Thursday, March 23, 2023

पेपर लीक से निपटने की चुनौती

च्ूांकि षिक्षा सही ज्ञान की खोज की जगह बाजार बनता जा रहा है षायद इसलिए नकल का होना आम बात है और पेपर लीक होना कोई विस्मयकारी घटना नहीं रह गयी है। हालिया परिप्रेक्ष्य जिस स्वरूप को ग्रहण कर लिया है उसमें ज्यादातर प्रतियोगी परीक्षाएं तमाम प्रबंधन के बावजूद बिना किसी नकल या पेपर लीक के मानो सम्पन्न ही नहीं हो पा रही हैं। देखा जाये तो षीघ्र और सरल ढंग से धन इकट्ठा करने की इच्छा षक्ति और कत्र्तव्य के प्रति सत्यनिश्ठा का गिरता स्तर इसके लिए कहीं अधिक जिम्मेदार है। पेपर लीक मामले में कठोर कानून की बात करना, इसके जिम्मेदार लोगों को सलाखों के पीछे धकेलना तथा समाज में इस बात का भरोसा दिलाना कि एक निश्पक्ष और स्वस्थ परीक्षा के आयोजन में सरकारें कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी। उक्त बातें आदर्ष से प्रतिश्ठित और प्रतिबिम्बित तो लगती हैं मगर इसके पीछे के बिगड़े समाज और बेपटरी होती नैतिकता व गिरते परीक्षाओं के मूल्य का अंदाजा षायद ही किसी को हो। सवाल केवल प्रतियोगी परीक्षाओं तक ही नहीं है विष्वविद्यालयों में नकल की बढ़ती प्रवृत्ति, स्कूल-काॅलेजों का भी इससे पूरी तरह वंचित न होना चिंता की लकीर को और मोटी कर देता है। भारत में हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड पेपर लीक को लेकर कहीं अधिक फलक पर है। अधीनस्थ चयन आयोग से लेकर लोक सेवा आयोग तक इसकी जद्द में आ गये हैं। हैरत तो यह है कि पेपर लीक को लेकर अभी धर-पकड़ जारी ही थी तथा नियम-कानून बनाने में तेजी आ ही रही थी कि उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा 8 जनवरी को आयोजित पटवारी परीक्षा का पेपर भी लीक हो गया। गौरतलब है कि आयोग को यह परीक्षा संचालित करने की जिम्मेदारी अधीनस्थ चयन आयोग की पेपर लीक मामले के चलते ही दिया गया था। कहा जाये तो यह कहावत बिल्कुल सटीक है कि आसमान से गिरे और खजूर में अटक गये। ऐसी घटना ने प्रदेष को नये चिंतन की ओर धकेल दिया है और यह उपाय सुझाने में राज्य सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए है कि निश्पक्ष परीक्षा के लिए क्या नियम और कानून हों।
27 जनवरी 2023 को प्रधानमंत्री ने रेडियो पर मन की बात की जिसमें परीक्षा पर चर्चा की गयी। गौरतलब है कि फरवरी से बोर्ड की परीक्षाएं षुरू हो रही हैं। इसी सिलसिले में एक बार फिर विद्यार्थियों से मन की बात की गयी थी। जब सवालों का दौर षुरू हुआ तो एक बच्चे ने नकल पर प्रधानमंत्री से सवाल किया कि क्या परीक्षा में नकल करनी चाहिए? कुछ लोग नकल से परीक्षा पास कर जाते हैं, इससे हम कैसे बचें? प्रधानमंत्री ने क्या जवाब दिया उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि बोर्ड परीक्षा में षामिल होने वाले विद्यार्थी नकल को लेकर प्रधानमंत्री से बेझिझक बात कर रहे हैं और षायद इस असमंजस में भी हैं कि बेहतर अंक पाने का यह कहीं अच्छा तरीका तो नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि नकल या पेपर लीक जैसे षब्द प्रतिभा को ही अवसान की ओर धकेल देते हैं। मगर जिस प्रकार षिक्षा और परीक्षा के मुकाबले पूंजी खड़ी हो रही है उसमें सिक्के की खनक को यदि वरीयता मिलती रही तो प्रतिभाषाली धोखे के षिकार हो जायेंगे। प्रधानमंत्री का जवाब भी इस मामले में देखें तो कहीं अधिक सारगर्भित था जिसमें कहा गया जो मेहनती विद्यार्थी है उसकी मेहनत उसकी जिन्दगी में अवष्य ही रंग लायेगी। कोई नकल करके दो-चार अंक ज्यादा ले जायेगा मगर वो कभी भी आपकी जिन्दगी की रूकावट नहीं बन पायेगा। इसमें कोई दुविधा नहीं कि भीतर की ताकत ही आगे ले जाती है मगर नकल विहीन व्यवस्था बनाना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। सुषासन की परिपाटी में एक सजग प्रहरी के तौर पर सरकार का नकल और पेपर लीक विहीन होना अनिवार्य पहलू है। यदि षिक्षा, परीक्षा या प्रतियोगिता में नकल और पेपर लीक को षून्य नहीं किया जाता तो देष निर्माण की स्थिति भी सतही की सम्भावना से भर जायेगा।
विभिन्न प्रदेषों में आयोजित होने वाली परीक्षाओं में कम-ज्यादा ऐसी घटनाएं देखने को मिलती रहीं। हिमाचल प्रदेष कर्मचारी भर्ती चयन आयोग की भर्ती परीक्षा में पेपर लीक से लेकर हरियाणा काॅस्टेबल की भर्ती में आठ माह में दो बार पेपर लीक होना साथ ही राजस्थान में षिक्षा पात्रता परीक्षा (रीट) परीक्षा 2021 का पेपर लीक इस बात की बानगी है कि परीक्षाओं को सुचारू सम्पन्न कराने में भर्ती एजेन्सियां और सरकारें बौनी सिद्ध हुई हैं। फहरिस्त को और बड़ा किया जाये तो बिहार लोक सेवा आयोग की 67वीं प्रारम्भिक परीक्षा पेपर लीक होने के चलते स्थगित करनी पड़ी थी। इस प्रतियोगिता में 6 लाख प्रतियोगियों ने आवेदन किया था और परीक्षा षुरू होने से ठीक पहले पेपर सोषल मीडिया पर वायरल हो गया। लोक सेवा आयोग और सरकार की बड़ी किरकिरी हुई और प्रतियोगी छात्रों ने जमकर हंगामा काटा था। इससे पहले अलग-अलग प्रारूपों में उत्तर प्रदेष, मध्य प्रदेष, झारखण्ड, हरियाणा और राजस्थान में पेपर लीक के मामले हो चुके हैं और मामलों की जांच भी चल रही है। बिहार में ही अग्निषमन सेवा 2021 का पेपर लीक हुआ, सिपाही भर्ती की परीक्षा में पेपर वायरल हुआ। उत्तर प्रदेष में 12वीं बोर्ड में अंग्रेजी का पेपर लीक होने के कारण प्रदेष के 24 जिलों में परीक्षा स्थगित कर दी गयी थी। यूपीटीईटी परीक्षा 2021 पेपर लीक की लिस्ट में षामिल है। हरियाणा में तो दिसम्बर 2021 में यूजीसी-नेट परीक्षा का पेपर लीक हुआ और गुजरात में हेड क्लर्क परीक्षा और 10वीं का हिन्दी का पेपर भी मीडिया में वायरल हुआ था। बरसों पहले कर्मचारी चयन आयोग में हुए पेपर लीक के कलंक से आज भी मुक्त नहीं हुआ है। उत्तराखण्ड में भर्ती परीक्षाओं की गड़बड़ी मसलन स्नातक स्तरीय भर्ती, वन दरोगा भर्ती, सचिवालय रक्षक भर्ती समेत अनेकों में जो गड़बड़ियां मिली हैं वह सरकार के लिए किरकिरी बन गयी है। मध्य प्रदेष में व्यापमं किसी के मानस पटल से षायद ही मिटा हो जो परीक्षा के इतिहास में बड़ा घोटाला और भारी संचालन प्रक्रिया में गड़बड़ी के लिए जाना जाता है। वास्तुस्थिति यह है कि कमोबेष पेपर लीक होना परीक्षा में जड़ जंग का रूप ले चुकी है। ऐसे माफियाओं से परीक्षा को सुरक्षित कैसे किया जाये यह भर्ती एजंसियों और सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। पेपर लीक को लेकर राज्य सरकारें अपने ढंग का कानूनी कसरत में संलग्न रही हैं। इस मामले में पुलिस धारा 120बी, 420 व 468 के तहत केस दर्ज करती है। जिसमें क्रमषः गम्भीर अपराध, धोखाधड़ी से सम्पत्ति के वितरण और दस्तावेजों के गलत इस्तेमाल षामिल है। अधिकतम सात वर्श तक की जेल व जुर्माना सम्भव है। कई राज्यों ने तो सम्पत्ति जब्त करने जैसी विधाओं का भी इस्तेमाल किया है। राजस्थान सरकार ने नकल रोकने के लिए एक विधेयक पेष किया है। जिसमें 10 करोड़ का जुर्माना और 10 साल की सजा षामिल है। उत्तराखण्ड भी पेपर लीक को लेकर लगातार हो रही किरकिरी से तिलमिलाया हुआ है और सख्त कानून लाने की जोर-आजमाइष में लगा हुआ है।
अस्तित्व में रहना ज्ञान का आधार है पर इसे लगातार रूपए में तौेला जाना भी वर्तमान की चुनौती बन गयी है। मौजूदा हालात तो ऐसे हैं कि पेपर लीक से लेकर नकल रोकने तक के जितने भी जोड़-जुगाड़ किये जा रहे हैं उतनी ही कठिनाइयां मानो बरकरार हैं। भारत का षायद ही कोई कोना खाली हो जहां नकल या पेपर लीक की गुंजाइष षून्य रही हो। सवाल यह है कि परीक्षा से पहले ही पेपर लीक कैसे हो जा रहे हैं? इसके पीछे माफियाओं का अच्छा खासा गिरोह काम कर रहा है और करोड़ों में कमाई हो रही है। छोटी-छोटी प्रतियोगी परीक्षाओं का पेपर दस से बीस लाख तक बिकना यह पुख्ता करता है कि पेपर लीक माफिया की सांठ-गांठ आर्थिक तौर पर कितनी सषक्त है। एक ओर बढ़ती बेरोज़गारी तो दूसरी ओर खाली पद भरने की विज्ञप्तियों का बरसो-बरस इंतजार के बाद निकलना युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है तो वहीं दूसरी ओर पेपर लीक उन्हें असफलता की पंक्ति में खड़े होने के लिए मजबूर भी कर रहा है। इसलिए इस पर चर्चा व चिंता के बाद यह चिंतन आवष्यक हो जाता है कि पेपर लीक करने वाले यह बल कहां से प्राप्त कर रहे हैं। उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग में तो अंदर के ही कर्मचारी ने यह कृत्य किया। यह बात सत्यता से परे नहीं है कि भर्ती संस्थानों में काम कर रहे कर्मचारियों की जुगलबंदी माफियाओं को ऐसा करने का मौका दे रही हैं। कुछ मामलों में तो पेपर छापने वाले प्रेस के भी मिली भगत देखी गयी है। पेपर लीक करना लाखों रूपए देने वाले तक पहुंचाना यह कोई आसान काम नहीं है। यह एक ऐसा अपराध है जिसे करने की हिम्मत कुछ में ही है। इन्हें न तो कानून का डर है न ही सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का भय। यदि चाहत है तो केवल रातों-रात करोड़पति बनने का। हालांकि देष में फैला कोचिंग का संजाल भी ऐसे क्रियाकलापों से मुक्त नहीं है। बच्चों को षिक्षा देने वाले प्रतियोगिता के लिए तैयार करने वाली कुछ कोचिंग संस्थाएं लालच से मुक्त नहीं है और देष का नुकसान करने में कई दो-चार कदम आगे भी हैं। फिलहाल नकल व पेपर लीक की घटना स्वस्थ परीक्षा परम्परा को कायम रखने में कठिनाई पैदा किया है। पेपर लीक माफिया पर लगाम कसने का जोड़-जुगाड़, विधि व नियम न केवल बनाने बल्कि उसको सुचारू ढंग से लागू करने की जिम्मेदारी सरकार और भर्ती एजेंसियों की है। ताकि स्वस्थ परीक्षा परम्परा को प्राप्त किया जा सके और युवाओं के साथ हो रही नाइंसाफी को रोका जा सके।

दिनांक : 31 /01/2023



 डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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