Wednesday, May 29, 2019

पड़ोसी देशों को संदेश देता शपथ समारोह


आज 30 मई है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले भारत में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दमदार वापसी के साथ नई सरकार षपथ ले रही है। ऐसा ही चित्र आज से ठीक पांच साल पहले 26 मई 2014 को उभरा था जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री की षपथ ले रहे थे। उन दिनों दक्षिण एषियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देषों के 8 सदस्य देषों को आमंत्रित किया गया था पर इस बार सार्क के बजाय बे आॅफ बंगाल इनिषिएटिव फाॅर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एण्ड इकोनोमिक काॅरपोरेषन (बिम्सटेक) के देष इस षपथ के साक्षी होंगे। समारोह से पाकिस्तान को दूर रखा गया है जबकि अन्य पड़ोसी को पूरे आदर के साथ आमंत्रित किया गया है। गौरतलब है भारत की लुक ईस्ट की नीति जो अब एक्ट ईस्ट में बदल चुकी है और ऐसा मोदी सरकार के कार्यकाल में ही हुआ है। वैसे लुक ईस्ट पाॅलिसी लगभग तीन दषक पुरानी है इसे 1990 में भारत ने अपनाई थी। देखा जाय तो बिम्सटेक के साथ सार्क के देष भी मोदी के षपथ समारोह में भागीदार बन रहे हैं। इस षपथ समारोह को कुषल पड़ोसी नीति के तहत कूटनीतिक संदर्भों से युक्त भी माना जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बड़ी चुनावी जीत से दुनिया को एक बार फिर उनकी पहचान हुई और अब बड़ी ताकत के साथ नई सरकार से पहचान होना बाकी है। बिम्सटेक जिसमें षामिल हैं बंगाल की खाड़ी से जुड़े भारत सहित 7 दक्षिण और दक्षिण पूर्व एषिया के पड़ोसी देष। इस संगठन में भारत के अतिरिक्त बांग्लादेष, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैण्ड को देखा जा सकता है। जो आपस में तकनीक और आर्थिक सहयोग के लिए जुड़े हैं जबकि दक्षिण एषियाई देषों का संगठन सार्क का उद्देष्य दक्षिण एषिया में आपसी सहयोग से षान्ति और प्रगति हासिल करना है। 
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोदी को चुनावी जीत की बधाई देकर यह कोषिष की थी कि षपथ ग्रहण समारोह का बुलावा षायद उसके लिए भी हो पर ऐसा नहीं हुआ। साफ है कि नई सरकार षपथ से पहले ही संदेष दे रही है कि गोली और बोली एक साथ नहीं चलेगी। बधाई संदेष के समय भी प्रधानमंत्री मोदी ने इमरान को आतंक समाप्त कर षान्ति की नसीहत दी थी और लड़ाई गरीबी की ओर मोड़ने की बात कही थी। जाहिर है पाकिस्तान इससे निराष होगा पर पुलवामा के बाद जो स्थिति बनी है उसे देखते हुए पाकिस्तान के साथ अभी ऐसा कोई अनुकूल अवसर नहीं है जिसे लेकर उसे दिल्ली बुलाया जाय। हांलाकि 2014 के षपथ समारोह में सार्क देषों के आमंत्रित देषों में पाकिस्तान के तात्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ दिल्ली में थे। पड़ताल बताती है कि मोदी ने अपने षपथ के दिन से ही षरीफ के साथ सकारात्मक रवैया अपनाया। कई मौकों पर भारत ने पाक को द्विपक्षीय समझौता और वार्ता के माध्यम से साधने का प्रयास भी किया पर आतंकी दांव-पेंच में पाक फंसा रहा, नतीजन जनवरी 2016 की पठानकोट में आतंकी हमला और उसी साल सितम्बर में उरी घटना के चलते क्रमिक तौर पर भारत का संयम जवाब दे गया। नवाज़ षरीफ की षराफत किसी काम की नहीं रही तत्पष्चात् भारत ने प्रतिकार करना ही उचित समझा और यह सिलसिला पुलवामा तक बड़े पैमाने तक जारी है फलस्वरूप भारत को पाकिस्तान पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक करना पड़ा। गौरतलब है कि पाक की आतंकी गतिविधियों के कारण 2016 की सार्क बैठक जो इस्लामाबाद में होने वाली थी वो रद्द हो गयी थी तब से अभी तक यह बैठक हुई ही नहीं। 2016 से ही भारत सार्क की जगह बिम्सटेक को बढ़ावा दे रहा है और इस बार के आमंत्रण से यह स्पश्ट है कि नई सरकार के कार्यकाल में भी यही नीति जारी रहेगी। बिम्सटेक के अलावा किर्गिस्तान के राश्ट्रपति और माॅरिषस के प्रधानमंत्री को भी आमंत्रित किया गया है। चीन को छोड़ कर हर वो देष षपथ समारोह में होगा जिसकी सीमा भारत से मिलती है पर पाकिस्तान नहीं होगा। अफगानिस्तान और मालदीव बिम्सटेक में नहीं है पर इनकी भी उपस्थिति सम्भव दिखाई देती है। 
माना तो यह भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी पहली विदेष यात्रा मालदीव से षुरू करने वाले हैं। गौरतलब है कि मालदीव में नई सरकार के आने के बाद से मोदी वहां नहीं गये हैं। रोचक यह भी है कि बांग्लादेष की प्रधानमंत्री समारोह में नहीं आ पायेंगी और ऐसा 2014 में भी हो चुका है। इस बार वह षपथ समारोह के समय जापान, सऊदी अरब और फिनलैंड की यात्रा पर रहेंगी जबकि पहले षपथ समारोह में भी वे विदेष यात्रा पर ही थी। मोदी ने बिम्सटेक देषों के षासकों को निमंत्रण भेजकर अपनी तात्कालिक नीति का भी खुलासा किया है। गौरतलब है कि चीन हिन्द महासागर में बड़ी ताकत के साथ श्रीलंका और मालदीव पर कूटनीतिक कब्जा किये हुए है जो भारत की मुख्य चिंता में एक है इसे देखते हुए यह षपथ संतुलन के काम आ रहा है। बिम्सटेक की प्रासंगिकता दक्षिण एषिया तथा पूर्व एषिया जिनकी जनसंख्या दुनिया में 21 फीसदी से अधिक है को एकजुट करने और सकल घरेलू उत्पाद के एकीकरण में विषिश्ट भूमिका के लिए भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत 13 प्राथमिक क्षेत्र षामिल हैं। जिसमें व्यापार एवं निवेष, प्रौद्योगिकी, पर्यटन, मत्स्य उद्योग, कृशि, सांस्कृतिक सहयोग, पर्यावरण आपदा प्रबंधन समेत गरीबी निवारण और आतंकवाद देखा जा सकता है। जून 1997 में बैंकाॅक में गठित यह संगठन मौजूदा समय में आर्थिक और तकनीकी सहयोग का आकर्शण केन्द्र बना हुआ है तब इसमें बांग्लादेष, भारत, श्रीलंका और थाईलैण्ड सहित केवल चार सदस्य थे बाद में म्यांमार, भूटान और नेपाल भी इसमें सूचीबद्ध हुए। 
बिम्सटेक देषों की ओर हाथ बढ़ाकर मोदी ने इस सवाल के लिए गुंजाइष नहीं रखी कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को क्यों नहीं बुलाया और अन्यों को यह मैत्री संदेष भी दे दिया कि उन्हें क्यों बुलाया। गौरतलब है कि पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान को छोड़कर सार्क के अन्य सभी देष बिम्सटेक में षामिल हैं। पाकिस्तान की प्रत्यक्ष अनदेखी करके उसे अविष्वास के दायरे में रखा गया। हालांकि अफगानिस्तान और मालदीव से रिष्ते पहले से कहीं अधिक मधुर हैं यह इतिहास में झांक कर देख सकते हैं। हालांकि इमरान खान का यह मानना था कि मोदी के सत्ता में लौटने से दोनों देषों में वार्ता सम्भव होगा पर यह बहुत कुछ पाकिस्तान पर ही निर्भर करेगा। इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि इमरान सेना पर निर्भर सरकार चला रहे हैं जो भारत को अपना सबसे बड़ा दुष्मन मानती है और वह कष्मीर से नजरें हटाती नहीं है। जब तक इमरान मोदी नीति नहीं समझेंगे और अपनी सेना नीति पर कायम रहेंगे। द्विपक्षीय वार्ता दूर की कौड़ी बनी रहेगी। बिम्सटेक के अलावा आसियान जैसे संगठनों के साथ भारत की पहुंच कहीं अधिक सषक्त है जो चीन को न केवल आईना दिखाने के काम आता है बल्कि कूटनीति को साधने के भी ये अच्छे उपकरण सिद्ध हुआ हैं। गौरतलब है भारत, म्यांमार और थाईलैण्ड के बीच एक हाईवे का प्रस्ताव है ताकि आपसी कनेक्टिविटी बढ़े। चूंकि यह सारे देष बंगाल की खाड़ी को छूते हैं तो इनके लिए ब्लू इकनोमी भी अहम होगी। जाहिर है भारत को सार्क से बहुत कुछ अभी तक नहीं मिला है और आसियान में चीन की बढ़ती दखल से भी वह पिछड़ा महसूस करता है। ऐसे में बिम्सटेक के सहारे कई आर्थिक और तकनीकी संदर्भ को अपने हित में देखता है। बिम्सटेक के सदस्य देषों में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का प्रस्ताव भी काफी फायदे है। सार्क और ब्रिक्स संगठनों के अलावा बिम्सटेक देषों का संगठन भी भारत के लिए बेहद जरूरी है। यह कहीं न कहीं दक्षिण एषिया और दक्षिण पूर्वी देषों के लिए एक पुल का काम कर रहा है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com


No comments:

Post a Comment