Monday, July 1, 2019

चुनौतियों से भरे जीएसटी के दो साल


जीएसटी यानी गुड्स एण्ड सर्विसेज़ टैक्स को स्वतंत्रता के बाद दूसरे सबसे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में माना गया। गौरतलब है कि पहला आर्थिक सुधार 24 जुलाई 1991 का उदारीकरण था। इसी के बाद देष में सुषासन और समावेषी विकास की लहर ही आयी नतीजे कुछ संतोशजनक तो कुछ अपेक्षा से कम रहे। जीएसटी को आये दो साल हो गये पर सुधार की दरकार से यह अभी भी युक्त है। इसके आने के पष्चात् केन्द्र और राज्यों के 17 अप्रत्यक्ष कर एक झटके में समाप्त हो गये। एक नये आर्थिक इंजन के रूप में जब 30 जून और 1 जुलाई 2017 की रात के ठीक 12 बजे तत्कालीन राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मोदी ने बटन दबाकर षुभारम्भ किया तब यह उम्मीद जगी थी कि यह आर्थिक बदलाव जनजीवन में भी बड़ा बदलाव लायेगा पर यह काफी हद तक परेषानियों का सबब भी लेकर आया था। जीएसटी संग्रह बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध हुई। पिछले 23 महीनों में 17 महीने ऐसे हैं जब जीएसटी एक लाख करोड़ के आंकड़े को नहीं छू पायी। गौरतलब है कि इसके माध्यम से सरकार 13 लाख करोड़ रूपये प्रति वर्श का लक्ष्य रखा था। इस लिहाज़ से इसे हर माह इससे एक लाख करोड़ से अधिक की उगाही होनी चाहिए। जाहिर है केवल 6 महीने ही जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रूपए को पार किया। अब तक जीएसटी काउंसिल की 36 बैठकें हो चुकी हैं, एक हजार से अधिक निर्णय लिए जा चुके हैं, बावजूद इसके यह अभी भी पूरी तरह संषोधित नहीं माना जा सकता। बीते 1 जुलाई को इसके ठीक 2 साल पूरे हुए हैं और इसी दिन से जीएसटी की नई रिटर्न प्रणाली की षुरूआत हो रही है परीक्षण में यह कितनी खरी होगी। यह आने वाले समय में पता चलेगा। फिलहाल नगद खाता, बही खाता प्रणाली समेत कई बदलाव की कसमसाहट फिर से जारी है। 
इसी बीच एक सुखद सूचना यह भी है कि भारतीय रिजर्व बैंक की पहल पर एनईएफटी और आरटीजीएस लेन-देन पर लगने वाला षुल्क खत्म कर दिया गया है। गौरतलब है कि अभी तक एसबीआई जैसे बैंक एनईएफटी पर एक से पांच रूपया और आरटीजीएस पर 5 से 10 रूपए वसूलते थे। पूरे देष के अप्रत्यक्ष कर की व्यवस्था में एकरूपता लाने के लिए जीएसटी आवष्यक थी लेकिन इसमें निरंतर हो रहे सुधार या बदलाव भी बेचैनी के कारण बने हुए हैं। दरअसल सरकार ने समय के साथ जीएसटी में काफी हेरफेर किया। बावजूद इसके षराब, मनोरंजन कर, रियल स्टेट और 5 पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा तेल, डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि को जीएसटी के दायरे में लाने की चुनौती अभी सामने है। पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग 1 जुलाई 2017 से ही उठ रही है पर सरकार ने इसमें मिल रहे मुनाफे को ध्यान में रखते हुए इसे बाहर रखना ही ठीक समझा। गौरतलब है कि लगभग 20 रूपया प्रति लीटर पेट्रोल और 17 रूपए प्रति लीटर पर सरकार टैक्स ले रही है। यदि इसे जीएसटी के दायरे में लाया गया तो इस दर में तेजी से गिरावट आयेगी। एक लीटर पेट्रोल के दाम कम करने पर 13 हजार करोड़ रूपए का नुकसान हो जाता है। हालांकि एक देष, एक कर के नारे के साथ जीएसटी षुरू किया गया था ऐसे में पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना तार्किक नहीं है। हालांकि इसके बावजूद भी यह नारा सवालों के घेरे में इसलिए भी है क्योंकि यहां करों के चार स्लैब है। जिसमें 5, 12, 18 और 28 फीसद निर्धारित हैं। जीएसटी लागू होने के समय पांचवां स्लैब 32 फीसदी का भी था जिसे समाप्त कर दिया गया। जीएसटी लागू होने के समय कारोबारियों में व्यापक भ्रम था इससे परेषानी बढ़ी भी थी। अब कुछ हद तक जीएसटी के साथ व्यापारिक व्यवहार सुनिष्चित हो गया। फलस्वरूप लाभ के साथ संतोश को भी तुलनात्मक बढ़ा हुआ देख सकते हैं। 
भारत की टैक्स व्यवस्था में जीएसटी की उपयोगिता इसलिए भी अनुकूल मानी गयी क्योंकि भारतीय कर ढांचा बहुत ही जटिल था। भारतीय संविधान के अनुसार मुख्य रूप से वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार राज्य सरकार और वस्तुएं के उत्पादन व सेवाएं पर कर लगाने का अधिकार केन्द्र के पास है जिसके चलते देष में अलग-अलग तरह के कर कानून हो गये जिसकी कठिनाई की जद में कम्पनी और छोटे व्यवसाय रहे। इसी को देखते हुए जीएसटी को अवतरित किया गया। भारत में एक समान वस्तु एवं सेवा कर लागू करने वाला संविधान संषोधन का 122वां विधेयक इससे सम्बंधित है। जीएसटी लागू होने से बिजली और स्टील सस्ते होने के आसार बने। अनाज और उसके प्रोडक्ट, डेरी प्रोडक्ट, फल-सब्जी, चीनी, काॅस्मेटिक आदि के भी सस्ते होने की बात कही गयी है। जीएसटी के कई फायदे गिनाये जाते हैं पर यह एक आर्थिक नियम है जो सामान्य की समझ से परे है। षुरूआती अड़चनों को पार कर चुकी जीएसटी स्थिरता और स्थायित्व की ओर तो बढ़ी है पर तमाम निर्णयों और संषोधनों के कारण एक अव्वल कानून के रूप में विष्वास हासिल के रूप में अभी भी पीछे है। सरलीकृत रिटर्न, निर्यातकों को त्वरित रिफंड और रियल स्टेट व पेट्रोलियम पदार्थों को जब तक इसके दायरे में नहीं लाया जायेगा तब तक पूरा विष्वास जमेगा नहीं। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि जीएसटी का क्रियान्वयन षुरूआती महीनों में चुनौतियों के बिना नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने जब घण्टा बजाकर संसद के केन्द्रीय कक्षा से इसकी षुरूआत की तब उन्होंने इसे गुड़्स एण्ड सिम्पल टैक्स करार दिया था पर यह बात कहने और जमीनी हकीकत में काफी अंतर लिए हुए थी। एक करोड़ 35 लाख लोग जीएसटी में पंजीकृत हैं जिसमें करीब 18 लाख कम्पोजिषन का लाभ लेते हैं। 
जीएसटी को लेकर सरकार भले ही एक बड़े बदलाव और सकारात्मक रूख को लेकर स्वयं की पीठ थपथपाई हो पर इसके रहते हुए भी मुनाफाखोरी नहीं होती है। चुनौतियां एक नहीं अनेक हैं। जीएसटी के टैक्स स्लैब में बदलाव भी मुसीबत बन रही है। जीएसटी के 2017-18 का सालाना रिटर्न अभ तक नहीं भरा गया है। पहले इसकी अन्तिम तिथि 30 जून थी अब 31 अगस्त कर दी गयी है। रियल स्टेट, रेस्तरां में जीएसटी की दर 5 फीसदी है और सस्ते घरों पर 5 फीसद है। सरकार ने मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण बनाया पर कम्पनियां अभी भी ग्राहकों को कर में कमी का पूरा लाभ नहीं दे रहे हैं। जैसा कि पेट्रोलियम पदार्थ भी जीएसटी से बाहर है जाहिर है आॅटो और ट्रांसपोर्टर इससे प्रभावित हैं। सवाल यह है कि क्या जीएसटी से कारोबार आसान हुआ है और क्या पारदर्षिता बढ़ी है। जीएसटी चूंकि अप्रत्यक्ष कर है जो ग्राहकों पर लगता है पर रसीद न लेने की षर्त पर वह समान की कीमत तो दे देता है पर टैक्स नहीं चुकाता है। इस हेर-फेर से बचने की सरकार के पास अभी कोई अनुकूल मषीनरी नहीं है। जीएसटी को लेकर सरकार के कई आदेष बड़े भ्रामक हैं। अगस्त 2018 में सरकार की ओर से कहा गया था कि 11 पहाड़ी राज्यों में जीएसटी के मामले में 20 लाख तक के कारोबार करने वालों को कर न देने व पंजीकरण से भी छूट की बात कही गयी थी और यही मैदानी राज्यों के लिए 40 लाख की सीमा थी। जिसे लेकर बाद में कहा गया कि यह 1 अप्रैल 2019 से लागू होगा। इस वित्त वर्श की एक तिमाही निकल गयी बावजूद इसके यह एक स्कीम अभी तक लागू नहीं हो पायी है। राज्य सरकार कहती हैं कि उन्हें ऐसा कोई लिखित निर्देष नहीं मिला है। ऐसे में पंजीकृत जीएसटी धारक भ्रम में हैं कि असलियत क्या है? आर्थिक इंजन जीएसटी जिस मनसूबे से लाया गया बेषक वह बेहतर हो पर नई-नई जानकारियों और सुधार के चलते यह अभी भी चुनौतियों में फंसा हुआ है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com


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