Thursday, March 23, 2023

नेट जीरो के लिए चाहिए पृथ्वी प्रथम की नीति

धरती का तापमान न बढ़े इसके लिए सारी कवायद हो रही है मगर न्यू क्लाइमेट इंस्टिट्यूट और कार्बन मार्केट वाॅच के सहयोग से तैयार की गयी रिपोर्ट यह बताती है कि 1.5 डिग्री तापमान के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में 43 फीसद की कमी लाना होगा जिसकी सम्भावना दूर-दूर तक नहीं है। नेट जीरो का दावा करने वाली विष्व की 24 बड़ी कम्पनियों की स्थिति यह बता रही है कि माथे पर चिंता की लकीरें मोटी हो जायेंगी। इन कम्पनियों की हालिया स्थिति जलवायु लक्ष्यों के अनुकूल नहीं है। रिपोर्ट में यह पता चलता है कि केवल 15 प्रतिषत तक ही कमी लाने में यह सक्षम है। यदि कम्पनियों की बात को सही माना जाये तो भी महज 21 फीसद से ज्यादा कमी लाना असम्भव है। यह आंकड़ा दावे और वायदे की तुलना में आधे से भी कम ठहरता है। पिछले जी-20 समिट में षामिल देषों में 2050 तक पृथ्वी के तापमान की इस बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री तक रखने पर सहमति बनी। इस वर्श का केन्द्रीय बजट ऊर्जा परिवर्तन को तो बढ़ावा देता है लेकिन भारत के विकास लक्ष्यों के साथ जलवायु अनुकूलन का तालमेल स्थापित करने की महत्वपूर्ण आवष्यकता को सम्बोधित करने में कुछ कम सा रह जाता है। गौरतलब है कि 2023 का बजट पर मुख्य ध्यान हरित विकास पर है। कार्बन उत्सर्जन व ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को इस आंकड़े से समझना और सहज होगा कि साल 2022 में भारत ने 88 फीसद दिनों में गर्म हवाओं, बाढ़ और चक्रवात जैसी विशम मौसमी घटनाओं का सामना किया था जिसके परिणामस्वरूप जन-जीवन और आजीविका भी प्रभावित हुई है साथ ही बीते कई दषकों के विकास कार्यों के लिए यह खतरा बना।
विदित हो कि नेट जीरो का मतलब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन षून्य करना नहीं है बल्कि इन गैसों को दूसरे कामों से संतुलित करना है। ऐसी अर्थव्यवस्था तैयार करना जिसमें जीवाष्म ईंधन का इस्तेमाल न के बराबर है साथ ही कार्बन उत्सर्जन करने वाली दूसरी चीजों का इस्तेमाल भी मामूली रहे। दो टूक यह भी कि जितना कार्बन उत्सर्जन किया जा रहा है उसी के अनुपात में अवषोशकों का भी इंतजाम हो जो पर्यावरणीय संरक्षण व पेड़-पौधो को बनाये रखने से ही सम्भव है। गौरतलब है यदि कार्बन उत्सर्जन एक निष्चित मात्रा में होता है और उत्सर्जन करने वाली इकाई उसी अनुपात में पेड़ों को तवज्जो देती है तो कार्बन उत्सर्जन और अवषोशक की समानता के कारण नेट जीरो एमिषन को पाना सुनिष्चित हो जायेगा। मगर जिस प्रकार प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और पर्यावरण की बर्बादी हो रही है उससे नेट जीरो एमिषन एक सपना सा ही लगता है। स्पश्ट कर दें कि दुनिया में केवल दो देष भूटान और सूरीनाम ही ऐसे हैं जो नेट जीरो एमिषन के मामले में नकारात्मक श्रेणी में है। इसकी सबसे बड़ी वजह वहां की अल्प आबादी और चैतरफा मौजूद हरियाली है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सुषासन का चष्मा आंखों में पहनकर बड़े और छोटे देष कितने भी वायदे और इरादे जताये यदि कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण निष्चित तौर पर नहीं होता है तो कई समस्याओं के लिए तैयार रहना चाहिए। यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी अवस्था में बना रहा तो 2050 तक पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री बढ़ जायेगा जो किसी भी सूरत में तबाही का हस्ताक्षर होगा मसलन भीशण सूखा पड़ना, विनाषकारी बाढ़ आना, ग्लेषियर का टूटकर पिघलना और समुद्र का जलस्तर उफान लेना। ऐसे में कई सभ्यताएं समाप्त हो जायेंगी, कई डूब जायेंगी, कईयों का नामोंनिषान मिट जायेगा।
दुनिया के 192 देष संयुक्त राश्ट्र कन्वेंषन का हिस्सा है जिसमें से 137 नेट जीरो का समर्थन करते हैं। देखा जाये तो कुल ग्रीन हाउस उत्सर्जन में इनकी हिस्सेदारी 80 फीसद है जिसमें सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले चीन और अमेरिका भी इसी में आते हैं। चीन साल 2026 तक इस मामले में नेट जीरो का लक्ष्य रखा है, उसकी बलवती होती आर्थिक नीति और दुनिया को मुट्ठी में करने वाली नीयत यह इषारा कर रही है कि चीन जो कह रहा है उसमें बिल्कुल खरा नहीं उतरेगा यानि कार्बन उत्सर्जन का सिलसिला उसके चलते बरकरार रहेगा। जर्मनी और स्वीडन जैसे देष 2045 तक जबकि आॅस्ट्रिया, फिनलैण्ड, उरूग्वे अलग-अलग समय में नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। अमेरिका के अलावा कई ऐसे देष हैं जो इस मामले में कहीं आगे जाकर 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन को अपनी लकीर बनायी हुई है। इस बीच एक सुखद बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के इस चुनौती के बीच भारत के वन क्षेत्र में 2011 के मुकाबले 2021 में तीन प्रतिषत से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है। वैसे भारत जलवायु परिवर्तन की चिंता से कहीं अधिक चिंतित देष में आता है साथ ही कार्बन उत्सर्जन की कटौती को लेकर पहला कदम उठाने में नहीं कतराता है। भारत ने नेट जीरो को लेकर अपनी पूरी योजना पंचामृत नाम से पेष किया। प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राश्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (काॅप 26) में इसे पेष किया। सिलसिलेवार तरीके से इसे समझें तो 2030 तक गैर जीवाष्म ऊर्जा को 500 गीगाबाइट तक पहुंचाना। दूसरा संदर्भ इसी वर्श के अंतर्गत अपनी 50 फीसद ऊर्जा जरूरतों को रिन्यूवल एनर्जी से पूरा करना। तीसरे और चैथे संदर्भ में क्रमषः प्रोजेक्टेड कार्बन उत्सर्जन का एक बिलियन टन कम करना और अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 फीसद तक कम करना। इसके अलावा 2070 तक नेट जीरो एमिषन को हासिल करने का लक्ष्य षामिल है। हालांकि वक्त की दहलीज पर कौन, कितना खरा उतरेगा यह तो समय ही बतायेगा मगर ग्रीन हाउस गैस व कार्बन उत्सर्जन से पृथ्वी कराह रही है यह खुली आंखों से देखा जा सकता है।
सुषासन की परिपाटी यदि वैष्विक पृश्ठभूमि को अंगीकृत कर ले तो पृथ्वी का भला हो सकता है मगर असुविधा यह है कि प्रत्येक देष प्रथम की नीति ग्रहण किये हुए है। नतीजन कार्बन उत्सर्जन को लेकर दुनिया के देषों में कागजी एकजुटता तो कम-ज्यादा देखने को मिलती है मगर वास्तविकता में पृथ्वी इसके बोझ से तप रही है। विकसित और विकासषील देषों के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी व्यापक रूप लेते रहे हैं। इस सुलगते सवाल को नजरअंदाज करते हुए कि धरती एक है, इसकी जरूरत एक है और इसे बनाये रखना सभी की जिम्मेदारी है। फिलहाल भारत की अपनी चिंताएं हैं और अपनी चुनौतियां हैं। दुनिया में आबादी के मामले में भारत अच्छी खासी स्थिति रखता है यदि हालिया आंकड़े को सही माना जाये तो यह चीन से आगे निकलकर पहले स्थान पर है जहां गरीबी और भुखमरी से ऊपर उठना कमोबेष चुनौती है। यदि भारत कार्बन उत्सर्जन और नेट जीरो पर बहुत सषक्त कदम उठाता भी है तो उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है मगर एक सच यह है कि अन्य विकसित और विकासषील देषों की तुलना में भारत कार्बन उत्सर्जन की मामले में संयमित देष है और अपने कथन को पूरा करने की जी-तोड़ कोषिष भी करता है। बावजूद इसके दुनिया को यह सोचना पड़ेगा कि पृथ्वी की तपिष को कम करने के लिए प्रथम की नीति नहीं बल्कि वैष्विक सुषासन की नीयत से काम करना होगा।

 दिनांक : 18/02/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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