Wednesday, September 2, 2020

रोचक मोड़ लेता अमेरिका में चुनाव

डेमोक्रेटिक पार्टी के अमेरिकी राश्ट्रपति उम्मीदवार जोए बिडेन ने अपनी पार्टी से भारत-अमेरिका मूल की कमला हैरिस का नाम उपराश्ट्रपति के लिए आगे लाकर एक तीर से कई निषाने लगाये हैं। पहला यह कि अष्वेतों का वोट उन्हें मिलेगा, दूसरा महिला होने का लाभ भी उनके हिस्से में ही जायेगा। इतना ही नहीं बीते कुछ दिनों पहले अष्वेत हिंसक आंदोलन को भी वे चुनाव में भुना सकते हैं साथ ही भारत के रूख को भी अपनी ओर आकर्शित करने का काम किया है। सब कुछ अुनकूल रहा तो अमेरिका के 245 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में भारतीय मूल की कमला हैरिस उपराश्ट्रपति बन सकती हैं और ट्रम्प की किस्मत यदि कोरोना के इस दौर में उनके साथ नहीं रही तो कमला हैरिस के चिकने पथ पर बिडेन का भी भाग्य खुल जायेगा और 4 साल के लिए व्ह्ाइट हाऊस पर उनका कब्जा होगा। गौरतलब है कि डेमोक्रेटिक पार्टी ने कमला हैरिस को उपराश्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर अमेरिकी राश्ट्रपति के चुनाव को भी एक नया स्वरूप दे दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब उपराश्ट्रपति के लिए किसी भारतीय-अमेरिकी महिला को टिकट मिला है। हालांकि कमला हैरिस की मां भारतीय मूल की हैं जबकि उनकी पैदाइष विदेष की है और उनकी नानी तमिलनाडु की हैं। अमेरिका में इसके पहले उपराश्ट्रपति के लिए दो महिलाएं गेराल्डाइन फरेरो 1984 और सारा पालेन 2008 में इस पद के लिए चुनाव हार चुकी हैं। साल 2016 में हिलेरी क्लिंटन अमेरिका में पहली ऐसी महिला थी जिन्हें व्ह्ाइट हाऊस जाने का अवसर मिला था मगर वह डोनाल्ड ट्रम्प से चुनाव हार गयी थी और 45वें राश्ट्रपति के रूप में ट्रम्प की ताजपोषी हुई जो कोविड-19 के बीच पुनः सत्ता पाने के संघर्श में देखे जा सकते हैं। यहां एक खास बात यह है कि अमेरिका में अभी तक कोई महिला न तो राश्ट्रपति बनी है और न ही उपराश्ट्रपति। कमला हैरिस यदि चुनाव जीतती हैं तो कुछ हद तक इस मिथक को टूटते हुए देखा जा सकेगा। इस बार के चुनाव को काफी रोचक भी माना जा रहा है। माना तो यह भी जा रहा है कि कमला हैरिस और बिडेन की जोड़ी बराक ओबामा वाला जादू वापस ला सकती है। गौरतलब है कि बराक ओबामा 2008 से 2016 तक अमेरिका के राश्ट्रपति रहे हैं और भारत से सम्बंध प्रगाढ़ थे। हालांकि यह स्पश्ट नहीं है कि कमला हैरिस किस हद तक अष्वेत वोटों से बिडेन को फायदा पहुँचा पायेंगी मगर नस्लभेद के पुराने जिन्न से जूझते अमेरिकी राश्ट्रपति के चुनाव में इसके प्रभाव को कमतर आंकना सही नहीं होगा।

कमला हैरिस की उम्मीदवारी ट्रम्प को अखर रही है क्योंकि अष्वेत वोटों का ध्रुवीकरण अब डेमोक्रेटिक की ओर जा सकता है। यही कारण है कि स्थिति को भंापते हुए डोनाल्ड ट्रम्प ने हैरानी जताते हुए कहा कि बिडेन ने भारतीय मूल की सीनेटर हैरिस को उपराश्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना जबकि वह लगातार उनका अनादर करती रहीं। इस चयन पर उन्हें थोड़ा अचम्भा हो रहा है। यहां ट्रम्प ने हैरिस को अष्वेत के बजाय भारतीय मूल का कहकर अप्रत्यक्ष तौर पर एक संकुचित दृश्टिकोण देने का प्रयास किया है। हैरिस खुद को भारतीय मूल के रूप में देखती हैं या फिर अष्वेत इस पर भी अमेरिका का मतदाता विचार मंथन करेगा। वैसे अष्वेत के रूप में भी इन्हें बाकायदा मान्यता दी जा रही है। अमेरिका के राजनीतिक विष्लेशकों का मानना है कि हैरिस को अष्वेत उम्मीदवार के रूप में पेष किया जा रहा है ताकि अष्वेत आंदोलन के मौजूदा माहौल में बिडेन को जीत की ओर ले जाया जा सके। गौरतलब है कि अमेरिका में सैकड़ों वर्शों से नस्लभेद की जड़ें फैली हुई हैं। हाल ही में एक अष्वेत की गर्दन को एक ष्वेत पुलिस वाला तब तक दबाकर रखा जब तक उसके प्राण नहीं निकल गये। जिसके चलते पूरा अमेरिका अष्वेत हिंसक आंदोलन का षिकार हुआ था। हालांकि यह चिंगारी अभी पूरी तरह बुझी नहीं है। जाहिर है राश्ट्रपति चुनाव में यह भी एक नया गुल खिलायेगा। हैरिस का उपराश्ट्रपति बनने के बाद भारत के प्रति उनकी नीतियां अधिक लचीली न हो ऐसी कोई खास वजह नहीं दिखाई देती। मगर जम्मू-कष्मीर के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद वहां के हालात को काबू में करने के लिए पाबंदी लगाये जाने का हैरिस ने विरोध किया था। उन्होंने पाबंदियों को हटाने की मांग की और जब दिसम्बर 2019 में विदेष मंत्री एस जयषंकर ने भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल से मुलाकात नहीं की उसे लेकर भी वह हमलावर थी। इसके अलावा लोकतांत्रिक मूल्यों और धार्मिक एकता को लेकर वे काफी मुखर रही हैं। ऐसे में यह कह पाना कठिन है कि उनके उपराश्ट्रपति बनने से भारत को हर्श व गर्व कितना होगा। अगर कमला हैरिस और बिडेन की जोड़ी 2020 चुनाव में जीत दर्ज करती है तो कयास यह भी लगाये जा रहे हैं कि साल 2024 के राश्ट्रपति चुनाव में हैरिस की दावेदारी मजबूत हो जायेगी। फिलहाल हैरिस ने चुनाव प्रचार में बाइडेन की तुलना में अधिक उदारवादी कदम उठाये हैं चाहे वह हेल्थ केयर हो या इमीग्रेषन। 

वैसे भारतीय मूल के अमेरिकी रिपब्लिकन की बजाय डेमोक्रेट की ओर झुकाव रखते हैं। बिडेन ने स्पश्ट किया है कि यदि वे चुनाव जीतते हैं तो भारतीय आईटी पेषेवर में सबसे अधिक मांग वाले एच-1 बी वीजा पर लगायी गयी स्थायी रोक हटा देंगे। गौरतलब है कि ट्रम्प ने इस वीजा को निलम्बित कर रखा है। भारत में अमेरिकी राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा के द्वारा यह पता चला था कि यदि बिडेन राश्ट्रपति बनते हैं तो संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में स्थायी सीट दिलाने का प्रयास करेंगे, इसके अलावा सपने देखने वालों की सुरक्षा का काम करने का वादा, मुस्लिम यात्रा प्रतिबंध को रद्द करने और संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल्यों और ऐतिहासिक नेतृत्व के अनुरूप षरणार्थी प्रवेष को तुरन्त बहाल करने की जो बात कही है जो अष्वेत वोटरों को लुभा सकता है। हर साल अमेरिका 1 लाख 40 हजार ग्रीन कार्ड देता है। वर्तमान में 10 लाख विदेषी नागरिकों का बैकलाॅग है। ऐसे में बिडेन को यह मुद्दा भी वोट दे सकता है। 44वें राश्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराश्ट्रपति बिडेन दुनिया में उतनी बड़ी पहचान नहीं रखते जितना की ट्रम्प। ट्रम्प की नीति और नजरिया भारत के साथ कहीं अधिक सकारात्मक देखा जा सकता है। मगर चीन और इरान जैसे देष को वो फूटी आंख नहीं भाते। ऐसे में वैष्विक दृश्टिकोण से देखें तो ट्रम्प के दुष्मन दुनिया में ज्यादा हैं दोस्त कम। हालांकि मतदान अमेरिकी करेंगे मगर चुनाव में पूरी दुनिया दिखेगी। कमला हैरिस में वे सारी खूबियां हैं जो चुनाव में पार्टी को फायदा करवा सकती हैं। वो एक प्रवासी परिवार से हैं, अष्वेत महिला हैं, राश्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान है, एक बड़े राज्य और देष में भी उन्हें नेतृत्व का अनुभव है। इतना ही नहीं बातौर कमेन्टेटर भी उन्हें लोग जानते हैं। प्रगतिषील मतदाताओं पर इन तमाम योग्यताओं का असर पड़ेगा जरूर। 55 वर्शीय कमला हैरिस ट्रम्प की काट भी खोजने में माहिर बतायी जा रही है। एक खास बात यह भी रही है कि जब 2016 में ट्रम्प राश्ट्रपति बने थे तब यह सबसे उम्र दराज राश्ट्रपति कहलाये थे। यदि इस बार पासा 77 वर्शीय बिडेन के पक्ष में होता है तो उम्र दराज वाला खिताब इनके हिस्से में चला जायेगा। 

वैसे तो भारत किसी दूसरे देष के चुनाव में कभी कोई मतलब नहीं रखता है मगर अमेरिका में राश्ट्रपति का चुनाव हो तो कूटनीतिक और रणनीतिक तौर पर नजर सबकी रहती है। अबकी बार ट्रम्प सरकार की बात मोदी ह्यूस्टन में कहा था। वैसे मोदी और ट्रम्प के सम्बंध हर लिहाज़ से ठीक हैं। इसके पहले ओबामा से भी सम्बंध अच्छे थे। जाॅर्ज डब्ल्यू बुष से पहले बिल क्लिंटन से भी सम्बंध भारत के बहुत अच्छे थे। 1980 के दषक में या फिर 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद दोनों देषों के सम्बंध खराब थे को छोड़कर देखा जाय तो दोनों के बीच सम्बंध हमेषा ठीक-ठाक रहे हैं। अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी से चुने गये राश्ट्रपति से सम्बंध रिपब्लिकन की तुलना में अधिक प्रगाढ़ देखे जा सकते हैं मगर मोदी षासनकाल में ट्रम्प से भी प्रगाढ़ दोस्ती इस मिथक को भी तोड़ दिया अब कोई भी हो मित्रता अच्छी रहती है। गौरतलब है भारतीय मूल के वोट को संतुलित करने के लिए ट्रम्प सितम्बर 2019 में भी कोषिष कर चुके हैं और फरवरी 2020 में भारत का दौरा कर के इसे पुख्ता बनाने का प्रयास भी मान सकते हैं। मगर कमला हैरिस के चलते स्थिति कुछ बदलते हुए दिखती है। गौरतलब है भारत के प्रधानमंत्री मोदी सितम्बर 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन में हाऊडी मोदी कार्यक्रम का एक दृश्टिकोण भारतीय मूल के लोगों का वोट भी था। गौरतलब है कि ह्यूस्टन में भारी तादाद में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। 2016 के चुनाव में इन्होंने ट्रम्प के विरूद्ध मतदान किया था। कमला हैरिस के मैदान में उतारने से एक बार फिर ट्रम्प को यहां पार पाना मुष्किल होगा। फिलहाल अमेरिकी राश्ट्रपति के चुनाव में षायद ऐसा पहली बार हो रहा है जब उपराश्ट्रपति की उम्मीदवारी के चलते राश्ट्रपति के लिए चुनाव आसान हो रहा है। अमेरिका में उम्मीदवार अपनी-अपनी ओर से पाॅलिसी पेपर जारी करते हैं। बिडेन के पाॅलिसी पेपर की पड़ताल बताती है कि वे मुस्लिम बाहुल्य देषों, चीन के उइगर मुसलमानों और कष्मीर के स्थानीय लोगों के अधिकारों के पुनःस्थापन को लेकर चिंता जता रहे हैं।

उपरोक्त बिन्दु यह अनुपातिक तौर पर स्पश्ट कर रहे हैं कि अमेरिका में हवा किसी की रहे भारत से सम्बंध प्रगाढ़ ही रहेंगे। ट्रम्प प्रषासन ने पिछले चार वर्शों में जो भी कदम उठाये वह अपने व्यक्तित्व के अनुपात में कईयों के लिए अखरने वाले थे। अमेरिका प्रथम की नीति पर चलते हुए कई देषों से सम्बंध तोड़ने और दुष्मनी के चलते अमेरिका में ही उनके विरोधी पनपे। चीन और ईरान से सीधे दो-दो हाथ करना, रूस से 1987 में की गयी डील को समाप्त करना, मैक्सिको से लेकर कनाडा और आॅस्ट्रेलिया यहां तक कि खाड़ी के देषों और वेनेजुएला जैसे देष के लिए भी काफी हद तक चुनौती रही। उत्तर कोरिया के साथ तो दुष्मनी जग जाहिर है। पाकिस्तान को ट्रम्प ने कई मामले में फटकार लगायी तो भारत के साथ मित्रता को कायम रखा। इसका फायदा वोट के रूप में कितना होगा कह पाना मुष्किल है। यदि बिडेन चुनाव जीतते हैं तो भारत को कई मामलों में राहत मिलेगी। संरचनात्मक तौर पर सम्बंध और स्थिर होंगे साथ ही व्यापार घाटे में संतुलन, ईरान से तेल न लेने पर प्रतिबंध के साथ तरजीही का दर्जा की बहाली सहित कई अन्य बातों का निपटारा सम्भव है। लेकिन डर यह भी है कि डेमोक्रेटिक पार्टी का वामपंथी धड़ा नागरिकता संषोधन कानून और जम्मू-कष्मीर के अनुच्छेद 370 को लेकर मुखर आलोचक हो सकता है। जहां तक ट्रम्प का सवाल है भारत को लेकर कुछ बातों के अलावा ऐसी कोई विपदा इस सरकार ने नहीं खड़ी की। ऐसे में इनके जीतने से भी भारत अपनी गति में रहेगा। बल्कि चीन और दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी दखल और प्रभाव हिन्द महासागर को संतुलित करने के काम आयेगा। साथ ही दुनिया में कुछ खास परिवर्तन न होकर ट्रम्प अपने पिछले 4 साल के अनुभव और मुनाफे को भुनाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सम्बंध को व्यापकता मिल सकती है और जो खोया है उसे पाने के लिए एक अकुलाहट भी हो सकती है। ट्रम्प जानते हैं कि उन्होंने 4 सालों में क्या किया है और आगे उन्हें क्या करना है। कोरोना वायरस का संकट, चीन के साथ ट्रेड वाॅर, पुलिस रिफाॅर्म पर ट्रम्प का आक्रामक रवैया और रूस के साथ कोल्ड वाॅर तथा रूस का अमेरिकी चुनाव में दखल जैसे मुद्दे भी यहां के चुनावी फिजा में तैरेंगे। फिलहाल अमेरिकी राश्ट्रपति का चुनाव का ऊँट किसी भी करवट बैठे भारत को अधिक चिंता करने की आवष्यकता नहीं है बल्कि कोई भी आये सम्बंध और कैसे प्रगाढ़ हो इसका चिंतन जरूर करना चाहिए।


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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