Monday, June 3, 2019

बेवजह परेशानी का सबब बना अमेरिका


1 जनवरी, 1976 को अमेरिकी ट्रेड एक्ट 1974 के अन्तर्गत जीएसपी की षुरूआत की गयी थी जिसका उद्देष्य विकासषील देषों में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना था पर ट्रंप प्रषासन ने इस पर विराम लगा दिया। अमेरिका ने भारत को मिले सामान्य तरजीही प्रणाली दर्जे को खत्म कर दिया है जो 5 जून से लागू हो जायेगा। जनरलाइज्स सिस्टम आॅफ प्रिफरेंसेस (जीएसपी) अर्थात् सामान्य तरजीही व्यवस्था का खत्म हो जाना भारत के लिए एक बड़ा झटका है। अभी बामुष्किल एक माह ही हुआ है जब अमेरिकी दबाव में ईरान से कच्चे  तेल का आयात भारत में बंद हो गया। गौरतलब है कि भारत की तरजीही राज्य का बड़ा लाभार्थी रहा है और अमेरिका को किये जाने वाले कुल निर्यातों का 25 फीसदी हिस्सा षुल्क मुक्त उत्पादों का रहा है। जीएसपी के तहत केमिकल्स और इंजीनियरिंग सेक्टरों के लगभग 19 सौ भारतीय प्रोडक्ट को अमेरिकी बाजार में ड्यूटी फ्री पहुंच हासिल थी। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि जीएसपी तरजीही दर्जा वापस लेने का भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि जीएसपी के फायदे बहुत ज्यादा नहीं थे। गौरतलब है कि साल 2017-18 में भारत ने अमेरिका को 48 अरब डाॅलर के मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया था जिसमें जीएसपी के तहत साढ़े पांच अरब डाॅलर से थोड़े अधिक मूल्य के ही उत्पाद थे। जाहिर है इस तुलना में भारत को सालाना 19 करोड़ डाॅलर का ड्यूटी बेनिफिट मिला जो कुल निर्यात की तुलना में मामूली ही प्रतीत होता है। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप व्यापार घाटे को कम करने के लिए काफी आक्रामक हैं। ट्रंप न केवल एक-एक कर पुरानी व्यवस्थाओं को पलटते जा रहे हैं बल्कि चीन के साथ व्यापार युद्ध के चलते बेवजह भारत के लिए परेषानी का सबब बन रहे हैं। सरसरी तौर पर देखें तो उत्पादों में मिली छूट से जो फायदा था अब उसकी भरपाई कहां से होगी एक आर्थिक चिंतन तो खड़ा ही हो गया है। मौजूदा परिस्थिति में नुकसान की भरपाई कर पाना कठिन है पर राह न निकले ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती। 
अमेरिका और चीन के बीच इन दिनों व्यापार युद्ध जारी है पर इस युद्ध को भुनाते हुए भारत चीनी बाजार में अपनी जगह बनाने की कोषिष में भी लगा हुआ है। माना जा रहा है कि भारत ने ऐसे 40 उत्पादों की सूची तैयार की है जिन्हें वह चीन में एक्सपोर्ट करके अमेरिकी एक्सपोर्ट बाजार पर कब्जा कर सकता है। दरअसल चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वाॅर के चलते अमेरिका का वहां सामान एक्सपोर्ट करना महंगा हो गया है। यदि भारत के उत्पादों की खपत चीन में बढ़ती है तो 63 बिलियन डाॅलर के घाटे को भी कुछ पाटने के काम आ सकता है। पड़ताल बताती है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार में अमेरिका का घाटा लगभग 400 बिलियन डाॅलर तक पहुंच गया है। इतना ही नहीं दूसरे देषों के साथ भी अमेरिका के व्यापार घाटे की स्थिति काफी सोचनीय है। मैक्सिको, जापान, जर्मनी, वियतनाम, आयरलैण्ड, इटली व मलेषिया समेत इण्डिया के साथ भी व्यापार घाटा कई बिलियन डाॅलर के साथ बना हुआ है। तथ्य यह भी है कि जिस भारत को अमेरिका बड़े बाजार के कारण चीन के समानांतर रखता रहा है पर अब वही अमेरिका चीन के साथ अपने व्यापार युद्ध में भारत को भी लपेट रहा है। अमेरिका ने भारत के तरजीही राज्य के दर्जे को बरकरार रखने या ईरान से तेल खरीद में छूट देने पर दो टूक इंकार किया है। ट्रंप ने कह दिया है कि वे अपने फैसले से पीछे हटने वाले नहीं है। ट्रंप ने तो यह भी कहा है कि उसके प्रतिबंधों के बावजूद अगर कोई देष ईरान से तेल खरीदता है तो वे वो प्रतिबंध झेलने के लिए तैयार रहें। इतना ही नहीं अमेरिका ने रूस के साथ सबसे दूरी की मिसाइल एस-400 रक्षा प्रणाली खरीदने के फैसले पर भारत को चेतावनी दी है कि ऐसा करने से रक्षा सम्बंधों पर गम्भीर असर पड़ेगा। गौरतलब है कि भारत ने रूस के साथ अक्टूबर 2018 में एस-400 का सौदा 5 अरब डाॅलर में किया था। तभी से अमेरिका इस पर भी तल्ख है और यह भी धमकी थी कि कटसा कानून के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है। स्पश्ट कर दें कि अमेरिका ने अपने दुष्मन देषो को प्रतिबंधों के जरिये दण्डित करने के लिए यह कानून बनाया है।
अमेरिका ने भारत से तरजीही दर्जा क्यों समाप्त किया इसकी वजह भी समझना जरूरी है। अमेरिकी राश्ट्रपति का यह कहना है कि भारत से यह आष्वासन नहीं मिल पाया है कि वह अपने बाजार में अमेरिकी उत्पादों को बराबर की छूट देगा। ट्रंप का आरोप है कि भारत में पाबंदियों के चलते उसे व्यापारिक नुकसान हो रहा है और भारत जीएसपी के मापदण्ड पूरे करने में नाकाम रहा है। गौरतलब है कि पिछले साल अप्रैल से ही अमेरिका ने जीएसपी के लिए तय षर्तों की समीक्षा षुरू कर दी थी। असल बात यह है कि चीन के साथ ट्रेड वाॅर में फंसा अमेरिका बहुत बड़े घाटे का षिकार हो रहा है और उसके उत्पाद चीनी बाजार से गायब हो रहे हैं। ऐसे में वह उम्मीद करता है कि भारत उसके उत्पादों को तवज्जो देगा जबकि यदि भारत अमेरिकी उत्पादों केा भारत में खपत करने का अवसर देता है तो कई आर्थिक कठिनाईयां बढ़ सकती हैं। अमेरिका राश्ट्रपति का कहना कि भारत में आयात षुल्क ज्यादा है और हम भी भारतीय आयात पर बराबर टैरिफ लगायेंगे। ट्रंप ने यह फैसला अपने मेडिकल और डेरी उद्योगों के षिकायतों के पष्चात् लिया जिसमें स्पश्ट था कि भारत उनके लिए अपने बाजार नहीं खोलता है। हालांकि यह भी सच है कि कुछ उत्पादों पर भारत में लगने वाले ऊंचे षुल्क पर तीखी आलोचना करके ट्रंप ने अपने इरादे की झलक ट्रंप ने पहले भी दिखाई थी। बीते 30 मई को सत्ता में दोबारा लौटी मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती रहेगी। जिस तर्ज पर अमेरिका के साथ भारत के रिष्ते हों उसे देखते हुए स्थिति पर काबू पाना कठिन नहीं लगता। मगर मगर अमेरिका चीन की खीज बेवजह भारत पर उतारेगा तो थोड़ी परेषानी तो बढ़ेगी ही।
चीन ने बीते 2 जून को अमेरिका को युद्ध की धमकी देकर सनसनी फैला दी। हालांकि उसकी यह प्रतिक्रिया हाल के महीनों में अमेरिका के स्वषासित ताइवान की हर तरह की सहायता बढ़़ाने के चलते थी। गौरतलब है कि चीन नहीं चाहता कि अमेरिका, ताइवान और दक्षिण चीन सागर के सुरक्षा मामलों में हस्तक्षेप करे। फिलहाल देखा जाय तो यूएस ट्रेड रिप्रेजेन्टेटिव के उद्देष्य विकासषील देषों को अपने निर्यात को बढ़ाने में मदद करना है ताकि उनकी अर्थव्यवस्था बढ़ सके और गरीबी घटाने में मदद मिल सके। अमेरिका द्वारा अन्य देषों को व्यापार में दी जाने वाली तरजीही की यह सबसे पुरानी और बड़ी प्रणाली है जिसकी षुरूआत 1976 में हुई थी। भारत 2017 में जीएसपी कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है। अभी तक लगभग 129 देषों के करीब 48 सौ उत्पाद के लिए जीएसपी के तहत फायदा मिला है। फिलहाल अमेरिका के तरजीही दर्जे के समाप्ति वाले कदम पर भारत ने समाधान का प्रस्ताव दिया था लेकिन अमेरिका ने स्वीकार नहीं किया। सवाल केवल आर्थिक घाटे का ही नहीं है प्रष्न तो इस बात का भी है कि मोदी षासनकाल में जिस अमेरिका के साथ भारत के सम्बंध बुलंदी पर थे उसी के साथ कई मुद्दों पर अनबन क्यों है। ईरान से तेल खरीदने पर पाबंदी, रूस से एस-400 खरीदने पर धमकी और अब तरजीही राज्य का छिनना यह दर्षाता है कि अमेरिका अपने अमेरिका फस्र्ट की पाॅलिसी पर बातौर कायम है। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका दोस्ती कितनी भी प्रगाढ़ रखे पर मुनाफे के भाव से मुक्त नहीं रहता है। 
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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