Wednesday, October 9, 2019

प्राथमिकताएं बदलने वाला अमेरिका

अमेरिका की यह फितरत रही है कि वह बाकियों के साथ रिष्ते अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर तय करता है और खत्म भी। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बीते सोमवार को व्हाइट हाउस में मुलाकात के दौरान कष्मीर पर मध्यस्थता वाली बात किसी के गले नहीं उतर रही। ट्रंप के अलावा सभी अमेरिकी और भारत समेत दुनिया के कई देष जो कष्मीर मामले को अच्छी तरह जानते हैं वे केवल इसे भारत-पाक के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा मानते हैं। ऐसे में अमेरिकी राश्ट्रपति जो कह रहे हैं वो किसे खुष करना चाहते हैं। असल में कष्मीर पर निषाना लगाकर ट्रंप अपनी सियासी रोटी सेंकने की फिराक में है। गौरतलब है कि अगले साल नवम्बर में अमेरिकी राश्ट्रपति का चुनाव होना है और ट्रंप वोट हथियाने के चलते अपने निजी एजेण्डे कि वे षान्ति के बड़े पैरोकार हैं को लेकर चतुराई भरा कदम उठा रहे हैं। जो ट्रंप पाकिस्तान को दक्षिण एषिया में षान्ति बहाली के लिए खतरा बता रहे थे आतंकियों का सरगना बता रहे थे, आतंकियों के नाम पर अरबों रूपया गटकने वाला समझ रहे थे और यहां तक कहा कि पाकिस्तान ने बरसों से अमेरिका को बेवकूफ बनाया और आतंकियों का कारोबार करता रहा। अब उसी पाकिस्तान को अपने प्राथमिकता के आधार पर नया रंग दे रहे हैं। 
अफगानिस्तान में 14 हजार अमेरिकी सेना वर्तमान में मौजूद है जिन पर सालाना खर्च 36 अरब डाॅलर होता है। ट्रंप अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से निकालना चाहते हैं और यह उनके चुनावी एजेण्डे में भी था। और ऐसा पाकिस्तान की मदद से ही सम्भव है। ऐसे में पाकिस्तान की तरफ उनकी नरमी बदली परिस्थिति का कारण भी है। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान इन दिनों अत्यंत खराब अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है और उस पर यह आरोप है कि वह दुनिया भर में कटोरा लेकर घूम रहा है। पाक विदेष मंत्री ने अमेरिकी दौरे में ही कहा है कि वे यहां कटोरा लेकर भीख मांगने नहीं आये हैं। इमरान खान यह भी कबूल कर चुके हैं कि अमेरिका के भीतर 30 - 40 आतंकी नेटवर्क और 30 से 40 हजार आतंकी हैं। बावजूद इसके अमेरिका कोई कठोर कदम उठायेगा स्थिति फिलहाल दिखती नहीं है। कुछ दिनों पहले अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश कुछ षर्तों के साथ पाकिस्तान को 6 अरब डाॅलर कर्ज देने के लिए तैयार हुआ। सम्भव है कि यह बिना अमेरिका की सहमति के नहीं हुआ होगा। अमेरिका तो अपने निजी हितों को साधने की फिराक में पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग  बढ़ाने पर भी विचार कर सकता है। चीन के साथ उसका ट्रेड वाॅर अभी थमा नहीं है और भारत द्वारा बढ़ाई गयी ड्यूटी साथ रूस से एस-400 की खरीदारी भी उसके गले नहीं उतर रही। यहां भी कूटनीतिक संतुलन के चलते पाक के साथ अच्छा रवैया रखने का उसके पास बड़ी वजह है। 
20 जनवरी 2017 से ट्रंप अमेरिका के राश्ट्रपति हैं और उनकी झूठ वाली छवि पूरी दुनिया में विख्यात है पर भारत को तो इन सबसे चैकन्ना रहना ही होगा। मुख्यतः कष्मीर मुद्दे पर ट्रंप के ऊल-जलूल बयान से तो बिल्कुल किनारा करने की जरूरत है। माना जा रहा है कि इस सितम्बर में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा हो सकती है। इसके अलावा भारत-अमेरिका के बीच टू प्लस टू की वार्ता भी आयोजित होने की सम्भावना है जाहिर है बयान का इस पर असर होगा। फिलहाल सवाल है कि क्या ट्रंप का बदला रूख इमरान के पक्ष में है। यदि अफगानिस्तान से सेना बाहर निकालने की यह ट्रंप की रणनीति है तो इसका खुलासा तभी होगा जब तालिबान के साथ षान्ति वार्ता सफल होगी। यदि ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका इस प्राथमिकता से बाहर निकल कर अपने नये निजी हित की खोज में आगे बढ़ेगा। स्पश्ट है कि पाक के प्रति उसका पहले गरम और अब नरम रूख उसकी अवसरवादिता है और अमेरिका फस्र्ट की पाॅलिसी भी है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल:sushilksingh589@gmail.com

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