Thursday, March 23, 2023

असफल हो चुकी है ग्लोबल गवर्नेंस की व्यवस्था

पूरी दुनिया के 80 फीसद जीडीपी और 60 प्रतिषत जनसंख्या रखने वाले जी-20 के विदेष मंत्रियों की बैठक बीते 2 मार्च को राश्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक भवन में षुरू हुई। ग्लोबल गवर्नेंस की एहसास से भरी यह बैठक तुर्किये और सीरिया में आये भूकम्प से जान गंवाने वालों के प्रति एक मिनट के मौन से प्रारम्भ की गयी। वैष्विक उथल-पुथल के बीच भारत में हुई यह बैठक कई सवालों के साथ आगे बढ़ी। विदित हो कि भारत 1 दिसम्बर 2022 से 30 नवम्बर 2023 तक जी-20 की अध्यक्षता करेगा जिसके अंतर्गत भारत के 60 से अधिक षहरों में 200 से अधिक बैठक आयोजित होंगी। फिलहाल विदेष मंत्रियों की बैठक में भारत के विदेष मंत्री एस जयषंकर ने खाद्य, उर्वरक और ईंधन सुरक्षा की चुनौतियों को एजेण्डे में षामिल किया। ध्यानतव्य हो कि बीते कई वर्शों में जी-20 की बैठकों में अलग-अलग देषों में षिरकत करने वाला भारत अब इसका मेजबान है। मगर दुनिया का मिजाज इन दिनों गरम है और कई तो एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं भा रहे हैं। ऐसे में भारत का यह प्रयास कि सभी एक छत के नीचे इकट्ठे हों और ग्लोबल गवर्नेंस की अवधारणा को पुख्ता करें। बावजूद इसके इसकी सम्भावना कतई नहीं दिखती। प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह स्पश्ट कर दिया है कि ग्लोबल गवर्नेंस व्यवस्था फिलहाल असफल है। गौरतलब है कि अमेरिका और रूस बीते एक साल से यूक्रेन के चलते एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं। यूरोप के अन्य देष भी इसी मामले को लेकर रूस से बाकायदा कटे हुए हैं। सीमा विवाद के कारण भारत और चीन पहले से ही एक-दूसरे से खार खाये हुए है। ताइवान पर चीन की वर्चस्व वाली नीति के चलते भी समस्या बढ़ी हुई है। दक्षिण चीन सागर में तनाव का स्वरूप गहराई लिए ही रहता है साथ ही कई ऐसे और भी परिप्रेक्ष्य हैं जहां युद्ध से लेकर व्यापार युद्ध तक कमोबेष व्याप्त है। देखा जाये तो पूरी दुनिया प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कई ध्रुव ले चुकी है।
तमाम संदेहों के बीच भारत में जी-20 के विदेष मंत्रियों का एक मंच पर होना महत्वपूर्ण बात है हालांकि भारत जी-20 के विदेष मंत्रियों को एक मंच पर खींच तो लाया है मगर इससे कोई साझा वैष्विक एजेण्डे को बल मिलेगा ऐसा कुछ खास दिखता नहीं है। खींचा-तानी के बीच जी-20 के विदेष मंत्रियों में कईयों से तो आपसी बातचतीत भी सम्भव नहीं होते दिखती। अमेरिका और रूस के विदेष मंत्री पहले तो कतराते रहे मगर यूक्रेन युद्ध पर इसे समाप्ति को लेकर कुछ चर्चा चलते-फिरते दिखी। स्पश्ट है कि जब 1945 में द्वितीय विष्वयुद्ध समाप्त हुआ था तब दुनिया के तमाम देष कई सीख लिये होंगे मगर जिस तरह से अस्त्र-षस्त्र की वैष्विक वर्चस्व बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में देखने को मिला उससे यह भी साफ था कि इन्होंने विष्वयुद्ध से कुछ नहीं सीखा। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के चलते यह बात और मुखर हो गयी कि सब अपनी प्रथम की नीति पर चल रहे हैं किसी को महामारी, आतंकवाद व प्राकृतिक आपदा आदि का मानो एहसास ही नहीं है। षायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लोबल गवर्नेंस व्यवस्था को असफल करार दिया। अपने संदेष में उन्होंने कहा कि द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद वैष्विक गवर्नेंस की जो व्यवस्था बनायी गयी थी वह असफल हो चुकी है जिसका सबसे अधिक असर विकासषील देषों को उठाना पड़ रहा है। मोदी ने यह भी भरोसा जताया है कि महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध की धरती से प्रेरणा देकर जी-20 के विदेष मंत्री विष्व के समक्ष मौजूदा चुनौतियों के समाधान को लेकर गम्भीर प्रयास करेंगे। बैठक में युद्ध, खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसे मुद्दे चिंता के केन्द्र में थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया बहुत व्यापक स्तर पर बंटी हुई है ऐसे में भारत की अध्यक्षता में एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविश्य की अवधारणा कितनी फलीभूत होगी यह जी-20 के देषों की एकजुटता और संयुक्त कार्यवाही पर निर्भर करेगी।
सवाल यह नहीं कि भूमण्डलीकरण ने पूरी दुनिया में षासन को रूपांतरित किया है या नहीं बल्कि सवाल यह है कि रूपांतरण की प्रकृति और मात्रा क्या है? साथ ही दुनिया के देष जलवायु परिवर्तन से लेकर आतंकवाद आदि के मामले में ग्लोबल गवर्नेंस को कितनी मजबूती दे पाये हैं। भूमण्डलीकरण का एक लक्षण यह भी है कि एक घटनाक्रम सारे संसार को प्रभावित करता है। यूक्रेन युद्ध के चलते इन दिनों दुनिया का मिजाज बिगड़ा हुआ है और कई उतार-चढ़ाव ऐसे हैं जिससे देष प्रथम की नीति पर कोषिष करते देखे जा सकते हैं। ऐसे में ग्लोबल गवर्नेंस की व्यवस्था कैसे सम्भव होगी? आम तौर पर भूमण्डलीकरण का सम्बंध वस्तुओं एवं सेवाओं, आर्थिक उत्पादों, सूचनाओं और संस्कृति से होता है जो कि अधिक चलायमान होते हैं साथ ही दुनिया में जिनके ज्यादा मुक्त रूप से फैलने की सम्भावना होती है जबकि सुषासन का परिप्रेक्ष्य ईज़ आॅफ लीविंग मसलन जलवायु परिवर्तन को लेकर सभी की सकारात्मकता, आतंकवाद पर एकजुटता और भुखमरी व गरीबी के मामले में संवेदनषीलता का मुखर होना। इसके अलावा षांति और खुषहाली को बढ़ावा देना रहा है अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश तथा विष्व बैंक के दबाव में साल 1991 में जो स्थायित्व और संरचनात्मक समायोजन देष के सामने प्रकट हुआ उससे भी भारत वैष्विकरण की दृश्टि से अपना पथ कहीं अधिक चिकना किया। द्वितीय विष्व युद्ध के बाद के बाद दुनिया में बड़ा बदलाव तो आया मगर समावेषी विकास से लेकर खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा की जरूरतों ने जो चुनौती बढ़ायी उसमें ग्लोबल गवर्नेंस सफल नहीं हो पाया लिहाजा नई-नई मुसीबतों में उलझता गया और आज विष्व के देष वर्चस्व की लड़ाई में इस कदर फंसे हैं कि सभ्यता से भरी दुनिया द्वितीयक हो गयी है।
अमेरिका के राश्ट्रपति जो बाइडन ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि युद्ध में रूस को हराया जाना चाहिए। ऐसी बातों का भविश्य पर क्या असर हो सकता है यह भी समझने की आवष्यकता है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि जी-20 के देष पूरी दुनिया को एक नई दिषा दे सकते हैं। आपसी मतभेद को भुला कर साथ ही अति महत्वाकांक्षा को त्याग कर यदि सकारात्मक कदम उठायें तो ग्लोबल गवर्नेंस की नींव मजबूत की जा सकती है। वैसे यह देखा गया है कि जी-20 की बैठकों में रूस को अलग-थलग करने का प्रयास पहले भी होता रहा है। 2014 में आॅस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में हुई ऐसी ही एक बैठक में रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बैठक के बीच में ही बिना सूचना के मास्को चले गये थे। जी-20 को गम्भीरता से समझा जाये तो यह मुद्दों पर जो भी बातें करता है वह तो ठीक है मगर बावजूद इसके कई सवाल इसमें सुलगते ही रह जाते हैं। फिलहाल यह विदेष मंत्रियों की बैठक है मगर संरचनात्मक तौर पर देष तो वही हैं ऐसे में नतीजे खास निकलेंगे निष्चित तौर पर कहना कठिन है। हालांकि षीर्श स्तर की जी-20 बैठक होना अभी बाकी है। उम्मीद किया जा सकता है कि गहरे वैष्विक विभाजन से ऊपर उठकर दुनिया के देष वित्तीय संकट, महामारी, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर एकमत होकर ग्लोबल गवर्नेंस व्यवस्था को मजबूती देने का प्रयास करेंगे।

 दिनांक : 04/03/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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