Thursday, January 20, 2022

स्वदेशी उद्यमिता को मिले व्यापकता

महात्मा गांधी ने औपनिवेषिक काल के उन दिनों में कई सपने जो बुने और साकार करने का प्रयास किया उसमें ग्राम स्वराज और सर्वोदय के अलावा स्वदेषी भी था जिसका सीधा सरोकार बिना स्वदेषी उद्यमिता से फलित नहीं हो सकता था। भारत गांवों का देष है ऐसे में ग्राम उदय से भारत उदय की संकल्पना अतार्किक नहीं है। कृशि की दृश्टि से स्वदेषी उद्यमिता भी बहुतायत में है। भारत दुनिया की सबसे बड़ी तीसरी स्टार्टअप प्रणाली है जिसमें लगभग 12 से 15 प्रतिषत की निरंतर वार्शिक वृद्धि होती है। राश्ट्रीय स्तर पर कृशि आधारित स्टार्टअप्स 2013 से 2017 के बीच 366 थे जिन्हें भारत सरकार के उद्यम विकास हेतु योजनाओं जैसे स्टार्टअप इण्डिया, अटल इनोवेषन मिषन, न्यूजेन मिषन तथा उद्यमिता विकास केन्द्र व लघु कृशक एग्री बिजनेस संघ और एस्पाॅयर योजना आदि से सहयोग भी मिला। वर्तमान में कृशि से सम्बंधित स्टार्टअप्स की संख्या 450 से अधिक है। जाहिर है ये स्टार्टअप्स कहीं न कहीं उद्यमिता को एक नया आयाम दे रहे हैं और कृशि उत्पादों को स्वदेषी विनिर्माण के साथ बड़ा बाजार भी प्रदान कर रहे हैं। किसानों की आय बढ़ाने और युवाओं को रोजगार प्रदान करने हेतु कृशि क्षेत्र के स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने वाली सरकार की हालिया नीति भी कुछ इसी प्रकार का संदर्भ लिए हुए है। राश्ट्रीय कृशि विकास योजना के तहत नवाचार और कृशि उद्यमिता विकास कार्यक्रम को अपनाया गया है जिसमें 112 कृशि स्टार्टअप्स को 1186 लाख रूपए देने की बात है। आजादी के बाद बहुत कुछ बदला है उद्यम के स्वरूप भी बदले हैं और नये-नये प्रयोग भी हुए हैं। स्वदेषी उद्यमिता एक ऐसा विचार और व्यवहार है जो आर्थिक रूप से बहुत सषक्त तो नहीं मगर देषीयकरण में बहुत उपजाऊ है। कोविड-19 के बुरे दौर में स्वदेषी उत्पाद और स्वदेषी उद्यम दोनों का फलक पर होना स्वाभाविक हो गया। गांव में डेरी उद्योग से लेकर तमाम कच्चे माल को परिश्कृत कर बाजार में उपलब्ध कराना और आत्मनिर्भर भारत की कसौटी पर खरे उतरने की परिकल्पना में कदमताल करना स्वदेषी उद्यमिता का ही परिचायक है। विष्व बैंक ने वर्शों पहले कहा था कि यदि भारत की महिलायें रोजगार और उद्यम के मामले में सक्रिय हो जायें तो देष की जीडीपी में 4.22 फीसद का बढ़ोत्तरी तय है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि स्वदेषी उद्यम रोज़गार को आसमान तो देते ही हैं आत्मनिर्भरता को भी ऊँचाई देने में कामयाब हैं। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने लोकल के लिए वोकल बनाने का जो ष्लोगन महामारी के दौर में विकसित किया है वह कहीं-न-कहीं स्वदेषी उद्यमिता की अवधारणा को और प्रखर करता है। 

 सुषासन की परिधि में एक ऐसा समावेषित दृश्टिकोण है जो सभी के समेट कर चलता है जहां लोक कल्याण सर्वोपरि है और सर्वोदय ही नहीं अन्तिम व्यक्ति के उदय की कल्पना भी इसी का लक्षण है। जब स्वदेषी उद्यमिता की बात होती है तो औपनिवेषिक दौर का पूरे कालखण्ड से मस्तिश्क भर जाता है। गौरतलब है कि औपनिवेषिक सत्ता के दिनों में स्वदेषी आंदोलन भी एक व्यापक दृश्टिकोण के साथ भारत में स्थान ले रहे थे। स्वदेषी वस्तुओं का निर्माण व उपयोग का क्रम इन्हीं दिनों अंग्रेजी सत्ता विरोध का एक बड़ा कारण भी था। स्वराज आंदोलन और स्वदेषी उद्यम भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के ऐसे हथियार थे जिससे जन-जन को भागदारी के लिए उकसाना हद तक सहज था। इतिहास को उकेरा जाये तो आर्थिक स्वदेषी का विचार 19वीं सदी के उत्तरार्ध में उदित हुआ था और इसे आर सी दत्त, दादा भाई नौरोजी और एमजी रानाडे के लेखन के चलते विस्तार से समझने में सहायता मिली। ध्यानतव्य हो कि उन दिनों आर्थिक षोशण के बारे में परिचित होने का मौका यहीं से मिला था जो लगातार औपनिवेषिक सत्ता द्वारा की जा रही थी। स्वाधीनता की लड़ाई में स्वदेषी उद्यमिता एक ऐसा उपकरण था जो न केवल जरूरतों की पूर्ति हेतु बल्कि भारतीय समाज में भी बदलाव की दरकार लिए हुए था। प्रथम विष्व युद्ध के बाद बड़ी संख्या में भारतीय कारोबारियों ने व्यापार के बजाय निर्माण कार्य करना षुरू कर दिया। इस समय तक भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में महात्मा गांधी का प्रवेष हो चुका था। गांधी के उदय और अहिंसा के सिद्धांत तथा ट्रस्टीषिप के उनके विचार नामी भारतीय कारोबारियों पर गहरा प्रभाव डाला। इन्हीं में जीडी बिड़ला और जमनालाल बजाज जैसे व्यावसायी भी थे जिनका गांधी के साथ निकट का सम्बंध था। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले तक भारत स्वदेषी उद्यमिता का एक ऐसा स्वावलंबन विकसित कर लिया था जो अपने आप में आत्मनिर्भरता का मानो परिचायक था। स्वतंत्रता के पष्चात् ग्रामीण विकास को स्वावलंबन देने के लिए 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तो उससे पहले देष को विकास से ओत-प्रोत करने के लिए पंचवर्शीय योजना कदम ताल कर चुकी थी। हालांकि सामुदायिक विकास कार्यक्रम विफल हो गया था और इसी की असफलता पंचायती राज व्यवस्था का प्रस्फुटन था।

उद्यम एक ऐसा विचार है जो जोखिम और मुनाफे का मिला-जुला स्वरूप है। वर्तमान में सरकारी नौकरियां संकुचित हो रही हैं तो उद्यम को अपनाना एक आवष्यकता बनती जा रही है। हालांकि भारतीय युवाओं के मानस पटल के केन्द्र में सरकारी नौकरी होती है उद्यम नहीं। मगर तकनीकी विकास के इस दौर में अब सम्भावनायें चैतरफा खुली हुई हैं जिसमें एक स्वदेषी उद्यमिता है जो लघु, मध्यम और कुटीर किसी भी प्रारूप में विकसित की जा सकती है। भारतीय उद्यम का ढांचा अब भी बड़े पैमाने पर पारम्परिक है। जाहिर है कि इसमें बदलाव की बयार लानी जरूरी है। उद्यमिता एक ऐसा समाकलित दृश्टिकोण है जिसमें रोजगार के साथ सामाजिक-आर्थिक विकास और जीवन सम्मान का संदर्भ निहित है। आम तौर पर उद्यमिता का तात्पर्य किसी उद्यमी के उस क्रियाकलाप से देखा जाता है जो कमोबेष जोखिम उठाकर लाभ कमाने के इरादे से कोई गतिविधि करता है। इसका मूल स्वरूप फ्रांसीसी भाशा के षब्द आंत्रप्रेन्योर में निहित है। व्यवहारिक तौर पर देखा जाये तो स्वदेषी उद्यमिता सतत् और समावेषी विकास के दायरे से बाहर नहीं है। भारत में अधिकतर उद्यमों के लिए सतत् विकास एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। गौरतलब है कि संयुक्त राश्ट्र संघ के 2030 के एजेण्डे के हिसाब से अब उद्यम की तैयारी करनी होगी। भारत गांवों का देष है और इसकी आत्मा गांव में निवास करती है महात्मा गांधी का यह कथन मौजूदा समय में उतना ही प्रासंगिक है जैसा कि पहले। ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा बहुत व्यापक पैमाने पर बेरोजगारी का सामना कर रहा है। कोरोना के इस कालखण्ड में तो स्थिति बेपटरी है। अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन ने स्पश्ट किया है कि 2022 में वैष्विक बेरोज़गारी 207 मिलियन होने का अनुमान है और भारत की इस मामले में सूरत और विकृत है। बुनियादी ढांचे और नौकरियां बढ़ाने पर जोर देने की बात हमेषा कही जाती है मगर हकीकत यह है कि बेरोज़गारी अपने रिकाॅर्ड स्तर को पहले ही पार कर चुकी है। ऐसे में उद्यम का सहारा लेना भले ही उसमें जोखिम है पर सीमित विकल्प को देखते हुए इसे अपनाना उचित ही है। 

 भारतीय अनुसंधान कृशि परिशद् के एक अनुमान से पता चलता है कि खाद्यान्न की मांग साल 2030 में 342 मिलियन टन हो जायेगी। इस हिसाब से प्रतिवर्श उत्पादन दर मौजूदा समय की तुलना में 5.5 मिलियन टन बढ़ाना होगा। भारतीय कृशि कौषल परिशद का निर्माण वर्श 2013 में कृशि तथा कृशि से सम्बंधित क्षेत्रों में कौषल और उद्यमिता विकास हेतु किया गया। देष में खेती-बाड़ी के साथ पषुपालन, डेरी, मुर्गीपालन समेत अनेक कृशि सम्बंधित क्षेत्र से इसका सरोकार था। गौरतलब है कि भारतीय कृशि कौषल परिशद पूरे देष भर में 956 प्रषिक्षण संस्थाएं और 685 उद्योग साथियों के साथ मिलकर लगभग दस लाख प्रषिक्षार्थियों को प्रषिक्षण दे चुका है। भारत में मेक इन इण्डिया भी स्वदेषी उद्यम का ही एक उदाहरण कहा जा सकता है। कृशि वानिकी, कृशि पर्यटन, वाणिज्यिक स्तर पर विविधीकरण से युक्त खेती-बाड़ी कहीं-न-कहीं कृशि उद्यम के क्षेत्र में बढ़त लिए हुए है। स्वदेषी उद्यमिता का इतिहास सैकड़ों वर्श पुराना है मगर समय के साथ इसे व्यापक रूप देना अभी बाकी है। देष इन दिनों आजादी के 75वें वर्श में प्रवेष कर चुका है और आजादी का अमृत महोत्सव भी जारी है। देष के लोगों, संस्कृतियों और उपलब्धियों का षानदार उत्सव मनाया जा रहा है। कोरोना का भी भारतीय टीकाकरण स्वदेषी उद्यम का ही प्रारूप है। हालांकि इस मामले में अभी पूरी तरह आत्मनिर्भर है कहना मुष्किल है। गौरतलब है कि आजादी के अमृत महोत्सव का वास्तविक उद्देष्य प्रत्येक राज्य और प्रत्येक क्षेत्र में इसके इतिहास को संरक्षित करना ताकि भावी पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सके। स्वदेषी उद्यम को भी ऐसी ही विरासत की श्रेणी में रखना लाजमी है। स्वदेषी आंदोलन से जन्मे ऐसे दृश्टिकोण जो अंग्रेजों के विरूद्ध एक हथियार भी थे और स्वयं की आत्मनिर्भरता के परिचायक भी। इसमें कोई दो राय नहीं कि देष को सषक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सुषासनिक कदम के साथ बेहतरीन स्वदेषी उद्यमिता को व्यापक स्थान देना ही होगा।

दिनांक ; 20/01/2022 


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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