Wednesday, September 2, 2020

सस्ता व अच्छा स्वदेशी उत्पाद ही विकल्प

भारत और चीन का द्विपक्षीय व्यापार इन दिनों नई करवट ले रहा है। दोनों देषों के बीच सालाना 95 अरब डाॅलर से अधिक का व्यापार है और जो निहायत असंतुलन से भरा हुआ है। गौरतलब है कि भारत का कुल व्यापार घाटा कोरोना से पहले 105 अरब डाॅलर के मुकाबले आधे से अधिक घाटा केवल चीन से था। इसमें कोई दुविधा नहीं कि चीनी उत्पाद भारत में चैतरफा पैर पसार चुके हैं। बदली परिस्थिति में भारत सरकार चीन को झटका देने की फिराक में लगी हुई है। सम्भव है कि इससे चीन की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचेगी। फिलहाल आंकड़े इषारा करते हैं कि चीनी आयात में कमी आयी है। हालांकि इसके पीछे एक तो लाॅकडाउन के दौरान आयात-निर्यात का ठप्प हो जाना है दूसरा दोनों देषों की अर्थव्यवस्था का सिकुड़ना भी है। पड़ताल बताती है कि भारत खिलौने, बिजली उत्पाद, कार और मोटरसाइकिल के कल-पुर्जे सहित एंटीबायटिक दवाई व कम्प्यूटर और दूरसंचार से जुड़े विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादों व अन्य का आयात करता है जबकि कृशि उत्पाद, सूती कपड़ा, हस्त षिल्प, टेलीकाॅम सामग्री व अन्य पूंजीगत वस्तुएं निर्यात करता है। दिलचस्प यह है कि एक तरफ जनवरी से जून तक चीन से आयात में कमी हुई तो दूसरी ओर भारत से चीन भेजे गये माल में बढ़ात्तरी हुई तो क्या यह समझा जाय कि भारत और चीन के बीच व्यापार संतुलन कायम हो रहा है। बीते तीन महीने में भारत के जो कदम चीन को लेकर उठे हैं उससे भारत के पक्ष में मामूली बेहतरी आयी है। लगातार चीन को भारत की ओर से झटका दिया जा रहा है इसी में एक नया झटका चीनी खिलौने के आयात पर षिकंजा कसने को लेकर है। गौरतलब है कि चीन से 80 फीसदी खिलौने आयात होते हैं जिसकी कीमत करीब दो हजार करोड़ रूपए है जो घटिया और खराब भी होते हैं और मोदी सरकार इस पर भी रोक लगाकर चीन को एक और आर्थिक झटका देना चाहती है। वैसे एक हकीकत यह भी है कि चाइनीज़ खिलौने की लागत इतनी कम है कि कोई भी भारतीय कम्पनी चीन की प्रतियोगिता करने में असमर्थ है। इतना ही नहीं पिछले साल भारतीय खिलौने के केवल 20 प्रतिषत बाजार पर भारतीय कम्पनियों का अधिकार था जबकि बाकी 80 फीसद पर चीन और इटली का कब्जा। एसोचेम के एक अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 5 सालों में 40 प्रतिषत खिलौना बनाने वाली भारतीय कम्पनी बंद हो चुकी हैं और 20 फीसद बंद होने के कगार पर है। किस-किस आर्थिक मोर्चे चीनी को अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए और भारतीय स्वदेषी उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने होंगे यह षोध का विशय है। दीवाली में बिजली की लड़ियों से लेकर छोटे-से-छोटा प्लास्टिक का सामान से पूरे भारत का बाजार सजता है इसे उखाड़ना बड़ी कूबत के साथ सस्ते और भारतीय उत्पाद लाने ही होंगे। 

फिलहाल दोनों देषों के द्विपक्षीय व्यापार की पड़ताल बताती है कि अप्रैल में भारत ने चीन को लगभग दो अरब डाॅलर का सामान बेचा है जो जुलाई में बढ़कर साढ़े चार अरब डाॅलर हो गया। इस लिहाज़ से भारत दोगुने से अधिक निर्यात बीते 4 महीनों में किया है। यह एक अच्छा संकेत है बावजूद इसके यह समझना ठीक रहेगा कि चीन 13 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था वाला देष है जबकि भारत बामुष्किल तीन ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था रखता है। हालांकि 2024 तक 5 ट्रिलियन डाॅलर तक का लक्ष्य रखा है मिलेगा या नहीं यह कहना कठिन है। इसी क्रम में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका 19 ट्रिलियन डाॅलर से युक्त है। यह आंकड़े यह समझने में मदद कर सकते हैं कि भारत की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था कहां है। ऐसे में विदेषी सामानों पर यदि निर्भरता बनी रहती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को गति लेने में कठिनाई होगी। जाहिर है कि भारत किसी दूसरे देष पर निर्भर नहीं रहना चाहता। ऐसे में जरूरी है कि भारत आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़े। बीते मई में 20 लाख करोड़ रूपए के कोरोना राहत पैकेज के बीच आत्मनिर्भर भारत का बिगुल भी बजा था। जिसे जमीन पर उतारना आसान तो कतई नहीं है मगर कोषिष करने में कोई हर्ज नहीं है। हालांकि इसके पीछे दुनिया की अर्थव्यवस्था का तहस-नहस होना भी है। कोरोना काल में या उसके बाद कई देषों को अर्थव्यवस्था को मुख्य धारा में लाने में बरसों लगेंगे और इसमें भारत भी षामिल है। ऐसे में आत्मनिर्भरता की ओर मुड़ना मौजूदा परिस्थिति की देन भी है। एक ओर जहां 12 करोड़ से अधिक लोग एकाएक बेरोज़गार हो गये वहीं दूसरी ओर देष की अर्थव्यवस्था हर तरफ से बेपटरी हो गयी। जिसे देखते हुए आत्मनिर्भर भारत सरकार का अन्तिम विकल्प हो गया। यदि 5 साल पहले मेक इन इण्डिया पर बारीकी से गौर किया गया होता तो चीन जैसे सामानों का आयात कब का रोका जा चुका होता। आत्मनिर्भर भारत तो मुसीबत में उठाया गया कदम है जो अभी स्वयं मुसीबत में है।

भारत और चीन के बीच जिस तरीके से सीमा विवाद इन दिनों सामने आया उससे भारत की तल्खी लाज़मी है। एक तरफ कोरोना से संघर्श तो दूसरी तरफ चीन का नया बखेड़ा। देष में चीनी माल का बहिश्कार और सरकार के उठे कई कदम इसका प्रतिउत्तर था। भारत ने जब 59 चीनी मोबाइल एप्प बैन किये तो चीन ने इसे वल्र्ड ट्रेड आॅर्गेनाइजेषन के नियमों का उल्लंघन कहा। भारत ने आईटी एक्ट के 69ए सेक्षन के तहत इन एपों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था, इसी क्रम में प्रतिबंध का यह सिलसिला आगे बढ़ चुका है। इतना ही नहीं रेलवे के ठेके से लेकर भारत में उसकी अनेक आर्थिक संधियों एवं गतिविधियों पर फिलहाल रोक लगा कर चीन को भारत ने यह बताने का प्रयास किया कि जिस बाजार में अपना घटिया माल बेचकर मालामाल हो रहा है उसी के साथ बर्बरता नहीं चलेगी। गौरतलब है कि अमेरिका के बाद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है। 2019-20 में भारत और चीन के बीच पांच लाख 50 हजार करोड़ रूपए का व्यापार हुआ जो भारत-अमेरिका के बीच 5 लाख 85 हजार करोड़ रूपए की तुलना में थोड़ा ही कम है। भारत के कुल व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 11 फीसदी है। मिल रही लगातार आर्थिक चोट से अब इसमें गिरावट दिख रही है। मोदी सरकार का चीन पर वर्चुअल से लेकर एक्चुअल स्ट्राइक के मामले में खुलकर आना यह जताता है कि भारत की सीमा विवाद सहित भारतीय अर्थव्यवस्था में चीन की मनमानी नहीं चलेगी। उधर अमेरिका चीन को लेकर जिस तरीके से रूख लिये हुए है वह भी उसे लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। अमेरिका ने भी टिकटाॅक पर प्रतिबंध लगाते हुए आरोप लगाया कि यह निजी जानकारी को एकत्र कर रहा है। इसके अलावा भी कई कड़े कदम अमेरिका ने उठाये हैं। चीन में साम्यवादी षासन है, यहां लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है। चीन प्रथम की नीति ही उसका अंतिम लक्ष्य है, जिनपिंग ताउम्र के लिए राश्ट्रपति बना दिये गये हैं और मोदी 2024 तक के लिए प्रधानमंत्री हैं। चीन और भारत के बीच व्यापार की यात्रा दो दषक में जमीन से आसमान पर पहुंच गयी। गौरतलब है कि 2008 में भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर चीन बन गया था और व्यापार लगातार बढ़ता गया। स्थिति यहां तक थी कि कुल व्यापार का 70 फीसद पर चीन काबिज हो गया। जिस तरह चीन के सामान भारत में बिके क्या उसी तरह सस्ते सामान भारत में बनाये जा सकते हैं। भारत में गरीबी और इनकम की कमी ने चीनी सामानों के प्रति बड़ा आकर्शण पैदा कर दिया। यदि भारत को चीन के सामान सीमा के उस पार ही रोकना है तो भारत में चीन से बेहतर और सस्ता सामाना बनाना ही होगा। 


 डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं. 12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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