Monday, February 5, 2018

क्यों छोड़ रहे हैं करोड़पति इंडिया!

यह बात किसी के गले षायद ही उतरे कि एक ओर दुनिया का कोई भी देष कारोबारी सुगमता के साथ सुषासन के माध्यम से देष में समृद्धि दर बढ़ाने में लगा हो वहीं आर्थिक रूप से समृद्ध और षक्तिषाली लोग देष छोड़ने की होड़ में हो। एक चैकाने वाली रिपोर्ट यह है कि बीते साल 2017 में सात हजार करोड़पतियों ने इण्डिया छोड़ दिया। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 16 फीसदी की बढ़त के साथ देखा जा सकता है। न्यू वल्र्ड वेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार जहां 2015 में 4 हजार भारतीय करोड़पतियों ने अपना स्थायी निवास बदल लिया वहीं 2016 में यह आंकड़ा 6 हजार पहुंच गया जबकि 2017 में एक हजार की वृद्धि के साथ यह बादस्तूर बना रहा। रिपोर्ट को देखते हुए सवाल यह उठ खड़ा होता है कि आखिर देष में आर्थिक ताकत जुटाने वाले करोड़पति अपने ही देष से मोह क्यों भंग कर लेते हैं। एक ओर प्रधानमंत्री मोदी मेक इन इण्डिया से लेकर भारत की कई आर्थिक नीतियों को वैष्विक मंचों के माध्यम से बढ़ावा देने की फिराक में लगे रहते हैं और इस कोषिष में भी कि विदेषी निवेष बढ़े और देष के भीतर विनिर्माण को लेकर विदेषी कम्पनियां आकर्शित हों तो वहीं दूसरी ओर धन के बाहुबली नागरिकता बदलने में लगे हुए हैं। पिछले 17 सालों में भारत से 75 हजार से अधिक करोड़पति कर सुरक्षा और बच्चों की षिक्षा जैसे कार्यों के चलते विदेष पलायन कर गये। हालांकि पलायन करने के मामले में चीन अव्वल दर्जे पर है। न्यू वल्र्ड वेल्थ की ग्लोबल रिपोर्ट भी यह मानती है कि 21वीं सदी की षुरूआत से दूसरे देष की नागरिकता के लिए आवेदन एवं स्थान परिवर्तन में जबरदस्त तेजी आयी है। हालांकि यह समस्या भारत की ही नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि चीन के इतने ही समय में लाख से अधिक करोड़पति पलायन कर चुके हैं। पलायन की इस विधा से दुनिया का लगभग हर महाद्वीप प्रभावित है फ्रांस, इटली, रूस, इण्डोनेषिया से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक में इसे देखा जा सकता है। करोड़पतियों के अपने देष से पलायन करने के प्रमुख कारणों को देखें तो कुछ के लिए देष के भीतर व्याप्त संकट तो कुछ के लिए सुरक्षा कारण जिम्मेदार रहे हैं। कईयों ने तो बच्चों को उच्च षिक्षा उपलब्ध कराने को लेकर देष से विदाई ली है। भारत में पलायन के पीछे टैक्स भी एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है। 
रिपोर्ट को देखते हुए कई सवाल उभरने लाज़मी है। पहला यह कि जब किसी देष का करोड़पति दूसरे देष की नागरिकता लेता है तो क्या वह वहां कि अर्थव्यवस्था को बैठे-बिठाये बढ़त नहीं दे देता है और इसकी कीमत उसका मूल देष चुकाता है। दूसरा प्रष्न यह कि क्या देष विषेश में वाकई में हालात ऐसे हैं कि पलायन उनके लिए अनिवार्य विकल्प बन जाता है और अपना ही देष रास नहीं आता। भारत के परिप्रेक्ष्य में अगर बात किया जाय तो यह एक विकासषील अर्थव्यवस्था वाला देष है। सात दषकों की बड़ी कोषिष के बाद दुनिया के फलक पर ताकत के साथ उभरा है। इन्हीं सात दषकों में देष में 101 अरबपति के साथ हजारों-लाखों में करोड़पति भी पैदा हुए हैं जबकि इसका दूसरा अध्याय यह है कि यहीं पर हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और इतने ही अषिक्षित भी। जनवरी 2018 की आॅक्सफेम की आयी रिपोर्ट भी यह बताती है कि यहां सम्पदा का संकेन्द्रीकरण में व्यापक असंतुलन आया है। गौरतलब है कि 73 फीसदी सम्पदा मात्र एक प्रतिषत लोगों के पास है जबकि बाकी बची सम्पदा 99 फीसदी के हिस्से में है। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह इषारा करते हैं कि उत्थान और विकास की राह खोजते-खोजते भारत व्यापक आर्थिक असंतुलन वाला देष भी होता चला गया। 2016 में इसी रिपोर्ट के तहत यही आंकड़े इस ओर झुके थे कि 58 फीसदी सम्पदा केवल एक फीसदी के पास थी। करोड़पतियों का देष छोड़ने के कारण बेषक वाजिब हो सकते हैं परन्तु इनकी बढ़ती पलायन की दर देष के आर्थिक इरादों को न केवल कमजोर बल्कि दूसरों को उकसाने का काम कर सकती है। 
भारत बदल चुका है, भारत आयें और निवेष करें इस बात को उद्घाटित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को विदेषी मंचों पर कई बार देखा गया है। सरकार की यह भी कोषिष रही है कि देष के विकास को लेकर न केवल निवेष को बढ़ाया जाय बल्कि मेक इन इण्डिया के माध्यम से विदेषियों का ध्यान व्यापक तरीके से आकर्शित किया जाय। भारत सरकार ने रक्षा, खाद्य प्रसंस्करण समेत लगभग 25 क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देष्य से 2014 में मेक इन इण्डिया अभियान की षुरूआत की और दुनिया के कोने-कोने में इसे पहुंचाने की कोषिष की। बावजूद इसके इस बात को पूरी गारण्टी के साथ नहीं कहा जा सकता कि क्षेत्र विषश्ेा में मनचाही सफलता मिली है। सभी जानते हैं कि मेक इन इण्डिया की सफलता स्किल इण्डिया और स्टैण्डअप इण्डिया जैसे अभियानों की सफलता से जुड़ी है। ऐसे में मेक इन इण्डिया को प्रभावी बनाने के लिए कई जरूरी संदर्भों को अंगीकृत करना होगा। जब तक भारत अपनी कौषल क्षमता का विकास नहीं करता तब तक कई बातें कमतर रहेंगी और षायद निवेषक भी संदेह में रहेंगे। इतना ही नहीं कई ढांचागत कमजोरियों के कारण भी करोड़पतियों को यह लगता होगा कि विदेषों में अवसर बेहतर हैं। भारत के करोड़पति अधिकतर अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा, आॅस्टेलिया और न्यूजीलैण्ड जा रहे हैं। चीन के करोड़पतियों का भी कमोबेष ठिकाना यही है। इन देषों में बढ़े आकर्शण से यह भी परिलक्षित होता है कि यहां सुगमता और अवसर के साथ-साथ कई और चीजें कहीं अधिक बेहतरी के साथ हैं। षायद ऐसा ही संदर्भ देष के भीतर हो तो पलायन रोका जा सकता है। 
भारत उन पांच षीर्श देषों में षामिल है जहां से बड़ी संख्या में अति धनाढ्य या करोड़पति लोग विदेषों में जाकर बस रहे हैं। वैष्विक स्तर पर रिपोर्ट यह दर्षाती है कि आॅस्ट्रेलिया और अमेरिका में आकर्शण समान रूप से बना हुआ है। मौजूदा समय में आॅस्ट्रेलिया की जनसंख्या ढ़ाई करोड़ से थोड़ा ही ज्यादा है जबकि अमेरिका में तीस करोड़ लोग रहते हैं। आॅस्ट्रेलिया का मध्य इलाका जो रेगिस्तान है को छोड़ दिया जाय तो उसका चैतरफा ढांचागत विकास करोड़पतियों के आकर्शण का प्रमुख कारण हो सकता है। इतना ही नहीं षिक्षा, चिकित्सा समेत कई बुनियादी सुविधायें यहां उपलब्ध हैं। अमेरिका में आकर्शण का प्रमुख कारण व्यवसाय में तेजी से बढ़त और हाईवोल्टेज षिक्षा व्यवस्था का होना है। हालांकि नस्लभेद जैसी समस्या से अमेरिका भी उबरा नहीं है और आॅस्ट्रेलिया में भी गैर आॅस्ट्रेलियाई को लेकर असंतोश उभरते रहे हैं। दोनों देषों ने बीते समय में वीजा संषोधन के माध्यम से एषियाई देषों पर प्रहार करने की कोषिष पहले कर चुके हैं। भारत के करोड़पति संयुक्त अरब अमीरात तथा ब्रिटेन को भी प्राथमिकता देते हैं जबकि चीन के करोड़पति हांगकांग और सिंगापुर की ओर भी रूख करता है। हालांकि पलायन दुनिया के प्रत्येक कोने से हो रहा है तो क्या इस आधार पर यह समझ लिया जाय कि यह कोई बड़ी बात नहीं। बड़ी बात इसलिए क्योंकि हमारे करोड़पति तेजी से पलायन कर रहे हैं जबकि दूसरे देषों के करोड़पति हमसे आकर्शित नहीं हो रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इसे लेकर देर तक असंवेदनषील रहना उचित नहीं है बल्कि इस बात का चिंतन होना चाहिए कि आखिर देष से पलायन कर चुके करोड़पति अपने ही देष भारत में पूंजी का निवेष क्यों नहीं करते, मेक इन इण्डिया से लेकर स्टार्टअप इण्डिया समेत विनिर्माण के क्षेत्र में आगे क्यों नहीं आते? क्या इससे विदेषी निवेष को लेकर समस्याएं कम नहीं होती। विदेषी कम्पनियों को आकर्शित करने और उन्हें देष में कारोबार के लिए उकसाने हेतु जहां एड़ी-चोटी को जोर लगाया जा रहा है वहीं देष के करोड़पतियों को लुभाने में हम काफी हद तक नाकाम भी हो रहे हैं। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment