Wednesday, February 28, 2018

खुली अर्थव्यवस्था पर आकर्षण कितना!

भारत में विदेषी निवेष और उससे जुड़े आकर्शण को लेकर मोदी सरकार बीते चार वर्शों से वे सारे हथकण्डे अपनाये जो विदेषी निवेष हेतु वृहत्तम हो सकता था। इसके लिए मेक इन इण्डिया से लेकर स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया तथा डिजिटल इण्डिया समेत रेड टेप को खत्म करने व रेड कारपेट जैसी तमाम नीतिगत मापदण्डों पर कदमताल किया। बावजूद इसके क्या भारत में विदेषी निवेष संतोशजनक कहा जा सकता है यदि निवेष को संतोशजनक मान भी लेते हैं तो भी दूसरा प्रष्न उठता है कि क्या मानव विकास सूचकांक में इसकी उपादेयता पूरी तरह प्रासंगिक हो रही है। हालात को देखते हुए ऐसा कहना सम्भव नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि 2014-15 में भारत में विदेषी निवेष का प्रवाह 27 प्रतिषत बढ़कर करीब 31 अरब डाॅलर रहा जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा माॅरिषस का था। हालांकि इसी क्रम को 35 अरब डाॅलर के तौर पर भी आगे इसे देखा जा सकता है। उपरोक्त से यह परिलक्षित होता है कि देष में प्रत्यक्ष विदेषी निवेष को लेकर बढ़त तो मिली है पर आधारभूत ढांचा समेत गुणवत्ता से भरे जीवन के मामले में कितनी सफलता मिली इस पर राय अलग-अलग है। प्रधानमंत्री जीडीपी के आधार पर भारत को पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था मान रहे हैं जबकि इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देष में हर पांचवां गरीब और हर चैथा अषिक्षित है साथ ही 65 फीसदी युवा के लिए रोजगार सृजन की संतोशजनक लकीर भी लगभग नदारद है। आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि डाॅ0 मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मात्र एक साल अर्थात् 2010 में 10 लाख से अधिक रोजगार दिये गये थे जबकि मोदी के अब तक के लगभग चार साल के अपने षासनकाल में भी यह आंकड़ा नहीं छू पायी है। हालांकि मुद्रा बैंकिंग के तहत ऋण लेने वालों से लेकर स्टार्टअप तक को रोजगार से जोड़कर सरकार बता रही है पर इनका हाल क्या है और इसकी सफलता कितनी रही इसका आंकड़ा नहीं है। 
बीते 27 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी भारत-दक्षिण कोरिया समिट में विदेषी निवेष का आह्वान करते हुए कहा कि भारत विष्व की सबसे खुली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और दुनिया के साथ कारोबार करने के लिए तैयार है। उक्त से यह आषय है कि निवेष के मामले में भारत पहले की तुलना में कहीं कुछ बदलाव लिये हुए है। जिस प्रकार मोदी दुनिया में भारत को परोसने का काम किया है साथ ही यह संदेष दिया कि विदेषी सफल और कुषल व्यापार भारत के साथ कर सकते हैं वाकई सराहनीय है। इतना ही नहीं विनिर्माण को लेकर यदि कोई देष सुरक्षित स्थान की खोज में है तो वह स्थान भारत है जैसे तमाम संदर्भ मोदी के वक्तव्य में देखे जा सकते हैं। वैसे देखा जाय तो भारत अब खुला बाजार तो है परन्तु नियमों की जटिलता से अभी पूरी तरह मुक्त नहीं है। साल 2017 में 7 हजार करोड़पति भारतीयों ने देष छोड़ दिया इसके पीछे कई कारणों में एक वजह यहां कि कर व्यवस्था को भी बताया गया था। समिट में प्रधानमंत्री मोदी 1400 से अधिक पुराने नियम-कानूनों को पूरी तरह हटाने की भी बात कही। षायद वो कहना चाहते हैं कि कारोबारी सुगमता के लिए जटिलताओं को समाप्त कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि औद्योगिक लाइसेंसों की वैधता तीन साल से बढ़ा 15 साल और इससे अधिक कर दिया गया है। जिस प्रकार कारोबार में सुषासन को मोदी सरकार ने गढ़ने की कोषिष की है उससे लगता है कि पुरानी व्यवस्था से जो नई व्यवस्था पनपी है वह लाइसेंस के मामले में तुलनात्मक ढ़ीली हुई है। पीएम मोदी यह मानते हैं कि 65 से 70 फीसदी उत्पाद बिना लाइसेंस के बनाये जा सकते हैं गौरतलब है कि 1991 में उदारीकरण के लागू होने के साथ लाइसेंसिंग प्रणाली में व्यापक ढ़ीलापन लाया गया था। उसी का नतीजा है कि देष की अर्थव्यवस्था खुली और उसी को मोदी और खोल रहे हैं। तब वित्त मंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह थे जो बाद में 2004 से 2014 तक देष के प्रधानमंत्री भी रहे। देखा जाय तो मोदी उन्हीं के उत्तराधिकारी हैं। 
अर्थषास्त्र का एक सामान्य नियम यह भी है कि पैसे का काम पैसे से ही होगा। जाहिर है या तो देष में विनिर्माण के लिए स्वयं की ताकत हो अन्यथा विदेषी निवेष को देष की ओर आकर्शित किया जाय। भारत और चीन में भले ही राजनीतिक व कूटनीतिक असहमति हो बावजूद इसके चीनी एफडीआई में वृद्धि हुई है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कष्मीर के कुछ हिस्से से गुजरने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में चीन का 46 बिलियन डाॅलर के निवेष पर भारत ने एतराज जताया जो सही है। बीजिंग ने परमाणु आपूर्ति समूह की सदस्यता लेने के लिए भारत के प्रयासों को असफल किया इसके अलावा संयुक्त राश्ट्र की सुरक्षा परिशद् में जैष-ए-मोहम्मद के सरगना आतंकी अज़हर मसूद के मामले में भी अड़ंगा लगाया परन्तु व्यापार के मामले में मौजूदा 70 अरब डाॅलर की स्थिति को सौ अरब के लिए रजामंद है। साफ है कि आर्थिक मसलों पर चीन भारत के साथ सुगम रवैया रखता है जबकि कूटनीतिक मामलों में वह भारत से 36 का आंकड़ा रखता है। चीन में सूचना प्रौद्योगिकी, कृशि और दवा उद्योगों में चीन के बाजार में घुसने के भारत के प्रयासों को एक दषक से भी अधिक समय से अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है जबकि इलैक्ट्राॅनिक उपकरण से लेकर तमाम उत्पादों को भारत के बाजार में वह उतार कर बड़े हिस्से पर कब्जा किये हुए है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पिछले साल करीब 47 अरब डाॅलर तक पहुंच गया था जाहिर है कि भारत चीन से मामूली पा रहा है जबकि चीन मालामाल हो रहा है। भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था में माॅरिषस जैसे छोटे देषों का निवेष सर्वाधिक है इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन का नम्बर आता है। माॅरिषस का निवेष इसलिए भी अधिक माना जाता है क्योंकि टैक्स हैवन माॅरिषस को हवाला की जगह भारत की ब्लैक मनी को व्हाइट करने का रूट भी कहा जाता है। 2016-17 की रिज़र्व बैंक की एफडीआई रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सिंगापुर और जापान निवेष के मामले में क्रमषः चैथे और पांचवें मामले में हैं। चैंकाने वाला तथ्य यह है कि कुल विदेषी निवेष का लगभग 22 फीसदी हिस्सा माॅरिषस का है। 
भारत बदल रहा है और भारत के प्रति दुनिया का नजरिया भी ऐसा प्रधानमंत्री मोदी मानते हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि समय के साथ देष का स्वाभाविक विकास हुआ है पर जिस सम्भावना के साथ सत्ताधारियों ने भारत का भाग्य बदलने का प्रयास किया वह अभी अधूरा है। देष में भ्रश्टाचार भी काफी पाया गया है और सबसे अधिक निवेष बीते तीन सालों में ही हुआ है ऐसा मोदी मानते हैं पर यह बात दावे से नहीं कहा जा सकता कि इन दोनों कृत्यों से देष का प्रत्येक सेक्टर सुधरा है। भले ही भारत में कारोबारी माहौल सुधरा हो पर नोटबंदी के चलते रोजगार भी छिने हैं और कारोबार भी बंद हुए हैं। हालांकि ग्लोबल रैंकिंग में भारत 130वें से 100वें नम्बर पर है। जीएसटी को टैक्स सुधार का सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है परन्तु अभी इसे ठीक करने की ही कोषिष चल रही है इसके बारे में भी समुचित राय तभी हो सकेगी जब करदाताओं का जीवन पहले से अधिक सुगम हो। यह भी सच है कि भारत में निवेष को बेहतर संरक्षण मिल सकता है बावजूद इसके विदेषी पूरा विष्वास नहीं जुटा पा रहे हैं। इसके पीछे भारत में कभी कदार बिगड़ने वाला माहौल भी जिम्मेदार है। अच्छा कानून और अच्छी कर व्यवस्था न केवल भारतीयों के लिए बेहतर होगा बल्कि विदेषी निवेष को भी बढ़ावा देगा यह कहीं अधिक सटीक बात है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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