Monday, February 19, 2018

नये मोड पर भारत-ईरान संबंध

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारत की पष्चिम की ओर देखो नीति दषकों पुरानी है जबकि इतिहास में झांका जाय तो यह सदियों पुरानी है। इन दिनों भारत और ईरान के बीच एक नई राह बनी है जो समतल भी है और बेहतर भी। इसका यह तात्पर्य नहीं कि राह अभी-अभी बनी है बल्कि दौर के अनुपात में इसमें मोड़ नये हैं। दोनों देषों के बीच बीते षनिवार को हुए 9 समझौतों में सब तो नये नहीं हैं पर द्विपक्षीय दृश्टि से इन्हें सुसंगत कहा जा सकता है। आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे और चाबहार परियोजना के षाहिद बहेस्ती बंदरगाह के पट्टे को भारत को देने का करार तो खास ही कहा जायेगा। दोनों देषों ने जिन अन्य मुद्दों पर रजामंदी दिखाई है उसमें दोहरे कराधान एवं राजस्व चोरी से बचने, प्रत्यर्पण सन्धि के क्रियान्वयन, स्वास्थ एवं चिकित्सा समेत व्यापार बेहतरी के लिए विषेश समूह बनाने जैसी कई बातें षामिल हैं। ईरानी राश्ट्रपति का यह संकल्प कि हम आतंकवाद और चरमपंथ से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं वाकई भारत की दृश्टि से काफी महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक गैस और पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में सहयोग का फैसला भी अच्छा है। प्रधानमंत्री मोदी का यह मानना कि रूहानी की यह यात्रा रिष्तों को मजबूती देगा बेषक सही है पर पष्चिम की ओर देखो नीति में जिस तरीके से भारत विस्तार लिये हुए है और इसे निरंतरता दे रहा है उसमें केवल देष विषेश पर केन्द्रित नहीं हुआ जा सकता। जाहिर है आसपास के देषों को भी ध्यान में रखना होगा। गौरतलब है कि पष्चिम एषिया के अरब देषों के बीच आपस में काफी तनी-तना है और भारत का सरोकार लगभग सभी से है। मसलन ईरान और इज़राइल फिलिस्तीन और इज़राइल आदि।
भारत और ईरान के बीच काफी खट्टे-मीठे अनुभव वाले सम्बंध भी हैं बावजूद इसके भारत यह जानता है कि ईरान एक बड़ी क्षेत्रीय षक्ति है जिसकी भौगोलिक स्थिति उसे पड़ोसी क्षेत्रों जैसे परषिया की खाड़ी पष्चिम एषिया, काॅकेषस, कैस्पियन तथा दक्षिण व मध्य एषिया में उसे महत्वपूर्ण बनाती है। गौरतलब है कि विष्व के प्राकृतिक गैस का 10 फीसदी भण्डार रखने वाला ईरान ओपेक देषों में दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है। जिसके चलते भारत और ईरान के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं। हालांकि भारत-पाकिस्तान-ईरान गैस पाईपलाइन समझौता लम्बे समय तक कागजी ही रहा और अब तो नाउम्मीद के ही संकेत हैं। प्रधानमंत्री मोदी साल 2016 के 22 मई को ईरान की दो दिवसीय यात्रा पर थे जहां महत्वपूर्ण समझौते भी हुए। तब इस दौरान भारत ने पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और यूरोप तक की अपनी पहुंच सुनिष्चित करने वाले चाबहार समझौते पर सहमति की मोहर लगायी। इसी चाबहार को अब बीते 17 फरवरी के समझौते में 18 माह तक संचालन करने का अधिकार भारत को दिया जाना दोनों देषों के सम्बंध को मिसाल में बदल सकता है। द्विपक्षीय समझौते रणनीतिक और कारोबारी दृश्टि से अहम माने जा सकते हैं जबकि एक बार फिर यह समझौता पाकिस्तान समेत चीन को जरूर खटकेगा। दरअसल इस समझौते के चलते भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच सीधे बंदरगाह स्थापित हो जायेंगे और इस इलाके में बढ़ते चीन और पाकिस्तान के असर कम हो जायेंगे। 
चाबहार समझौता भारत को मध्य एषिया से सीधे जोड़ देगा साथ ही रूस तक भी पहंुच आसान हो जायेगी। गौरतलब है कि साल 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा चाबहार को विकसित करने को लेकर सहमति बनी थी। तब से खटायी में पड़े चाबहार समझौते को मोदी ने 2016 में ईरान दौरे के दौरान संजीदा बनाने की सकारात्मक कूटनीति की थी जिसका प्रतिफल इन दिनों देखा जा सकता है। राश्ट्रपति हसन रूहानी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच हैदराबाद हाऊस की प्रतिनिधिमण्डल के बीच दोनों पक्षों ने सूफीवाद की षान्ति एवं सहिश्णुता की साझी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए आतंकवाद और कट्टरवाद फैलाने वालों को रोकने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। विदित है कि पाक प्रायोजित आतंकवाद से भारत त्रस्त रहा है। फिलहाल देखा जाय तो इन दिनों पाकिस्तान अपनी इन्हीं करतूतों के चलते दुनिया के निषाने पर है। मोदी की एक नीति यह रही है कि द्विपक्षीय मामला हो या बहुपक्षीय मंच पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए हमेषा वे एड़ी-चोटी का जोर लगाते रहे हैं जिसके नतीजे भी साफ दिखने लगे हैं। पाकिस्तान के भीतर आतंक को समाप्त करने को लेकर उसे अमेरिका से मिलती लगातार धमकी और इस बात का भी डर कि 18 से 23 फरवरी के बीच पेरिस में जारी फाइनेंषियल एक्षन टास्क फोर्स की सालाना बैठक में उसके खिलाफ कोई कड़े कदम उठाये जा सकते हैं। गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा जारी फण्डिंग पर पहले ही रोक लगायी जा चुकी है। 
वैसे भारत-ईरान के बीच मौर्य तथा गुप्त षासकों के काल से ही ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक सम्बंध रहे हैं। विष्व के सात आष्चर्य में षामिल ताजमहल का वर्णन प्रायः भारतीय षरीर में ईरानी आत्मा के प्रवेष के रूप में किया जाता है। स्वतंत्रता के षरूआती दिनों में दोनों देषों के बीच 15 मार्च 1950 को एक चिरस्थायी षान्ति और मैत्री सन्धि पर हस्ताक्षर भी हुए थे। हालांकि षीत युद्ध के दौरान दोनों के बीच अच्छे सम्बंध नहीं थे। ऐसा ईरान का अमेरिकी गुट में षामिल होने के चलते था इसके अलावा भी कई उतार-चढ़ाव समय के साथ रहे हैं पर अब दोनों देषों के बीच एक सहज कूटनीति विद्यमान है। दोनों देषों के बीच ऊर्जा, व्यापार और निवेष आदि को लेकर भी काफी कुछ मंथन हुआ है। कृशि एवं सम्बंधित क्षेत्र में भी समझौते हुए हैं। दो टूक यह भी है कि भारत पूरब के साथ पष्चिम की ओर भी देखता है। साथ ही दक्षिण एषिया में बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहता है परन्तु पाकिस्तान जैसों के चलते कुछ उद्देष्य पूरे नहीं हो रहे हैं साथ ही चीन की कुदृश्टि और उसकी पाकिस्तान की पीठ थपथपाने की नीति के कारण भारत को कहीं अधिक सधी हुई कूटनीति करनी होती है। यही कारण है कि जब भी सघन और व्यापक रणनीति देष की होती है तो दोनों पड़ोसियों को खलता है। फिलहाल ईरान के साथ मौजूदा सम्बंध एक बार फिर एक नये मोड़ को अख्तियार किया है। दो साल पहले मोदी ने कहा था कि भारत और ईरान की दोस्ती उतनी ही पुरानी है जितना पुराना इतिहास यह बात बिल्कुल सही है साथ ही इसमें कोई दुविधा नहीं कि ईरान से गाढ़े सम्बंध देष की गुणता को बढ़ाने के काम आयेंगे।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment