Friday, September 25, 2020

तीन दशक पुराना समावेशी विकास और सुशासन

कोरोना ने बीते 6 माह में भारत की अर्थव्यवस्था जिस प्रकार मुरझाई है वह समावेषी विकास की वेषभूशा को चकनाचूर कर दिया है। बेइंतहा बेरोज़गारी और बेषुमार बीमारी इस बात का परिचायक है कि फिर से एक बार करवट आसान नहीं होगा। 8वीं पंचवर्शीय योजना से चला समावेषी विकास और तभी से यात्रा पर निकला सुषासन एक दूसरे के साथी भी हैं और पूरक भी मगर बात अब कहीं की कहीं हो गयी है। वैसे 1952 के सामुदायिक विकास कार्यक्रम से ही समावेषी की कार्यषाला षुरू हो गयी थी और पांचवीं पंचवर्शीय योजना में जब गरीबी उन्मूलन की बात आयी तब एक बार फिर समावेषी भारत के जनमानस में समाने का प्रयास किया पर षायद बड़ी सोच जमीन पर उतरती ही नहीं या तो नीतियां ढ़ीली होती हैं या फिर उसे लागू करने वाले जनता को हल कर लेते हैं। कोरोना के इस काल खण्ड में तो समावेषी विकास के साथ सुषासन में दूरियां भी हैं और फासले भी मगर मोदी सरकार यह बात क्यों मानेगी वो तो यही कहेंगे कि अभी भी सब कुछ वैसा ही कर रहे हैं। अब थोड़ा सरकार के सुषासन की पड़ताल पर निकलते हैं। स्वतंत्रता दिवस के दिन अगस्त 2015 में प्रधानमंत्री मोदी सुषासन के लिए आईटी के व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया था तब उन्होंने कहा था कि ई-गवर्नेंस आसान, प्रभावी और आर्थिक गवर्नेंस भी है और इससे सुषासन का मार्ग प्रषस्त होता है। गौरतलब है कि सुषासन समावेषी विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया है। समावेषी विकास के लिए यह आवष्यक है कि लोक विकास की कुंजी सुषासन कहीं अधिक पारंगत हो। प्रषासन का तरीका परंपरागत न हो बल्कि ये नये ढांचों, पद्धतियों तथा कार्यक्रमों को अपनाने के लिए तैयार हो। आर्थिक पहलू मजबूत हों और सामाजिक दक्षता समृद्धि की ओर हों। 

समावेषी विकास पुख्ता किया जाय, रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ, षिक्षा और चिकित्सा जैसी तमाम बुनियादी आवष्यकताएं पूरी हों। तब सुषासन की भूमिका पुख्ता मानी जायेगी। सुषासन का षाब्दिक अभिप्राय एक ऐसी लोक प्रवर्धित अवधारणा जो जनता को सषक्त बनाये। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिष्चित करे। मोदी सरकार का दूसरा संस्करण 30 मई 2019 से षुरू हो गया। बजट के माध्यम से सुषासन की धार मजबूत करने की कोषिष की क्योंकि उसने इसके दायरे में समावेषी विकास को समेटने का प्रयास किया। दूसरी पारी में मोदी सरकार बुनियादी ढांचे पर सौ लाख करोड़ का निवेष, अन्नदाता को बजट में उचित स्थान देने, हर हाथ को काम देने के लिए स्टार्टअप और सूक्ष्म, मध्यम, लघु उद्योग पर जोर देने के अलावा नारी सषक्तीकरण, जनसंख्या नियोजन और गरीबी उन्मूलन की दिषा में कई कदम उठाने की बात कही गयी मगर अब ऐसा होते नहीं दिखता है। क्योंकि इस समय देष में गाॅड आॅफ एक्ट जो लागू है। यह कहना सही है कि डिजिटल गवर्नेंस का दौर बढ़ा है पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि नौकरषाही में पूरी तरह पारदर्षिता आ गयी है। संवेदनषीलता, पारदर्षिता और प्रभावषीलता सुषासन के उपकरण हैं। जिसके माध्यम से लोक कल्याण को गति दी जाती है। दषकों पहले कल्याणकारी व्यवस्था के चलते नौकरषाही का आकार बड़ा कर दिया गया था और विस्तार भी कुछ अनावष्यक हो गया था। 1991 में उदारीकरण के फलस्वरूप प्रषासन के आकार का सीमित किया जाना और बाजार की भूमिका को बढ़ावा देना सुषासन की राह में उठाया गया बड़ा कदम है। इसी दौर में वैष्विकरण के चलते दुनिया अमूल-चूल परिवर्तन की ओर थी। विष्व की अर्थव्यवस्थाएं और प्रषासन अन्र्तसम्बन्धित होने लगे जिसके चलते सुषासन के मूल्य और मायने भी उभरने लगे। 1992 की 8वीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास को लेकर आगे बढ़ी और सुषासन ने इसको राह दी। मोदी सरकार इन दिनों कई ऐसे कदम उठा रही है जो या तो निजीकरण की ओर जा रहे हैं या फिर असमंजस की ओर। अर्थव्यवस्था सम्भल नहीं रही है और कोरोना सम्भालने नहीं दे रहा है। विष्व बैंक के अनुसार सुषासन एक आर्थिक अवधारणा है और इसमें आर्थिक न्याय किये बगैर इसकी खुराक पूरी नहीं की जा सकती। 

सुषासन की कसौटी पर मोदी सरकार कितनी खरी है इसका अंदाजा किसानों के विकास और युवाओं के रोज़गार के स्तर से पता किया जा सकता है। किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 है पर कटाक्ष यह है कि किसानों की पहले आय कितनी है यह सरकार को षायद नहीं पता है। बजट में किसानों के कल्याण के लिए गम्भीरता दिखती है। गांव, गरीब और किसानों के लिए कई प्रावधान हैं जो समावेषी विकास के लिए जरूरी भी हैं। 60 फीसदी से अधिक किसान अभी भी कई बुनियादी समस्या से जूझ रहे हैं। अब हाल यह है कि 23 फीसद ऋणात्मक में जा चुकी जीडीपी को देखें तो किसानों ने ही भारत की लाज बचा रखी है। बेरोज़गार थाली और ताली पीट रहे हैं, दीप प्रज्जवलन कर रहे हैं ये उसी अंदाज में विरोध कर रहे हैं जैसे मोदी कोरोना को भगाने के लिए यह सब कर रहे थे। मई में 20 लाख करोड़ का आर्थिक राहत पैकेज कितनों को फायदा किया अभी इसका हिसाब मिलना मुष्किल है। वैसे हिसाब तो पिछले 6 साल के कार्यकाल का षायद ही मिल पाये। हालांकि सरकार ही पूरी तरह दोशी नहीं है मगर बीते 8 तिमाही से लगातार जारी आर्थिक मंदी पर सरकार के कान में जूं क्यों नहीं रेंगी। कोरोना तो 6 महीने से आया है मन्दी तो 2 साल से चल रही है, बेरोज़गारी दषकों पुरानी है। किसानों की हालत भी युगों से खराब चल रही है। सरकार इसलिए दोशी है क्योंकि जो कहा उसको सही समय पर न पूरा किया और न ही मजबूत आर्थिक कदम उठाये। षायद यही कारण है कि 6 माह के भीतर ही 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था का सपना पालने वाला भारत छिन्न-भिन्न हो गया है। 

सुषासन की क्षमताओं को लेकर ढ़ेर सारी आषायें भी हैं। काॅरपोरेट सेक्टर, उद्योग, जल संरक्षण, जनसंख्या नियोजन, पर्यावरण संरक्षण भी बजट में बाकायदा स्थान लिये हुए है। असल में सुषासन लोक विकास की कुंजी है। जो मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाओं को जन केन्द्रित बनाने के लिए उकसाती हैं। एक नये डिज़ाइन और सिंगल विंडो संस्कृति में यह व्यवस्था को तब्दील करती है। लगभग तीन दषक से देष सुषासन की राह पर है और इतने ही समय से समावेषी विकास की जद्दोजहद में लगा है। एक अच्छी सरकार और प्रषासन लोक कल्याण की थाती होती है और सभी तक इसकी पहुंच समावेषी विकास की प्राप्ति है। इसके लिए षासन को सुषासन में तब्दील होना पड़ता है। मोदी सरकार स्थिति को देखते हुए सुषासन को संदर्भयुक्त बनाने की फिराक में अपनी चिंता दिखाई। 2014 से इसे न केवल सषक्त करने का प्रयास किया बल्कि इसकी भूमिका को भी लोगों की ओर झुकाया। वर्तमान भारत डिजिटल गवर्नेंस के दौर में है। नवीन लोक प्रबंध की प्रणाली से संचालित हो रहा है। सब कुछ आॅनलाइन करने का प्रयास हो रहा है। ई-गवर्नेंस, ई-याचिका, ई-सुविधा, ई-सब्सिडी आदि समेत कई व्यवस्थाएं आॅनलाइन कर दी गयी हैं। जिससे कुछ हद तक भ्रश्टाचार रोकने में और कार्य की तीव्रता में बढ़ोत्तरी हुई है। फलस्वरूप समावेषी विकास की वृद्धि दर भी सम्भव हुई है। साल 2022 तक सबको मकान देने का मनसूबा रखने वाली मोदी सरकार अभी भी कई मामलों में संघर्श करते दिख रही है। मौजूदा आर्थिक हालत बेहतर नहीं है, जीएसटी के चलते तय लक्ष्य से राजस्व कम आ रहा है। कोरोना ने सब पर प्रहार किया है प्रत्यक्ष करदाता की बढ़ोत्तरी हुई पर उगाही में दिक्कत है। राजकोशीय घाटा न बढ़े इसकी चुनौती से भी सरकार जूझ रही है। इस समय तो यह भी बेकाबू है फिलहाल वर्तमान में स्वयं को कोरोना से बचा ले तो यही उसका विकास है। दो रोटी गुजारा के लिए मिल जाये तो यही उसका सुषासन है। दो टूक यह भी है कि सुषासन जितना सषक्त होगा समावेषी विकास उतना मजबूत। अब समावेषी विकास के साथ सुषासन भी पेटरी है इसका सबसे बड़ा प्रहार आर्थिक के चलते हैं। 


सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

डी-25, नेहरू काॅलोनी,

सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,

देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)

फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com


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