Thursday, June 27, 2019

समस्याओं के साये मे जी-20 सम्मेलन


पिछले साल अर्जेन्टीना के ब्यूनस आर्यस में जी-20 षिखर सम्मेलन में भारत का दबदबा देखने को मिला था। यहां प्रधानमंत्री मोदी ने जय (जेएआई) अर्थात् जापान, अमेरिका, इण्डिया का नारा दिया था जिसका आषय सफलता से है। इस बार जापान के ओसाका में भी भारी बहुमत से जीत हासिल करने वाले प्रधानमंत्री मोदी का जलवा अलग से दिख सकता है। माना जा रहा है कि जी-20 के इस 14वें सम्मेलन में कई देषों के साथ द्विपक्षीय बैठक भी मोदी करेंगे जिसमें फ्रांस, जापान, रूस, इण्डोनेषिया, अमेरिका और तुर्की आदि देष षामिल हैं। विदेष मंत्रालय ने 8 देषों के प्रमुखों के साथ मोदी की द्विपक्षीय मुलाकात और तीन बहुपक्षीय मुलाकात की बात फिलहाल कही है। गौरतलब है कि 29 जून तक चलने वाले इस समिट पर दुनिया की नजर रहेगी। मौजूदा समय में वैष्विक स्तर पर कई समस्याएं एक साथ उभरी हुई हैं ऐसे में ओसाका सम्मेलन समस्याओं के साये से मुक्त षायद ही रहे। पिछले वर्श 1 दिसम्बर को जब जी-20 देषों की 13वीं षिखर वार्ता समाप्त हुई थी तो उम्मीद यह भी जगाई गयी कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध समाप्त करने की पहल होगी पर यह मौजूदा समय में और बड़ी चुनौती का रूप अख्तियार किये हुए है। दो दिन चलने वाले सम्मेलन में बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के आह्वान के साथ ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की उम्मीद भी जगाई गयी थी पर यहां भी मामला खटाई में ही रहा। इतना ही नहीं एषिया प्रषान्त क्षेत्र में स्थिरता के लिए काम किया जायेगा पर यह भी बातों तक ही रह गया। अब तो हालात यह हैं कि अमेरिका की जद में ईरान के आने से दुनिया एक नई समस्या से उलझ गयी है और इन दिनों ईरान परोक्ष आक्रमण भी झेल रहा है। 
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वाॅर और ईरान के साथ चल रहे तनाव का प्रत्यक्ष युद्ध में बदलने का खौफ, 28 जून को षुरू हो रहे जी-20 देषों के षिखर सम्मेलन के दौरान छाये रह सकते हैं। सम्मेलन से ठीक पहले आॅस्ट्रेलिया ने भी ट्रेड वाॅर से छोटे-छोटे देषों के हो रहे नुकसान को देखते हुए तल्ख बयान दिया है। उसने कहा है कि वैष्विक अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित हो सकती है। जापान में जी-20 की बैठक से पहले हांगकांग में भी विरोध की लहर दिखी। हांगकांग चाहता है कि जी-20 सम्मेलन में चीन के राश्ट्रपति षी जिनपिंग पर बाकी देष इस बात के लिए दबाव बनाये कि हांगकांग की स्वायत्ता की रक्षा व अधिकार समेत कई मांग पर चीन गौर फरमाये। जाहिर है हांगकांग में सम्मेलन से ठीक पहले जो भारी-भरकम प्रदर्षन हुआ है उससे जी-20 के देषों पर असर पड़ सकता है। गौरतलब है कि हांगकांग के कार्यकत्र्ताओं द्वारा 9 देषों के 13 अन्तर्राश्ट्रीय अखबारों में इस मामले को लेकर विज्ञापन भी प्रकाषित करने के लिए साढ़े छः लाख डाॅलर रकम इकट्ठी की गयी। प्रधानमंत्री मोदी सम्मेलन में रवाना होने से पहले कहा कि अन्य वैष्विक नेताओं के साथ हमारी दुनिया के सामने प्रमुख चुनौतियां और अवसरों पर चर्चा करने के लिए उत्सुक हैं। महिला सषक्तीकरण, डिजीटलाइजेषन और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रमुख वैष्विक चुनौतियों का समाधान इस बैठक का प्रमुख मुद्दा होगा। ऐसे ही कई इरादों के साथ दुनिया के भारी-भरकम जी-20 के 19 देष और यूरोपीय देष ओसाका में जुट रहे हैं पर अक्सर यह रहा है कि सम्मेलन समाप्त हो जाता है और सवाल सुलगते रहते हैं। खास यह भी है कि पिछले जी-20 सम्मेलन में भारत, रूस और चीन की त्रिपक्षीय बैठक कहीं अधिक महत्वपूर्ण रही। इस बार भी उम्मीद है कि तीनों देष कई विवादों को पीछे छोड़ते हुए आपसी हितों को बढ़ावा देने के लिए एक साथ होंगे। अमेरिका को दबाव में लेने के लिए चीन भारत के साथ नरम रूख रख सकता है। इसका एक कारण संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में इस बार उसका मात खाना भी हो सकता है। गौर तलब है कि पाकिस्तानी आतंकी अज़हर मसूद पर बार-बार वीटो करके बचाने वाला चीन को तब झुकना पड़ा जब अमेरिका, इंग्लैण्ड और फ्रांस ने पुलवामा आतंकी हमले के बाद इस पर सख्ती दिखाई।
अर्जेन्टीना सम्मेलन में भी मोदी ने 9 सूत्रीय एजेण्डा पेष किया था जिसमें भगोड़े, आर्थिक अपराधों से निपटने, उनेह पहचान करने, प्रत्यर्पण और उनकी सम्पत्तियों को जब्त करने समेत कई षामिल थे पर परिणाम कुछ खास नहीं रहे। हालांकि इस पर प्रयास जारी हैं। दो टूक कहें तो जी-20 षिखर सम्मेलन हमेषा समस्याओं के घेरे में ही रहा। कभी आतंकवाद तो कभी षान्ति व सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं इस मंच से कभी बाहर गयी ही नहीं। गौरतलब है जब पहली बार नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने 2014 को ब्रिस्बेन में जी-20 के 9वें षिखर सम्मेलन में पहली बार भागीदारी की थी और काले धन का मुद्दा यहां उन्हीं की वजह से तूल पकड़ा था। यहां भी यूक्रेन समस्या के चलते रूस और अमेरिका की खींचातानी ने बैठक को मानो बेनतीजा ही कर दिया था। जब भी भारत का विष्व के साथ आर्थिक सम्बंधों की विवेचना होती है तो जी-20 का मंच और प्रासंगिक होकर उभरता है। बैठक से पहले भारत भी कई दबाव से युक्त देखा जा सकता है। बीते 2 मई से अमेरिका द्वारा ईरान से तेल न खरीदने का प्रतिबंध भारत झेल रहा है। चीन से ट्रेड वाॅर में फंसा अमेरिका इसी माह के 5 जून को भारत से तरजीही देष का दर्जा छीन लिया। इतना ही नहीं 2018 में रूस से एस-400 की खरीदारी को लेकर भारत द्वारा किया गया समझौता भी अमेरिका के गले नहीं उतर रहा है। दक्षिण एषिया में षान्ति के लिए पूरी कूबत झोंकने वाला भारत दुनिया को एक नई ताकत से परिचय कराया है पर वैष्विक लड़ाई में पिसा भी है। 
गौरतलब है कि भारत दुनिया की सबसे तेज उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और जी-20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। इस समूह में अन्तर्राश्ट्रीय, वित्तीय संरचना को सषक्त और आर्थिक विकास को धारणीय बनाने में मदद पहुंचाई है। मंदी के दौर में गुजर रही अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी कमोबेष ऊर्जा देने का इसने काफी हद तक काम किया है। यह एक ऐसा मंच है जहां दुनिया के सबसे मजबूत देष इकट्ठे होते हैं। गिनती के लिहाज़ से तो यह 14वां सम्मेलन हैं और मोदी के लिए जी-20 का यह 6वां होगा जहां उनका दबदबा पहले की तरह कायम रहने की सम्भावना है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फस्र्ट की पाॅलिसी पर चल रहे हैं और अपने निजी एजेण्डे के कारण ईरान-अमेरिका परमाणु संधि, ट्रांस पेसिफिक समझौते और रूस से षस्त्र नियंत्रण संधि के अलावा पेरिस जलवायु समझौते से अलग हो चुके हैं। यहां एक बार फिर ट्रंप और मोदी की मुलाकात एक नया जोष भरेगी। रूस, चीन और जापान से भी अलग-अलग वार्ता भारत से जरूर करेंगे। इसके अलावा कई द्विपक्षीय मंच भी सजेंगे पर सवाल यह है कि जी-20 क्या अपने उद्देष्यों में सफल होगा। विवादों और समस्याओं में रहने वाला यह समूह सवाल खड़े करता है पर समाधान से पहले अड़ियल रवैये के कारण उसे सुलगता हुआ छोड़ देता हैं। प्रधानमंत्री मोदी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जैसे ही ओसाका ऐयरपोर्ट पहुंचे वहां मौजूद भारतीयों ने मोदी-मोदी का नारा लगा कर जापान में उनका स्वागत किया। जापानी प्रधानमंत्री षिंजो अबे से उनकी मुलाकात और आपसी कारोबार समेत तमाम मुद्दों पर बात होने की स्थिति का पनपना स्वाभाविक है। भारत में भी 2022 में जी-20 का सम्मेलन होगा तब भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्शगांठ भी होगी। फिलहाल ओसाका सम्मेलन में भारत का रूख अर्जेन्टीना के ब्यूनस आयर्स की भांति ही मजबूत दिखने की उम्मीद है। हालांकि अब तक जितने भी जी-20 के सम्मेलन में मोदी की भागीदारी रही वे सभी आषा से भरे ही रहे और इस बार भी ऐसी ही उम्मीद की जानी चाहिए।
 
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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