Thursday, October 17, 2019

भारत-भूटान के रिश्ते पर नई परत

दक्षिण एषिया में भूटान एकलौता देष है जो चीन के झांसे में नहीं आया। इतना ही नहीं भूटान के साथ राजनयिक रिष्ता कायम करने की चीन की तमाम कोषिषें भी फिलहाल विफल हो चुकी हैं। साल 2017 के जून में डोकलाम में सड़क बनाने की चीन के इरादे पर पानी फेरते हुए भारत यह जता चुका है कि भूटान की रक्षा करने में वह पीछे नहीं हटेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूटान यात्रा से पहले विदेष मंत्री जयषंकर ने यहां की यात्रा की थी। भूटान के साथ भारत के प्राचीन सम्बंध इतिहास में बाकायदा खंगाले जा सकते है। खास यह है कि भूटान की नई पीढ़ी सम्भवतः उस चीन से आकर्शित है जिसमें अनेक पड़ोसियों को अपने साथ कर लिया है मगर भूटान एक ऐसा देष है जो भारत की ओर झुकाव रखता है और उसे जोड़े रखना भारत के लिए जरूरी है। इसी दिषा में मोदी की दो दिवसीय यात्रा को देखा जा सकता है। लोकतंत्र और षिक्षा दोनों का लक्ष्य होता है और दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। दोनों ही सर्वश्रेश्ठ को पाने में सहायता करते हैं मोदी का यह उद्बोधन भूटान के प्रतिश्ठित राॅयल विष्वविद्यालय में तब गूंजा जब वे वहां छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे। इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिक परम्पराओं के अनोखे गठबंधन पर भी मोदी ने अपने भाव प्रकट किये। गौरतलब है कि भूटान बौद्ध बहुल्य देष है और भारत में भी बड़ी मात्रा में बौद्ध रहते हैं। बावजूद इसके भारत को यह चिंता रही है कि भूटान पर जिस तरह चीन नजरें गड़ाये हुए है उसके चलते वह उसे कभी भी बरगला सकता है। हालांकि ऐसा होता दिखाई नहीं देता है पर भूटान को अपने साथ जोड़े रखने के लिए भारत को सक्रिय रहना पड़ता है। 
हिमालयी देष भूटान के साथ नये सिरे से बिजली खरीदने के समझौते के साथ डिजिटल दुनिया और वैष्विक कनेक्टिविटी का प्रधानमंत्री मोदी का वायदा भूटान की अर्थव्यवस्था को प्रगाढ़ करने का संकेत देती है। गौरतलब है कि भूटान भारत के सहयोग से बिजली पैदा करने में काफी आगे है और वही बिजली वह भारत को बेचता भी है जो उसके जीडीपी का 14 फीसदी है। दोनों देषों के बीच 10 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर हुए। जल विद्युत परियोजना रसोई गैस से लेकर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तक की समझ दोनों के बीच साफ-साफ दिखी। स्वच्छ ईंधन की आपूर्ति में वृद्धि, विदेषी मुद्रा विनिमय की व्यवस्था के अलावा विज्ञान और षिक्षा के क्षेत्र में सहयोग की बात भारत की ओर से कहीं अधिक प्रबल दिख रही है। वैसे देखा जाय तो भूटान के लिए ईंधन बेहद महत्वपूर्ण है। भारत ने आम नागरिकों की जरूरत पूरी करने के लिए रसोई गैस की आपूर्ति 7 सौ मेट्रिक टन से बढ़ा कर एक हजार मेट्रिक टन करने का वादा किया है। खास यह भी है कि भारत और भूटान के बीच वायदे पूरी तरह जमीन पर उतरते रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण दोनों देषों के बीच पारदर्षी समझ और विष्वास है। भारत और भूटान की दोस्ती को करीब लाने में 1949 में हुई संधि का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इसी संधि से भारत भूटान के लिए सुरक्षा कवच बन गया जो चीन को खटकती है। हालांकि 2007 में इसे लेकर संषोधन हुआ जिसमें यह जोड़ा गया कि जिन विदेषी मामलों में भारत सीधे तौर पर जुड़ा होगा उन्हीं में भूटान उसे सूचित करेगा। इतना ही नहीं इस संधि से दोनों देष अपने राश्ट्रीय हितों से सम्बंधित मुद्दों को एक-दूसरे के साथ घनिश्ठ सहयोग करना और राश्ट्रीय सुरक्षा और हितों के विरूद्ध अपने क्षेत्रों का उपयोग न करने के लिए प्रतिबद्ध भी हैं। यही चीन को नहीं पचता। भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा जब भी ऐसे पड़ोसी देषों में होती है तो द्विपक्षीय सम्बंध, उनका एक जायजा लेना और उसे मजबूत करने के लिए भी होती है। भूटान की यात्रा इस दृश्टि से भी देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भूटान को संचार, सार्वजनिक प्रसारण और आपदा प्रबंधन के लिए दक्षिण एषियाई उपग्रह का उपयोग करने की अनुमति देने हेतु भारत की अंतरिक्ष एजेंसी के द्वारा निर्मित 7 करोड़ रूपए के ग्राउंड स्टेषन का भी उद्घाटन किया। मोदी ने भूटान के लोगों को यह भी आष्वासन दिया है कि भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भूटान के विकास में सहयोग देगा। दोनों देष छोटे उपग्रह बनाने और अंतरिक्ष के मामले में सहयोग करेंगे। खास यह भी है कि भूटानी छात्रों और षोधकर्ताओं के लिए उन्हें भारतीय विष्वविद्यालयों से जोड़ने की घोशणा ने भी भूटान को एक नया आधार दिया है। हालांकि भूटान के छात्र भारतीय विष्वविद्यालय में लम्बे समय से अध्ययन करते रहे हैं पर अब राह और आसान होने से दोनों देषों के रिष्ते और प्रगाढ़ होंगे। देखा जाये तो भूटान जहां भारत से व्यापार, षिक्षा, अंतरिक्ष अनुसंधान आदि क्षेत्रों में मदद ले रहा है वहीं दुनिया का सबसे खुष रहने वाला देष भूटान से भारत पर्यावरण संरक्षण की न केवल सीख ले सकता है बल्कि उसके जीवन मूल्यों को अपनाकर कई समस्याओं से निजात पा सकता है। पीछे के आधार बिन्दु बताते हैं कि जो भी सहमति दोनों देषों के बीच होती रही है उस मामले में भारत का अनुभव मिला-जुला रहा है। नई दिल्ली की यह दुविधा कमोबेष रही है कि थिंपू के साथ जब रिष्ते प्रगाढ़ होते हैं तो बीजिंग से खटास होना लाज़मी हो जाता है पर यह समझना भी सही रहेगा कि दुनिया संरक्षणवाद की ओर झुकी है ऐसे में भारत की नीति सुधार की दिषा की अक्सर मांग करती रही है। हांलाकि पड़ोसी के मामले में मोदी पहले भी पहल करने में पीछे नहीं थे और अब भी। गौरतलब है कि 2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो अपनी विदेष यात्रा की षुरूआत भूटान से की। दोनों देषों के बीच रिष्ते इतने खास है कि भारत में एक अनौपचारिक प्रथा है कि भारतीय प्रधानमंत्री, विदेष मंत्री, विदेष सचिव, सेना और राॅ प्रमुख की पहली विदेष यात्रा भूटान ही होती है। 
भूटान की आबादी 8 लाख है जिसकी वित्तीय और रक्षा नीति पर भारत का प्रभाव देखा जा सकता है। भूटान 98 फीसदी निर्यात भारत को करता है और करीब 90 फीसदी सामान भी भारत से ही आयात करता है। इतना ही नहीं भारतीय सेना भूटान की षाही सेना को प्रषिक्षण देने का काम करती रही है। ये तमाम बातें चीन की पेषानी पर बल डालते रहे हैं। गौरतलब है कि भारत भूटान के साथ 699 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। साल 2001 में भारत ने भूटान, नेपाल, बांग्लादेष व म्यांमार को जोड़ने के लिए साउथ एषिया सब रीज़नल इकोनोमिक काॅरपोरेषन (साॅसेक) को जोड़ने वाले मार्ग को लेकर कदम बढ़ाया जिसे पूर्वी एषिया अर्थात् आसियान बाजार के लिए इसे भारत का प्रवेष द्वार माना जा रहा है। इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ना जहां आसान है वहां थाईलैण्ड तक पहुंचने के लिए भारत को एक वैकल्पिक मार्ग भी मिलता दिखाई देता है। गौरतलब है कि साल 2014 में मालदीव और श्रीलंका भी इससे जुड़े। फिलहाल भारत चीन की काट अपने पड़ोसियों के माध्यम से भी खोज रहा है जिसमें भूटान को लेकर वह कहीं अधिक सकारात्मक चिंतन करता है जबकि चीन दर्जनों पड़ोसियों को झांसे में लेने में सफल रहा लेकिन भूटान इससे परे रहा। नई दिल्ली और थिम्पू के बीच जो सम्बंध हैं उसमें अभी बीजिंग की भूमिका कमजोर दिखती है और मोदी की हालिया भूटान यात्रा दोनों देषों के सम्बंध को तुलनात्मक कहीं अधिक सधा हुआ व सम्पन्न बनाने की ओर दिखाई देता है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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