Monday, April 24, 2017

न्यू इंडिया और पुराना भारत

आर्थिक विकास की प्रक्रिया में अर्थव्यवस्था को लेकर अनेक संरचनात्मक परिवर्तन आये दिन होते रहते हैं। वास्तविकता तो यह है कि इन परिवर्तनों के आधार पर ही हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अर्थव्यवस्था विकास की किस स्थिति में है। भारत का आर्थिक ढ़ांचा और उससे जुड़ा व्यवहार सात दषकों से नये-नये प्रयोगों से गुजरा है। स्वतंत्रता के बाद 15 मार्च, 1950 को योजना आयोग का परिलक्षित होना तत्पश्चात प्रथम पंचवर्शीय योजना की प्रारम्भिकी इसी अनुप्रयोग का एक हिस्सा था जो भारत में बड़ी-बड़ी योजनाओं के निर्माण का सूत्रधार सिद्ध हुआ जिसे मोदी सरकार ने समाप्त करते हुए नीति आयोग का गठन किया। फिलहाल लगभग साढ़े छः दषक की लम्बी अवधि में 12 पंचवर्शीय योजना देष को मिली और इस दरमियान प्लान हाॅलिडे का भी अवसर आया। फिलहाल इस योजनाओं के चलते आर्थिक विकास तथा आर्थिक समृद्धि में भी अच्छा खासा परिवर्तन आया। सम्भव है कि समय के साथ नीति और परिप्रेक्ष्य बदलाव लेते हैं जाहिर है नीति आयोग का अवतरित होना और योजना आयोग का समापन समय का चक्र ही कहा जायेगा। इसी क्रम की अगली कड़ी में नये विजन से जुड़े ‘न्यू इण्डिया‘ को भी देखा जा सकता है। जिस तर्ज पर चीजें बदलती हैं, संवरती हैं और जनमानस को सम्भावनाओं से भरती हैं क्या उसी प्रकार के विजन से ‘न्यू इण्डिया‘ युक्त है इसे भी समझना जरूरी है। पड़ताल तो इस बात की भी करनी सही होगी कि इसके अंदर के निहित कार्यक्रम भाव और संदर्भ को लेकर कितने भिन्न हैं। क्या पहले की योजनाओं और कार्यक्रमों से ‘न्यू इण्डिया‘ का विजन सामाजिक अर्थव्यवस्था की दृश्टि में इतर है? सभी के पास आवास, षौचालय, एलपीजी कनेक्षन, बिजली और डिजिटल कनेक्टीविटी की बात इसमें कही गयी है। दो पहिया वाहन से लेकर चार पहिया तक और एयरकंडीषन का सुख भी मिले इसकी भी पहुंच इसमें दर्षाया गया है। ऐसे भारत की बात कही गयी है जिसमें सभी साक्षर होंगे और सभी के लिए स्वास्थ सुविधायें सुलभ होंगी। इसके अलावा भी कई ऐसी बातें भी निहित हैं जिसका ताना-बाना देष के आधारभूत ढांचे में अक्सर बुना जाता है। रेल और रोड़ का बड़ा नेटवर्क ‘न्यू इण्डिया‘ का भारी-भरकम विजन है साथ ही गांव और षहरों की सफाई भी इसका अहम हिस्सा है। 
उपरोक्त संदर्भ काफी हद तक नये तो कुछ पुराने की तरह ही परिलक्षित होते हैं परन्तु सरकार का यह कदम ‘न्यू इण्डिया‘ का बड़ा विजन है जिसमें अगले 15 साल में सालाना आमदनी में दो लाख रूपये की वृद्धि करने की बात कही गयी है। जाहिर है नेहरूयुगीन योजना को समाप्त कर इस चुनौती से सरकार भी दो-चार हुई होगी कि बेहतर उपाय क्या हो सकता है। विकास को लेकर जो 15 वर्शीय विजन है और जिसका लक्ष्य वर्श 2031-32 है वह काफी रोचक प्रतीत होता है। इतने लम्बी अवधि में अर्थव्यवस्था की दिषा-दषा क्या होगी पूरा आंकलन आज ही से करना षायद ही सम्भव हो। देष का सकल घरेलू उत्पाद और विकास दर किस करवट होगा इसका अंदाजा भी अभी से पूरी तरह सम्भव नहीं है। माना तो यह भी जा रहा है कि करीब 2 लाख रूपए देष की प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी। गौरतलब है कि 31 मार्च 2017 को 12वीं और अन्तिम पंचवर्शीय योजना की विदाई हो चुकी है। अब कोई नई पंचवर्शीय योजना भारत में देखने को नहीं मिलेगी परन्तु देष योजना विहीन भी तो नहीं रहेगा। जाहिर है ऐसे में एक नया माॅडल इसकी जगह लेगा मसलन 15 वर्शीय विजन दस्तावेज 2017-18 से 2031-32 तक, सात वर्शीय रणनीति 2017-18 से 2023-24 तक और त्रिवर्शीय कार्योजना 2017-18 से 2019-20। फिलहाल नये ढांचे और नये प्रारूप में अभी देष की अर्थव्यवस्था को आदत नहीं है पर विकास और समृद्धि को लेकर नये प्रयोग से देष को गुरेज भी नहीं है। गौरतलब है सामाजिक अर्थव्यवस्था जितनी सषक्त होगी जीवन उतना ही सुलभ होगा। जिस चाह के साथ सरकार न्यू विजन के तहत ‘न्यू इण्डिया‘ का आगाज कर रही है उसमें इस बात का इतना ख्याल है कि सामाजिक सोपान में आने वाले सभी लाभ युक्त होंगे ये देखने वाली बात होगी। 
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी बीते 3 वर्शों में देष में कई प्रयोग कर चुके हैं जिसमें नोटबंदी सबसे बड़ा उदाहरण है। काले धन को समाप्त करने की दिषा में यह एक जोखिम से भरे कदम के तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि इस मामले में पूरी तरह सफलता मिली है कहना अभी भी सम्भव नहीं है। जाहिर है विकास दर में गिरावट और बेरोजगारी समेत कई समस्याओं से देष आज भी कमोबेष जूझ रहा है इसमें नोटबंदी का साइड इफेक्ट भी षामिल है। फिलहाल जिस तेवर के साथ प्रधानमंत्री मोदी देष के तंत्र में अपना रसूख रखते हैं उसे देखते हुए नये-नये प्रयोगों की गुंजाइष आगे भी रहेगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता। 23 अप्रैल को नीति आयोग की बैठक में उन्होंने नसीहत दी कि बदल गया है जमाना, बदल जायें आप। देष के नौकरषाहों को भी आगाह किया कि हिम्मत और ईमानदारी से काम करें। मोदी वित्त वर्श में भी बड़ा संषोधन चाहते हैं। मौजूदा समय में इसकी अवधि अप्रैल से मार्च है जिसे जनवरी से दिसम्बर करने का इरादा उन्होंने दर्षाया है। नीति आयोग की बैठक में 15 साल का रोड मैप भी पेष किया गया। देष के आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए 3 सौ विषेश कार्य बिन्दु भी रखे गये और मुख्यमंत्रियों को सलाह दिया गया कि सुषासन और विकास को अपना हथियार बनायें। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि बीते सात दषकों में देष की जीडीपी में जितनी वृद्धि हुई उससे कई गुना आने वाले 15 वर्शों में वृद्धि हो जायेगी साथ ही यह भी उम्मीद जताई गयी कि मौजूदा विकास दर 8 प्रतिषत की वृद्धि दर से आगे बढ़ेगा। चाहे ‘न्यू इण्डिया‘ हो या पुराना भारत अर्थव्यवस्था तथा उसके विकास को लेकर सरकारों ने समय-समय पर जोर आजमाइष की है। 12 पंचवर्शीय योजना के निहित मापदण्डों को देखें तो योजनाओं का देष में अम्बार तो लगा है पर बेहाल अर्थव्यवस्था के चलते सफलता दर तय मानकों से हमेषा नीचे ही रही। तीसरी पंचवर्शीय योजना तो सभी में निहायत विफलता के लिए जानी जाती है। इसी दौरान चीन का आक्रमण और पाकिस्तान से युद्ध भी हुआ था। 
योजना आयोग और राश्ट्रीय विकास परिशद् भारत में विकास और सामाजिक विन्यास को बनाये रखने में बरसों से साथ-साथ सफर करती रही हैं जिसमें राश्ट्रीय विकास परिशद् तो आज भी रफ्तार लिये हुए है। पांचवी पंचवर्शीय योजना में यह भी संकल्प था कि देष गरीबी से मुक्त होगा। बावजूद इसके आज हर चैथा नागरिक इस बीमारी से ग्रस्त है। आठवीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास से युक्त रही पर इसी दौर में किसानों में आत्महत्या का चलन षुरू हो गया जिनकी संख्या 3 लाख से ऊपर पहुंच गयी। नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं समेत बारहवीं पंचवर्शीय योजना उद्देष्यों की प्राप्ति हेतु कम-ज्यादा सफलता के लिए जूझती रही। वैष्वीकरण की मौजूदा दुनिया में प्रतिस्पर्धा के चलते अर्थव्यवस्था को उठान देना, मानव जीवन को ऊँचाई देना, षिक्षा, रोजगार, चिकित्सा के अलावा आधारभूत ढांचे को स्थायी तौर पर मजबूती प्रदान करने की बीते 25 वर्शों से बाकायदा कोषिष जारी है। भारत 24 जुलाई 1991 से उदारीकरण की राह पर है यहीं से आधुनिकीकरण और निजीकरण के मार्ग को भी अपनाने से गुरेज नहीं किया। समय बदला, परिस्थितियां बदली आर्थिक क्षेत्रों में मोल-तोल और विकास के ढर्रे भी बदले। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नाॅन परफोर्मेंस इकाईयों का विनिवेष किया जिसमें बाल्कों पहली इकाई है। परिप्रेक्ष्य यह है कि बीते सात दषकों में पुराना भारत भी अनुप्रयोगों से अछूता नहीं था और ‘न्यू इण्डिया‘ में जो नयापन है वह बदले समय की दरकार ही है। जिस दक्षता के साथ मोदी सरकार ने इस विजन को संकल्पबद्ध करने की कोषिष की है यदि इससे देष में गरीबी से मुक्ति, किसानों, मजदूरों एवं वंचित वर्गों में बड़ा बदलाव आता है तो हम सभी अवष्य ही नये भारत के दर्षन करेंगे।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशान  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com


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