Thursday, February 1, 2018

बजट मे दिखी ग्रामीण भारत की झलक

वित्त मंत्री अरूण जेटली के पिटारे से निकले देश की आय-व्यय के विवरण में सबका विकास कितना निहित है यह मुद्दा हो सकता है पर बजट में गांव, कृषि, किसान और सामाजिक सुरक्षा को लेकर कोई हिचक दिखाई गयी फिलहाल इस आरोप से यह बजट मुक्त होता दिखाई देता है। कृशि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के इर्द-गिर्द रहने वाला यह बजट वर्ग-विषेश को बड़ी राहत देता है परन्तु मध्यम दर्जे को इस बात के लिए पूरी तरह निराष कर देता है कि उसे आयकर के मामले में कतरा भर भी छूट नहीं मिली। इस बजट से 2016 में पेष बजट की याद भी ताजा हो जाती है जब ग्रामीण भारत को तवज्जो देने की कोषिष की गयी थी। सिलसिलेवार तरीके से इसकी आर्थिकी की नाप-जोख करें तो पता चलता है कि इसमें विकास को पैर के बल ही खड़ा करने की कोषिष की गयी है परन्तु 180 डिग्री पर नहीं कहा सकता। यह इसे मोदी सरकार के कार्यकाल का अन्तिम पूर्ण बजट है और पहले से यह उम्मीद जतायी जा रही थी कि बजट में लोचषाीलता रहेगी और इसकी गुंजाइष दिख भी रही है। राजकोशीय घाटा जस का तस बना हुआ है अर्थात् 3.5 फीसद से मामूली घटाव के साथ 3.3 फीसद लाने की बात कही गयी है जबकि पहले इसे दो फीसदी के नीचे करने की बात होती रही है। देखा जाय तो आलोचना के कई पक्ष बजट में हैं बावजूद इसके देखना यह है कि देष में सर्वाधिक पीड़ित कौन है और राहत किसे ज्यादा चाहिए। जाहिर है इस श्रेणी में बेहाल ग्रामीण भारत, कृशि और किसान समेत मजदूर व मजबूर षामिल हैं। जिसे ध्यान में रखते हुए अरूण जेटली इन्हीं की ओर सरपट दौड़ते दिखे। हालांकि नोटबंदी और जीएसटी के बाद साल 2017 आर्थिक उथल-पुथल के लिए जाना जाता है। जीएसटी के बाद यह पहला बजट है ऐसे में वित्त मंत्री के आर्थिक विज्ञान पर देष भर की नजरें टिकी थीं। सभी अपने हिस्से की सहूलियत इसमें जरूर देख रहे होंगे। इसका एक राजनीतिक पक्ष यह भी है कि सरकार को वर्श 2018 में यह भी साबित करना है कि वह उद्योगपतियों की हिमायती है, किसानों की दोस्त भी है और सेवा क्षेत्र में लगे करोड़ों जनमानस के साथ भी है पर वह इस पर कितनी खरी है यह विमर्ष का विशय है।
कृशि और किसानों में बदलाव भरने की बात करते हुए साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी का लक्ष्य बजट में एक बार फिर दोहराया गया जिसके लिये कई योजना और परियोजना भी गिनाई गयी। कम लागत में अधिक फसल उगाने पर जोर, उपज की कीमत डेढ़ गुना देने पर फोकस करना और दो हजार करोड़ की लागत से कृशि बाजार तैयार करना। इतना ही नहीं 42 मेगा फूड पार्क बनाये जाने का एलान भी इसी दिषा में एक कोषिष है। खाद्य प्रसंस्करण के मामले में खर्च दोगुना और टमाटर, प्याज, आलू के रखरखाव के लिए पांच सौ करोड़ की लागत का आॅप्रेषन फ्लड की तर्ज पर आॅप्रेषन ग्रीन भी बड़े काम का हो सकता है। सभी जानते हैं कि ये साल भर प्रयोग की जाने वाली सब्जियां हैं यदि इन्हें सड़ने से रोकने और बनाये रखने में सफलता मिलती है तो किसानों को फायदा मिल सकता है। आर्गेनिक ख्ेाती को बढ़ावा देने की बात भी इसमें निहित है। गांव में 22 हजार हाटों को कृशि बाजार में तब्दील करने से किसानों को अपना अन्न बेचना आसान हो जायेगा। उज्जवला योजना के तहत तीन करोड़ गैस और सौभाग्य योजना के तहत 4 करोड़ गरीब घरों को मुफ्त बिजली कनेक्षन की बात वाकई गरीबों को बड़ी राहत देने वाला है। साल 2022 तक हर गरीब के पास अपना घर होगा जिसके लिए दो करोड़ घर बनाने होंगे। 
आगामी वित्त वर्श में 51 लाख घर बनाने का इरादा बजट में जताया गया है। कृशि उत्पादों के निर्यात को सौ अरब डाॅलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य भी काबिल-ए-तारीफ है पर सरकार को यह समझना जरूरी होगा कि जब वित्त मंत्री यह कहते हैं कि अन्न उत्पादन 275 मिलियन टन और फल तथा सब्जी उत्पादन 300 मिलियन टन हुआ है जो पिछले वर्श की तुलना में अधिक है तो सवाल है कि फिर किसानों की हालत में सुधार क्यों नहीं है? लगभग चार साल के मोदी षाासन काल में भी किसानों ने आत्महत्या की है और बेमौसम बारिष और मानसून के कमजोर होने के चलते किसान हाषिये पर भी गये हैं बावजूद इसके श्रम और पूंजी झोंकने के साथ-साथ तन-मन लगाकर अन्न का उत्पादन भी बढ़ाया है परन्तु गुरबत से वे नहीं उबरे। इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि श्रम और पूंजी झोंकने वाले किसान के लिए बनने वाली नीतियां सटीक नहीं है। बजट में खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना करने की बात कही गयी है। देखने वाली बात यह है कि खरीदारी के समय क्या किसान को उचित मूल्य मिलेगा यह षिकायत रही है कि समर्थन मूल्य से नीचे दरों पर अढ़ातियों को किसान अनाज बेचने के लिए मजबूर इसलिए हुए क्योंकि सरकार के गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं थी। पिछले वर्श दलहन की खेती करने वाले किसानों ने 30 फीसदी अधिक उत्पादन किया है परन्तु समर्थन मूल्य से कम में इसलिए बेचना पड़ा क्योंकि सरकारी गोदाम विदेष से खरीदे गये दालों से भर दिये गये। दो टूक यह भी है कि यदि आधी आबादी को खपत करने वाली खेती-किसानी की ओर बजट झुकता भी है तो कोई हैरत भरी बात नहीं है। फिलहाल ग्रामीण भारत को बजट में फलक पर रखने की कोषिष तो की गयी है षायद इसकी एक बड़ी वजह मोदी सरकार का यह जताना भी रहा हो कि वे किसानों के साथ हैं साथ ही न्यू इण्डिया की यह पगडण्डी भी हो सकती है परन्तु गांव और किसान की किस्मत तब बदलेगी जब जो कहा जा रहा है वैसा ही किया जाय।
बजट देष का आर्थिक आइना भी है जिसमें सभी नागरिक अपनी सूरत-ए-हाल को निहार सकते हैं। युवाओं ने इसमें रोजगार खोजने की कोषष जरूर की होगी और क्यों न करें जब राजनीतिक दल इसी प्रकार के बड़े-बड़े वायदे इरादे जता कर उनका वोट लेते हैं तो बदले में यह देना ही होगा। हालांकि विमर्ष को सीमित रखते हुए इतना कह सकते हैं कि इस बजट में 70 लाख रोजगार की बात परिलक्षित हुई है। युवा 75 करोड़ से ज्यादा है जाहिर है यह ऊँट के मुंह में जीरा है। बड़ोदरा में रेलवे विष्वविद्यालय बनेगा, षिक्षा और षिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करेंगे, 24 मेडिकल काॅलेज भी खोले जायेंगे। प्रधानमंत्री फेलो स्किल केन्द्र भी भारत में दिखेंगे। साथ ही नेषनल हेल्थ पाॅलिसी सेन्टर भी अवतार लेंगे। बीमारी, गरीबी तथा बीमा के मामले में भी बजट में बहुत अच्छी-अच्छी बातें कहीं गयी हैं। नोटबंदी और जीएसटी के बाद विकास हुआ है अरूण जेटली ने पूरे मन से यह बात स्वीकार की है। आयकर के मामले में वृद्धि 12.6 फीसदी हुई बावजूद इसके आयकर स्लैब में परिवर्तन करना जरूरी नही समझा गया। अप्रत्यक्ष कर भी पहले से बहुत बेहतर बताया गया है। रोचक यह भी है कि काॅरपोरेट टैक्स 30 फीसदी से 25 फीसदी किया गया है। स्वास्थ, षिक्षा और सामाजिक सुरक्षा की चिंता बजट में मानो कृशि और ग्रामीण के बाद दूसरे स्थान पर हो। कुल मिलाकर दिल्ली के प्रदूशण से लेकर गांव के अन्तिम व्यक्ति तक की चर्चा बजट में हुई है। देष की जनता को आगे के एक साल तक इस बजट के आर्थिक नीति से सबकुछ हासिल करना है और सरकार को आगामी विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक इस बजट से भारत की तस्वीर बदली है इसके लिए भी रोडमैप तैयार रखना है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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