Monday, February 12, 2018

कितनी खरी रोजगार पर सरकार

सच तो यह है कि देश में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या एकाएक उत्पन्न नहीं हुई है बल्कि यह दषकों का नतीजा है। इतना ही नहीं लगातार बेरोजगारी खत्म करने के मंसूबे से भरी सरकारें इस मामले में न केवल फिसड्डी सिद्ध होती रहीं बल्कि इसके चलते खूब लानत-मलानत भी झेलती रही। मौजूदा मोदी सरकार कुछ इसी दौर से गुजर रही है। उन्होंने 2013 में आगरा में एक चुनावी रैली के दौरान यह वादा किया था कि सरकार गठन की स्थिति में प्रतिवर्श एक करोड़ रोजगार उपलब्ध करायेंगे परन्तु मामला कुछ लाख तक ही सरकार सिमट कर रह गया। साल 2017 में मोदी सरकार ने मैन्यूफैक्चरिंग, कन्स्ट्रक्षन तथा ट्रेड समेत 8 प्रमुख सेक्टरों में सिर्फ 2 लाख 31 हजार नौकरियां दी हैं जबकि 2015 में यही आंकड़ा एक लाख 55 हजार पर ही आकर सिमट गया था। हालांकि 2014 में 4 लाख 21 हजार लोगों को नौकरी मिली थी। इससे अलग एक आंकड़ा यह भी है कि जब यूपीए दूसरी बार सत्ता में आयी तब डाॅ0 मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 2009 में ही दस लाख से अधिक नौकरियां दी गयी थी। दो सरकारों का तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य यह इंगित करता है कि अब तक मोदी सरकार कांग्रेस के एक साल के आंकड़े को भी नहीं छू पायी है। गौरतलब है कि 2014 के घोशणापत्र में रोजगार बीजेपी का मुख्य एजेण्डा था। जिस प्रकार रोजगार को लेकर सरकार कमजोर दिखायी दे रही है उससे तो यही लगता है कि रोज़गार बढ़ाना तो दूर लाखों खाली पदों को ही भर दें तो भी गनीमत है। आंकड़े इस ओर इषारा करते हैं कि देष में 14 लाख डाॅक्टरों की कमी है, 40 केन्द्रीय विष्वविद्यालय में 6 हजार से अधिक पद खाली हैं। देष के सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जाने वाले आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी में भी हजारों में पद रिक्त हैं और इंजीनियरिंग काॅलेज 27 फीसदी षिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं जबकि 12 लाख स्कूली षिक्षकों की भी भर्ती जरूरी है। अब सवाल है कि सरकार महत्वपूर्ण रिक्तियों को बिना भरे रोजगार देने को लेकर चिंता मुक्त कैसे हो सकती है। इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए विपक्ष से लेकर बेरोजगार युवा तक सरकार पर लगातार हमले कर रहे हैं। 
मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाएं बेषक नागरिकों पर केन्द्रित हों पर नये डिजाइन और संस्कृति वाली मोदी सरकार जिसका लगभग चार साल का कार्यकाल हो रहा है वायदे पूरे करने में विफल रही है। सुषासन की परिकल्पना से पोशित सरकार जिस पहल के साथ देष में मेक इन इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया आदि को लेकर पूरी ताकत झोंकी वहां भी रोजगार की स्थिति संतोशजनक नहीं है। संयुक्त राश्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट भी इस मामले में मायूसी से भरे इषारे कर रही है। इसकी मानें तो साल 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 2016 की तुलना में थोड़ी बढ़ी है जबकि 2018 में भी यह क्रम जारी रहेगा। फैक्ट और फिगर यह दर्षा रहे हैं कि रोजगार की रफ्तार धीमी है और असंतोश से भी भरे हैं। वैसे मोदी सरकार इस दिषा में काम नहीं कर रही है कहना ठीक नहीं होगा। रोजगार के अवसर बढ़े इसके लिए सरकार ने कौषल विकास मंत्रालय बनाया। थर्ड और फोर्थ ग्रेड की सरकारी नौकरियों में धांधली न हो इसके लिए साक्षात्कार भी समाप्त किया और इसकी घोशणा स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने की। बाॅम्बे स्टाॅक एक्सचेंज और सीएमआईआई के अनुसार मनरेगा के तहत रोजगार हासिल करने वाले परिवारों की संख्या 83 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 67 लाख हो गयी। इस आंकड़े से यह परिभाशित होता है कि ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराने को लेकर सरकार का जोर सफल हुआ है परन्तु पढ़े-लिखे युवाओं की स्थिति बेकाबू हुई है। भारत एक समावेषी विकास वाला देष है यहां बुनियादी समस्याएं कदम-कदम पर चुनौती बनी हुई है। ऐसे में युवा बेरोजगारी को देर तक सह नहीं सकता ऐसे में करोड़ों की तादाद में पढे-लिखों का सब्र जवाब भी दे रहा है।
टेलीविजन के एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि पकौड़े बेचने वाले भी बेरोजगार नहीं है इस वक्तव्य को लेकर भी समस्याएं कुछ बढ़ी हैं। 65 फीसदी युवाओं वाले देष में एजूकेषन और स्किल के स्तर पर रोजगार की उपलब्धता न करा पाना ऊपर से पकौड़े जैसे संदर्भ का पनप जाना उचित तो नहीं है। हालांकि प्रधानमंत्री इसे उदाहरण के तौर पर कहा था परन्तु सरकार ने जिस प्रकार मुद्रा बैंकिंग से लोन लेने वालों को रोज़गार से जोड़ा वह भी बात पूरी तरह से गले से उतरती नहीं है क्योंकि रोजगार के लिए लोन लेना यह पूरी पड़ताल नहीं है कि सफलता भी सभी को उसी दर पर मिली होगी। वैसे देखें तो साल 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रम बल वाला देष होगा। अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखने के लिए रेाजगार के मोर्चे पर भी खरा उतरना होगा। भारत सरकार के अनुमान के अनुसार साल 2022 तक 24 सेक्टरों में 11 करोड़ अतिरिक्त मानव संसाधन की जरूरत होगी। ऐसे में पेषेवर और कुषल का होना उतना ही आवष्यक है। सर्वे कहते हैं कि षिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की स्थिति काफी खराब दषा में चली गयी है। 18 से 29 वर्श के षिक्षित युवा में बेरोजगारी दर 10.2 फीसद जबकि अषिक्षितों में 2.2 फीसदी थी। ग्रेजुएट में बेरोजगारी का दर 18.4 प्रतिषत पर पहुंच गयी है। अब यह लाज़मी है कि भविश्य में अधिक से अधिक षिक्षित युवा श्रम संसाधन में तब्दील हों तभी बात बनेगी। यदि खपत सही नहीं हुई तो असंतोश बढ़ना लाज़मी है। अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट भी बेरोजगारी के आंकड़े को बढ़ते क्रम में आंक रही है सम्भव है कि अभी राहत नहीं मिलेगी। देष में उच्च षिक्षा लेने वालों पर नजर डालें तो पता चलता है कि लगभग तीन करोड़ छात्र स्नातक में प्रवेष लेते हैं 40 लाख के आसपास परास्नातक में नामांकन कराते हैं जाहिर है एक बड़ी खेप हर साल यहां भी तैयार होती है जो रोज़गार को लेकर उम्मीद पालती है। देष में पीएचडी करने वालों की स्थिति भी रोजगार को लेकर बहुत अच्छी नहीं है।  
1 फरवरी के बजट में 70 लाख रोजगार आगामी वर्श के लिए निर्धारित किये गये हैं जो बेरोजगारी की दर को देखते हुए नाकाफी कहे जा सकते हैं। रोजगार कहां से बढ़े और कैसे बढ़े इसकी भी चिंता स्वाभाविक है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। ऐसे में स्वरोजगार एक विकल्प है। यहां बात पकौड़े की नहीं है चाहे युवा पढ़ा-लिखा हो या गैर पढ़ा-लिखा स्किल के अनुपात में रोजगार लेने का अवसर ले सकता है। रोबोटिक टेक्नोलाॅजी से नौकरी छिनने का डर फिलहाल बरकरार है इसमें संयम बरतने की आवष्यकता है। आॅटोमेषन के चलते इंसानों की जगह मषीनें लेती जा रही हैं इससे भी नौकरी आफत में है। छंटनी के कारण भी लोग दर-दर भटकने के लिए मजबूर है। जाहिर है जो संगठन के अंदर है उन्हें बनाये रखा जाय और जो बेरोजगार बाहर घूम रहे हैं उनके लिए रोजगार सेक्टर में नये उप-सेक्टर सृजित किये जायें। विष्व बैंक भी कहता है कि भारत में आईट इंडस्ट्री में 69 फीसदी नौकरियों पर आॅटेमेषन का खतरा मंडरा रहा है। सरकार को चाहिए कि ई-गवर्नेंस की फिराक में मानव संसाधनों की खपत को कमजोर न करें और बरसों से खाली पदों को तत्काल प्रभाव से भरे। दूसरे देषों में भी भारतीय युवाओं को स्किल के अनुपात में सरकारी सुविधा के अन्तर्गत रोजगार उपलब्ध कराने का रास्ता बनायें। स्वरोजगार के लिए ने केवल प्रेरित करे बल्कि सब्सिडी पर ऋण उपलब्ध कराये। हालांकि मुद्रा बैंकिंग से कुछ हद तक किया गया है पर रास्ता बहुत लम्बा है। यह बात भी समझना सही होगा कि काम के ऊंच-नीच में फंस कर युवा उम्र न खराब करें बल्कि कार्य विषेश को भी ऊंचा करे और स्वयं को भी ऊंचाई पर ले जायें। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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