Monday, January 24, 2022

गांधी दर्शन और गण का तंत्र

जब सामाजिक-आर्थिक प्रणालियों की मौजूदा परिपाटी डगमगा जाये तो समझो कि परिवर्तन की गुंजाइष बढ़ गयी है। खराबियों को दुरूस्त करने का सही वक्त पहचानना भी दूरदर्षी दायित्व का बोध कराता है। औपनिवेषिक काल के उन दिनों में ऐसे ही तमाम खामियों की पहचान कर देष को आजादी को दूरदर्षिता से भरना गांधी दर्षन था जो इन दिनों 75वें साल में प्रवेष कर गया है और आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है मगर यह तब पूरी तरह जन-जन का उत्सव बनेगा जब गण का तंत्र दायित्व और जवाबदेही के मामले में सर्वोदय और अन्त्योदय की भूमिका में होगा। प्रकृति और मानवता के बीच गहरा सम्बंध है और गांधी दर्षन का परिप्रेक्ष्य इन दोनों के समन्वय का परिचायक है। मौजूदा वक्त नीति और व्यवहार को सुचिता देने का है। नीति ऐसी जिसकी जदद् में आम आदमी और व्यवहार ऐसा जिसमें महामारी से निपटने का पूरा ताना-बाना हो। इतना ही नहीं समावेषी विकास में निहित षिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी समेत सुरक्षा और संरक्षा इत्यादि बुनियादी तत्व जिसका दषकों से आम आदमी बाट जोह रहा है उनकी भी भरपूर आपूर्ति गांधी दर्षन के साथ गणतंत्र की वास्तविकता है। भारत समेत तमाम विकासषील देषों को सबके लिए स्वास्थ का लक्ष्य प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रखने की फिलहाल जरूरत है और ऐसा प्रयास जारी भी है। गणराज्य में राज्य की सर्वोच्च षक्ति जनता में निहित होती है तथा विधि की दृश्टि में सभी नागरिक बराबर होते हैं। स्वास्थ्य एक प्राथमिक अधिकार है वस्तुतः मानव अधिकारों का मुद्दा है ऐसे में स्वास्थ्य और मनोस्वास्थ पर जोर वर्तमान की आवष्यकता है। वैसे महामारी से पहले भारत अपनी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब सवा प्रतिषत ही खर्च करता था जबकि विकसित देष अमेरिका लगभग 17 फीसद और स्विटजरलैण्ड 12 फीसद से अधिक। यहां तक कि बांग्लादेष और पाकिस्तान भी इस मामले में 3 प्रतिषत खर्च करते हैं। चीन में यह आंकड़ा 5 प्रतिषत का है। गौरतलब है कि उपरोक्त आंकड़े साल 2018 के हैं जबकि मौजूदा समय में स्थिति बदलाव लिए हुए है मगर अन्य देषों की तुलना में भारत अभी भी कहीं अधिक पीछे है।

किसी भी देष का नीति और व्यवहार इस बात से तय होता है कि आम आदमी के लिए नीतियां कितनी बेहतर बनायी जाती हैं और वहां की जनसंख्या कितनी स्वस्थ है। गणराज्य में राज्य की सर्वोच्च षक्ति जनता में निहित होती है तथा विधि की दृश्टि में सभी नागरिक बराबर होते हैं। भारतीय संविधान की उद्देषिका में भारत को गणतंत्र घोशित किया गया है जिसका तात्पर्य है भारत का राश्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होगा न कि आनुवांषिक। कई मुद्दे चाहे भारतीय जनता की सम्प्रभुता हो या सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय हो। इतना ही नहीं समता की गारंटी हो या धर्म की स्वतंत्रता हो या फिर निचले तबके के किसी वर्ग का उत्थान हो उक्त का संदर्भ संविधान में निहित है जो गांधी विचारधारा से ओत-प्रोत है। गांधी जी इस बात पर जोर देते थे कि हमारी सभ्यता इस बात में निहित है कि हम औरों के लिए कितने उदार और समान विचार रखते हैं। सदाचार, सत्य एवं अहिंसा, न्याय और निश्ठा एवं नैतिकता को गांधी अपने प्रयासों में हमेषा संजो कर रखते थे। इन्हीं की परिकल्पना सर्वोदय बीते सौ वर्शों से आज भी प्रासंगिक है साथ ही इस निहित परिप्रेक्ष्य को भी समेटे हुए है कि कोई भी नीति या निर्णय तब तक उचित नहीं जब तक अन्तिम व्यक्ति का उदय न हो। गणतंत्र की रूपरेखा भी उक्त बिन्दुओं से होकर गुजरती है। हम भारत के लोग इस बात का प्रकटीकरण हैं कि समता और दक्षता का संदर्भ सब में समान है, भेदभाव से परे संविधान नागरिकों की वह ताकत है जिससे स्वयं के जीवन और देष के प्रति आदर और समर्पण का भाव विकसित करता है। इतना ही नहीं संविधान में निहित मूल अधिकार और लोक कल्याण से ओत-प्रोत नीति निर्देषक तत्व गांधी दर्षन का आईना हैं। अनुच्छेद 40 के भीतर पंचायती राज व्यवस्था मानो गांधी दर्षन का चरम हो। संविधानविदों ने संविधान बनाने में 2 साल, 11 महीने, 18 दिन का लम्बा वक्त लिया और इस भरपूर समय में संविधान के प्रत्येक मसौदे के अंदर गांधी विचारधारा को नजरअंदाज नहीं किया गया। जिस तर्ज पर संविधान बना है इसका दुनिया में विषाल होना स्वाभाविक है मगर यही विषालता इस संसार में बेमिसाल भी बनाता है। 

गांधी दर्षन और सुषासन एक-दूसरे के पर्याय हैं जबकि गणतंत्र इसे कहीं अधिक ताकतवर बना देता है। सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के मामले में सरकारें खुली किताब की तरह रहें इसका प्रकटीकरण भी उपरोक्त संदर्भों में युक्त है। बावजूद इसके राजनीतिक पहलुओं से जकड़ी सरकारें गणतंत्र की कसौटी पर कितनी खरी हैं यह प्रष्न कमोबेष उठता जरूर है। लोकतंत्र के देष में जनता के अधिकारों को अक्षुण्ण बनाये रखना सरकार का पहला कत्र्तव्य है। ऐसा संविधान के भीतर पड़ताल करके भी देखा जा सकता है। गणतंत्र की पराकाश्ठा जनता की भलाई में है तभी यह गण का तंत्र बनता है। सरकार कितनी भी ताकतवर हो यदि जनता कमजोर हुई तो गांधी दर्षन और गणतंत्र दोनों पर भारी चोट होगी। षासन कितना भी मजबूत हो यह इस बात का प्रमाण नहीं कि इससे देष मजबूत है बल्कि मजबूती इस बात में हो कि जनता कितनी सषक्त है। यह परिकल्पना सुषासन की दीर्घा में आती है। गणतंत्र और सुषासन का भी गहरा नाता है। संविधान स्वयं में सुषासन है और गणतंत्र इसी सुषासन का पथ और चिकना बनाता है। 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान एक ऐसी नियम संहिता है जो दीन-हीन या अभिजात्य समेत किसी भी वर्ग के लिए न तो भेदभाव की इजाजत देता है और न ही किसी को कमतर अवसर देता है। सात दषक से अधिक वक्त बीत चुका है सरकारें आईं और गईं मगर गणतंत्र और गांधी दर्षन की प्रासंगिकता बरकरार रही। वैसे देखा जाये तो गणतंत्र के कई और मायने हैं मसलन देष के अलग-अलग हिस्सों के न केवल संस्कृतियों का यहां प्रदर्षन होता है बल्कि सभी सेनाओं की टुकड़ियां अपनी ताकत को सम्मुख लाकर देष की आन-बान-षान को भी एक नया आसमान देती है। मित्र देषों को भारत अपने परिवर्तन से परिचय कराता है तो दुष्मन देषों को अपनी ताकत का एहसास कराता है।

गणतंत्र हमारी विरासत है प्राचीन काल में गणों का उल्लेख मिलता है और मौजूदा समय में इसका लम्बा इतिहास। गांधी दर्षन को देखें तो नैतिकता और सदाचार के जो मापदण्ड उन्होंने कायम किये उनसे षाष्वत सिद्धान्तों के प्रति उनकी वचनबद्धता और निश्ठा का पता चलता है। गांधी दर्षन को यदि गणतंत्र से जोड़ा जाये तो यहां भी षान्ति और षीतलता का एहसास लाज़मी है। संविधान नागरिकों के सुखों का भण्डार है और गणतंत्र इसका गवाह है। गांधी ने सर्वोदय के माध्यम से प्रस्तावना में निहित उन तमाम मापदण्डों को संजोने का काम किया जिसका मौजूदा समय में जनमानस को लाभ मिल रहा है। स्वतंत्रता और समता व्यक्ति की गरिमा, बंधुता से लेकर राश्ट्र की एकता और अखण्डता सब कुछ संविधान की उद्देषिका में निहित है और उक्त संदर्भ गांधी दर्षन के कहीं अधिक समीप है। फिलहाल 2022 में 73वें गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर षासन से सुषासन की बयार की बाट जनता जोहती दिख रही है उसका बड़ा कारण कोविड-19 के चलते सब कुछ का उथल-पुथल में चले जाना है। आषा है कि यह गण का तंत्र गणतंत्र कई अपेक्षाओं को पूरा करेगा और नागरिकों को वो न्याय देगा जो गांधी दर्षन से ओत-प्रोत है।

दिनांक : 26/01/2022




डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिश्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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