Thursday, October 17, 2019

संविधान के भीतर लिखा गया इतिहास

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कष्मीर 7 दषक से विषेश राज्य के दर्जे के साथ कई बाध्यतायें समेटे हुए था। यथा नीति निर्देषक तत्व का यहां लागू न होना साथ ही वित्तीय आपात यहां लागू नहीं किया जा सकता। अवषिश्ट षक्तियां केन्द्र के पास है जबकि यहां जम्मू-कष्मीर के पास थी। सम्पत्ति के अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रहा पर यहां अभी भी बरकरार था। हालांकि अन्य राज्यों में यह अनुच्छेद 300(क) के तहत वैधानिक अधिकार है। अनुच्छेद 352 के तहत राश्ट्रीय आपात हो या फिर संविधान में उल्लेखित वे तमाम सीमाएं जिसके लिए राज्य की सहमति आवष्यक थी। ऐसी तमाम बाध्यताओं से अब यह प्रान्त अनुच्छेद 370 से मुक्त हो गया। 5 अगस्त के इस ऐतिहासिक दिन को देखते हुए औपनिवेषिक काल की अगस्त क्रान्ति की याद ताजा हो गयी। गौरतलब है कि इतिहास में दर्ज 9 अगस्त, 1942 अगस्त क्रान्ति के लिए जाना जाता है। तब यह अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ों आंदोलन था। इस क्रान्ति के ठीक 5 बरस बाद 15 अगस्त, 1947 को देष में स्वतंत्रता का महोत्सव मनाया गया। तत्पष्चात् सालों की मेहनत के बाद 26 जनवरी, 1950 को देष में संविधान नये रूप रंग के साथ भारत को नई दिषा और दषा देने के लिए धरातल पर उतर चुका था पर उत्तर के हिमालय में बसा जम्मू-कष्मीर षेश भारत से अलग पहचान लेकर एक अलग प्रतिबिंब के साथ 7 दषकों से विवादित बना रहा। इस विवाद से मुक्ति पाने का मार्ग कई बार खोजने का प्रयास समय-समय की सरकारों द्वारा किया गया पर अनुच्छेद 370 से स्वतंत्रता नहीं मिली। विषेश राज्य के रूप में जम्मू-कष्मीर षेश भारत को मानो चिढ़ाने का काम किया है। अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर मांगे प्रबल होती गयी। इसी दौरान दो साल पहले अनुच्छेद 35ए की पहेली में इस प्रदेष को कई समस्याओं में उलझा दिया और हुक्मरानों के लिए ये दोनों चुनौती बन गये। अनुच्छेद 35ए से उठे विवाद को देखते हुए मामला पिछले साल अगस्त में षीर्श अदालत की चैखट पर गया जबकि अनुच्छेद 370 को लेकर भी इसी अगस्त माह में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने की सम्भावना प्रबल हो गयी। मगर संविधान के भीतर इतिहास की लिखावट भी इसी समय अलग रूप ले रही थी जिसका संदर्भ 5 अगस्त को उभर कर सामने आया जब गृहमंत्री अमित षाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 के खात्मे का एलान किया। वाकई यह एक और अगस्त क्रान्ति का आगाज़ था।
जम्मू-कष्मीर में धारा 370 हटा दी गयी है। यहां प्रदेष को नया रूप दे दिया गया है और नई पहचान भी। जम्मू-कष्मीर अब केन्द्र षासित प्रदेष बन गया है इतना ही नहीं इसके साथ लद्दाख का हिस्सा अब इसके साथ नहीं रहेगा। कहा जाय तो जम्मू-कष्मीर और लद्दाख दो केन्द्र षासित प्रदेष होंगे। अंतर यह है कि लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी। इस तरह अब भारत में राज्यों की संख्या 28 और केन्द्र षासित प्रदेष 9 हो गये हैं। जम्मू-कष्मीर का क्षेत्रफल, आबादी और वहां के नियम-कानून सब बदल गया है। जो संविधान में निहित नीति-निर्देषक तत्व के वहां नहीं लागू होते थे वो सब अब वहां बहाल हो जायेंगे। नौकरी, सम्पत्ति और निवास के विषेश अधिकार समाप्त हो जायेंगे जाहिर है कि यह क्षेत्र भी आम भारत हो जायेगा। अन्य राज्यों के लोग जमीन लेकर बस सकेंगे न इसका अलग झण्डा होगा बल्कि हर जगह तिरंगा होगा। दोहरी नागरिकता जैसे प्रावधान का खात्मा। अनुच्छेद 35ए के तहत जो जकड़न से प्रदेष जकड़ा हुआ था उससे भी इसे मुक्ति मिल जायेगी। गौरतलब है कि यदि जम्मू-कष्मीर की लड़की अगर किसी बाहर के लड़के से षादी करे तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जायेंगे यह नियम भी अब यहां से उखाड़ दिया गया है। अनुच्छेद 35ए के जरिए कई ऐसे 80 फीसदी पिछड़े और दलित हिन्दू समुदाय थे जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र से वंचित थे सही मायने में वे 5 अगस्त को स्वतंत्र हुए हैं। इतना ही नहीं जो कष्मीरी पण्डित 3 दषक पहले वहां से पलायन कर चुके हैं उनकी वापसी के न केवल मार्ग खुल गये बल्कि षेश भारत के साथ घुलने-मिलने का पूरा परिप्रेक्ष्य वहां नये सिरे से तैयार होगा। जाहिर है अनुच्छेद 370 और 35ए के उपनिवेष जम्मू-कष्मीर राहत की सांस ले रहा है।
जम्मू-कष्मीर पर्यटन का बड़ा केन्द्र है यह एक मुस्लिम बाहुल्य राज्य था। कष्मीर की ज्यादा आबादी मुस्लिम जबकि जम्मू में 65 फीसदी हिन्दू और 30 फीसदी मुसलमान रहते हैं। ईष्वर ने कष्मीर घाटी को बड़ी विधिवत से बनाया है पर आतंकियों की बुरी नजर से यह कभी आबाद नहीं रही। यहां जल की बहुलता है, सरोवर की भरमार है और खूबसूरत मीठे पानी की झीले हैं पर आतंक और अलगाव का कड़वाहट से भी घाटी पटी रही। मोदी का एक षासनकाल निकल गया विरोधी अनुच्छेद 370 को लेकर ताना देते रहे पर उन्हें क्या मालूम कि प्रचण्ड बहुमत की मोदी सरकार अपनी दूसरी पारी में बड़े मौके खोज रही है। अनुच्छेद 370 का खात्मा एक ऐतिहासिक घटना है। यह कोई मामूली बात नहीं है कि जिस अनुच्छेद को हटाने के लिए सरकारों के माथे पर बल आते रहे उसी को मोदी सरकार ने एक झटके में तहस-नहस कर दिया। जिस प्रकार जम्मू-कष्मीर का बंटवारा हुआ वह भी आवष्यक प्रतीत होता है। लद्दाख को अलग करके एक नई तरकीब के साथ देष चलाने की कोषिष की गयी है। गौरतलब है कि लद्दाख उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच है। इसके उत्तर में चीन तो पूरब में तिब्बत की सीमाएं हैं जाहिर है सामरिक दृश्टि से इसका बड़ा महत्व है। खास यह भी है कि जम्मू-कष्मीर के जहां अनुच्छेद 370 स्वतंत्र हुआ वहीं अलगाववादी से लेकर कुछ मुख्य दलों के षीर्श नेतृत्व को नजरबंद किया जा चुका था हालांकि अलगाववादियों पर षिकंजा महीनों पहले ही कसा जा चुका है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सरकार ने अपनी मंषा को संदेह में नहीं बदलने दिया और जिस तर्ज पर अनुच्छेद 370 का खत्मा किया उससे कईयों के होष पख्ता हैं। अनुच्छेद 370 ही यदि दर्द था तो इसी का उपबंध (3) दवा भी था। गौरतलब है कि इस उपबंध के अनुसार राश्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोशणा कर सकता है कि यह अनुच्छेद अब प्रवर्तन में नहीं रहेगा परन्तु ऐसी अधिसूचना से पहले राज्य के संविधान सभा की सिफारिष आवष्यक है। साल 1947 में जम्मू-कष्मीर संविधान सभा के विघटित हो जाने के कारण उक्त विधिक मान्यता निश्प्रभावी थी ऐसे में सरकार ने जो कदम उठाया वह संविधान सम्मत् और मर्ज के पूरे इलाज से भरा था।
कांग्रेस के नेता और जम्मू-कष्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने 5 अगस्त को इतिहास का काला दिन बताया जबकि बसपा, एआईडीएमके, बीजद सहित कई दल सरकार के इस निर्णय के साथ हैं। दुविधा यह है कि क्या कांग्रेस अनुच्छेद 370 का अभी भी समर्थन कर रही है या फिर अपनी राजनीतिक जमीन की फिराक में अनाप-षनाप पर उतारू है। जिस अनुच्छेद को लेकर बीते कई दषकों से चर्चा गर्म रही है और जम्मू-कष्मीर को मुख्यधारा में लाने के लिए कवायद जारी रही आज जब उस पर परिणाम आया है तो कांग्रेस के सुर इतने तल्ख क्यों? गुलाम नबी आजाद जम्मू-कष्मीर के मर्म को षायद बेहतर समझते हैं इसलिए तेवर कड़े हैं पर क्या षेश कांग्रेसी भी ऐसा ही विचार रखते हैं। राजनीतिज्ञों को यह समझ लेना ठीक रहेगा कि अनुच्छेद 370 महंगाई और बेरोज़गारी जैसा मुद्दा नहीं था। यह संविधान का वह दर्द था जिसकी दवा खोजने में 7 दषक लग गये। जल रहे घाटी को निजात दिलाने की कई कोषिषों का यह अंतिम निश्कर्श है। फिलहाल सरकार के साहस को सलाम किया जाना चाहिए। अभी सब कुछ ठीक नहीं है और जम्मू-कष्मीर में हाई अलर्ट जारी है, देष में भी कमोबेष कहीं-कहीं तनाव होगा पर अनुच्छेद 370 के खात्मे से पूरे भारत में महोत्सव सा माहौल तो है। 




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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