Monday, June 10, 2019

पड़ोसी पहले की नीति पर मोदी


विश्व के राजनैतिक मंच पर भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाये इसके लिए यह जरूरी है कि वह पड़ोसी देषों को भरोसे में ले। मोदी का मालदीव और श्रीलंका दौरा इसका एक बेहतर उदाहरण है। लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बाद मोदी ने अपने पहले विदेष दौरे के पहले चरण में मालदीव तो दूसरे में श्रीलंका की यात्रा की । उनकी यह यात्रा भारत की ‘पड़ोसी पहले’ की नीति को ही नहीं दर्षाता  बल्कि इन देषों में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी संतुलित करने के तौर पर समझा जा सकता है। इस दो दिवसीय यात्रा का मकसद हिन्द महासागर में स्थित मालदीव और श्रीलंका के साथ सम्बंध को और मजबूती प्रदान करना है। मालदीव की यात्रा कई मामले में काफी अहम मानी जा सकती है क्योंकि पिछले कुछ सालों में दोनों देषों के बीच रिष्ते बहुत अच्छे नहीं रहे। फरवरी  2018 में जब तत्कालीन राश्ट्रपति अब्दुल यामीन ने आपात लागू किया था। फिलहाल नई सरकार के तौर पर मोदी की पहली विदेष यात्रा में मालदीव सूचीबद्ध हो गया है। जहां षानदार नतीजे की अपेक्षा की गयी और कई समझौते पर हस्ताक्षर किये गये जिसमें रक्षा और समुद्र समेत 6 महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मसौदे षामिल हैं। मालदीव ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘रूल आॅफ निषान इज्जुद्दीन’ से भी मोदी को सम्मानित किया। इसमें कोई दुविधा नहीं कि मालदीव के भीतर मोदी का प्रभाव कहीं अधिक दिखा। वैसे देखा जाय तो मालदीव को अपने बंदरहगाह विकास, स्वास्थ, कृशि, मत्स्य पालन, पर्यटन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में हमेषा दूसरे देषों से निवेष की अपेक्षा रही है इस मामले में भारत ने काफी हद तक उसकी मदद की है। हालांकि ऐसे ही मामलों में चीन भी अवसर खोजता रहता है ताकि हिन्द महासागर में उसका दबदबा कायम रहे और ऐसा करने में वह काफी हद तक सफल भी है।
स्थायी, सामाजिक और आर्थिक विकास प्राप्त कराने के मामले में भारत मालदीव को लेकर कभी पीछे नहीं रहा। फरवरी 2018 में जब मालदीव उथल-पुथल के दौर से जूझ रहा था तब भी भारत ने समस्या से उबारने के लिए जरूरी कूटनीतिक कदम उठाये थे। भारत की दृश्टि से मालदीव क्यों महत्वपूर्ण है इसकी भी पड़ताल कर लेना ठीक रहेगा। गौरतलब है कि मालदीव का सामरिक महत्व है। आतंकवादियों और समुद्री लुटेरों को नियंत्रित करने में इसका बड़ा योगदान है। भारत विविध तरीके से मालदीव में अपनी उपस्थिति बढ़ा कर चीन के प्रभाव को कम करने की काट भी खोजता रहा है। 26/11 के आक्रमण के बाद इन द्वीपों का सुरक्षा की दृश्टि से महत्व बढ़ गया है। महत्ता के क्रम में आगे देखें तो मालदीव भारत की नौसेना के लिए हिन्द महासागर में नौसेना अड्डे के रूप में उपयोग का हो सकता है। नौसेना और वायुसेना हेतु वहां निगरानी आदि की सुविधा बढ़ सकती है। मालदीव दक्षिण एषियाई देषों का समूह सार्क का सदस्य है और भारत के हितों से अंजान नहीं है। भारत आर्थिक सहायता भी मालदीव की हमेषा करता रहा है। इतना ही नहीं 7 अगस्त 2008 को जब वहां  नये संविधान को अपनाया गया तब भारत ने समर्थन किया। सरकारी स्तर पर सहायता, द्विपक्षीय समझौते और निवेष के तहत संरचनात्मक विकास आदि से  भी दोनों देषों के बीच सम्बंध मजबूत बने हैं। हालांकि पिछले 8 वर्शों में द्विपक्षीय स्तर पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली मालदीव यात्रा है। वैसे प्रधानमंत्री मोदी पिछली बार नवम्बर 2018 में राश्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद के षपथ समारोह में गये थे। लेकिन यह कोई अधिकारिक यात्रा नहीं थी। गौरतलब है कि मोदी से पहले साल 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मालदीव का दौरा किया था। खास यह भी है कि मालदीव की संसद को सम्बोधित करते समय मोदी ने पाकिस्तान पर भी निषाना साधा था और सरकार प्रायोजित आतंकवाद को सबसे बड़ी चुनौती बताया जो क्षेत्र विषेश के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए है।
यात्रा का दूसरा चरण तब षुरू हुआ जब मोदी का विमान माले से कोलंबो की उड़ान भरा। जहां उन्होंने एक बार फिर आतंक को लेकर गहरी चिंता जतायी और आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे का आह्वान किया। गौरतलब है कि अप्रैल में श्रीलंका में ईस्टर के दिन आतंकी हमले हुए थे। देखा जाय तो आतंकी हमले के बाद श्रीलंका की यात्रा करने वाले मोदी पहले विदेषी नेता भी हो गये हैं। इस हमले में 11 भारतीय समेत 250 से ज्यादा लोग मारे गये थे। श्रीलंका की यात्रा को लाभदायक बताते हुए मोदी ने कहा कि हमारे दिल में श्रीलंका की खास जगह है उन्होंने वहां के बाषिन्दों को भाईयो एवं बहनों के रूप में सम्बोधित करके उनकी उन्नति को लेकर मानो आष्वासन दिया है। वैसे यह मोदी वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा परिलक्षित होते दिखाई देती है। मोदी की श्रीलंका की यह तीसरी यात्रा है इससे पहले वह 2015 और 2017 में दौरा कर चुके हैं। माना जा रहा है कि इस दौरे से श्रीलंका में विदेषी पर्यटकों की आवाजाही बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। ईस्टर सीरियल ब्लास्ट के बाद वहां के पर्यटन पर अच्छा खासा बुरा असर पड़ा था। वैसे पड़ताल बताती है कि श्रीलंका की जरूरत के वक्त उसके साथ सबसे पहले भारत खड़ा मिलता है। सूखा हो, बाढ़ हो भारत की ओर से मदद की पहली खेप भारत की ओर से ही जाती है। इस दौरे से न केवल सम्बंध में और गरमी आयेगी बल्कि वहां बसे भारतीय समुदाय में भी जिन्हें मोदी ने सम्बोधित किया उनके भीतर भी एक नया संदर्भ पनपेगा। हालांकि श्रीलंका में भी चीन के प्रभाव को बाकायदा देखा जा सकता है। साल 2009 में वहां लिट्टे का सफाया हो चुका है और इसी के साथ ही भारत और चीन पर अलग-अलग असर पड़ा है। भारत श्रीलंका को लेकर तटस्थ रहा। जबकि चीन ने अलग रूख अपनाया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में उसने भारी निवेष करके अपना एक बड़ा बाजार खड़ा कर दिया। यहां के बुनियादी ढांचे में भी व्यापक निवेष कर भारत को पीछे धकेलने का काम किया। हबनटोटा बंदरगाह के निर्माण में चीन मदद कर रहा है।
 चीन हिन्द महासागर के बीच ठिकाना बनाने की फिराक में है। इससे दक्षिणी चीन सागर के बंदरगाहों पर न केवल उसकी निर्भरता घटेगी बल्कि हिन्द महासागर में दबदबा भी बढ़ जायेगा। इसके अलावा भी कई ऐसे कृत्य हैं जिसे देखते हुए भारत की अक्सर चिंता रही है और श्रीलंका समेत मालदीव के साथ अच्छे सम्बंध रखना उसकी आवष्यकता बनी रही। एक समय ऐसा भी था जब भारत और श्रीलंका के बीच में व्यापक मतभेद हुआ करते थे। 1982-83 के दौर में तो मतभेद इतने गहरे थे कि श्रीलंका ने भारत विरोधी न केवल प्रचार किया बल्कि तत्कालीन राश्ट्रपति जयवर्धने ने कहा कि यदि संयोगवष भारत आक्रमण करता है तो सम्भव है कि हम पराजित हो जायें लेकिन लड़ेंगे षान से। हालांकि दोनों देषों के बीच साल 1948 से सम्बंध गड़बड़ाये थे पर बीते तीन दषकों से तेजी से पटरी पर दौड़ रहे हैं। इसके पहले मोदी ने श्रीलंका के लोगों को लेकर ई-वीजा और मुक्त व्यापार द्विपक्षीय समझौते में सहयोग करके सम्बंध के सम्बंध को आषा से भर दिया। इतना ही नहीं इसी प्रधानमंत्री का पहली बार अगर संघर्श प्रभावित जाफना का दौरा हुआ तो उसमें भी मोदी का नाम आता है। उन्होंने तमिल नेतृत्व से कोलंबो की सरकार को समय देने की बात भी कही थी। फिलहाल राश्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर श्रीलंका से बेहतर सम्बंध बनाये हुए है और आवष्यक मुद्दों पर कोलम्बो से सम्पर्क साधती रही है। मोदी की यह यात्रा भले ही किसी खास संधि या समझौते को जन्म न दिया हो पर आपसी विष्वास के लिए कहीं अधिक जरूरी है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: suhilksingh589@gmail.com

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