भारत में 85 फीसद से अधिक खिलौने चीन से आते हैं। इसके अलावा श्रीलंका, मलेषिया, जर्मनी और हांगकांग जैसे देषों से भी खिलौने आयात किये जाते हैं। ऐसे में चीन समेत अन्य देषों से निर्भरता हटाने और लोकल को वोकल करने की जो बात खिलौना उद्योग में कही जा रही है उसमें अवसर तो बहुत हैं पर चुनौती भी कम नहीं है। एक मार्केट रिसर्च फर्म आईएमआरसी का सर्वे बताता है कि भारत में खिलौने का करीब 10 के करोड़ रूपए का कारोबार होता है जिसमें से संगठित खिलौना बाजार साढ़े तीन से साढ़े चार हजार करोड़ रूपए से अधिक मूल्य का है। अनुमान तो यह भी है कि 2024 तक भारत में खिलौने का कारोबार लगभग सवा तीन अरब डाॅलर के स्तर को पार कर सकता है। भारत की कुल आबादी में 21 फीसद की उम्र दो साल से कम है और अनुमान यह भी है कि साल 2022 तक 0 से 14 साल के उम्र के बीच वाले बच्चों की कुल आबादी 40 करोड़ होगी जो खिलौना कारोबार के लिए बड़े अवसर के लिए देख सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने में खिलौने कारोबार भी षामिल है। मन की बात कार्यक्रम में एक बार फिर आत्मनिर्भरता पर अच्छा खासा जोर दिया और स्पश्ट होता है कि देष के खिलौना बाजार में चीन के वर्चस्व को मोदी खत्म करना चाहते हैं। चीन भारत के बाजार में इतने बड़े पैमाने पर और इतने व्यापक स्तर पर कैसे जगह बना लिया इसे समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि हर बार यह बात उठती है कि चीन के सामान सस्ते होते हैं और भारत में कम आमदनी वालों के लिए यह खरीद की प्राथमिकता में रहते हैं।
अगर पूर्ववर्ती सरकारों को इस बात के लिए दोश दिया जाय कि उनकी नीतियां इतनी उदासीन थी कि संगठित खिलौना बाजार में 80 फीसद से अधिक भारत चीन के आयात पर निर्भर हो गया तो यह सवाल भी जिन्दा होगा कि 6 साल से मोदी सरकार क्या कर रही थी। फरवरी 2020 में आयात षुल्क में 2 फीसद की वृद्धि की गयी थी लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि खिलौना आयात लगातार जारी रहा। देखा जाय तो खिलौना उद्योग के मामले में देष करीब 15 सौ कम्पनियां संगठित हैं और इसके दो गुना से अधिक असंगठित क्षेत्र भी हैं। इतनी बड़ी तादाद में कम्पनी होने के बावजूद ये खिलौना के कुल मांग की तुलना में 30 फीसद की ही पूर्ति कर पाती है। बाकी के लिए दूसरे देषों पर निर्भर रहते हैं। एसोचेम के एक अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 5 सालों में 40 प्रतिषत खिलौना बनाने वाली भारतीय कम्पनी बंद हो चुकी हैं और 20 फीसद बंद होने के कगार पर है। बीते 30 अगस्त को मोदी मन की बात में यह बता रहे थे कि ग्लोबल टाॅय इण्डस्ट्री 7 लाख करोड़ रूपए से भी अधिक की है लेकिन भारत का हिस्सा इसमें बहुत कम है। साफ है कि जिस देष में करोड़ों बच्चे खिलौने की उम्र वाले हों वहां सस्ता और अच्छा खिलौने के लिए किसी दूसरे देष पर निर्भरता हो तो यह आत्मनिर्भर भारत के लिए एक चोट है। यदि विष्व बाजार में चीन को पछाड़ना है तो भारतीय खिलौना उद्योग को उससे बेहतर करना होगा। सवाल है कि क्या यह केवल कहने से हो जायेगा। प्रधानमंत्री की चिंता लाज़मी है पर जमीन पर कितना उतरती है असल सवाल तो इसका है। राजस्थान की कठपुतली विदेषी अक्सर ले जाते थे और विदेषों में डिमाण्ड भी थी यह इण्डोनेषिया, अफगानिस्तान, श्रीलंका जैेसे कइै देषों में मषहूर भी हैं। अब इसके कद्रदान तो देष में ही घट गये हैं। इसी तरह अन्यों की भी स्थिति देखी जा सकती है।
भारतीय बाजार चीनी खिलौनों से पटा है। भारतीय खिलौना उद्योग की कमजोरी यह है कि देष में ज्यादातर खिलौना बनाने वाली कम्पनियां छोटी व सूक्ष्म स्तर की हैं जिसके चलते कम मात्रा में खिलौनों का उत्पादन होता है। इन कम्पनियों को कच्चा माल की आपूर्ति में भी कठिनाई है साथ ही इससे जुड़ी आधुनिक तकनीक का भी आभाव है। कुषल श्रमिकों की कमी और इसके प्रति घटता आकर्शण भी इस उद्योग को पीछे धकेलने में काम कर रहा है। कारोबार की दृश्टि से भारतीय खिलौना बनाने वाली कम्पनियां चीनी खिलौनों के दबाव में कई चुनौतियां झेलती हैं। खिलौने नये-नये आइडिया पर भी टिके होते हैं साथ ही विज्ञापन की भी आवष्यकता पड़ती है इन दोनों मामलों में चीनी कम्पनियां आगे हैं। गिफ्ट का चलन भी चीनी बाजार को बढ़ा दिया है। चीनी खिलौनों की कीमत कम होती है, आधुनिक मषीनरी से तैयार किये जाते हैं यही कारण है कि उनमें वैरायटी भी अधिक है। सरकार जिस तरह से चीनी खिलौने के आयात पर लगाम लगाने का मन बनाया है वह चीन की आर्थिक स्थिति पर असर डाल सकता है मगर भारत में इसका फायदा तभी होगा जब यहां कि कम्पनियां सस्ता और अच्छा खिलौना उत्पादित करेंगी। वैसे गुणवत्ता में भारतीय उत्पाद के सामने चीनी सामान नहीं ठहरते और यही कारण है कि वे महंगे होते हैं। हर बच्चे के हाथ में दिखने वाला खिलौना केवल मनोरंजन का साधन नहीं है। खिलौना ऐसा हो जो व्यक्तित्व के निर्माण में भी मदद करे। जैसा कि मोदी मन की बात में कह रहे हैं कि आईये मिलकर खिलौना बनायें खेलेगा बच्चा तो संवरेगा देष।
वैसे पीएम मोदी खिलौना उद्योग के प्रोत्साहन से एक तीर से कई निषाने साध रहे हैं। एक खिलौने के मामले में आत्मनिर्भरता, वोकल फाॅर लोकल और मेक इन इण्डिया को बढ़ावा देना। दूसरे इस क्षेत्र से जुड़े रोज़गार का अवसर खोजना, तीसरा चीन के भारत में फैले कारोबार को समेटना। देष के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के मकसद से सरकार खिलौना समेत अन्य क्षेत्रों में भी उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन दे रहे हैं मगर कोरोना महामारी ने जिस तरीके से अर्थव्यवस्था को तार-तार किया है उसे देखते हुए कारोबार से लेकर रोज़गार तक चीजे आसानी से नहीं संभलेंगी। मोदी की मन की बात में सबकी बात सम्भव नहीं है क्योंकि देष का नागरिक चाहे असंगठित मजदूर हो या स्वरोजगार से जुड़ा व्यक्ति सभी सड़क पर हैं। ऐसे में उन्हें सक्रिय रूप से आत्मनिर्भर भारत के लिए गतिमान होने के लिए वित्त की आवष्यकता है जो केवल कर्ज के रूप में ही उपलब्ध है। स्थिति को देखते हुए बहुत बड़ा तबका कर्ज से भी तौबा करना चाहता है। हालांकि कोषिष में कोई हर्ज नहीं है पर बात पूरी तभी होगी जब सोच जमीन पर उतरेगी।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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