Monday, January 17, 2022

सुशासन के लिए अहम् नागरिक अधिकार पत्र

साल 2020 और 2021 जीवन के लिए एक चुनौती रहा ऐसे में नागरिक अधिकार पत्र की उपयोगिता और षिद्दत से महसूस की गयी। कोरोना के काल चक्र में सुषासन का दम भरने वाली सरकारों को ठीक से षासन करने लायक भी नहीं छोड़ा। ऐसे में नागरिक अधिकार पत्र भले ही महत्वपूर्ण हो पर और दरकिनार होना लाज़मी है। फिलहाल सुषासन प्रत्येक राश्ट्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है। सुषासन के लिए यह जरूरी है कि प्रषासन में पारदर्षिता तथा जवाबदेही दोनों तत्व अनिवार्य रूप से विद्यमान हों। सिटिजन चार्टर (नागरिक अधिकार पत्र) एक ऐसा हथियार है जो कि प्रषासन की जवाबदेहिता और पारदर्षिता को सुनिष्चित करता है। जिसके चलते प्रषासन का व्यवहार आम जनता (उपभोक्ताओं) के प्रति कहीं अधिक संवेदनषील रहता है। दूसरे अर्थों में प्रषासनिक तंत्र को अधिक जवाबदेह और जनकेन्द्रित बनाने की दिषा में किये गये प्रयासों में सिटिजन चार्टर एक महत्वपूर्ण नवाचार है। दो टूक कहें तो इस अधिकार के मामले में कथनी और करनी में काफी हद तक अंतर रहा है। देष भर में विभिन्न सेवाओं के लिए सिटिजन चार्टर लागू करने के मामले में अगस्त 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई करने से ही इंकार कर दिया। षीर्श अदालत का तर्क था कि संसद को इसे लागू करने के निर्देष दे सकते हैं। इस मामले को लेकर न्यायालय ने याचिकाकत्र्ता के लिए बोला कि वे सरकार के पास जायें जबकि सरकारों का हाल यह है कि इस मामले में सफल नहीं हो पा रहीं हैं। यूपी में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री येागी ने कहा कि सिटिजन चार्टर को कड़ाई से लागू करेंगे पर स्थिति संतोशजनक नहीं है। 

भारत में कई वर्शों से आर्थिक विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इसके साथ ही साक्षरता दर में पर्याप्त वृद्धि हुई और लोगों में अधिकारों के प्रति जागरूकता आयी। नागरिक और अधिकार और अधिक मुखर हो गये तथा प्रषासन को जवाबदेह बनाने में अपनी भूमिका भी सुनिष्चित की। अन्तर्राश्ट्रीय परिदृष्य में देखें तो विष्व का नागरिक पत्र के सम्बंध में पहला अभिनव प्रयोग 1991 में ब्रिटेन में किया गया जिसमें गुणवत्ता, विकल्प, मापदण्ड, मूल्य, जवाबदेही और पारदर्षिता मुख्य सिद्धांत निहित हैं। चूंकि सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है ऐसे में षासन और प्रषासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि जनता की मजबूती के लिए हर सम्भव प्रयास करें साथ ही व्यवस्था को पारदर्षी और जवाबदेह के साथ मूल्यपरक बनाये रखें। इसी तर्ज पर आॅस्ट्रेलिया में सेवा चार्टर 1997 में, बेल्जियम में 1992, कनाडा 1995 जबकि भारत में यह 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में इसे मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया। पुर्तगाल, स्पेन समेत दुनिया के तमाम देष नागरिक अधिकार पत्र को अपनाकर सुषासन की राह को समतल करने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री मोदी सुषासन के मामले में कहीं अधिक गम्भीर दिखाई देते हैं परन्तु सर्विस फस्र्ट के आभाव में यह व्यवस्था कुछ हद तक आषातीत नहीं रही। भारत सरकार द्वारा इसे लेकर एक व्यापक वेबसाइट भी तैयार की गयी जिसका प्रषासनिक सुधार और लोक षिकायत विभाग द्वारा 31 मार्च 2002 को लांच की गयी। वैसे सुषासन को निर्धारित करने वाले तत्वों में राजनीतिक उत्तरदायित्व सबसे बड़ा है। यही राजनीतिक उत्तरदायित्व सिटिजन चार्टर को भी नियम संगत लागू कराने के प्रति जिम्मेदार है। सुषासन के निर्धारक तत्व मसलन नौकरषाही की जवाबदेहिता, मानव अधिकारों का संरक्षण, सरकार और सिविल सेवा सोसायटी के मध्य सहयोग, कानून का षासन आदि तभी लागू हो पायेंगे जब प्रषासन और जनता के अन्र्तसम्बंध पारदर्षी और संवेदनषील होंगे जिसमें सिटिजन चार्टर महत्वपूर्ण पहलू है। 

एक लोकतांत्रिक देष में नागरिकों को सरकरी दफ्तरों में बिना रिष्वत दिये अपना कामकाज निपटाने के लिये यदि सात दषक तक इंतजार करना पड़े तो षायद यह गर्व का विशय तो नहीं होगा। जिस प्रकार सिटिजन चार्टर के मामले में राजनीतिक भ्रश्टाचार एवं प्रषासनिक संवेदनहीनता देखने को मिल रही है वह भी इस कानून के लिए ही रोड़ा रहा है। सूचना का अधिकार कानून के साथ अगर सिटिजन चार्टर भी कानूनी षक्ल, सूरत ले ले तो यह पारदर्षिता की दिषा में उठाया गया बेहतरीन कदम होगा और सुषासन की दृश्टि से एक सफल दृश्टिकोण करार दिया जायेगा। जिन राज्यों में पहले से सिटिजन चार्टर कानून अस्तित्व में है वहां कोई नये तरीके की अड़चन देखी जाती है। प्रषासनिक सुधार और लोक षिकायत विभाग ने नागरिक चार्टर का आंतरिक व बाहरी मूल्यांकन अधिक प्रभावी, परिणामपरक और वास्तविक तरीके से करने के लिए मानकीकृत माॅडल हेतु पेषेवीर एजेंसी की नियुक्ति दषकों पहले किया था। इस एजेंसी ने केन्द्र सरकार के पांच संगठनों और आन्ध्र प्रदेष, महाराश्ट्र और उत्तर प्रदेष राज्य सरकारों के एक दर्जन से अधिक विभागों के चार्टरों के कार्यान्वयन का मूल्यांकन भी किया। रिपोर्ट में रहा कि अधिकांष मामलों में चार्टर परामर्ष प्रक्रिया के जरिये नहीं बनाये गये। इनका पर्याप्त प्रचार-प्रसार नहीं किया गया। नागरिक चार्टर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए किसी प्रकार की कोई धनराषि निर्धारित नहीं की गयी। उक्त मुख्य सिफारिषें यह परिलक्षित करती हैं कि सिटिजन चार्टर को लेकर लेकर जितनी बयानबाजी की गयी उतना किया नहीं गया। यद्यपि सिटिजन चार्टर प्रषासनिक सुधार की दिषा में एक महत्वपूर्ण पहल है तथापि भारत में यह अधिक प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा। इसके कारण भी हतप्रभ करने वाले हैं। पहला यह कि सर्वमान्य प्रारूप का निर्धारण नहीं हो पाया, अभी भी कई सरकारी एजेंसियां इसका प्रयोग नहीं करती हैं। स्थानीय भाशा में इसे लेकर बढ़ावा न देना, इस मामले में उचित प्रषिक्षण का अभाव तथा जिसके लिए सिटिजन चार्टर बना वही नागरिक समाज भागीदारी के मामले में वंचित रहा। 

प्रधानमंत्री मोदी की पुरानी सरकार सबका साथ, सबका विकास की अवधारणा से युक्त थी तब भी सिटिजन चार्टर को लेकर समस्यायें कम नहीं हुईं। अब वह नई पारी खेल रहे हैं और इस ष्लोगन में सबका विष्वास भी जोड़ दिया है पर यह तभी सफल करार दी जायेगी जब सर्विस फस्र्ट की थ्योरी देखने को मिलेगी। उल्लेखनीय है कि भारत में नागरिक चार्टर की पहल 1997 में की गयी जो कई समस्याओं के कारण बाधा बनी रही। नागरिक चार्टर की पहल के कार्यान्वयन से आज तक के अनुभव यह बताते हैं कि इसकी कमियां भी बहुत कुछ सिखा रही हैं। जिन देषों ने इसे एक सतत् प्रक्रिया के तौर पर अपना लिया है वे सघन रूप से निरंतर परिवर्तन की राह पर हैं। जहां पर रणनीतिक और तकनीकी गलतियां हुई हैं वहां सुषासन भी डामाडोल हुआ है। चूंकि सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है ऐसे में लोक सषक्तीकरण ही इसका मूल है। सुषासन के भीतर और बाहर कई उपकरण हैं। सिटिजन चार्टर मुख्य हथियार है। सिटिजन चार्टर एक ऐसा माध्यम है जो जनता और सरकार के बीच विष्वास की स्थापना करने में अत्यंत सहायक है। एनसीजीजी का काम सुषासन के क्षेत्र में षोध करना और इसे लागू करने के लिए आसान तरीके विकसित करना है ताकि मंत्रालय आसानी से सुषासन सुधार को लागू कर सकें। सरकारी कामकाज में पारदर्षिता, ई-आॅक्षन को बढ़ावा देना, अर्थव्यवस्था की समस्याओं का हल तलाषना, आधारभूत संरचना, निवेष पर जोर, जनता की उम्मीद पूरा करने पर ध्यान, नीतियों को तय समय सीमा में पूरा करना, इतना ही नहीं सरकारी नीतियों में निरंतरता, अधिकारियों का आत्मविष्वास बढ़ाना और षिक्षा, स्वास्थ, बिजली, पानी को प्राथमिकता देना ये सुषासनिक एजेंण्डे मोदी के सुषासन के प्रति झुकाव को दर्षाते हैं। लोकतंत्र नागरिकों से बनता है और सरकार अब नागरिकों पर षासन नहीं करती है बल्कि नागरिकों के साथ षासन करती है। ऐसे में नागरिक अधिकार पत्र को कानूनी रूप देकर लोकतंत्र के साथ-साथ सुषासन को भी सषक्त बनाया जाना चाहिए। 

दिनांक : 6/01/2022 


सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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