Sunday, August 23, 2020

ई-शिक्षा के लिए वरदान है ई-गवर्नेंस

कोविड-19 के इस काल खण्ड में षिक्षा बहुत बड़ी मुष्किल का सामना कर रही है। इससे निपटने के लिए स्कूल, काॅलेज और विष्वविद्यालयों ने डिजिटल अर्थात् ई-षिक्षा का रास्ता चुना है। आॅनलाइन कक्षा के साथ परीक्षा के सफर में कई अवरोध हैं मगर ई-गवर्नेंस की उपस्थिति से इसमें व्याप्त सम्भावनाओं को बल भी मिला है। दषकों के प्रयास के बाद जब 2006 में ई-गवर्नेंस आंदोलन मूर्त रूप लिया था जिसकी बनावट और जमावट ने ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत सहित कई ऐसे ‘ई‘ को गहित मिली जो सुषासन को ऊँचाई देता है। इसी का एक कदम ई-षिक्षा को देखा जा सकता है। हालांकि ई-षिक्षा दुनिया में नई विधा नहीं है मगर वर्तमान में इसका विस्तार व्यापक रूप ले लिया है। स्टडी एट होम की अवधारणा से युक्त ई-षिक्षा एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरी है। कक्षा से लेकर परीक्षा तक इसकी उपादेयता देखी जा सकती है। कोरोना वायरस का प्रभाव हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर न पड़े ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता और न ही षिक्षा व्यवस्था के पहले जैसे होने की स्थिति दिखती है। बहुत से लोग जब पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पायेंगे कि उनके जीवन की कई चीजें बदल गयी हैं। स्कूल का विद्यार्थी हो या विष्वविद्यालय का षोधार्थी या फिर सिविल सेवा परीक्षा का प्रतियोगी सभी मोबाइल स्टडी की जकड़न में आ चुके हैं। यह समय की मांग है या मजबूरी इस पर अभी पूरा चिंतन आना बाकी है। गौरतलब है कि भारत समेत दुनिया के अनेक देष और जाने-माने षिक्षण संस्थाएं क्लासरूम टीचिंग से डिजिटल षिक्षा की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुकी हैं। दुनिया समेत भारत का षैक्षणिक वातावरण नेटवर्क और आॅनलाइन पर इन दिनों टिक गया है। यूनेस्को की माने तो 14 अप्रैल 2020 तक जब भारत का पहला 21 दिन का लाॅकडाउन समाप्त हुआ था, कोरोना के चलते डेढ़ अरब से अधिक छात्र-छात्राओं की षिक्षा प्रभावित हो चुकी थी। रूस, आॅस्ट्रेलिया, कानाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी समेत स्पेन तथा ग्रीनलैण्ड व भारत आदि देष लम्बे समय तक लाॅकडाउन में रहे जिसका सीधा और प्रत्यक्ष प्रभाव षिक्षा पर भी देखा जा सकता है। 136 करोड़ जनसंख्या वाला भारत में लाॅकडाउन के चलते 32 करोड़ छात्रों का पठन-पाठन प्रभावित हुआ जबकि आंकड़े चीन में 28 करोड़ ईरान में 2 करोड़ तथा इटली व स्पेन जैसे देषों में एक-एक करोड़ प्रभावित होने का इषारा कर रहे हैं।

जब कभी देष में ई-गवर्नेंस की बात होती थी तब नये डिजाइन और सिंगल विंडो संस्कृति प्रखर होती थी। नागरिक केन्द्रित व्यवस्था के लिए सुषासन प्राप्त करना एक लम्बे समय की दरकार रही है। ऐसे में ई-गवर्नेंस इसका बहुत बड़ा आधार है। ई-गवर्नेंस एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी जिसके चलते नौकरषाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त व्यवस्था की कठिनाईयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाय तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की बेहतर आपूर्ति, प्रषासन में पारदर्षिता की वृद्धि के साथ ही सुषासन प्रक्रिया में व्यापक नागरिक भागीदारी मन-माफिक पाने हेतु ई-गवर्नेंस कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। ई-गवर्नेंस स्मार्ट सरकार का भी एक ताना-बाना है। जब गवर्नेंस मजबूत आधार लेता है तब उस पर कई आयाम स्थान पाते हैं। ई-गवर्नेंस ने ही स्मार्ट एजूकेषन और ई-षिक्षा को रास्ता दिया है जो षिक्षा में सुषासन का एक चैड़ा रास्ता बनाता है जिसकी यात्रा 5 दषक पुरानी है। भारत सरकार ने इलैक्ट्राॅनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में राश्ट्रीय सूचना केन्द्र के गठन के साथ ई-षासन की दिषा में कदम रख दिया गया था। जिसका मुखर पक्ष जुलाई 1991 के उदारीकरण के बाद दिखाई देता है। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के प्रकटीकरण ने दक्षता, पारदर्षिता और जवाबदेहिता को सुनिष्चित कर दिया। प्रषासनिक प्रक्रियाओं को न केवल सरल किया बल्कि नीति-निर्माण से लेकर नीति क्रियान्वयन तक पारदर्षिता और जवाबदेहिता को फलक पर ला दिया। फिलहाल किसी भी परिघटना को बेहतर परिणाम में परिवर्तित करने का ई-गवर्नेंस एक आधार बन गया है और इसी के चलते सिंगल विंडो कल्चर की प्रासंगिता देखी जा सकती है जो कार्य सरलीकरण का परिचायक है। ई-षिक्षा को बढ़ावा देने में आज इसकी भूमिका बढ़े हुए कद के साथ देखी जा सकती है। एक दर्जन षिक्षा से सम्बन्धित चैनल का निर्माण किया जाना पठन-पाठन को सषक्त बनाने की दिषा में बड़ा कदम है। जबकि करोड़ों छात्र-छात्राएं राश्ट्रीय छात्रवृत्ति हेतु ई-पोर्टल से बरसों पहले ही जुड़ चुके हैं। बीते तीन सालों में 5 हजार करोड़ की राषि इसके माध्यम से भुगतान भी की जा चुकी है। हाल ही में किसान सम्मान योजना के तहत भी करोड़ों किसानों को उनके खाते में पैसा भेजने का माध्यम जो ई-बैंकिंग का काम कर रहा है। डिजिटली साक्षरता को भी खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। रोज़गार उद्यमिता के लिए भी डिजिटल इण्डिया को सकारात्मक दृश्टि से देखा गया। ये भी ई-गवर्नेंस और गुड गवर्नेंस का विस्तार है। 

ई-लर्निंग, ई-षिक्षा, ई-बैंकिंग या किसी भी प्रकार की ई-सुविधा का सीधा सरोकार इंटरनेट कनेक्टिविटी से है जो मोबाइल, कम्प्यूटर और लैपटाॅप आदि से युक्त विधा है। भारत एक विकासषील देष है यहां साइबरी जाल अभी न पूरी तरह है और न सब की पहुंच में है। भारत में साढे छः लाख गांव, ढ़ाई लाख पंचायतें और 676 जिले हैं जिसमें व्यवस्था और नागरिक दोनों की दृश्टि से व्यापक आर्थिक असमानता है। फलस्वरूप सभी की पहुंच इलैक्ट्राॅनिक विधा तक अभी सम्भव नहीं हुई है। ऐसे में ई-षिक्षा बड़े और मझोले षहर तक सीमित है। आॅडिट एण्ड मार्केटिंग की षीर्श एजेंसी केपीएमजी और गूगल ने भारत में आॅनलाइन षिक्षा 2021 षीर्शक से एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें 2016 से 2021 की अवधि के बीच ई-षिक्षा कारोबार 8 गुना वृद्धि करने की बात है। 2016 में यह 25 करोड़ डाॅलर का था और 2021 में 2 अरब डाॅलर की सम्भावना बताई गयी है। फिलहाल देष के हजार विष्वविद्यालय और 40 हजार महाविद्यालय में 4 करोड़ विद्यार्थी हैं। 10वीं 12वीं कक्षाओं में अलग-अलग बोर्डों को मिलाकर करोड़ों में छात्र हैं। इन्हें देखते हुए इंटरनेट षिक्षा यानि ई-षिक्षा के लाभ और कारोबार को समझा जा सकता है। मगर आने वाले वर्शोे में यह सभी तक तभी पहुंच बना पायेगा जब जब इंटरनेट और बिजली से भारत का कोना-कोना युक्त होगा। अमेरिका में डेढ़ दषक पहले साल 2006 में ई-षिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ और 2014 आते-आते यहां उच्च षिक्षा में ई-षिक्षा के रूप में बड़े पैमाने पर विकसित हुआ। गौरतलब है 33 करोड़ की जनसंख्या वाला अमेरिका कोरोना की चपेट में दुनिया के किसी भी देष से सर्वाधिक पीड़ित वाला देष है और यहां की षिक्षण संस्थाएं एक साल के लिए बन्द कर दी गयी हैं। ऐसे में ई-षिक्षा की प्रासंगिकता यहां तेजी से विस्तार ले चुकी है। इसका सबसे बड़ा फायदा इसलिए सम्भव हो रहा है क्योंकि यहां नेटवर्क, इंटरनेट कनेक्टिविटी कमोबेष सभी की पहुंच में है। भारत में ई-षिक्षा व्यापक सम्भावनाओं से भरा हुआ है। कोरोना के इस दौर में इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर कार्यों में गति आयी है। मगर समस्या यह है कि हर चैथा व्यक्ति यहां गरीबी रेखा के नीचे है ऐसे में आर्थिक संकट के चलते उसे इंटरनेट से जोड़ पाना मुष्किल हो रहा है। 2017 तक भारत में केवल 34 प्रतिषत आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती थी। वर्तमान में यह आंकड़ा 55 करोड़ पार कर गया है और 2025 तक यह 90 करोड़ हो जायेगा। 

बीते 29 जुलाई को नई षिक्षा नीति 2020 का पर्दापण भी हो चुका है हालांकि अभी इसमें संसद की सहमति समेत राश्ट्रपति की अन्तिम संस्तुति बाकी है। नई षिक्षा नीति को आने वाले बरसों में सषक्त सम्भावना के रूप में देखा जा रहा है। देष की प्रगति की कुंजी यदि सुषासन है तो उसमें षामिल विभिन्न आयाम उसके उपकरण हैं जिसमें षिक्षा प्रमुख रही है। ई-षिक्षा से लेकर ई-व्यवस्था ई-गवर्नेंस का एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी कवायद गुड गवर्नेंस है। सुषासन लोक सषक्तिकरण की एक अवधारणा है भारत में उदारीकरण के बाद यह परिलक्षित हुई। जबकि इंग्लैण्ड दुनिया का पहला देष है जिसने 1992 में इसे अपनाया। विष्व बैंक की इस आर्थिक अवधारणा का सीधा आषय समावेषी विकास से है जिस मामले में भारत अभी पीछे है। हालांकि 1992-97 की 8वीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास पर ही टिकी थी। फिलहाल ई-गवर्नेंस के चलते न केवल समावेषी विकास को प्राप्त किया जा सकता है बल्कि आत्मनिर्भर भारत की कोषिष को भी मजबूती मिल सकती है। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है। जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम षासन, सुषासन का परिप्रेक्ष्य है। जहां नैतिकता, जवाबदेही, उत्तरदायित्व की भावना के साथ संवेदनषीलता को बल मिलता है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है हालांकि इन दिनों यह कई कठिनाईयों से गुजर रही है। मोबाइल षासन का दौर भारत में देखा जा सकता है और इसी के चलते ई-व्यवस्था की बाढ़ आई है और ई-षिक्षा को भी बल मिल रहा है। चूंकि कोरोना जैसे संकट के लिए षायद ही कोई देष तैयार रहा हो ऐसे में जहां ई-व्यवस्थाएं पहले से व्यापकता लिऐ रही उन्हें काफी मदद मिल रही है। भारत का षानदार आईटी उद्योग डिजिटलीकरण को जिस प्रकार से आगे बढ़ाया है उसी ने ई-गवर्नेंस के माध्यम से गुड गवर्नेंस का भी नक्षा बदला है। ई-गवर्नेंस के कारण ही नौकरषाही का कठोर ढांचा नरम हुआ है और स्कूल, काॅलेज और विष्वविद्यालय की बन्दी के दौर में ई-षिक्षा से लोगों को जोड़ने का काम किया है। फिलहाल ई-गवर्नेंस का विस्तार ई-षिक्षा के लिए वरदान हो सकता है और न्यू इण्डिया के लिए भी कारगर सिद्ध होगा। भारत बीते डेढ़ दषकों से ई-लोकतंत्र के ताना-बाना से भी युक्त है। जाहिर है ई-षासन, ई-प्रषासन और ई-व्यवस्था जिस अनुपात में गति लेगी उसी अनुपात में षिक्षा, स्वास्थ व तमाम सुविधाएं प्रसार करेंगी। 




डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल:sushilksingh589@gmail.com


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