Thursday, March 23, 2023

आर्थिक परिवर्तन से ही सम्भव है सुशासन

विष्व बैंक ने जब सुषासन की परिभाशा गढ़ी तब देष में दौर आर्थिक उदारीकरण का था और आर्थिक नीतियों के इर्द-गिर्द ही सुषासन को सुसज्जित किया जा रहा था। 24 जुलाई 1991 को जो आर्थिक बदलाव भारत में आया वह ईज़ आॅफ लिविंग और सु-जीवन की दिषा में एक बड़ा कदम था साथ ही वैष्वीकरण और निजीकरण की दिषा में भी एक बड़ा बदलाव था। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह बताते हैं कि देष कोई भी हो सुषासन तभी सम्भव है जब आर्थिक बदलाव सहज और जनहित को सुनिष्चित करने वाला हो। आर्थिक परिवर्तन की कसौटी में षासन एड़ी-चोटी का जोर लगाता रहता है मगर अलग-अलग परिस्थितियों में इसके नतीजे भी भिन्न-भिन्न देखने को मिलते रहे हैं। एक अच्छा आर्थिक बदलाव सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हेतु पथ चिकना करता है और सुषासन को सरपट दौड़ने का मार्ग दे देता है साथ ही समावेषी ढांचे के साथ समावेषी व सतत् विकास को पूरा अवसर मिलता है। मगर ऐसी स्थितियां यदि सम्भव न हो पायें तो चुनौती भी सामने रोज़ खड़ी रहती है। दिसम्बर 2022 में खुदरा महंगाई दर गिर कर 6 फीसद से नीचे पहुंच गयी थी मगर जनवरी 2023 में यही दर बढ़ोत्तरी के साथ सुषासन को चुनौती देने लगा। हालांकि दुनिया के तमाम देष महंगाई का सामना कर रहे हैं। अमेरिका में महंगाई दर 6.4 फीसद तो इंग्लैण्ड 10 फीसद से ऊपर मगर ब्राजील, जापान और स्विट्जरलैण्ड और चीन जैसे कुछ देष इस दर में काफी नीचे भी हैं। गौरतलब है कि महंगाई बचत को कमजोर करती है और जीवन जीने के मामले में व्यय की स्थिति तुलनात्मक बड़ा कर देती है। ऐसे में कमाई के अनुपात में यदि यह संतुलित नहीं रहा तो कई नई समस्याएं सामने खड़ी भी हो जाती हैं।
भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। राश्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के अनुसार मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रति व्यक्ति की कमाई दोगुनी होकर एक लाख 72 हजार हो गयी है। दो टूक यह है कि आय दोगुनी होने के बावजूद असमान आय वितरण सुषासन के लिए चुनौती है। अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश का अनुमान है कि वित्त वर्श 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.1 प्रतिषत की विकास दर के साथ दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था हो सकती है। मगर मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण न होने से उपभोक्ता, स्थिर आय समूह, पेंषन भोगी व सामान्य नागरिकों के लिए सुषासनिक पहल मजबूत नहीं हो पा रही है। रिज़र्व बैंक आॅफ इण्डिया (आरबीआई) ने फरवरी 2023 में रेपो रेट 6.50 किया जाहिर है इससे देष में  करोड़ो वे ऋणधारक जो मकान या गाड़ी आदि के लिए बैंकों से पैसे उधार लिए हैं उनकी देनदारी अर्थात् ईएमआई बढ़े हुए मात्रा में चुकानी होगी। गौरतलब है कि जून 2019 से यदि पड़ताल करें तो यह सबसे अधिक रेपो रेट है इस दौरान सबसे कम रेपो रेट मई 2020 में 4 फीसद के साथ था। यह एक आर्थिक बदलाव है मगर जन साधारण के लिए लाभकारी तो नहीं है। ऐसे में सुषासन को लेकर जो प्रयास हैं वह तभी सम्भव है जब रेपो रेट और बैंक दर में गिरावट हो। गौरतलब है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति के तीन मुख्य उद्देष्य हैं। पहला आर्थिक विकास, दूसरा विनिमय दर स्थिरता जबकि तीसरा महंगाई पर नियंत्रण है। बढ़ते रेपो रेट महंगाई को मौका देते हैं मगर आरबीआई लगातार यह प्रयास करती रही है कि जनता को राहत मिलती रहे। बावजूद इसके ऐसा कर पाने में उसकी भी अपनी सीमाएं होंगी। सेन्टर फाॅर माॅनिटरिंग इण्डियन इकोनाॅमी ने अनएम्प्लाॅयमेंट रेट इन इण्डिया 2022 में बेरोज़गारी के जो आंकड़े जारी किये उसमें अगस्त माह के दौरान बेरोज़गारी का स्तर 8.3 प्रतिषत जो साल में सर्वाधिक और षिखर पर रहा। बेरोज़गारी भी इस बात का संकेत है कि सुषासन की पहल संषय से भरी है और आर्थिक बदलाव अपेक्षानुरूप नहीं हो रहा है।
षहर निरंतर विकास से गुजरते रहते हैं वे न केवल आर्थिक विकास के चालक हैं बल्कि वैष्विक ज्ञान के आदान-प्रदान और नवाचार आदि के लिए भी एक बड़े अवसर होते हैं। मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत बिना साढ़े छः लाख गांवों के पूरा नहीं पड़ता। कौषल विकास से आर्थिक बदलाव सम्भव है। कौषल के आभाव में आर्थिक असमानता और बेरोज़गारी व गरीबी जैसे परिप्रेक्ष्य भी खूब उभार ले चुके हैं। समावेषी विकास के अन्तर्गत जो निरंतरता जारी है उसमें बदलाव काफी धीमा प्रतीत होता है। किसानों की आय दोगुनी करने का जो संकल्प 2022 तक के लिए सरकार ने लिया था उस पर कितनी खरी उतरी इसकी कोई पड़ताल देखने को नहीं मिली। गौरतलब है कि किसानों की आय में बढ़ोत्तरी फसलों की उत्पादकता में वृद्धि पषुधन की उत्पादकता, उत्पादन लागत में वृद्धि, फसल की सघनता, उसकी उचित कीमत और समय के साथ विविधिकरण से युक्त खेती से ही सम्भव है। यह बात साल 2018 में अंतर मंत्रालय समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में कही थी। दिसम्बर 2018 से किसानों को प्रति वर्श 6 हजार रूपया सरकार द्वारा अनुदान स्वरूप दिया जाता है यह सिलसिला कब तक चलेगा मालूम नहीं मगर इतने मात्र से किसानों की जिन्दगी संवरती रहेगी यह सोच भी नासमझी है। ऐसे में किसानों के हिस्से का आर्थिक बदलाव को लेकर सुषासनिक कदम सरकार को बड़े पैमाने पर उठाना ही होगा। हालांकि 1 फरवरी के बजट में कई सारगर्भित कदम की बात कही गयी है। मगर बदलाव जमीन पर उतरने से ही आयेगा। 80 करोड़ लोगों को 5 करोड़ अनाज का वितरण सहायता की दृश्टि से उचित है मगर यह न तो आर्थिक बदलाव और न ही सुषासन को सषक्त करेगा।
सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो लोक सषक्तिकरण से अभिभूत है। निहित मापदण्डों में हुए आर्थिक बदलाव इस लिहाज़ से नाकाफी हैं कि भारत का हर चैथा व्यक्ति अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है और हंगर इंडेक्स 2022 की रिपोर्ट में देष 107वें स्थान पर है। इतना ही नहीं दुनिया के कुल 84 करोड़ भुखमरी वाले लोगों में 19 करोड़ भारत के ही हैं। विष्व का सबसे युवा देष वाला भारत युवाओं का भरपूर उपयोग करने में भी विफल है। यहां की पढ़ी-लिखी महिलाओं का भी विकास में योगदान ले पाना मानो अभी कठिन बना हुआ है। विष्व बैंक ने वर्शों पहले कहा था कि यदि यहां की महिलाओं को कौषल युक्त बना दिया जाये तो भारत की विकास दर 4 फीसद बढ़त ले लेगा। 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का सपना देख रहे भारत के लिए महिलाओं में लाया गया आर्थिक बदलाव उसे पूरा करने में मददगार सिद्ध हो सकता है। बढ़ी बेरोज़गारी दर इस बात का संकेत है कि आर्थिक बदलाव को जड़ से ठीक करने की भी आवष्यकता है। हालांकि स्टार्टअप से लेकर स्वरोजगार और हजारों की तादाद में बने कौषल केन्द्र कुछ हद तक इस समस्या से निपटने में कारगर भी हुए हैं मगर इतने मात्र से पूरा आर्थिक बदलाव सम्भव नहीं है। भारत में महज 25 हजार कौषल केन्द्र हैं जो चीन के 5 लाख और दक्षिण कोरिया और आॅस्ट्रेलिया के एक लाख कौषल केन्द्रों की तुलना में मामूली है। फिलहाल आर्थिक परिधि में गढ़ी गयी सुषासन की परिभाशा सु-जीवन और सुगम्य पथ से तब भरी समझी जायेगी जब जब आर्थिक बदलाव का लाभ खास से आम सभी तक होगा।

 दिनांक : 17/03/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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