हालत बेपटरी हुई है उसमें राहत को लेकर पूरे पैकेज की जरूरत है साथ ही सीमांत एवं लघु से ऊपर किसानों की हालत भी कम खराब नहीं है। आखिर उनके लिए सरकार के पास देने को क्या है।
छोटे एवं निर्धन किसानों, बटाईदारों, भूमिहीन तथा खेतीहर मजदूरों की ओर भी विषेश ध्यान देने की जरूरत कर्ज माफी मात्र से समाप्त नहीं होती है। षिक्षा, स्वास्थ, आवास एवं सुरक्षा समेत कई बुनियादी समस्याओं से इनका जूझना हमेषा से रहा है। कर्ज़ माफी मात्र देनदारी का समाप्त होना है जबकि किसानों के जीवन सुधार हेतु कई बड़े कदम उठाने अभी बाकी हैं। बदलते समय की मांग है कि कृशि, उद्योग एवं सेवा में सबसे कम जीडीपी वाली कृशि को नये रूपरंग में विकसित किया जाय। गांवों के देष में किसान को पिसने से बचाने के लिए साथ ही आने वाली समस्याओं से बचने हेतु वित्तीय संसाधनों पर भी नये सिरे से काम करना निहायत जरूरी है। हमारे पास विकास का कौन सा माॅडल है जिससे कि हमारे देष का किसान बेचारगी से ऊपर उठे। सात दषकों में जितनी भी कृशि नीतियां बनी उन सभी का हाल तुलनात्मक अच्छा हो सकता है पर किसानों के हालात सुधारने में ये नीतियां कामयाब हुई ऐसा तो हुआ ही नहीं। यह बात किसी से छुपा नहीं है कि उत्तर प्रदेष के बुंदेलखण्ड में सूखे और पेयजल की समस्या के चलते सबसे ज्यादा दुर्दषा किसानों का ही हुआ। यहां बरसों से आत्महत्या बादस्तूर जारी रही साथ ही पलायन का क्रम भी अभी थमा नहीं है। वर्श 2003 से 2007 तक बुंदेलखण्ड अकाल और किसान की आत्महत्या की कहानी बताता है उसके बाद गरीबी और भुखमरी ने तो इनकी बची हुई दुनिया भी तबाह कर दी। जाहिर है कि उत्तर प्रदेष के बुंदेलखण्ड को योगी सरकार से बड़ी अपेक्षा होगी पूरी कितनी होगी पड़ताल बाद में होगी। देष के कमोबेष आधे राज्य पर किसानों का कहर आये दिन टूटता रहता है। 24 जुलाई, 1991 से देष उदारीकरण को अपनाया था। 1992 से 1997 के बीच 8वीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास की अवधारणा से ओतप्रोत थी। हैरत यह है कि इसी दौर में विदर्भ के किसान कपास की खेती बर्बाद होने से मौत को गले भी लगा रहे थे। आंकड़ों पर गौर किया जाय तो कुछ ही दषकों में महाराश्ट्र, उत्तर प्रदेष, पंजाब एवं राजस्थान समेत विभिन्न राज्यों से तीन लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। जाहिर है गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की आत्मा भी इससे जरूर दुःखी हुई होगी।
फिलहाल जिस तर्ज पर किसानों के जीवन का मोल घटा है भारत जैसे कृशि प्रधान देष के लिए यह कतई उचित नहीं है। उत्तर प्रदेष की योगी सरकार ने किसानों का कर्ज़ माफ करके कोई नया काम नहीं किया है बल्कि अपने चुनावी वायदों को पूरा करने की कोषिष की है। देखा जाय तो इसके पहले अखिलेष सरकार भी 2012 में किसानों का कर्ज़ माफ किया था जबकि 2008 में यूपीए की सरकार ने भी राश्ट्रीय स्तर पर 60 हजार करोड़ का कर्ज़ माफ किया था। ये बात और है कि इसमें राहत पाने वालों में ज्यादातर किसान महाराश्ट्र के थे। इस बात को भी समझना सही होगा कि किसानों के हालत सुधारने में यदि केवल राज्यों की जिम्मेदारी होगी तो ये पूरा कर पाना मुष्किल होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रत्येक राज्य की अपनी आर्थिकी एवं वित्तीय हैसियत है यदि इसमें केन्द्र की एकजुटता हो तो समस्या को व्यापक पैमाने पर हल किया जा सकता है। सबके बावजूद लाख टके का सवाल यह रहेगा कि किसानों को उस स्तर तक क्यों नहीं पहुंचा दिया जाता जहां से कर्ज़ माफी की आवष्यकता ही न पड़े।

सुशील कुमार सिंह

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