Monday, January 31, 2022

बाइस के बजट से बेशुमार उम्मीदें

बजट देष का वह आर्थिक आइना होता है जिसमें सभी नागरिक अपनी सूरत निहारते हैं। चाहे कृशि क्षेत्र हो, सेवा क्षेत्र हो या फिर उद्योग सभी के लिए यह बेषुमार उम्मीदों का ताना-बाना लिए रहता है। वर्श 2022 का पहला संसद सत्र बीते 31 जनवरी को षुरू हो गया है और आज 1 फरवरी बजट पेषगी का दिन है। वित्त मंत्री द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण में यह अंदेषा पहले ही जताया जा चुका है कि अगले वित्त वर्श 2022-23 में विकास दर में गिरावट रहेगी। गौरतलब है कि चालू वित्त वर्श में विकास दर 9.2 फीसद है जो आगामी वित्त वर्श में 8 से 8.5 प्रतिषत रहने का अनुमान है। बावजूद इसके 31 जनवरी को संसद में पेष आर्थिक सर्वेक्षण में यह भरोसा जताया गया है कि देष की अर्थव्यवस्था सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। सर्वेक्षण में यह भी स्पश्ट है कि देष का कृशि क्षेत्र ही नहीं बल्कि औद्योगिक उत्पाद के विकास दर में भी सुधार है। हालांकि वित्त वर्श 2021-22 के लिए ऐसे ही सर्वेक्षण में पिछले साल 11 फीसद विकास दर का अनुमान लगाया गया था जिसका सांख्यिकी मंत्रालय के मुताबिक 9.2 फीसद पर सिमटने का अनुमान है। दरअसल भारत का आर्थिक सर्वेक्षण भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की ओर से जारी एक ऐसा वार्शिक लेखा-जोखा है जिसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था से सम्बंधित आधिकारिक और ताजा आंकड़ा निहित होता है। गौरतलब है कि पहले बजट फरवरी के अन्तिम दिवस में पेष किया जाता था लेकिन साल 2017 से इसे 1 फरवरी से पेष किये जाने की परम्परा षुरू की गयी और इसी साल आम बजट और रेल बजट एक भी किया गया था तब के वित्त मंत्री अरूण जेटली थे। भाजपा सरकार का यह दसवां बजट होगा जबकि वित्त मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण चैथी बार बजट पेष कर रही हैं। 

अर्थव्यवस्था में मजबूती को लेकर सरकार का जोर लगातार रहा है मगर कोरोना के चलते कई कठिनाईयां भी बनी रहीं। मौजूदा दौर कोरोना की तीसरी लहर का है जो अर्थव्यवस्था की दृश्टि से समुचित करार नहीं दिया जा सकता। हालांकि अप्रत्यक्ष कर जीएसटी की उगाही के मामले में अर्थव्यवस्था अनुमान के इर्द-गिर्द है। नये बजट में ठोस कदम उठाने की जरूरत तो है ही साथ ही इससे जुड़ी चुनौतियों पर भी फोकस कहीं अधिक आवष्यक है। देखा जाये तो घरेलू स्तर पर महंगाई एक चिंता का सबब है। खुदरा महंगाई दर लगभग 14 फीसद के आंकड़े को छू रही है जिसे लेकर बजट में यह गुंजाइष बनती है कि इस दबाव से मुक्ति मिले। कोरोना महामारी के साथ और बाद नौकरी जाने और बेरोज़गारी का एक गगनचुम्बी पिरामिड देष में बन गया है और आंकड़े भी बताते हैं कि करोड़ों लोगों की नौकरियां और काम-काज अभी भी ठप्प है। दिसम्बर 2021 में बेरोज़गारी दर रिकाॅर्ड 7.91 फीसद का होना यह जताता है कि बजट से उम्मीदें इस मामले में सर्वाधिक है। विनिवेष, निर्यात, कच्चा तेल और विदेषी निवेषक आदि से जुड़े मसलों पर भी बजट को नया करवट देना ही होगा। वेतन भोगियों की नजर भी बाइस के बजट में इक्कीस है। कोरोना के चलते अधिकतर क्षेत्रों में वर्क फ्राॅम होम की स्थिति बनी हुई है। जाहिर है इससे इलेक्ट्राॅनिक, इंटरनेट चार्ज, किराया, फर्नीचर आदि पर खर्च तुलनात्मक बढ़ा है। यहां भी अतिरिक्त टैक्स छूट देने का संदर्भ हो सकता है। बीते दो वर्शों में कोविड-19 ने हेल्थ सेक्टर को काफी सक्रिय किया है। इतना ही नहीं स्वास्थ्य पर लोगों का खर्च भी तुलनात्मक काफी बढ़ गया है। ऐसे में मेडिकल क्लेम का दायरा और बीमा में छूट की सीमा भी बेहतर होने की आस है। गौरतलब है इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 80सी के तहत कर से छूट का प्रावधान है जो डेढ़ लाख रूपए ही है और बरसों से इसे बढ़ाया नहीं गया। इस छूट के दायरे में ईपीएफ, पीपीएफ, हाउसिंग लोन, बच्चों की ट्यूषन फीस, राश्ट्रीय बचत, जीवन बीमा समेत बचत निवेष और अनिवार्य खर्चों से जुड़ी एक लम्बी सूची इसमें षामिल है। 

बजट में किसानों को बड़ी सौगात मिल सकती है। उम्मीद की जा रही है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जो 6 हजार रूपए सालाना है। इस बजट में इस राषि को बढ़ाने का एलान हो सकता है। इसके अलावा भी बजट में किसानों को लेकर काफी कुछ गुंजाइषें हो सकती हैं। किसान आंदोलन के चलते जो डेंट सरकार को लगा है वह इस बजट में भरपाई करना जरूर चाहेगी। वैसे भी उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड, पंजाब समेत मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया जारी है। उत्तर प्रदेष में सत्ता पर एक बार फिर काबिज होना मौजूदा सरकार के लिए एक अग्नि परीक्षा है और भरोसा जीतने की एक ऐसी धारणा कि वह षासन के मामले में बेहतर है। ऐसे में बजट में सम्भावना बेहतर की है। खास यह भी है कि इनकम टैक्स स्लैब रेट में बदलाव को लेकर भी सेवारत् कर्मचारियों समेत सभी की नजर रहेगी। मौजूदा आयकर प्रावधानों के अनुसार 60 साल तक की उम्र के व्यक्तिगत करदाताओं के लिए इनकम टैक्स में छूट की सीमा सालाना ढ़ाई लाख रूपए ही है और यह सीमा 2014-15 से अब तक बढ़ाई नहीं गयी है। इस बार के बजट में 5 लाख रूपए तक की सीमा पर विचार किया जा सकता है। वेतनभोगी कर्मचारियों को खुष करने के लिए भी सरकार कुछ अच्छे कदम और उठा सकती है। मसलन स्टैण्डर्ड डिडक्षन को 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख रूपए कर सकती है। विमानन उद्योग भी कोरोना के चलते आर्थिक कठिनाई से जूझ रहा है। इस मामले में भी बजट से उम्मीद बेमानी नहीं होगा। क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भी आगामी बजट में खरीद-बिक्री को कर के दायरे में लाने पर विचार हो सकता है। पिछले साल 2021 में देष में वरिश्ठ नागरिकों की संख्या करीब 1.31 करोड़ थी जो आगामी बीस वर्शों में ढ़ाई करोड़ के आसपास होगी। गौरतलब है कि एक उम्र के बाद नियमित आय का कोई साधन नहीं रहता। ऐसे में रिटायरमेंट प्लान कहीं अधिक जरूरी हो जाता है। बजट में यह उम्मीद की जा सकती है कि धारा 80सी की सीमा को बढ़ाने पर न केवल विचार किया जायेगा बल्कि इसके लोगों को बचत करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और अपनी रिटायरमेंट की योजना ठीक से बना सकेंगे। 

बजट में आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा भी पुलकित हुए बगैर रह नहीं सकती। लोकल को वोकल की गति भी इस बजट में और सम्भव है। उम्मीद तो बेहतर की ही रहेगी मगर सरकार किस प्राथमिकता पर काम करना चाहेगी वह उसकी अपनी होगी। एमएसएमई को भी बजट से बड़ी उम्मीदें हैं इतना ही नहीं रियल स्टेट को बूस्ट करना, डिजिटल इण्डिया को बढ़ावा देना, आॅटोमोबाइल की उम्मीदों पर खरा उतरना और प्रोत्साहन पैकेज की उम्मीद समेत कई ऐसे संदर्भ हैं जो बजट पर टकटकी लगाये हुए हैं और यह उम्मीद भी है कि सरकार इन्हें निराष नहीं करेगी। फिलहाल कोरोना की काली छाया से यह बजट भी मुक्त नहीं है लेकिन बाइस के बजट में उम्मीदें इक्कीस इसलिए हैं क्योंकि आपदा के समय में सरकार का साथ भी जनता ने खूब दिया है। 

 दिनांक : 31/01/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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