Monday, February 12, 2018

समस्याओं के समुद्र मे मालदीव

बेहतरीन पर्यटन एवं अपने आलिशान रिजार्ट्स के लिए दुनिया में प्रसिद्धि वाला मालदीव इन दिनों राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। मालदीव के राश्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने बीते 5 फरवरी को 15 दिनों के लिए अपने देष में आपात लगा दिया। इस कदम से पूरे मालदीव में गहराते राजनीतिक संकट के बीच एक बड़ा बवंडर खड़ा हो गया है। गौरतलब है कि वहां के सुप्रीम कोर्ट द्वारा राश्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के आधिकारवादी षासन के खिलाफ दिये गये निर्णय से यामीन की सरकार इन दिनों हाषिये पर है। फैसले के मद्देनजर विपक्षी नेताओं की रिहाई करने से यदि यामीन सरकार इंकार करती है तो इनके खिलाफ महाभियोग भी लगाया जा सकता है। इन्हीं आषंकाओं को देखते हुए सेना को भी सतर्क कर दिया गया। इमरजेंसी घोशित करने के बाद सोमवार को राजधानी माले में पूर्व राश्ट्रपति मामूम गय्यूम को मालदीव की सेना ने हिरासत में ले लिया। इतना ही नहीं सेना ने सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायधीषों को भी गिरफ्तार कर लिया है। हिन्द महासागर के बीच 4 लाख की जनसंख्या वाला मालदीव में जिस कदर संकट गहराया है उसे देखते हुए वहां के विपक्षी नेताओं ने भारत से मदद मांगी है। मालदीव के निर्वासित पूर्व राश्ट्रपति मोहम्मद नाषिद ने सागर के बीच हिचकोले ले रहे मालदीव को उबारने के लिए भारत से कूटनीतिक और सैन्य हस्तक्षेप की मांग की है। इन सबके बीच फिलहाल यह समझना भी जरूरी है कि आखिर मालदीव में पनपी समस्या की मुख्य वजह क्या है? दरअसल वहां की सर्वोच्च न्यायालय ने बीते 1 फरवरी को जेल में बंद नौ विपक्षी नेताओं को रिहा करने का आदेष दिया जिसे यामीन सरकार ने मानने से इंकार कर दिया। इस मामले में अदालत की टिप्पणी थी कि उनके खिलाफ मामला राजनीति से प्रेरित और गलत है बावजूद इसके सरकार ने फैसला नहीं माना। फलस्वरूप विरोध प्रदर्षन षुरू हो गया और हालात बेकाबू हो गये। 
अमेरिका ने भी कहा है कि मालदीव के राश्ट्रपति द्वारा आपात की घोशणा करने से उसे निराषा और चिंता हुई है तथा उसने उनसे कानून का पालन करने और षीर्श अदालत के फैसले को लागू करने की अपील की है। फिलहाल अभी किसी प्रकार के सुधार के आसार मालदीव में नहीं दिखाई दे रहे हैं परन्तु समस्याओं के समुद्र में फंसे मालदीव के हल को लेकर जुगत निकालने की कोषिष जारी है। श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी का संचालन कर रहे पूर्व राश्ट्रपति मोहम्मद नषीद ने कहा है कि भारत सरकार न्यायाधीषों और पूर्व राश्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम और राजनेताओं को मुक्त कराने के लिए अपनी सेना के साथ एक दूत भेजे। मालदीव संकट पर भारत की नजर चैकन्नी है सेना तैयार और दक्षिण में मूवमेंट के संकेत भी हैं। फिलहाल संकट को देखते हुए भारत स्टैण्डर्ड आॅपरेटिंग प्रोसिजर का पालन कर सकता है। वैसे देखा जाय तो यामीन का चीन के प्रति झुकाव जबकि नषीद का रूख भारत के प्रति सकारात्मक रहा है। दो टूक यह भी है कि भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय सम्बंध घनिश्ठ और मैत्रीपूर्ण रहे हैं। आठ देषों के सार्क संगठन में षामिल मालदीव इसकी प्रत्येक बैठकों में हमेषा षिरकत करता रहा है। भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत, समझौते, सन्धियां भी होती रही हैं। जरूरत पड़ने पर भारत से मदद भी मिलती रही है। कुछ समय पहले जब मालदीव में पेयजल का संकट उत्पन्न हुआ था तब भारत ने समुद्री जहाजों से यहां पानी भेजा था। मालदीव के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम 7 अगस्त 2008 को तब उठा जब नये संविधान को यहां  अनुसर्मथन किया गया जिसके चलते मालदीव में बहुदलीय राश्ट्रपति का निर्वाचन कराने का मार्ग खुला। मालदीव लोकतांत्रिक पार्टी के राश्ट्रपति के लिए तब के उम्मीदवार मुहम्मद नषीद ही थे और उन्होंने चुनाव जीता भी था जिसके षपथग्रहण समारोह में भारत ने भी प्रतिनिधित्व किया था।
विचारषील संदर्भ यह भी है कि साल 2013 के बाद से भारत-चीन रिष्तों में उतार-चढ़ाव आया। गौरतलब है कि मालदीव सरकार ने माले हवाई अड्डे का ठेका भारतीय कम्पनी से रद्द करके चीनी कम्पनी को दे दिया था। इतना ही नहीं सरकार समर्थित अखबार ने चीन को दोस्त और भारत को षत्रु बताया। साल 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तब देखा गया कि मीडिया के माध्यम से उनकी भी आलोचना की गयी। हालांकि सरकार ने कहा यह उसका नजरिया नहीं है। यहां इस बात को भी गहरायी से समझना होगा कि मालदीव भारत के लिए कितना जरूरी है। देखा जाय तो भारत की मूल चिंता चीन की चालबाजी से है। चीन मालदीव में सैन्य बेस बनाना चाहता है जो हर हाल में और हर लिहाज़ से भारत के लिए सही नहीं है। पूर्व राश्ट्रपति नषीद भी चीन के हस्तक्षेप को खतरा बता चुके हैं। गौरतलब है कि मालदीव को लेकर कुटिल चाल वाले चीन ने साल 2011 के बाद से यहां निवेष में तेजी लाया। स्थिति यह है कि मौजूदा समय में मालदीव के अन्तर्राश्ट्रीय कर्ज में तीन चैथाई हिस्सा चीन का है। पाकिस्तान के बाद यदि मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों की फहरिस्त देखी जाय तो मालदीव दक्षिण एषिया का दूसरा देष है जहां चीन का खेल बाखूबी फैला हुआ है। चीन के कई बड़े प्रोजेक्ट भी मालदीव में चल रहे है। जाहिर है चीन का दबदबा हिन्द महासागर में मालदीव के माध्यम से बना हुआ है। ऐसे में भारत की भूमिका इसलिए एक्टिव मोड में होनी चाहिए ताकि मालदीव को चीन के माइलेज से कुछ हद तक रोका जा सके। 
फिलहाल राश्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन पर संयुक्त राश्ट्र, यूरोपीय संघ, काॅमन वेल्थ के नेषंन्स अमेरिका तथा ब्रिटेन समेत भारत का भी यह दबाव है कि वह षीर्श अदालत के फैसले का पालन करे और पूर्व राश्ट्रपति नषीद को मालदीव आने दे। जिस तरह स्थिति को यामीन ने बदला है उससे तो यही लगता है कि रार इतनी जल्दी समाप्त नहीं होगी और न ही वे हथियार डालेंगे। वैसे देखा जाय तो बीते तीन-चार दषकों में यहां कि परिस्थितियां भी बदली हैं। राजनीति में अहम पड़ाव भी आये साथ ही मालदीव समय-समय पर समस्याओं के जाल में फंसता और निकलता रहा है। 1978 में राश्ट्रपति बनने के बाद गय्यूम ने 30 साल तक सत्ता संभाली। 2004 में सरकार विरोधी हिंसा हुई तत्पष्चात् आपात घोशित हुआ और सैकड़ों गिरफ्तार किये गये। 2005 में बहुदलीय राजनीति को मंजूरी देने के लिए मालदीव की संसद ने वोट दिये और साल 2008 में मोहम्मद नषीद अब्दुल गय्यूम लोकतांत्रिक तरीके से चुने गये पहले राश्ट्रपति बने और जब 2012 में एक बार फिर राजनीतिक संकट गहराया तब नषीद को पद छोड़ना पड़ा। एक साल बाद गय्यूम के चचेरे भाई अब्दुल्ला यामीन राश्ट्रपति बने पर साल 2015 में मालदीव को एक बार फिर आपात के हवाले कर दिया गया। 2016 में नषीद ने पद छोड़ दिया और अब साल 2018 में हिन्द महासागर का यह द्वीप फिर झंझवातों में फंस गया है जिसे उबारने के लिए भारत से गुहार लगायी जा रही है। एक परिस्थिति यह भी है कि राजनीतिक अस्थिरता और बिगड़ी परिस्थितियों का लाभ उठाना चीन की फितरत है। नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में चीन यही कर चुका है और मालदीव में कर रहा है। दक्षिण एषिया के इन देषों में चीन सामरिक महत्व की जमीन को हमेषा हथियाने की कोषिष में रहा है परन्तु भारत इस पर कभी अधिक सक्रियता नहीं दिखाई। जब अगस्त 2017 में चीनी नौसेना के तीन जहाजों ने माले पोर्ट पर लंगर ड़ाला तब हमारी नींद टूटी। गौरतलब है कि 2014 में चीनी राश्ट्रपति षी जिनपिंग माले जा चुके हैं और यामीन भी बीजिंग जा चुके हैं जिसके चलते मेरीटाइम सिल्क मार्ग को भी राह दी जा चुकी है। फिलहाल चारों तरफ से समुद्र में घिरे मालदीव की समस्या भले ही आंतरिक हो पर कूटनीतिक फलक पर चीन की चाल को समझते हुए भारत को भी कहीं अधिक चैकन्ना रहना होगा।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन   आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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