Friday, June 7, 2019

दोहर चुनौतियों से चिंतित रिजर्व बैंक


विष्व बैंक को भले ही यह भरोसा हो कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर तेजी लेगी मगर भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्श 2019-20 में विकास दर 7 फीसदी रहने की बात करके एक नई स्थिति को उजागर किया है। जबकि इससे पूर्व आरबीआई विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जता चुका है। देष की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक नई कोषिष कर दी है। अब इसे आगे बढ़ाने का काम केन्द्र सरकार का है। गौरतलब है कि लगातार तीसरी बार 0.25 प्रतिषत फीसद रेपो दर कम कर आरबीआई ने मकान और वाहन कर्ज सस्ते होने की राह खोल दी है। इसके अतिरिक्त डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने हेतु आरटीजीएस और एनईएफटी पर लगने वाले षुल्क को खत्म कर दिया है। गौरतलब है कि एसबीआई जैसे बैंक 10 हजार रूपए तक भेजने पर ढ़ाई रूपए एनईएफटी षुल्क वसूलता है यही एक लाख पर 5 और दो लाख तक 15 रूपए की वसूली होती थी और यदि राषि इससे ऊपर है तो 25 रूपए का खर्च आता था। इसी तरह बैंक आरटीजीएस पर 5 से 10 रूपए षुल्क जीएसटी के साथ वसूलता है। साथ ही बैंकों ने हर माह एटीएम से निकासी की सीमा तय कर रखी है। यदि लेनदेन सीमा से बाहर हुई तो उस पर भी षुल्क लिया जाता है साथ ही 18 फीसदी जीएसटी भी उसमें जोड़ लिया जाता है। अब उक्त पर विराम लगाने का वक्त आ गया है। इससे ग्राहकों को बड़ी राहत तो मिलेगी ही साथ ही डिजिटल लेनदेन को भी बढ़ावा मिलेगा। हालांकि देखा जाय तो बैंकों ने ग्राहकों से बेवजह पैसा कमाने का कई जरिया बना रखा है। परेषान सभी हैं पर अपना दुख बतायें किसे जाहिर है रिजर्व बैंक बैंकों का बैंक है जब उसी ने यह नीति निर्धारित की है तो अन्यों का यह नैतिक धर्म है कि वे उसे लागू करें। लागू करना ही होगा। खास यह भी है कि एटीएम से लेनदेन पर लगने वाले षुल्क की समीक्षा हेतु एक समिति भी बनाई गयी है जो आगामी दो माह में रिपोर्ट सौंपेगी। सब कुछ सही रहा तो यहां भी लगी पाबंदी से राहत मिलेगी।
 फिलहाल रेपो रेट 6 प्रतिषत से घटकर अब 5.75 हो गया है जो पिछले 9 साल की तुलना में सबसे कम है। जाहिर है कर्ज लेने वालों को राहत तो मिलेगी परन्तु एक सच्चाई यह है कि पिछली दो कटौती को देखें तो ग्राहकों को लाभ देने के मामले में एसबीआई, पीएनबी समेत कई बैंक बेहद कंजूस सिद्ध हुए। गौरतलब है कि इस साल ही पिछली दो बार रेपो दर में 0.50 फीसदी कटौती का पूरा लाभ बैंकों ने ग्राहकों को दिया ही नहीं। यह इस बात का संकेत है कि आरबीआई विकास को लेकर ब्याज दर घटाव के मामले में कितना ही उदार क्यों न हो जाए पर बैंक ग्राहकों का षोशण करने से बाज नहीं आते। वैसे एक सच्चाई यह है कि आज के इस बदलाव के दौर में बैंक फंसे लोन की उगाही में ग्राहकों को कोई भी राहत देने के लिए तैयार नहीं है बल्कि लगातार दबाव बनाने में लगे हुए हैं। नामी-गिरामी बैंक समेत पूरे देष के बैंकों की हालत यह है कि नाॅन परफोर्मेंस एसेट्स (एनपीए) 10 लाख करोड़ से अधिक पार कर गया है। बैंक अपने फंसे कर्ज की वसूली के लिए हर सम्भव विकल्प तलाष रहे हैं। वे न केवल अनाप-षनाप कटौती कर रहे हैं बल्कि कभी मिनिमम बैलेंस के नाम पर तो, कभी एटीएम के अधिक प्रयोग या खाते में राषि के लेनदेन की मात्रा पर भी अपनी जेब भर रहे हैं। इतना ही नहीं चेक बाउंस की स्थिति में काटी जाने वाली राषि में कई गुने की बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है। बैंक मेनेजर की केबिन में बैठकर काॅफी के साथ लोन गटकने वाले व्यापारी बैंकों को जो चूना लगाया है उससे आम खाताधारण बैंकों की मनमानी के चलते षोशित महसूस कर रहे हैं। जाहिर है कुछ हद तक बैंकों ने अपनी विष्वसनीयता भी खोई है। 
फिलहाल मौद्रिक नीति में नरमी से अर्थव्यवस्था को तेजी मिलेगी कर्ज सस्ता होगा और विकास का दरिया बहेगी ऐसा सोचना बेहद सुखद है। सुस्त होती अर्थव्यवस्था पर वैष्विक कारकों के असर पर रिज़र्व बैंक ने कहा है अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और क्रूड आॅयल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से मांग और आपूर्ति पर प्रभाव पड़ेगा। डाॅलर के मुकाबले लुढ़कता भारतीय रूपया जीडीपी की वृद्धि दर में बाधक बन सकता है। घरेलू मोर्चे पर देखें तो कई कोर सेक्टर में वृद्धि दर बीते अप्रैल में गिरी हुई थी जबकि सेवा क्षेत्र पिछले एक साल की तुलना में सबसे निचले स्तर पर चला गया। मानसून और खाद्य भण्डार पर्याप्त होने से राहत की बात कही जा रही है पर ये तो आंकड़ें हैं पूरा भरोसा कैसे किया जा सकता है। आरबीआई का ब्याज दरों में कटौती के साथ यह निहित मन्तव्य दिखता है कि वह विकास दर को तेज करना चाहता है। यह बात इसलिए पुख्ता है क्योंकि बीते चार महीने में रेपो दर तीन बार कम किया गया है और जुलाई 2010 के बाद यह सबसे निचले स्तर पर है। वैसे देखा जाय तो ट्रेड वाॅर के चलते वैष्विक मांग कमजोर पड़ने से आने वाले समय में भारत के निर्यात और निवेष पर असर पड़ सकता है। रिज़र्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति की समिति ने कहा है कि वित्त वर्श 2018-19 की चैथी तिमाही के आंकड़े से यह पता चलता है कि घरेलू निवेष गतिविधियां सुस्त पड़ गयी हैं और निर्यात की वृद्धि धीमी पड़ने से मांग भी कमजोर पड़ी है। हालांकि सकारात्मक पहलू यह है कि देष में राजनीतिक स्थिरता है, और एक ताकत वर सरकार है जिसके चलते कई समस्याएं आसानी से हल की जा सकेंगी। नकदी का बढ़ता प्रवाह निवेष गतिविधियों के अनुकूल है पर डिजिटल लेनदेन के विरूद्ध भी दिखाई देता है। 
आम चुनाव के बाद व नई सरकार के गठन के पष्चात् अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक अच्छा कदम उठाया है। रेपो दर कम होने का अर्थ है कि बैंक अब कम दरों पर कर्ज दे सकेंगे साथ ही उद्योगों और होमलोन की अदायगी भी कम ब्याज दर पर होगी। मौजूदा समय में जो देष की अर्थव्यवस्था है और कुछ हद तक उसमें जो मन्दी बनी हुई है उसे देखते हुए रिज़र्व बैंक का यह कदम गति लाने का काम करेगा। गौर करने वाली बात यह भी है कि बीते तिमाही का विकास दर पिछली 21 तिमाही में सबसे निचले स्तर पर रही और महंगाई दर भी बहुत ज्यादा नहीं रही। ऐसे में रिज़र्व बैंक जो सोच कर कदम बढ़ा रहा है उसे प्राप्त करना कठिन तो नहीं है। दिलचस्प यह भी है कि रिज़र्व बैंक अपनी इस नीति का खुलासा मानसून को ध्यान में रखकर किया पर जो मानसून 6 जून को केरल के तट से टकराने वाला था वह दो दिन पीछे हट गया। हैरत की बात यह है कि ब्याज दर में कटौती के साथ और कर्ज नीति की घोशण के बात षेयर मार्केट में गिरावट आई है जबकि यह काफी समय से लगातार ऊपर जा रहा था। पूरी अर्थव्यवस्था में कर्ज नीति महत्वपूर्ण है पर जमीनी हालात इसके कभी दुविधा से परे षायद ही रहे हों। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सरकारें अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले जाने में और तेजी से विकास दर देने में स्वयं हांफ जाती हैं और अपनी कमी के बावजूद अपने को बचा भी लेती हैं। रिज़र्व बैंक के सामने जो चुनौतियां हैं वो दोहरी हैं एक ओर विकास दर को गति देने का तो दूसरी ओर कर्ज नीति के तहत नागरिकों को राहत देने का। कह सकते हैं कि विकास दर के लिए ब्याज दर में गिरावट की गयी है पर सरकार और बैंक को भी अब अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभानी होगी।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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