Wednesday, May 15, 2019

एक और खड़ी युद्ध की पटकथा लिखता अमेरिका

अमेरिका का ईरान के खिलाफ युद्ध जैसे हालात बनना दुनिया के लिए चिंता का कारण हो सकता है। ईरान के साथ बढ़ते तनाव के मद्देनजर अमेरिका अपने स्वभाव के अनुरूप युद्ध का खाका लगभग तैयार कर लिया है। पष्चिम एषिया में एक लाख बीस हजार सैनिकों को भेजने की योजना भी कमोबेष उसकी ओर से बन चुकी है। अमेरिकी राश्ट्रपति ट्रंप ने 13 मई को कहा था कि हम आने वाले समय में देखेंगे कि ईरान के साथ क्या होता है। अगर उन्होंने कोई हरकत की तो वह बहुत बड़ी गलती होगी और उन पर भारी पड़ेगी। फिलहाल अमेरिका-ईरानी रिष्तों के बिगड़ने के संकेत लगातार मिल रहे हैं। लगभग तीन दषक के आसपास एक खाड़ी युद्ध हुआ था। इराक के खिलाफ अन्य देषों की फौजें खड़ी हो गयी थी। गौरतलब है कुवैत मामले को लेकर अमेरिका ने 17 जनवरी 1991 को इराक पर बमबारी षुरू की थी और यह सिलसिला फरवरी के तीसरे सप्ताह तक चलता रहा। एक दषक पष्चात् संयुक्त राश्ट्र संघ के क्लीन चिट देने के बावजूद अमेरिका ने इराक पर रासायनिक हथियार रखने का आरोप लगाकर उसे निस्तोनाबूत कर दिया। अन्तर बस इतना है कि पहली बार जब इराक पर हमला हुआ तब अमेरिकी राश्ट्रपति जाॅर्ज डब्ल्यू बुष सीनियर थे और दूसरी बार जाॅर्ज डब्ल्यू बुष जूनियर थे। कहा तो यह भी जाता था कि पिता का अधूरा बदला पुत्र ने इराक से लिया था। इसके बाद भी इराक से अमेरिका की नजर नहीं हटी जब तक उसने सद्दाम हुसैन को खाक में नहीं मिला दिया। इराक की हालत जिस स्तर पर सुधरनी चाहिए थी असल में सुधरी नहीं बल्कि आतंकी संगठन समेत कई वजहों से यह और बिगड़ती चली गयी। अब एक बार फिर ऐसे ही युद्ध का ढांचा तैयार होता दिख रहा है। अबकी बार यह खतरा ईरान पर मंडरा रहा है। हालांकि इराक और ईरान को लेकर संरचनात्मक मुद्दे अलग हैं पर युद्ध की त्रास्दी और अंजाम एक जैसा ही दिख रहा है। पहले खाड़ी युद्ध में जाॅर्ज डब्ल्यू बुष ने अमेरिकी फौजों को इराक के सामने खड़ा कर दिया था अब डोनाल्ड ट्रंप इन्हीं फौजों को ईरान के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। ईरान चारों तरफ से घिरा हुआ है। स्थिति को देखते हुए ईरानी विदेष मंत्री ने 13 मई को नई दिल्ली का रूख किया ताकि वो भारत व ईरान के तेल समझौते पर बात कर सके। गौरतलब है कि अमेरिका ने भारत समेत 8 देषों को ईरान से तेल खरीदने की छूट 2 मई से बंद कर दी है। जिसके असर से भारत भी इन दिनों जूझ रहा है। 
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो यही प्रतीत होता है कि डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सामने स्वयं को इसलिए खड़ा किया है क्योंकि उसने पिछले साल 8 मई को अमेरिका के साथ हुए 2015 के परमाणु समझौते से हटने का एलान कर दिया था। इसके बाद से ही तेल निर्यात को रोकने के साथ ही ईरान पर कई प्रतिबंध जड़ दिये। अमेरिका का कहना है कि उसके द्वारा की गयी कार्यवाही परमाणु कार्यक्रम और आतंकी गतिविधियों को लेकर की गयी है। इन सबके बावजूद एक सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका और ईरान के रिष्ते पर केवल परमाणु समझौता ही एक बड़ा कारक रहा है। कहीं इसकी गांठ इतिहास के धुंधले पन्नों में तो नहीं अटकी है। पड़ताल बताती है कि दोनों देषों के रिष्तों में 40 साल पुरानी एक गांठ है जिसने दरार को बड़ा कर दिया है। गौरतलब है कि 1979 में ईरानी क्रांति की षुरूआत हुई थी। तब तत्कालीन सुल्तान रेजा षाह पहल्वी के तख्तापलट की तैयारी हुई थी। असलियत यह भी है कि 1953 में अमेरिका की मदद से ही षाह को ईरान का राज मिला था और उसने अपने कार्यकाल में ईरान के भीतर अमेरिकी सभ्यता को फलने-फूलने तो दिया लेकिन कई प्रकार के अत्याचार भी देष के भीतर किये। स्थिति को देखते हुए धार्मिक गुरू सुल्तान के खिलाफ हो गये और 1979 एक ऐसी क्रांति को जन्म दिया जिसने ईरान की सूरत बदल दी। तब तत्कालीन सुल्तान ने अमेरिका की पनाह ली और इसी साल ईरान पर इस्लामिक रिपब्लिक कानून लागू किया गया था। ईरानी रिवोल्यूषन के विद्रोही सुल्तान की वापसी चाहते थे उन पर आरोप था कि खूफिया पुलिस की मदद से ईरान के ऊपर सुल्तान ने कई अपराध किये हैं। इस मांग को अमेरिका ने खारिज कर दिया। इस मामले को वियना संधि के खिलाफ बताते हुए तत्कालीन अमेरिकी राश्ट्रपति ने बाकायदा आर्मी आॅपरेषन ईगल क्लाॅ की मदद से बंधकों को छुड़ाने की कोषिष भी की जिसमें उसे सफलता नहीं मिली। इस आॅपरेषन के बाद ईरान के कई अमेरिका से सम्बंध रखने वाले नागरिकों को देष निकाला दिया गया, उन्हें नजरबंद किया गया उक्त बर्ताव के चलते अमेरिका और ईरान के रिष्ते बेहद खराब हो गये। 
ईरान और अमरिका के रिष्तों का तनाव एक बाद फिर अब 40 साल बाद ऐसे ही कुछ नये तनाव के बाद आमने-सामने है। तनाव इतना है कि युद्ध की आषंका जताई जा रही है। 40 साल पुरानी दुष्मनी का बदला लेना भी इसमें षामिल माना जा सकता है। विष्व की सबसे बड़ी सामरिक षक्ति होने के कारण अमेरिका ने हमेषा दुनिया के देषों पर दादागिरी दिखाई। उसने एक-एक करके इराक, अफगानिस्तान और लीबिया को तबाह किया। उत्तर कोरिया को बरसों से घेरता रहा। ईरान को भी घेर रहा है। ईरान पर प्रतिबंध लगाकर दुनिया के अन्य देषों पर भी दबाव बढ़ा दिया है। ईरान से सम्बंध रखने वाले को सीधी धमकी है कि अमेरिका के साथ वे सम्बंध आगे नहीं बढ़ा सकते। अमेरिकी प्रतिबंध मामले में भारत भी पीड़ित है। हालंाकि इस बीच यूरोप ने अमेरिका को चेताया कि ईरान से संघर्श न बढ़ाये। गौरतलब है कि ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने ईरान मामले में अमेरिका के अड़ियल रवैये की आलोचना की थी। ब्रिटेन ने तो यहां तक कहा कि हम खाड़ी में संघर्श के खतरे को लेकर चिंतित है। स्पेन ने भी अमेरिकी फैसले पर खेद जताया है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि अमेरिका ने ताकत के बूते दुनिया को नजरअंदाज भी किया है। ईरानी राश्ट्रपति का कहना है कि हमारा गणराज्य इतना महान है कि इसे कोई धमका नहीं सकता। हम कठिन दौर का मुकाबला करेंगे और दुष्मन को षिकस्त देंगे। यह सही है कि विकास के फलक पर तैरने वाली दुनिया जब नीयत में कमजोर पड़ती है तो वैष्विक नीतियां घुटन में चली जाती हैं। अतिरिक्त ताकत वाला अमेरिका ऐसे ही कुछ नीयत और नीति से ग्रस्त दिखता है। पष्चिम एषिया में उथल-पुथल के लिए तैयार अमेरिका को एक बार सोचना चाहिए कि दुनिया बदल रही है और उसके एकाधिकार पहले जैसे नहीं हैं। अमेरिका और ईरान में बढ़ रहे तनाव के बीच सऊदी अरब को भी नुकसान हुआ है। यूएई के अपतटीय क्षेत्र फुजैरा में सऊदी के दो तेल टैंकरों पर हाल ही में हमला हुआ पर यह साफ नहीं है कि इसका जिम्मेदार कौन है। हमले के पीछे अमेरिका का हाथ होने की बात कही जा रही है। गौरतलब है कि अमेरिका पहले आगाह किया था कि ईरान क्षेत्र में समुद्री यातायात को वह निषाना बना सकता है। तनाव बढ़ने की परिस्थिति को देखते हुए अमेरिका ने फारस की खाड़ी में एक युद्धपोत, बी-2 बमवर्शक विमान, पैट्रियट मिसाइल डिफेन्स सिस्टम की तैनाती की है। हालांकि ऐसा ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। गौरतलब है कि उत्तर कोरिया के मामले में भी अमेरिका प्रषान्त महासागर के द्वीप पर ऐसे ही हथियार लैस कर चुका है। सम्भव है कि ईरान को लेकर अमेरिका युद्ध की दषा में भी दुनिया को झोंक दे पर संयुक्त राश्ट्र संघ व यूरोप समेत दुनिया के तमाम देषों की यह जिम्मेदारी है कि अमेरिका पर कूटनीतिक दबाव बनाकर एक और खाड़ी युद्ध को जन्म लेने से रोकें।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: ushilksingh589@gmail.com

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