Thursday, March 23, 2023

ऊर्जा रूपांतरण की शक्ति ई-20 ईंधन


दुनिया में कच्चे तेल का संघर्श स्वयं में किसी महायुद्ध से कम नहीं रहा है और इससे जुड़ा संघर्श तमाम देषों के लिए अक्सर चुनौती भी बनता रहा। रोचक यह है कि तेल को लेकर अमेरिका जैसे देष कई खेल भी इसी दुनिया में खेले हैं। गौरतलब है कि अमेरिका भारत का रणनीतिक मित्र है और वर्शों से सम्बंध कहीं अधिक सकारात्मक और उपजाऊ भी हैं मगर ईरान से उसकी दुष्मनी की कीमत भारत को भी तब चुकानी पड़ी जब उसने मई 2019 में ईरान से कच्चा तेल लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अन्ततः इस ऊर्जा की भरपाई के लिए भारत को सऊदी अरब की ओर रूख करना पड़ा था जो ईरान की तुलना में महंगा सौदा था। फरवरी 2022 से बदले हालात के चलते नैसर्गिक मित्र रूस से भारत सस्ता तेल धड़ाधड़ खरीद रहा है जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका व यूरोप के कई देष खेमे बने हुए हैं और भारत को ऐसा करने से रोक पाने में सक्षम भी नहीं है। विदित हो कि भारत कच्चा तेल के मामले में आत्मनिर्भर तो कत्तई नहीं है। वह अपनी जरूरत के महज 17 फीसद ही उत्पादन कर पाता है बाकी के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में ई-20 ईंधन का स्वरूप निर्भरता को कम करने में मदद करेगा मगर जिस गति से कच्चे तेल की आवष्यकता निरंतर देष को चाहिए उसे देखते हुए इसे अंतिम उपाय नहीं कहा जा सकता। गौरतलब है कि ई-20 ईंधन का आषय पेट्रोल में इथेनाॅल के 20 प्रतिषत मिश्रण से है। जबकि अभी तक देष में मिलने वाले पेट्रोल में इसकी मिलावट महज 10 फीसद थी। हालांकि इसे लेकर पेट्रोल के आयात पर असर पड़ेगा मगर बड़ा असर लाने के लिए इलेक्ट्राॅनिक वाहन और इथेनाॅल मिश्रित पेट्रोल को पूरे देष में विस्तार देना होगा। फिलहाल ई-20 ईंधन को 11 राज्यों व केन्द्रषासित प्रदेषों के 84 पेट्रोल पम्पों में उपलब्ध कराया जायेगा जो इथेनाॅल मिश्रित रोड़ मैप के निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप है। विदित हो कि भारत सरकार ने इण्डिया एनर्जी वीक 2023 में 20 प्रतिषत इथेनाॅल मिश्रित पेट्रोल को बीते फरवरी में लाॅन्च किया था और उम्मीद जतायी गयी कि इस पहल से पेट्रोल पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा और विदेषी मुद्रा भी बचायी जा सकेगी साथ ही जैव ईंधन उपयोग को भी बढ़ावा मिलेगा।
इसमें कोई दुविधा नहीं कि जैव ईंधन को लेकर जितनी सक्रियता आयी उसके लाभ भी विभिन्न आयामों में विस्तार लेंगे। ई-20 ईंधन कई लाभों से युक्त है बावजूद इसके चुनौतियों से भी भरा हुआ है। भारत कृशि अर्थव्यवस्था वाला देष है जाहिर है यहां व्यापक पैमाने पर कृशि अवषेश उपलब्ध हैं। ऐसे में जैव ईंधन के उत्पादन की सम्भावना अधिक रहेगी। फलस्वरूप नई नगदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृशि विकास में यह मदद कर सकता है बषर्ते नियोजनकत्र्ता किसानों की सक्रियता और महत्ता को ऊर्जा का केन्द्र समझे न कि महज एक साधन। षहर अकूत अपषिश्ट और कचरों से भरे पड़े हैं इनका उपयोग सुनिष्चित कर ईंधन में बदलना सम्भव होगा जो भोजन और ऊर्जा दोनों प्रदान कर सकती है। ई-20 ईंधन से वाहनों को चलाना तो आसान रहेगा ही साथ ही बड़ा लाभ यह होगा कि जहरीली गैसों से षहर मुक्त भी होंगे। दिल्ली जैसे षहर प्रदूशण के हब हैं। हाल ही का एक सर्वे बताता है कि दुनिया के सौ प्रदूशित षहरों में अड़तीस भारत में हैं। जाहिर है ई-20 ईंधन से प्रदूशण से भी कुछ राहत मिलेगी। कच्चा तेल खरीदने में तुलनात्मक कमी आयेगी इससे विदेषी मुद्रा के खर्च में कमी आयेगी और यह देष के लिए हितकर होगा। देखा जाये तो यह हरित ईंधन का एक ऐसा उदाहरण है जिससे कार्बन डाई आॅक्साइड व हाइड्रो कार्बन आदि के उत्सर्जन में घटोत्तरी सम्भव है। पड़ताल बताती है कि वर्तमान में भारत में इथेनाॅल की उत्पादन क्षमता लगभग एक हजार सैंतीस करोड़ लीटर है जिसमें सात सौ करोड़ लीटर गन्ना आधारित जबकि षेश अनाज आधारित है। वर्श 2022-23 में पेट्रोल व इथेनाॅल वाले ईंधन की आवष्यकता पांच सौ बयालिस करोड़ लीटर जबकि साल 2023-24 में यह बढ़कर छः सौ अट्ठानवे करोड़ वहीं 2024-25 के लिए नौ सौ अट्ठासी करोड़ लीटर है। यहां स्पश्ट कर दें कि क्रूड आॅयल दुनिया के किसी देष से किसी भी कीमत पर षायद खरीदा जाना सम्भव है मगर इथेनाॅल के औसत को बनाये रखना भी कहीं अधिक आवष्यक रहेगा। हालांकि आंकड़े यह इषारा कर रहे हैं कि इथेनाॅल के मामले में भारत परिपक्व है मगर सरकार को यह नहीं भूलना है कि यह पूरी तरह किसान आधारित है और उन्हें इस ऊर्जा में मदद के बदले आर्थिक सुचिता बनाये रखना होगा।
 खास यह भी है कि देष में ऐसी कारें कम हैं जो ई-20 पेट्रोल से चल सकती हैं। हालांकि कई मोटर कम्पनियों की निर्मित गाड़ियां ई-20 ईंधन के अनुरूप बनी हुई हैं। मगर पूरे देष में जैसे-जैसे ई-20 ईंधन का विस्तार होगा इससे चलने वाली गाड़ियों की बनावट भी उसी के अनुरूप होनी चाहिए। सुलगता सवाल यह है कि जब तेल खत्म हो जायेगा तब दुनिया क्या करेगी। जाहिर है जैव ईंधन व ग्रीन फ्यूल पर निर्भरता बढ़ेगी जो ऊर्जा का एक ऐसा विकल्प होगा जिसमें हर हाल में कृशि अर्थव्यवस्था व किसानों को सुदृढ़ करने के संदर्भ निहित रहेंगे। ध्यानतव्य हो कि केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इसी साल जनवरी की षुरूआत में राश्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिषन को भी मंजूरी दी है जिसका उद्देष्य भारत को हरित विनिर्माण और स्वच्छ ऊर्जा का केन्द्र बनाना है। भारत की आबादी दुनिया में पहले स्थान की ओर गमन कर चुकी है। विकसित देष अमेरिका तेल खपत में जहां पहले तो वहीं चीन दूसरे स्थान पर है और भारत इस मामले में तीसरा स्थान रखता है। जो अपनी जरूरत का लगभग 83 फीसद तेल आयात करता है। तेल की बढ़ती कीमतें और डाॅलर के मुकाबले गिरता रूपया न केवल कच्चे तेल के लिए मुसीबत बनता है बल्कि देष के जनमानस को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। हालांकि सस्ता कच्चा तेल मिलने के बावजूद भी देष की जनता को सरकार इसका लाभ नहीं दिया है। तेल का खेल सरकारें भी खूब खेलती हैं और इसे अपनी तिजोरी को आसानी से भर पाने में सफल होती हैं। वन नेषन, वन टैक्स के बावजूद पेट्रोल और डीजल तथा रसोई गैस समेत छः पदार्थ अभी भी जीएसटी से बाहर हैं जिसके उतार-चढ़ाव से जनता की जेब ढीली होती रहती है।
आज दुर्भाग्य यह है कि पच्चहत्तर साल की आजादी के बाद भी लोकनीति की सफल प्रक्रिया से समाज का बहुलांष गायब है। यह विडम्बना ही है कि जो तबका नीतियों से सबसे अधिक प्रभावित होता है और जिसके लिए अधिकांष नीतियां बनायी जाती हैं और जिससे लाभ लेने की प्रतीक्षा अनवरत् बनी रहती है वही हाषिये पर है। भारत का किसान अन्न उत्पादन करके इस मामले में देष को आत्मनिर्भर बना रहा है। आज वही चाहे गन्ना किसान हो या अनाज उत्पादन करने वाला ई-20 ईंधन को भी बड़ा मुकाम दे सकता है मगर क्या उसकी आय दोगुनी करना सरकार के लिए सम्भव है। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी का लक्ष्य सरकार ने रखा था मगर इस पर कुछ खास पता नहीं चला। सरकार इस कसौटी को और कस कर देखे क्या पता किसानों की किस्मत ई-20 ईंधन के ईर्द-गिर्द पलटी मारे और उनकी आय दोगुनी हो जाये? मगर रोचक तथ्य यह भी है कि सरकार पहले इस बात की भी पड़ताल कर ले कि उनकी पहले आय क्या थी? हालांकि दिसम्बर 2018 से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के माध्यम से प्रति चार महीने पर जो दो हजार रूपया सीमांत किसानों के खाते में जाते हैं अब वो भी कई नई समस्याओं के चलते मामूली हो गये होंगे। गौरतलब है कि भारत सरकार इथेनाॅल युक्त तेल को 2030 तक जारी करने का लक्ष्य रखा था और इसे अभी लाॅन्च करके सात साल पहले लक्ष्य पाने का जो श्रेय सरकार को जाता है उसमें इथेनाॅल के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराने वालों को भी निहित समझा जाये। साल 2013-14 की तुलना में आज इथेनाॅल का उत्पादन छः गुना तक बढ़ा है जिससे लगभग 54 हजार करोड़ की विदेषी मुद्रा बची है। स्थिति को देखते हुए सरकार ने साल 2025 तक देष में पूरी तरह ई-20 ईंधन की बिक्री का लक्ष्य रखा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इथेनाॅल 21वीं सदी के भारत की एक प्रमुख प्राथमिकता बन चुका है क्योंकि यह पर्यावरण और किसानों के जीवन पर बेहतर प्रभाव डाल सकता है। 

दिनांक : 20/03/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502





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