Thursday, January 27, 2022

बढ़ानी होगी वोट के प्रति सोच

वर्श 1888 में कैम्ब्रिज में एक व्याख्यान के दौरान सर जाॅन स्ट्रैची ने बड़े अहंकार से कहा था कि भारत देष या भारत जैसी कोई और चीज न कभी थी और न है। इस कथन को 140 बरस से अधिक का समय हो गया है तब देष औपनिवेषिक सत्ता में फंसा हुआ था। भारत की आजादी का अब 75वां वर्श चल रहा है जिसे आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। उक्त कथन का यहां संदर्भ यह है कि जिस भारत को लेकर अस्तित्वहीन चर्चा को कभी अंजाम दिया जाता था अब वही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। मगर 70 बरस के चुनावी इतिहास में मतदान के प्रति कमजोर रूझान चिंतन का सबब तो है। 17 बार लोकसभा का चुनाव भी हो चुका है और मौजूदा समय में उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड, पंजाब और मणिपुर समेत गोवा में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है। पड़ताल बताती है कि मतदाताओं का रूझान मतदान के प्रति षनैः षनैः बड़ा है हालांकि इसमें लोकतंत्र की मजबूती के लिए जितनी ताकत झोंकनी चाहिए वह नाकाफी दिखती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेष मंे 61 फीसद, उत्तराखण्ड में 65.64 जबकि पंजाब 78 प्रतिषत से अधिक वोटिंग हुई थी। वोट प्रतिषत बताते हैं कि उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में तो 2014 लोकसभा चुनाव में पड़े मतदान की तुलना में भी गिरावट है। 1951 में जब पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ तब मतदाता कुल 36 करोड़ जनसंख्या में महज 17 करोड़ से थोड़े अधिक थे और देष की साक्षरता दर बामुष्किल 18 प्रतिषत ही थी। आजादी मिले कुछ ही वर्श हुए थे सब कुछ संतुलित करने का प्रयास चल रहा था बावजूद इसके मतदान 61.32 फीसद था। उस दौर से वर्तमान की तुलना व्यापक अंतर के साथ देखा जा सकता है मगर उन परिस्थितियों में भी लोकतंत्र के प्रति भारतीयों की निश्ठा कतई कम न थी। साल 2019 में 17वीं लोकसभा का चुनाव हुआ और 70 साल के चुनावी इतिहास में बामुष्किल वोट प्रतिषत 5 प्रतिषत ही बढ़ पाया है। गौरतलब है कि इस चुनाव में 67.40 फीसद मतदान हुआ था जबकि साक्षरता की दृश्टि से देष 75 फीसद के आस-पास खड़ा है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना पर आधारित है। भारत अन्तरिक्ष विज्ञान में मील का पत्थर गाढ़ चुका है और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मामले में चैतरफा कदम बढ़ा चुका है। दुनिया के तमाम देषों में षुमार भारत दक्षिण एषिया में एक ध्रुव की भांति स्वयं को विकसित कर लिया है। इसके अलावा भी कई मामलों में देष आगे है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदान का जो प्रतिषत है वह निराष करने वाला है ऐसे में वोट के प्रति सोच को विकसित करने का वक्त पहले भी रहा है पर अब देरी ठीक नहीं है। 

प्रत्येक 25 जनवरी को राश्ट्रीय मतदाता के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे कारण इसी दिन 1950 में देष में निर्वाचन आयोग की स्थापना है। वैसे इस तारीख को मतदाता दिवस के रूप में साल 2011 में घोशित किया गया। इसके पीछे भी महत्वपूर्ण कारण यह था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले भारत के नागरिकों को मतदान की प्रगाढ़ता और एहमियत को बताना था। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह भी था कि मतदाताओं के पंजीकरण में वृद्धि करना साथ ही वयस्क मताधिकार को सुनिष्चित करते हुए युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना। जाहिर है कोई मतदान से पीछे न छूटे इसकी चिंता लाज़मी थी और राश्ट्रीय मतदान दिवस जैसे आयोजन के पीछे समावेषी और गुणात्मक भागीदारी भी सुनिष्चित करने का प्रयास था। सफलता कितनी मिली यह आंकलन का विशय है। भारत में बहुधा यह देखा गया है कि मतदान के मामले में रूचि कम ही है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 28 करोड़ मतदाताओं ने मतदान बूथ की ओर रूख ही नहीं किया। उस समय कुल 83 करोड़ से थोड़े अधिक मतदाता थे स्पश्ट है कि एक-तिहाई मतदाता के वोट के बगैर ही चुनाव सम्पन्न हुआ। हालांकि सात दषकों की पड़ताल में मतदान को लेकर निराष करने वाले कई चुनावी वर्श मिल जायेंगे। 1951 में पहले लोकसभा चुनाव में मतदान जहां 61.16 फीसद था वहीं 11वीं लोकसभा 1991 में यह प्रतिषत महज 56.73 था। हालांकि 1962 में 55.42 और 1971 में 55.29 फीसद तक भी मतदान हुए हैं। मगर 1985 में मतदान 72 फीसद के आंकड़े को पार कर गया। उक्त से यह स्पश्ट है कि मतदान के प्रति यदि जागरूकता अभियान चलाया जाये, बेदाग और कर्मठ नेता चुनावी मैदान में हो साथ ही लोकतंत्र के प्रति बेहतरीन सोच का विकास किया जाये तो मत प्रतिषत को बड़े मतदान प्रतिषत में बदला जा सकता है। 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देष है मगर अनिवार्य मतदान जैसी व्यवस्था यहां नहीं है। इंस्टीट्यूट आॅफ डेमोक्रेसी एण्ड इलेक्ट्राॅल असिस्टेंस से यह पता चलता है कि दुनिया में 30 देषों में मतदान को अनिवार्य बनाया गया है जिसमें आॅस्ट्रेलिया जैसे बड़े देष षामिल हैं तो वहीं सिंगापुर जैसे छोटे देष भी इसमें षुमार हैं। बेल्जियम, स्विटजरलैण्ड, अर्जेन्टीना आदि में मतदान अनिवार्य है। इतना ही नहीं कई देष मतदान नहीं करने की स्थिति में सजा का प्रावधान भी रखते हुैं जिसमें उपरोक्त के अलावा स्विट्जरलैण्ड, फिजी, तुर्की, उरूग्वे, अर्जेन्टीना जैसे 19 देष षामिल हैं। दुविधा यह है कि मतदान के प्रति सोच के लिए उकसाया जाये या फिर किसी सजा का प्रावधान किया जाये। भारत एक उदार विचारधारा से युक्त देष है यहां लोकतंत्र कहीं अधिक मुक्त अवस्था को प्राप्त किये हुए है। सहभागिता का दृश्टिकोण यहां के लोकतांत्रिक मूल्यों का संयोजन है षायद यही कारण है कि भारत में मतदान केवल नागरिक कत्र्तव्य मात्र है और इसे लेकर किसी प्रकार की बाध्यता भी नहीं है। वैसे देखा जाये तो फिलीपींस, थायलैण्ड, वेनेजुएला समेत कई देषों में मतदान नागरिक कत्र्तव्य घोशित किया गया है। मतदान प्रतिषत बढ़ाने के लिए कुछ नये अनुप्रयोग की आवष्यकता तो है। कुछ देषों में तो यह भी है कि कहीं भी रहकर अपने चुनाव क्षेत्र में मतदान करने में लोग सक्षम हैं। भारत में ऐसी स्थिति का आभाव है। षिक्षा, नौकरी या अन्य कारणों से लोग विस्थापन करते हैं ऐसे में अपने चुनाव क्षेत्र में मतदान न कर पाने की स्थिति में मतदाता वोट से वंचित हो जाते हैं। यहां इस प्रकार की छूट मतदान प्रतिषत को बढ़ा सकता है। अमेरिका में मतदान की तारीख से पहले और बाद में भी वोट दिया जा सकता है हालांकि इसके लिए विषेश अनुमति की आवष्यकता होती है। ब्रिटेन में तो मतदान के समय अनुपस्थिति की सूचना पूर्व में देनी होती है। तत्पष्चात् अन्य स्थान से वोट देना सम्भव है। जर्मनी में भी समय के बाद मतदान किया जा सकता है। बषर्ते इसकी कुछ प्रक्रिया है। आॅस्ट्रेलिया में मतदाता जिस राज्य का निवासी है वहां के लिए आॅनलाइन मतदान दे सकता है और न्यूजीलैण्ड में तो मतदान का हाल और निराला है। उपस्थिति न होने की स्थिति में यहां चुनाव आयोग की टीम लोगों के घर या अस्पताल तक जाती है। उक्त से यह स्पश्ट है कि मतदान के अनेक देषों में अपने तौर-तरीके हैं। फिलहाल भारत में जागरूकता और चेतना को व्यापक रूप दिया जाये तो मतदान के प्रतिषत को बड़ा करना कोई कठिन कार्य नहीं है। 

दिनांक : 27/01/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

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