Monday, May 27, 2019

फिलहाल रोजगार चुनौती मे बना रहेगा


अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखने और रोज़गार के मोर्चे पर खरे उतरने की पुरानी चुनौती नई सरकार के सामने बेषक रहेगी। रिपोर्ट भी बताती है कि साल 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रम बल वाला देष होगा और इनके सही खपत के लिए बड़े नियोजन की दरकार रहेगी। भारत सरकार के अनुमान के अनुसार साल 2022 तक 24 सेक्टरों में 11 करोड़ अतिरिक्त मानव संसाधन की जरूरत होगी। हांलाकि यह रोज़गार की दृश्टि से सुखद आंकड़ा है पर हकीकत में उस समय क्या चित्र उभरेगा कहना मुष्किल है। इसके अलावा पेषेवर और कुषल को तैयार करना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सर्वे कहते हैं कि षिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी की स्थिति काफी खराब दषा में चली गयी है। देष में बेरोज़गारी की समस्या बहुत समय से चली आ रही है। वर्तमान में यह बीते 45 बरस की तुलना में सबसे अधिक का दर लिए हुए है। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में लोकसभा चुनाव 2019 को भारी मतों से भाजपा सहित एनडीए ने जीत लिया है। केन्द्र में नई सरकार षीघ्र ही संरचना और प्रक्रिया में आने जा रही है। नई सरकार के समक्ष तमाम चुनौतियां रहेंगी पर रोज़गार से जुड़ी चुनौती कहीं अधिक बड़ी होने वाली है। देष की आबादी में आज युवाओं की संख्या बड़ी है और लगातार इसमें बढ़ोत्तरी हो रही है। इस बढ़ते युवा आबादी को रोज़गार उपलब्ध कराना नई सरकार के लिए प्राथमिकता हो न हो पर चुनौती तो रहेगी। देष में रोज़गार की स्थिति क्या है और इसे कैसे बढ़ाया जा सकता है साथ ही इसके लिए बेहतर क्षेत्र क्या हो सकता है इत्यादि पर चिंतन-मनन लाज़मी है। जाहिर है कि 303 सीट से अधिक पर जीत हासिल करने वाली अकेले भाजपा बड़े बहुमत वाली सरकार है ऐसे में संकुचित व छोटे नियोजन अपेक्षाओं पर चोट का काम करेंगे। अब नई सरकार की यह नई जिम्मेदारी है कि रोज़गार की कसौटी पर खरा उतरकर दिखाये। 

सुषासन की परिकल्पना से पोशित मोदी की पांच साल पुरानी सरकार जिस पहल के साथ देष में रोज़गार की चुनौती से लड़ने का प्रयास किया वे न केवल नाकाफी रहे बल्कि जमीनी हकीकत में काफी कमजोर सिद्ध हुए हैं हालांकि इस पर सरकार की अपनी दलील है मसलन मेक इन इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया को लेकर ताकत झोंकी गयी मगर सरकार मुद्रा योजना के तहत दिये गये ऋण के आधार पर रोज़गार की संख्या साढ़े बारह करोड़ बताती रही। जिसे लेकर आज भी आषंका बनी हुई है। पिछले कुछ  वर्शों से देष लगातार 7 से 8 प्रतिषत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल कर रहा है। जाहिर है इसी अनुपात में रोज़गार भी बढ़े होंगे मगर इस गति से दुनिया के अर्थव्यवस्था के सामने भारत अभी भी कमतर है। आर्थिक विकास दर को इकाई से दहाई में तब्दील करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। इसमें बढ़त के साथ रोजगार में बढ़ावा स्वाभाविक है। वैसे 9 से 10 प्रतिषत तक वृद्धि दर करना सरकार की प्राथमिकता होगी तभी रोज़गार के अवसरों में भी तेजी आयेगी। यह षिकायत रही है कि 2016 की नोटबंदी के बाद सूक्ष्म, लघु और मझोले (एमएसएमई) उद्योग बड़े पैमाने पर बंद हो गये। फलस्वरूप बेरोज़गारों की फौज खड़ी हो गयी। देष में कुल मिलाकर 6 करोड़ से अधिक एमएसएमई विभिन्न क्षेत्रों में कारगर भूमिका निभा रहे हैं और कम-ज्यादा इक्का-दुक्का लोगों को रोज़गार देने के अवसर से भी युक्त हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कम पूंजी के साथ इसे गतिमान किया जा सकता है। हालांकि कई कानूनी प्रक्रियाएं व त्वरित और सस्ती वित्तीय सुविधा के कारण यहां भी कई कठिनाईयां हैं जिसे दूर किया जाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। इंटरनेषनल लेबर आॅर्गेनाइजेषन ने भारत में बीते कुछ वर्शों से जो बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़े उपलब्ध करा रहे हैं वे निराष करने वाले रहे हैं। रिपोर्ट 2017 में एक करोड़ 83 लाख लोगों को बेरोज़गार तो 2018 में एक करोड़ 86 लाख की बात कही थी। भारत रोज़गार 2016 की रिपोर्ट को देखें तो देष में कुल 11 करोड़ 70 लाख बेरोज़गार थे। जो मोदी सरकार के लिए पहले से बड़ी चुनौती है। आगे की चुनौती और पीछे की चुनौती मिलकर नई सरकार के लिए चुनौतियों का अम्बार सिद्ध होगी। 
पिछले कुछ वर्शों से यह बहस षुरू हुई हैं कि नौकरियां तो उपलब्ध हुई हैं लेकिन कुषल लोगों की ही कमी है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कह कर आलोचना भी झेल चुके हैं पर हकीकत है कि कुषल लोगों की कमी है। राश्ट्रीय कौषल मिषन को लेकर इस दिषा में उठाया गया कदम है पर सफल कितना है आंकड़े नहीं हैं। मानव श्रम को कुषल बनाने के लिए नये अभिकरणों को भी खोलना होगा। एक आंकड़े के अनुसार भारत में कौषल विकास के 15 हजार संस्थान हैं जबकि चीन में यही आंकड़ा 5 लाख और दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देषों में यह एक लाख से अधिक है। बेरोज़गारी से निपटने के लिए युवाओं को कुषल बनाना उसी का एक भाग है। रोज़गार के क्षेत्र में भारत की वास्तविक स्थिति पर नजर डालें तो आज भी देष की 50 फीसद से ज्यादा आबादी कृशि गतिविधियों में लगी है जबकि यहां जीडीपी तेजी से नीचे गिर रही है। श्रम षक्ति यहां अधिक है पर कुषलता के आभाव में इनका सही खपत नहीं हो पाता और एक छुपी हुई बेरोज़गारी का षिकार बने रहते हैं। आर्थिक जानकार भी कहते हैं कि नोटबंदी के कारण 35 लाख लोगों का रोज़गार चला गया और इसका असर भी युवाओं पर पड़ा। नई सरकार के सामने इनका भी ध्यान रखने वाली चुनौती रहेगी। साल 2025 तक अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान बढ़ कर 25 प्रतिषत तक लाये जाने का संकल्प सरकार का रहा है। मेक इन इण्डिया जैसे कार्यक्रमों के तहत चीन और ताइवान जैसे विनिर्माण केन्द्रों का अनुकरण किया गया पर नौकरी के मामले में स्थिति संतोशजनक नहीं कही जा सकती जबकि मेक इन इण्डिया को बेरोज़गारी दूर करने का एक उपकरण भी समझा जा रहा है। दर के हिसाब से देखें तो 1972-73 में बेरेाज़गारी दर की तुलना में अब और अधिक है। सवाल है कि नई सरकार क्या राह लेगी और कैसे ज्यादा नौकरियां देगी।
नई सरकार के लिए रोज़गार बड़ी चुनौती को देखते हुए एमएसएमई और पर्यटन को प्रोत्साहन देने को लेकर पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मण्डल की ओर से कुछ सुझाव देखने को मिलते हैं। विदेषी पर्यटकों को अकार्शित करना भारत की संरचनात्मक पहल पर निर्भर करेगा। दरअसल पर्यटन एक ऐसा क्षेत्र है जहां देष के भीतर ही निर्यात कारोबार किया जा सकता है। ऐसे में पर्यटक स्थलों को बेहतर बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए। सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी पर सभी को कुषल बनाया जा सकता है और कुषलता में भी संतुलन की चुनौती रहेगी न सभी को डाॅक्टरी पढ़ाया जा सकता है और न सभी इंजीनियरिंग और न ही मैकेनिक की एक बड़ी लाॅबी तैयार करने में कूबत झोंकनी चाहिए। कौषल का अपना एक माॅडल विकसित करना नई सरकार के लिए अच्छा रहेगा। हालांकि पहले भी इस पर काम किया गया है पर समय के अनुपात में यह बड़े बदलाव की मांग में है। देष में उच्च षिक्षा लेने वालों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 3 करोड़ से ज्यादा लोग स्नातक में प्रवेष लेते हैं और 40 लाख से अधिक परास्नातक में नामांकन कराते हैं। एक बड़ी खेप हर साल यहां तैयार होती है पर सरकारी नौकरी की चाह में बरसों बरस बेरोज़गार रहते हैं। ये षिक्षित और समझदार मानव श्रम है पर कुषलता के आभाव में बेरोज़गार बने रहते हैं। ऐसे में नई सरकार इनके लिए भी कुछ नया सोचे ताकि करोड़ों अच्छे श्रम सड़कों पर जाया न हो जाय बल्कि देष निर्माण में समावेषित किये जा सकें। 




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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