Monday, April 10, 2017

संबंधों के बेहतरीन मोड़ पर भारत-बांग्लादेश

दक्षिण एशिया  में भारत एक ऐसा देश है जो पड़ोसी देशो से हर सम्भव बेहतर सम्बंध बनाये रखना चाहता है। बेशक कईयों के साथ कुछ विवाद हैं बावजूद इसके प्रगाढ़ता को लेकर भारत ने कभी कदम पीछे नहीं खींचा। इतना ही नहीं हर सम्भव मदद पहुंचाने की कोशिश  करता है मसलन अप्रैल, 2015 में नेपाल में आये भूकम्प में भारत द्वारा दी गयी राहत। यहां तक कि आतंक से सराबोर पाकिस्तान से भी अच्छे सम्बंध को लेकर एड़ी-चोटी का जोर लगाता रहा। ये बात और है कि पाकिस्तान की नीति और नीयत में खोट होने के चलते भारत की भावनाओं को समझने में वह असफल रहा है। फिलहाल लगभग तीन साल में प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी देषों के साथ सम्बंध को और सुचारू बनाये रखने में काफी हद तक कामयाबी पायी है। गौरतलब है अब तक 56 देषों की यात्रा कर चुके प्रधानमंत्री मोदी की वैदेषिक यात्रा पड़ोसी भूटान से ही षुरू हुई थी। इनके कार्यकाल में न केवल मुद्दों को हल करने में कुछ बढ़त मिली है बल्कि पड़ोसियों की सहायता करने की दर में भी बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है। ताजा संदर्भ यह है कि बीते 7 अप्रैल को बांग्लादेष की प्रधानमंत्री षेख हसीना चार दिवसीय यात्रा पर भारत आईं और 8 अप्रैल को दोनों देषों के बीच 22 समझौते हुए। हालांकि तीस्ता नदी विवाद पर सहमति नहीं बन पायी है। साफ है कि कुछ विवाद इतने गहरे हैं कि समाधान आसान नहीं है। इस मामले में पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति भी देखी जा सकती है। बांग्लादेष के मामले में फिलहाल रिष्तों को परवान चढ़ाने की कोषिष तो की गई है। कोलकाता से बांग्लादेष के बीच रेल सेवा का आरम्भ सम्बंधों की अवधारणा को एक नया मुकाम ही है। साथ ही सैन्य आपूर्ति के लिए भारत द्वारा बांग्लादेष को पचास करोड़ डाॅलर का कर्ज देना भी इसी दिषा में उठाया गया कदम है। अलग-अलग क्षेत्रों में हुए कुल 22 समझौते से दोनों देष अपने रसूख को एक नये मोड़ की ओर ले जाते दिखाई देते हैं परन्तु यह बात अभी पूरी तरह पुख्ता नहीं है कि ये भविश्य में कितने उत्पादक और फलदायी सिद्ध होंगे। इसके अलावा भारत बांग्लादेष को साढ़े चार अरब डाॅलर के कर्ज देने का भी वायदा किया है। इस बात पर भी सहमति बनी है कि दोनों देष मिलकर आतंकवाद से मुकाबला करेंगे। 
भारत और बांग्लादेष की आपसी सीमा की लम्बाई चार हजार किलोमीटर से अधिक है जो भारत के पांच राज्यों पष्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम से होकर गुजरती है। ऐतिहासिक एवं सामाजिक विरासत में आपसी हिस्सेदारी भी है। आपसी सम्बंध बहुकोणीय भी है। गौरतलब है स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व तो यह भारत का ही हिस्सा था जाहिर है सांस्कृतिक विरासत अलग कैसे हो सकती है। पूर्वी पाकिस्तान के नाम से पाकिस्तान का हिस्सा बांग्लादेष 26 मार्च 1971 को भारतीय सैनिक के बूते एक स्वतंत्र देष बना तब से दोनों देषों के बीच अनेक सहमति और विरोध के मामले सामने आते रहे। प्रथम राश्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री षेख मुजीबुर रहमान ने सबसे पहले भारत की यात्रा की थी जो षेख हसीना के पिता हैं और अब चार दषक बाद एक बार फिर उनकी पुत्री भारत से रिष्ते प्रगाढ़ करने की कोषिष में है। फिलहाल तभी से यह निष्चित हुआ कि दोनों के सम्बंधों का आधार प्रजातंत्र, समाजवाद तथा अन्य सकारात्मक पहलुओं के साथ सुदृढ़ होगा हालांकि ऐसा हुआ भी। एक बात यह भी है कि भारत कभी भी बांग्लादेष के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। इसके पीछे एक बड़ा कारण वर्श 1972 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने बांग्लादेष की यात्रा की थी तब उन्होंने ऐसा विष्वास दिलाया था। तभी से दोनों देषों के बीच व्यापार समझौता भी काफी महत्व का हो गया। गौरतलब है कि आर्थिक समृद्धि, निर्यातक केन्द्र तथा कई अन्य मामलों में बांग्लादेष के साथ द्विपक्षीय व्यवस्था आज भी कायम है परन्तु कई विवादों से दोनों देष परे नहीं है। सर्वाधिक चर्चित मामला तीन बीघा गलियारा को समाधान किया जा चुका है परन्तु बांग्लादेष के नागरिकों का भारत में घुसपैठ अभी भी थमा नहीं है। इतना ही नहीं हजारों, लाखों में ऐसे लोगों की भी संख्या है जो बाकायदा अवैधानिक तरीके से भारत के नागरिक भी बन गये हैं। हालांकि इन मुद्दों को लेकर गाहे-बगाहे चर्चा-परिचर्चा जोर लेती है परन्तु स्थायी समाधान तो आज भी नहीं हो पाया है। 
मित्रता, सहयोग और षान्ति यह भारत और बांग्लादेष की 1972 की द्विपक्षीय सन्धि है। धर्मनिरपेक्षता और राश्ट्रवाद का सम्मान करने वाला भारत अच्छे पड़ोसी के भी सम्मान को समझता है। यही कारण है कि बांग्लादेष के साथ कुछ मामलों को छोड़कर मसलन तीस्ता नदी विवाद, न्यू मूर द्वीप आदि अन्यों पर आपसी समझ बेहतर है। मार्च, 2010 में दोनों देषों के बीच नई दिल्ली में संयुक्त नदी आयोग की एक बैठक आयोजित की गयी थी जिसमें दोनों पक्षों ने तीस्ता नदी एवं अन्य साझा नदियों के जल बंटवारे, पेयजल आपूर्ति एवं अन्य नदियों पर लिफ्ट सिंचाई योजनाओं की बात हुई थी। गंगा जल सन्धि 1996 के कार्यान्वयन का भी संदर्भ इस दौर में मुखर हुआ था। तीस्ता नदी के मामले में मामला जस का तस प्रतीत होता है। तीस्ता समझौते को 2011 से ही पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रोक रखा है। जब 7 अप्रैल को षेख हसीना दिल्ली में थी और ममता बनर्जी भी दिल्ली में ही थीं पर तीस्ता मामले में उनके पहले के रूख पर वह अड़ी रहीं। नतीजा यह हुआ कि मोदी केवल यह आष्वासन दे पाये कि मामले को षीघ्र समाधान कर लिया जायेगा। गौरतलब है तीस्ता नदी पष्चिम बंगाल के उत्तरी जिले से गुजरती है। ममता बनर्जी का कहना है कि बांग्लादेष की मांग के अनुपात में उसे पानी दिया गया तो उत्तरी बंगाल में गैर बरसाती सीज़न में पानी का संकट खड़ा हो जायेगा। यहां बताते चलें कि दिसम्बर से मार्च के बीच बांग्लादेष पानी की कमी से जूझता है क्योंकि इस दौरान तीस्ता का जल स्तर एक हज़ार क्यूसेक से लेकर पांच हजार क्यूसेक तक नीचे चला जाता है। भारत-बांग्लादेष के व्यापक सम्बंधों को देखें तो कहीं अधिक बेहतर होता यदि तीस्ता मामला इसी समय हल प्राप्त कर लिया होता परन्तु ऐसा रहा है कि संघीय ढांचे में केन्द्र की भी अपनी सीमाएं होती हैं और जितना सम्भव हो सका एक प्रधानमंत्री होने के नाते मोदी ने की है। हालांकि ममता बनर्जी को भी अपने प्रदेष की चिंता है जो सही भी है पर सच्चाई यह है कि तीस्ता मामले में बात अधूरी रह गयी है। 
एक नजरिये से देखा जाये कि जिस तर्ज पर प्रधानमंत्री ने बांग्लादेषी समकक्ष षेख हसीना के साथ बड़े-बड़े समझौते किये हैं और जिस तरह उनके प्रति सद्भावना जतायी है साथ ही प्रोटोकाॅल तोड़कर जिस प्रकार उनकी अगवानी की है उससे यह संकेत मिलता है कि आर्थिक और व्यापारिक तौर पर देष कैसा भी हो भारत सम्बंधों के मामले में कोई कोताही नहीं बरतना चाहता। खास यह भी है कि नई दिल्ली की एक सड़क का नाम भी षेख हसीना के पिता मुजीबुर रहमान के नाम से की गयी है। इस दृश्टि से भी देखें तो भारत के लिए बांग्लादेष काफी अहम् दिखाई देता है मगर एक सच्चाई यह भी है कि ऐसी सकारात्मक कूटनीति तभी रहती है जब षेख हसीना की पार्टी अवामी लीग सत्ता में रहती है। जाहिर है खालिदा जिया के प्रति भारत का हमदर्दी से भरा रवैया कमोबेष सिरदर्द ही सिद्ध हुआ है। फिलहाल मौजूदा परिस्थिति में मोदी और हसीना के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते को दोनों देषों के लिए एक बेहतरीन मोड़ करार दिया जा सकता है। इस उम्मीद के साथ कि चार दषक से अधिक के द्विपक्षीय सम्बंधों को आगे भी ऐसे ही मोड़ मिलते रहेंगे। 

सुशील कुमार सिंह


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