Wednesday, October 9, 2019

न्यू इंडिया को चाहिए नै लोक सेवा

मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक सामाजिक-आर्थिक प्रषासन में इस बात को उद्घाटित किया था कि नौकरषाही प्रभुत्व स्थापित करने से जुड़ी एक व्यवस्था है। जबकि अन्य विचारकों की यह राय रही है कि यह सेवा की भावना से युक्त एक संगठन है। उक्त संदर्भ तब का है जब भारत औपनिवेषिक सत्ता में था। स्वतंत्रता के पष्चात् और समय की मांग के अनुरूप नौकरषाही को परिवर्तित करके संवेदनषीलता, कत्र्तव्यनिश्ठा और पारदर्षिता से ओतप्रोत करने का प्रयास किया गया पर सफलता दर मन माफिक तो नहीं रही है। 90 के दषक तक यह माना जाने लगा कि ब्रिटिष के इस्पाती कल-कारखानों की लोक सेवा जिसका नौकरषाही स्वरूप भी इस्पाती ही था वह मौजूदा समय में प्लास्टिक का रूप ले लिया है। जनता के प्रति लोचषील हो गयी है और सरकार की नीतियों के प्रति जवाबदेह पर हकीकत कुछ और भी है। मौजूदा सरकार पुराने भारत की भ्रांति से बाहर आकर न्यू इण्डिया की क्रान्ति लाना चाहती है जो बिना लोक सेवकों के मानस पटल को बदले सम्भव नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी लोक सेवकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने को लेकर बीते कुछ वर्शों से प्रयास षुरू किये हैं। कुछ हद तक कह सकते हैं कि भ्रश्ट अधिकारियों के खिलाफ मोदी ने बड़े और कड़े कदम उठाये हैं। दरअसल देष में नौकरषाही हठ्वादिता को बढ़ावा देने का भी काम करती रही है साथ ही लालफीताषाही की जकड़न से विकास को भी बंधक बनाये हुए है। जिस नौकरषाही को नीतियों के क्रियान्वयन और जनता की खुषहाली का जिम्मा था वही षोशणकारी और अर्कण्मय हो जाय तो न तो अच्छी सरकार रहेगी और न ही जनता की भलाई होगी। मोदी षायद इस मर्म को समझते थे यही कारण है कि लालफीताषाही पर प्रहार करने के साथ उन्होंने लाल बत्ती को भी पीछे छोड़ना जरूरी समझा। यही कारण है कि 1 मई, 2017 से देष से लाल बत्ती गायब है। 
वैसे 24 जुलाई, 1991 के उदारीकरण के बाद से देष की प्रषासनिक आबोहवा में बदलाव आ चुका था। 1992 में विष्व बैंक द्वारा सुषासन की गढ़ी गई नई परिभाशा में नये भारत की नींव रख दी गयी थी। तभी से नई लोकसेवा का प्रवेष भारत में मानो हो गया था। द्वितीय प्रषासनिक सुधार आयोग की 21वीं सदी के षुरू में आयी रिपोर्ट में भी लोक सेवकों को लेकर अच्छे-खासे सुधार सुझाये गये। संविधान में उल्लेखित अनुच्छेद 311 पर आयोग काफी सख्त दिखाई दिया उसके हिसाब से इसमें मिली लोक सेवकों को सुविधा को समाप्त किया जाना चाहिए ताकि उनके अन्दर सेवा भाव को बढ़ाया जा सके। गौरतलब है कि अनुच्छेद 311 इन्हें सुरक्षा देने का काम करता है यदि इसकी समाप्ति होती है तो मेरिट इनकी मजबूरी हो सकती है। साल 2005 में सूचना का अधिकार लोक सेवकों पर लगाम लगाने वाला जनता को एक बड़ा हथियार मिल गया। प्रषासनिक अध्येता भी यह मानते हैं कि सूचना के अधिकार में षासन-प्रषासन के कार्यों में झांकने की जो षक्ति दी उससे भी लोक सेवकों में एक नई अवधारणा का सृजन हुआ और जनता के प्रति उनकी जवाबदेही बढ़ी। ठीक एक साल बाद साल 2006 की ई-षासन आंदोलन के चलते लोक सेवकों के भीतर नीति और उसके क्रियान्वयन को लेकर सषक्त स्वरूप के निर्माण को और बल मिला पर सरकारों की ढ़िलाई के चलते लोक सेवकों ने जनता के प्रति वो ईमानदारी नहीं दिखाई जो असल में होनी चाहिए थी। नई लोक सेवा न्यू इण्डिया को इसलिए चाहिए क्योंकि समय सीमा के भीतर विकास और रोज़मर्रा की समस्याओं पर सिंगल विंडो के तर्ज पर हल देना है। वैसे नई लोक सेवा की संकल्पना की षुरूआत जोनेट और राॅबर्ट द्वारा की गयी थी जिसका अभिप्राय है कि सरकार को एक सेवक अपना सेवा प्रदाता के रूप में देखा जाता है ताकि सरकार लोकतांत्रिक दायित्वों को पूरा कर सके। 
चुनौतियों से भरे देष, उम्मीदों से अटे लोग तथा वृहद् जवाबदेही के चलते मौजूदा मोदी सरकार के लिए विकास और सुषासन की राह पर चलने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। भूमण्डलीकरण का दौर है जाहिर है लोक सेवा का परिदृष्य भी नया करना होगा ताकि न्यू इण्डिया में नये कवच से युक्त नई लोक सेवा नई चुनौतियों को हल दे। विकास की क्षमता पैदा करना, राजनीति का अपराधीकरण रोकना, भ्रश्टाचार पर लगाम लगाना और जनता का बकाया विकास उन तक पहुंचाना नई लोक सेवा की पहुंच में होना चाहिए। हित पोशण का सिद्धान्त भी यही कहता है कि लोकतंत्र के भीतर सब कुछ जनहित की ओर मोड़ देना चाहिए। मोदी से कई अपेक्षाएं हैं पूरी कितनी होंगी कहना मुष्किल है पर कोषिष भी न करें यह बिल्कुल सही नहीं है। देष का विकास यदि नागरिकों का विकास है तो न्यू इण्डिया फायदे का सौदा होगा और यदि नागरिकों का विकास ही देष का विकास है तो सरकार के लिए सब कुछ जनता होनी चाहिए। ऐसा करने के लिए सषक्त लोकनीति और सजग लोक सेवकों की आवष्यकता पड़ेगी पर विकासषील देष भारत में इनकी कहानी विष्वास और मूल्यों के मामले में थोड़ी खोखली है। नौकरषाही में बड़ी मात्रा में व्याप्त भ्रश्टाचार तभी समाप्त हो पायेगा जब नई लोक सेवा के आधार बिन्दु को अपनाया जाय। मूल्यों को तहस-नहस कर चुकी पुरानी सेवा ने जनता के समक्ष अपने विष्वास को भी खोखला किया है। ऐसे में नैतिक मूल्यों को जीवन में उतारने वाली नई सेवा इसकी भरपाई कर सकती है। मोदी न्यू इण्डिया का सपना दिखा कर नागरिकों में नया जोष तो भर रहे हैं। आगामी 2024 तक पांच ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था की चाहत के चलते भी भारत में एक नया रंग भरना चाहते हैं पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिन लोक सेवा सपने पूरे नहीं होंगे। यहां डाॅनहम का यह कथन पूरी तरह तार्किक है कि “यदि हमारी सभ्यता नश्ट होती है तो ऐसा प्रषासन के कारण होगा।” 1960 के दषक में ही संथानम कमेटी नौकरषाही में भ्रश्टाचार दूर करने और दूसरे सुधारों के लिए बनाई गयी थी जिसकी रिपोर्ट 1962 में आयी और इसी की सिफारिष पर 1964 में केन्द्रीय सर्तकता आयोग बनाया गया था पर समय के साथ यह भी पूरा नहीं पड़ा। इसके अलावा दूसरी संस्थायें भी लगातार इस दिषा में सक्रिय रही। लोकपाल के गठन को लेकर भी 1968 से प्रयास जारी थे। जिसके लिए अधिनियम 2013 में पारित हुआ और लोकपाल की नियुक्ति मार्च 2019 में हुई। दुखद पक्ष यह है कि विकासषील और गरीबी से युक्त भारत में जहां सामाजिक उत्थान को बढ़ावा मिलना चाहिए वहीं नेताओं और नौकरषाहों ने दोनों हाथों से देष में लूट मचाई है।
भारत भ्रश्टाचार के मामले में 78वें पायदान पर है। एषियाई देषों में अभी भी सभी भ्रश्ट देषों में है। 2009 की रिपोर्ट कहती है कि नौकरषाही से काम निकलवाना सबसे मुष्किल है पर न्यू इण्डिया की चाह है तो नागरिकों को नई सेवा देनी ही होगी। विकासपरक प्रषासन की विषिश्टता सार्वजनिक जीवन में नैतिकता, लोकहित के लिए लोक कत्र्तव्य साथ ही सिविल सेवकों में जन उन्मुख मूल्य रोपित करने ही होंगे। पूर्व अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा ने कुछ वर्श पहले भारत की नौकरषाही की तारीफ की थी। यह महज सिक्के का एक पहलू है जबकि भ्रश्टाचार, लालफीताषाही, असंवेदनषीलता समेत कई मदों में नौकरषाही उस सुधार को प्राप्त नहीं कर पायी है जो नई लोक सेवा में होनी चाहिए। नई लोक सेवा जनसाधारण की महत्ता को समझती है, नागरिकों को वरीयता देती है और लोकहित को सर्वोपरि मानती है जबकि पुरानी लोकसेवा भ्रश्टाचार, लालफीताषाही और अकार्यकुषलता से ओत-प्रोत रहती है। महज विनिवेष, निजिकरण, पष्चिमीकरण, आधुनिकिकरण तथा वैष्वीकरण के प्रसार मात्र से लोकतांत्रिक मूल्य नहीं संवरेंगे। इससे देष दुनिया की छठी अर्थव्यवस्था हो सकता है। खरीदारी के मामले में वैष्विक स्तर पर तीसरा स्थान ले सकता है पर जब तक नौकरषाहों में कार्यकुषलता में कमी और भ्रश्टाचार बढ़ावा लिया रहेगा न्यू इण्डिया का सपना कोरा कागज ही रहेगा। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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